माय विज़न फॉर इंडिया – अब्दुल कलाम | APJ Abdul Kalam Speech

माय विज़न फॉर इंडिया – अब्दुल कलाम / APJ Abdul Kalam Speech – डॉ. कलम ने हैदराबाद के इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी (IIT) में 25 मई 2011 को अपना सबसे बेहतरीन भाषण दिया था, जहाँ उन्होंने भारत के बारे में अपने विज़न को बताया था। आइये Dr. Abdul Kalam का पुरे भाषण को पढ़ते है।

IIT टेक-फेस्ट उद्घाटन भाषण –
APJ Abdul Kalam Speech
हैदराबाद

APJ Abdul Kalam Speech - My Vision For India

माय विज़न फॉर इंडिया – अब्दुल कलाम – APJ Abdul Kalam Speech – My Vision For India

मैंने भारत के लिये तीन सपने देखे है। हमारे 3000 साल के इतिहास में, दुनिया के अलग-अलग कोनो से लोग भारत में आये और हमें लूटकर चले गए, हमारी जमीन हथिया ली, हमारे दिमाग को गुलाम बनाया। एलेग्जेंडर से लेकर ग्रीक, तुर्क, मुघल, पुर्तगाल, ब्रिटिश, फ्रेंच, डच सभी ने हमारे देश को लुटा। ये सभी हमारे देश में आये हमें लूटा और जो कुछ भी हमारा था वो सब ले गए। लेकिन आज तक हमने ऐसा दुसरे किसी देश के साथ नही किया। हमने किसी को भी अपना गुलाम नही बनाया।

हमने किसी भी देश की जमीन नही हथियाई, किसी देश की संस्कृति को ठेस नही पहुचाई और ना ही किसी देश के लोगो के जीने के तरीके को बदलने की कोशिश की। ऐसा हम क्यों करते है? क्योकि हम दूसरो की आज़ादी का सम्मान करते है।

इसीलिए मेरा पहला सपना आज़ादी ही है। मेरा मानना है की भारत ने आज़ादी का पहला सपना 1857 में ही देख लिया था, जब हमने आज़ादी की लढाई शुरू की थी। इसी आज़ादी को बादमे हमे सुरक्षित किया और उसका पालन पोषण कर आगे आज़ादी का निर्माण किया। यदि हम आज़ाद नही होते तो आज कोई हमारा आदर नही करता।

मेरा दूसरा सपना भारत के विकास का है। पचास साल से हमारा देश विकासशील देश है। लेकिन यह समय देश को विकसित देश बनाने का है। जीडीपी की दर से देखा जाये तो हम दुनिया के शीर्ष 5 देशो में से एक है। बहुत से क्षेत्रो में हमारा विकास दर 10% है। हमारा गरीबी स्तर भी दिन-ब-दिन कम होते जा रहा है। आज हमारी उपलब्धिया वैश्विक स्तर पर आंकी जा रही है। लेकिन फिर भी हम अपने देश को एक विकसित देश के रूप में नही देख पा रहे है, इसकी सबसे बड़ी वजह आत्मविश्वास, आत्मनिर्भरता और स्व-निश्चितता में कमी होना है। क्या ये गलत नही है?

मेरा तीसरा सपना भी है। भारत दुनिया में सबसे उपर होना चाहिये। क्योकि मेरा ऐसा मानना है की भारत जबतक दुनिया में सबसे उपर खड़ा नही होता, तबतक कोई हमारा सम्मान नही करेंगा। क्योकि ताकत ही ताकत का सम्मान करती है। हमें केवल सैन्य शक्ति से ही नही बल्कि आर्थिक शक्ति से भी मजबूत होने की जरुरत है। हमें हाथ में हाथ मिलाकर आगे बढ़ना है। मेरी किस्मत अच्छी है की मैंने तीन महान दिमाग के साथ काम किया है।

स्पेस डिपार्टमेंट के डॉ. विक्रम साराभाई, प्रोफेसर सतीश धवन और नुक्लेअर मटेरियल के जनक डॉ. ब्रह्म प्रकाश। मै बहुत लकी हूँ की इन तीन महाज्ञानियों के साथ मुझे काम करने का मौका मिला। मैंने अपने करियर में चार मील के पत्थर देंखे :

