“डैडी” अरुण गवली की सच्ची कहानी | Arun Gawli real story

Arun Gawli – अरुण गवली एक भारतीय राजनेता और भूतपूर्व गैंगस्टर है। अरुण गवली और उनके भाई किशोर (पप्पा) 1970 के दशक में मुंबई अंडरवर्ल्ड में आए थे और आते ही वे रामा नाइक और बाबु रेशीम की क्रिमिनल गैंग “बायकुल्ला कंपनी” में शामिल हो गये, जो मध्य मुंबई के बायकुल्ला, परेल और सात रास्ता क्षेत्र का संचालन करते थे। 1988 में पुलिस एनकाउंटर में रामा नाइक के मारे जाने के बाद, अरुण गवली ने गैंग को अपने हातो में ले लिया और अपने घर, दगडी चौल से वह सभी क्रिमिनल धंधो को संचालित करता था।

उसके नियंत्रण में मध्य मुंबई की ज्यादातर क्रिमिनल घटनाये उस समय होती थी। जबकि 80 और 90 के दशक के अंत में, गवली गैंग दावूद इब्राहीम की डी-कंपनी के साथ संघर्ष करते हुए भी नजर आयी थी। साथ ही गवली अखिल भारतीय सेना राजनैतिक पार्टी, महाराष्ट्र के संस्थापक भी है।

“डैडी” अरुण गवली की सच्ची कहानी | Arun Gawli real story

Arun Gawli

अरुण गवली प्रारंभिक जीवन और निजी जिंदगी | Arun Gawli early life & real story

अरुण गवली का जन्म भारत में महाराष्ट्र जिले के अहमदनगर जिले के कोपरगाँव में हुआ था। उन्होंने महाराष्ट्र की एम.एल.ए. आशा गवली से शादी की थी और उनके दो बच्चे महेश और गीता भी है। गीता चिंचपोकली असेंबली निर्वाचन क्षेत्र की नगरसेविका भी बनी हुई है। गवली का भांजा सचिन अहीर भी एक एम.एल.ए. है और आवास के राज्य का भूतपूर्व महाराष्ट्रियन मंत्री भी है। गवली के अंकल हुकुमचंद यादव एक भारत के मध्यप्रदेश राज्य के खंडवा शहर के नामी विधायक है।

अरुण गवली की क्रिमिनल गतिविधियाँ :

अरुण गवली मुंबई टेक्सटाइल मिल्स में काम करता था, जो मध्य बीच के परेल, चिंचपोकली, बायकुल्ला और कॉटन ग्रीन जैसे इलाको में मौजूद थी। 1970 से लेकर 1980 के अंत तक, मुंबई की टेक्सटाइल मील इंडस्ट्री को बहुत सी हडतालो का सामना करना पड़ा था और परिणामतः मिल्स को ताला लगाना पड़ा था। परिणामस्वरूप बहुत से युवा किशोर (जिसमे गवली भी शामिल थे) इससे बेरोजगार हो गये और इसी वजह से वे लोग पैसे कमाने के शोर्ट-कट को ढूंढने निकले, जिसके चलते वे हफ्ता वसूली जैसा काम करने लगे थे। इसके बाद गवली “बायकुल्ला कंपनी” में शामिल हुआ गया, जिसका नेतृत्व रामा नाइक और बाबू रेशीम करते है।

1984 में, रामा नाइक ने दावूद इब्राहीम को उसके मुख्य प्रतिस्पर्धी और मुंबई के पठान गैंग के लीडर समाद खान को मात देने में मदद की। 1984 से 1988 तक, बायकुल्ला कंपनी ने भी दावूद की स्थानिक क्रिमिनल गतिविधियों में सहायता की, जिसने खुद को पुलिस की गिरफ्त से बचाया था और खुद दुबई जाकर बस गया था। 1988 के अंत में नाइक पुलिस एनकाउंटर में मारा गया था।

बाद में अरुण गवली ने बायकुल्ला के दगडी चौल में बनी गैंग का कारोबार अपने हातो ले लिया। गवली का ऐसा मानना था की जिस एनकाउंटर में नाइक की मौत हुई थी, वह योजना दावूद ने ही बनाई थी और तभी से 1988 से 1990 तक दावूद की डी-कंपनी गैंग और गवली की गैंग के बीच भीषण गैंगवॉर की शुरुवात हो गयी। गैंग वॉर के समय में गवली की गैंग काफी निर्दयी और खतरनाक थी और इसी वजह से डी-कंपनी के बहुत से गैंगस्टर जैसे शरद शेट्टी, छोटा राजन, छोटा शकील और सौत्या (सुनील सावंत) को मुंबई छोड़कर दुबई भागना पड़ा था।

इसके बाद गवली के गैंग की भिडंत अमर नाइक और अश्विन नाइक की गैंग से हुई, जो अपनी गैंग को सात रास्ता के लाल विटाची चौल से संभालता था।

बहुत सी बार मुंबई पुलिस ने दगडी चौल की बिल्डिंग पर भी रेड डाली और अंत में वे गवली के अंडरवर्ल्ड ऑपरेशन को तोड़ने में सफल भी हुए। क्रिमिनल गतिविधियों के लिए गवली को कई बार गिरफ्तार भी किया गया और कई बार लम्बे समय तक उन्हें जेल में भी रहना पड़ा था। लेकिन बहुत से केसों में पर्याप्त सबुत ना होने की वजह से उन्हें छोड़ दिया जाता था। लेकिन अंत में शिव सेना के लीडर कमलाकर जमसंदेकर की हत्या करने के आरोप में वे फस ही गये और कोर्ट ने अगस्त 2012 को उन्हें सजा सुनाई। जमसंदेकर की ह्त्या के आरोप में पुलिस ने गवली और उनके साथ ग्यारह दुसरे लोगो को भी दोषी माना।

अरुण गवली की राजनीती | Arun Gawli politics

अरुण गवली ने खुद की राजनीतिक पार्टी अखिल भारतीय सेना की स्थापना की। 2004 में गवली की नियुक्ती मुंबई के चिंचपोकली निर्वाचन क्षेत्र से अखिल भारतीय सेना के सदस्य के रूप में एम.एल.ए. के पद पर की गयी। कहा जाता है की गवली को स्थानिक लोगो से मिल रही सहायता की वजह से उसकी ताकत दिन प्रति दिन बढती ही जा रही थी। और इसी बात ने गवली को दुसरे मराठी ना बोलने वाले लोगो से थोडा अलग बनाया था।

गवली का राजनीतिक करियर संकट में आ गया था जब उनका भतीजा और पार्टी का विधायक, सचिन अहीर पार्टी से निकलकर उन्ही के विरोध में खड़ा हुआ और शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गया। इतना ही नहीं बल्कि बाद में लोकसभा के चुनाव में अहीर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी का टिकट लेकर गवली के खिलाफ चुनाव में भी खड़ा हुआ। परिणामस्वरूप उन दोनों को हार का सामना करना पड़ा और जीत शिव सेना की तरफ से लढने वाले एम.पी. मोहन रावले को मिली। गवली की बेटी गीता हाल ही में बृहनमुंबई म्युनिसिपल कारपोरेशन के चुनाव में कॉर्पोरटर के रूप में नियुक्त की गयी।

अरुण गवली पर फिल्में | Arun Gawli Movie

सन 2015 में मराठी फिल्म दगडी चौल में मकरंद देशपांडे का किरदार, जिसे डैडी भी बुलाया जाता था, वह असल में अरुण गवली के ही जीवन पर आधारित है। जिस्न्मे अंकुश चौधरी ने अरुण गवली का किरदार बड़ी अच्छी तरह निभाया है।

2017 में आने वाली फिल्म डैडी भी गवली के ही जीवन पर आधारित है, जिसमे अर्जुन रामपाल, गवली का किरदार निभा रहे है।

अरुण गवली के बारे में कुछ रोचक बाते | Arun Gawli unknown facts

गैंगस्टर से एक राजनेता बनने वाले अरुण गवली के बारे में कुछ रोचक बातो को जानना बहुत जरुरी है, क्योकि उस समय दावूद की गैंग डी-कंपनी का विरोध कर उन्हें परास्त करने काफी मुश्किल था, जो गवली की गैंग ने बखूबी करके दिखाया।