20 साल इसरो (ISRO) में बिताये। मुझे भारत के पहले सॅटॅलाइट लांच व्हीकल, SLV3 का प्रोजेक्ट डायरेक्टर बनने का मौका मिला था। उसी का जिसने पहले रोहिणी को लांच किया था। मेरी विज्ञान की जिंदगी में इसने बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इसरो के बाद मै DRDO में शामिल हो गया और वहाँ मुझे भारत के मिसाइल प्रोग्राम का हिस्सा बनने का मौका मिला।

1994 में जब जब अग्नि की सभी जरूरतों को पूरा करने के बाद उसका संबंध मौसम विभाग से हुआ तो वह मेरा दूसरा सबसे आनंदित पल था।

11 और 13 मई को डिपार्टमेंट ऑफ़ एटॉमिक एनर्जी और DRDO ने नुक्लेअर टेस्ट में अहम भागीदारी निभाई थी। यह मेरे लिये तीसरा सबसे आनंदित पल था। नुक्लेअर टेस्ट की टीम में हिस्सा लेने की ख़ुशी और दुनिया को ये बताने की ख़ुशी की इसे भारत ने बनाया है, इसका असर हमारे देश के विकास पर जरुर पड़ेगा यह मै जानता था। इस समय मुझे अपने भारतीय होने पर काफी गर्व महसूस हो रहा था।

हम जानते थे की हमें अग्नि को विकसित करने की जरुरत है और इसके लिये हमने उसे पुनर्स्थापित किया, और नये मटेरियल का उपयोग कर अग्नि को विकसित किया। जिसमे बहुत ही हल्के मटेरियल कार्बन का उपयोग किया गया था।

एक दिन निज़ाम इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंस के ओर्थपेडीक सर्जन मेरी प्रयोगशाला को देखने आये। उन्होंने मटेरियल को उठाया और पाया की वह काफी हल्का है और वे मुझे अपने अस्पताल ले गए और मुझे अपने मरीज दिखाने लगे। जहाँ एक छोटी लड़की और लड़का तीन किलो के मेटलिक कैलिपर को अपने पैरो पर बांधकर पैरो को घसीट रहे थे।

उन्होंने मुझसे कहाँ : कृपया मेरे मरीजो के दर्द को कम कीजिये। तीन हफ्तों में ही हमने ओर्थोसिस 300 ग्राम का कैलिपर तैयार किया और उसे ओर्थपेडीक सेंटर ले गए। वहाँ बच्चो को अपनी आँखों पर भरोसा नही हो रहा था। अब वे आसानी से कही भी आ-जा सकते थे। उनके माता-पिता के आँखों में भी अपने बच्चो को देखकर आंसू झलक रहे थे। यह मेरा चौथा सबसे आनंदित पल था।

यहाँ का मीडिया इतना नकारात्मक क्यों है? क्यों हम भारत में अपनी ही ताकत और उपलब्धियों को बताने से शर्माते है? हमारा देश एक महान देश है। हमारी देश के सफलता की बहुत कहानियाँ है लेकिन हम कभी उन्हें जानने की कोशिश नही करते। क्यों?

  • दूध के उत्पादन में हमारा देश पहला है।
  • रिमोट सेंसिंग सॅटॅलाइट में हम नंबर 1 पर है।
  • गेहूँ के उत्पादन में हमारा देश दूसरा सबसे बड़ा देश है।
  • चावल का उत्पादन करने वाला हमारा देश दूसरा सबसे बड़ा देश है।

डॉ. सुदर्शन को ही देखिये, उन्होंने एक जनजातीय गाँव को आत्मनिर्वाह, स्वचलित गाँव में परिवर्तित कर दिया।

ऐसी बहुत सी उपलब्धियाँ हमारे देश ने हासिल की है लेकिन मीडिया हमारे हमारे देश की बुरी बातो, आपदाओ, असफलताओ और गंदगी को ही प्रकाशित करता है।

एक बार जब मै टेल अवीव में था तब मै इसरायली अखबार पढ़ रहा था। इसके एक दिन पहले ही वहाँ कई अटैक और बमबारी हुई थी जिसमे कई लोगो की जान भी चली गयी थी। लेकिन फिर भी अखबार के पहले पेज पर एक यहूदी इंसान की तस्वीर छपी हुई थी जिसने रेगास्तानी जमीन को पाँच साल में हरी-भरी जमीन में बदल दिया था।

यह एक प्रेरणादायी तस्वीर थी जो कई लोगो को जगा सकती थी। जबकि अटैक, बमबारी, मरे हुए लोगो की जानकारी अखबार के अंदर के पन्नो पर थी। भारत में हम सिर्फ मौत. दर्द, आतंकवाद, क्राइम के बारे में पढ़ते है। हम इतने ज्यादा नकारात्मक क्यों है?

एक और प्रश्न : हम एक राष्ट्र के तौर पर अपने देश को विदेशी चीजो से क्यों ग्रसित करते है? हम विदेशी टीवी चाहते है, हम विदेशी शर्ट चाहते है, हम विदेशी टेक्नोलॉजी चाहते है। क्या ऐसा करना जरुरी है? क्या हम इस बात को नही जानते की आत्मसम्मान आत्मनिर्भरता से ही आता है? मै हैदराबाद में जब अपना लेक्चर दे रहा था तब एक 14 साल की लड़की ने मुझे ऑटोग्राफ के लिये पूछा । तब मैंने उससे पूछा की जिंदगी में उसका क्या लक्ष्य है। उसने जवाब दिया : मै विकसित भारत में रहना चाहती हूँ। उसके लिये, तुम्हे और मुझे मिलकर एक विकसित भारत का निर्माण करना है। आपको इस बात का ऐलान करना चाहिये की भारत एक विकासशील देश नही बल्कि पूरी तरह से विकसित देश है।

क्या आपके पास 10 मिनट है? मुझे प्रतोशोध के साथ आने की आज्ञा दीजिये। आपको अपने देश के लिये 10 मिनट मिले है? यदि हाँ, तो इसे पढिये, वर्ना आपकी इच्छा।

  • तुम कहते हो की हमारी सरकार अयोग्य है।
  • तुम कहते हो की हमारा कानून बहुत पुराना है।
  • तुम कहते हो की महानगरपालिका कूड़े-कचरे को नही उठाती।
  • तुम कहते हो की फ़ोन काम नही करता, रेल्वे एक जोक है, हमारी एयरलाइन दुनिया में सबसे ख़राब है, गाड़िया कभी अपने निर्धारित स्थान तक नही पहुचती।
  • तुम कहते हो की हमारा देश कुत्तो से भरा हुआ है और देश में गड्डे ही गड्डे है।
  • तुम कहते हो, कहते हो और कहते रहते हो।
  • तुमने इसके लिये क्या किया? इस रास्ते में सिंगापुर के एक इंसान को लीजिये।

सिंगापुर में आप सिगारेट को रास्तो पर नही फेंक सकते और ना ही दुकान के अंदर सिगारेट का सेवन सकते है। तुम उसी तरह उनके जमीन के अंदर के रास्तो का गर्व करोंगे जैसे वे लोग है। बगीचे वाले रास्ते पर से गाड़ी चलाने के लिये तुम्हे वहाँ 5$ देने की जरुरत होंगी, वो भी तुम 5 PM से 8 PM तक ही चला सकते हो। यदि तुम गाड़ी पार्क करना चाहो तो तुम्हे वहाँ टिकट लेनी पड़ेंगी। यदि तुम्हे किसी रेस्टोरेंट में रहना है तो वहाँ सबसे पहले तुम्हे अपनी पहचान बतानी होंगी।

सिंगापुर में तुम कही भी कुछ भी नही बोल सकते। दुबई में रामदान के समय में आप सामाजिक स्थानों पर कुछ खाने की हिम्मत भी नही कर सकते। अपने सिर को जेद्दाह से ढंके बिना आप कही बाहर भी नही निकाल सकते।

वाशिंगटन में तुम 55 mph से ज्यादा की स्पीड में गाड़ी नही चला सकते और ना ही ट्रैफिक पुलिस को ये कह सकते, “जानता है मै कौन हूँ?” तुम ये भी नही कह सकते की मै उसका या इसका बेटा हूँ। ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैण्ड में खाली नारियल को आप कही भी नही डाल सकते आपको उसे कचरे के डिब्बे में ही डालना होता है। टोक्यो में आप पान को कही भी नही थूंक सकते। बोस्टन में आप जाली दस्तावेज और सर्टिफिकेट बनाने की कोशिश क्यों नही करते? हम अभी भी तुम से ही बात कर रहे है।

तुम अपने देश में विदेशी सिस्टम का सम्मान कर सकते हो लेकिन अपने देश में अपने ही देश के सिस्टम का सम्मान नही कर सकते। भारतीय जमीन पर कदम रखते ही तुम रास्तो पर पेपर और सिगारेट फेंकना शुरू कर देते हो। यदि विदेशो में आप विदेशो की तरह रहतो हो और उनके नियमो का पालन करते हो तो अपने ही देश में हमारे नियमो का पालन क्यों नही करते?