अरुण गवली ने मेट्रिक तक ही अपनी पढाई पूरी की है और फिर उसके बाद वे मील में काम करने लगे थे। इसके बाद 1970 में उन्होंने गैंगस्टर सदाशिव पावले से हात मिला लिया और अ-सामाजिक कार्य करने लगे थे।

भयंकर और सबसे डरावनी तिकड़ी : अरुण गवली, रमा नाइक और बाबु रेशीम ने मिलकर बायकुल्ला गैंग की शुरुवात की थी और इन तीनो ने उस समय मुंबई की अंडरवर्ल्ड की दुनिया में राज किया था। मुंबई के बायकुल्ला, परेल, चिंचपोकली, लालबाग और दादर जैसे प्रसिद्ध इलाको पर इसी गैंग का राज था।

दिल से एक सच्चा प्रेमी : गवली पहले से ही जुबैदा मुजावर के प्यार में पड़ चूका था और उनके परिवार के खिलाफ जाकर उन्होंने शादी कर ली थी। शादी के बाद जुबैदा उर्फ़ आशा गवली दगडी चौल की लेडी डॉन बनी। गवली के करीबी बाबु रेशीम और रमा नाइक भी इस शादी से खुश नही थे लेकिन वे कुछ नही कर सके।

नया बॉस : 1988 के पुलिस एनकाउंटर में रमा नाइक के मारे जाने के बाद गवली ने गैंग की कमान अपने हात में ले ली और दगडी चौल से गैंग को सँभालने लगा था।

गवली और हसीना पारकर का कनेक्शन : दावूद की बहन हसीना पारकर के पति इब्राहीम पारकर को अरुण गवली ने ही मार दिया था। इसी गर्मी के चलते बदले की आग में 1990 में दावूद ने गुप्त आदमियों ने गवली के बड़े भाई किशोर की हत्या कर दी थी। कहा जाता है की पारकर की हत्या ही गवली और डी-कंपनी के बीच की दुश्मनी का मुख्य कारण बना।

दोस्त ही दुश्मन में बदल गया : 1980 के अंतिम महीनो में गवली का संबंध दावूद से हुआ। ऐसा माना जाता है की बायकुल्ला गैंग डी-कंपनी की क्रिमिनल गतिविधियों में उनकी सहायता करती थी। लेकिन जब रमा नाइक दावूद के फाइनेंसर शरद शेट्टी के साथ हुए गंभीर विवाद के बाद उन्होंने दावूद ही सहायता करना बंद कर दिया था। गवली का ऐसा मानना था की नाइक के एनकाउंटर में दावूद का हात था। इसके बाद से दोनों गैंग एक दुसरे के खून की प्यासी हो गयी और आपस में ही एक-दुसरे के दुश्मन बन चुके थे।

अदालत के पीछे : शिवसेना कॉर्पोरटर कमलाकर जमसंदेकर की हत्या के मामले में दोषी पाए जाने के बाद मुंबई की MCOCA विशेष कोर्ट ने अरुण गवली और उनके साथ 11 दुसरे सहकारियो को भी सजा सुनाई। फ़िलहाल वे मुंबई की तलोजा सेंट्रल जेल में बंद है। दोषी ठहराए जाते समय गवली के उपर 40 अलग-अलग केस पहले से ही दर्ज थे।

एक समय था जब शिवसेना गवली की सहायता करती थी। शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे ने एक रैली में यहाँ तक कह दिया था की अगर पकिस्तान के पास दावूद है, तो भारत के पास गवली है। लेकिन कुछ वजह से शिवसेना और गवली के रिश्तो में दरार आ गई।

खाड़ी को आसानी से हासिल करना : गवली ने अखिल भारतीय सेना के नाम से अपनी खुद की पार्टी की स्थापना की और 2004 के चुनाव में चिंचपोकली निर्वाचन क्षेत्र से महाराष्ट्र असेंबली के चुनाव में खड़े भी हुए। उस समय वे तक़रीबन 11,000 से भी ज्यादा वोट के अंतर से जीते। इसके बाद चिंचपोकली निर्वाचन क्षेत्र 2008 में बायकुल्ला असेंबली की सीट बना चूका था।

 

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