एक बार इंटरव्यू में बॉम्बे के प्रसिद्ध म्युनिसिपल कमिश्नर मी. तिनैकर ने कहा था की, “अमीर लोगो के कुत्ते सडको पर घूमते है और सभी जगहों पर गन्दगी कर चले जाते है।” इसके बाद उनपर बहुत से लोगो ने अपनी प्रतिक्रियाये भी व्यक्त की थी और बहुत से लोगो ने उनकी आलोचना भी की थी। अमेरिका में कुते का मलिक खुद अपने कुत्ते के गंदगी करने के बाद उसे खुद साफ़ करता है। ऐसा ही जापान में भी होता है। लेकिन क्या भारतीय नागरिक ऐसा करते है? बल्कि हम गंदगी फ़ैलाने के लिये सरकारी पोल का चुनाव करते है और फिर गंदगी के लिये उसी सरकार को दोषी ठहराते है।

  • क्या यह हमारी जिम्मेदारी नही है?
  • क्या हर काम सरकार का ही होता है?
  • क्या सरकार को ही हमारे घर?
  • आस-पास और रास्तो का कूड़ा-कचरा साफ़ करना चाहिये? क्या इसीलिए हमने उनका चुनाव किया है?

हम सरकार से आशा रखते है की वह रास्तो को साफ़ रखे लेकिन उनके द्वारा बनाये कूड़ादान में हम कभी कचरा डालना पसंद नही करते। हम चाहते है की रेल्वे में हमें साफ़ बाथरूम मिले लेकिन हम रेल्वे के बाथरूम का सही उपयोग करना नही जानते।

हम चाहते है की भारतीय एयरलाइन और एयर इंडिया अच्छा खाना दे लेकिन हम उनकी बदनामी करना और बद्तमीजी से बात करना नही छोड़ सकते। जब सामाजिक मुद्दों की बात की जाये विशेषतः महिलाओ से संबंधित जैसे दहेज़, कन्या भ्रूण हत्या या इत्यादि तो ऐसे मौको पर हम विशाल पोस्टर बनाते है और रास्तो पर घेराबंदी कर शोर-शराबा करते है। और सिस्टम को बदलने की मांगे करते है। लेकिन कैसा होंगा यदि हम अपने ही बेटे की शादी में दहेज़ लेने से इंकार कर दे?

कौन इस सिस्टम को बदलना चाहेंगा? सिस्टम में क्या-क्या शामिल है? देखा जाये तो सिस्टम में हमारे ही पडोसी, घर के सदस्य, शहर, दुसरे समुदाय और चुनी हुई सरकार शामिल है। लेकिन जैसा की हम व्यवहार करते है उसके अनुसार सिस्टम में सब शामिल है सिवाय तुमको और मुझको छोड़कर। जब सिस्टम को बदलने के लिये सकारात्मक योगदान देने की बात आती है तो हम अपनेआप को अपने परिवार के अंदर बंद कर देते है। और चाहते है की कोई इंसान आये और कोई चमत्कार कर सबकुछ बदल जाये। जब भारत अच्छा नही लगता तो हम न्यू यॉर्क चले जाते है। जब न्यू यॉर्क असुरक्षित लगता है तो हम इंग्लैंड चले जाते है।

जब इंग्लैंड में हमें बेरोजगारी दिखाई देती है तो हम गल्फ देशो में चले जाते है। और जब गल्फ में भी हमे युद्ध दिखाई देते है तो हम वापिस अपने परिवार के साथ भारत आ जाते है।

आज हर कोई देश के बाहर जाकर रहना चाहता है। लेकिन् कोई भी सिस्टम को खुद होकर सुधारना नही चाहता।

Thank you

तो आइये हम वो करे जो डॉ. कलाम हमसे चाहते थे। और देश के तरक्की का सपना पूरा करे।

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