“अरुणिमा सिन्हा” बहादुर बेटी के साहस की कहानी | Arunima Sinha Biography

Arunima Sinha in Hindi

हर किसी की जिंदगी का कोई ना कोई लक्ष्य होता है कुछ लक्ष्य उनकी कामयाबी की दास्तां लिख जाते है और कुछ की कहानियां दूसरों के लिए प्रेरणा का कारण बन जाती है। अक्सर जब हम ऐसे दोराहे पर होते है जहां हमें लगता है शायद यही हमारी कहानी का अंत है कई बार वही अंत किसी नई कामयाबी की कहानी की शुरुआत होता है।

जैसा कि अरुणिमा सिन्हा के साथ हुआ। अरुणिमा सिन्हा माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने वाली पहली भारतीय विकलांग महिला है जिसे पहले वॉलीबॉल खिलाड़ी के रूप में जाना जाता था। उन्हें भारत में प्रेरणा का प्रतीक माना जाता है जिन्होंने पैर के बिना माउंट एवरेस्ट जीता। माउंट एवरेस्ट हिमालय पर्वत की श्रृंखला का वो पर्वत जो दुनिया में सबसे ऊंचे पर्वत के तौर पर जाना जाता है। माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई 29, 002 फीट है।

दुनिया की सबसे ऊंची चोटी पर आम लोगों का चढ़ाना भी मुश्किल है ऐसे में एक विकलागं महिला का इस चोटी पर विजय प्राप्त करना किसी सपने से कम नहीं है। लेकिन कहते हैना जिंदगी के रास्ते और आपकी हिम्मत आपको हर कठिनाई पार कराई ही देती है। शायद इसलिए अरुणिमा सिन्हा भी ये कारनामा कर पाई।

लेकिन ये कहानी शुरु कैसे हुई, क्या अरुणिमा सिन्हा बचपन से विकलांग थी, क्या अरुणिमा सिन्हा हमेशा से माउंट एवरेस्ट चढ़ना चाहती थी? तो आईये जानते हैं भारत देश की बहादुर बेटी “अरुणिमा सिन्हा की साहस की कहानी –Arunima Sinha Biography

“अरुणिमा सिन्हा” बहादुर बेटी के साहस की कहानी – Arunima Sinha Biography in Hindi

अरुणिमा सिन्हा का जन्म 20 जुलाई, 1988 को उत्तर प्रदेश में हुआ था। उन्होनें अपने पिता को तीन साल में खो दिया। उनको बचपन से ही खेल में रूचि थी इसलिए वह एक राष्ट्रीय वॉलीबॉल खिलाड़ी बन गईं। और समय के साथ वालीवाल के क्षेत्र में अंतराष्ट्रीय स्तर पर अपने देश को पहचान दिलाना ही अरुणिमा सिन्हा का लक्ष्य भी बन गया था।

अरुणिमा सिन्हा की मेहनत में कोई कमी नहीं थी। और उनके घर वालों को भी यकीन था कि एक दिन अरुणिमा अपना सपना जरुर पूरा कर लेगी, लेकिन जरुरी नहीं जैसा सोचे वैसा ही किस्मत भी चाहे। एक दुर्घटना ने नाटकीय रूप से उनका जीवन बदल दिया।

वह दुर्घटना ऐसी थी की 12 अप्रैल साल 2011 की रात जब अरुणिमा सिन्हा पद्मावती एक्सप्रेस से लखनऊ से दिल्ली आ रही थी। उसी दौरान रात में कुछ चोरों ने ट्रेन पर हमला कर दिया और अरुणिमा की सोने की चैन खींचने की कोशिश की। जब अरुणिमा ने उनका विरोध किया तो उन चोरों ने अरुणिमा को चलती ट्रेन से फेंक दिया।

ट्रेन से गिरने से अरुणिमा का एक पैर ट्रेन के नीचे आ गया। वह पूरे रात ट्रेन ट्रैक पर पड़ी थी, और 49 से अधिक ट्रेनें उनके पैर पर से जा रही थीं लेकिन वह खुद को बचाने में असमर्थ थीं। सुबह में, ग्रामीणों ने उसे गंभीर चोट के साथ अस्पताल ले गयें और डॉक्टर ने उनकी जान बचाने के लिए घुटने के नीचे से उनका पैर काट दिया।

उन्हें आगे के इलाज के लिए ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (एम्स), दिल्ली में लाया गया और संस्थान में चार महीने बिताए। अरुणिमा को कृत्रिम पैर लगाया गया था और फुल बेड रेस्ट की सलाह दी गई थी अरुणिमा के परिवार को लग रहा था कि शायद उनकी बेटी का भविष्य अब अंधकार में है क्योंकि वो विकलांग हो चुकी है।

अरुणिमा सिन्हा कैरियर – Arunima Sinha Career

उसके दुर्घटना के बाद उन्होंने मानसिक रूप से बेहतर कुछ करने का फैसला किया है। अरुणिमा अब वालीवाल तो नहीं खेल सकती थी। लेकिन इस बीच अरुणिमा के मन में माउंट एवरेस्ट चढ़ने की इच्छा जागृति होने लगी। क्योंकि अरुणिमा उन सब लोगों को जवाब देना चाहती थी जिन्हें लगता था कि अब शायद वो जिंदगी में कुछ नहीं कर पाएगी। इसलिए उन्होंने वॉलीबॉल करियर को छोड़कर माउंट एवरेस्ट जीता है।

उनके इस फ़ैसले को सुनकर, डॉक्टरों और अन्य लोगों ने बात करना शुरू कर दिया कि उनके दिमाग में समस्या है। लेकिन वह वास्तव में निर्धारित थी और चाहती थी कि सपना वास्तविकता में बदल जाए।

क्रिकेटर युवराज सिंह से प्रेरित होने के कारण, अस्पताल से रिहा होने के बाद वह पहली भारतीय महिला माउंट एवरेस्ट विजेता बचेन्द्री पाल के पास गयी। बछेंद्री पाल ने भी अरुणिमा की हालत को देखते हुए उन्हें ट्रेनिंग देने से इंकार कर दिया।

लेकिन फिर बछेंद्री पाल को भी अरुणिमा की जिद्द के आगे घुटने टेकने पड़े। तब उन्होंने बैचेंद्री पाल के निर्देश के तहत प्रशिक्षण लेना शुरू कर दिया। पर्वतरोही बछेंद्री पाल के निरीक्षण से अरुणिमा सिन्हा ने अपनी ट्रेनिंग पूरी की और 21 मई 2013 को दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट को फतह कर एक नया इतिहास रचते हुए ऐसा करने वाली पहली विकलांग भारतीय महिला होने का रिकार्ड अपने नाम कर लिया।

इसी बीच एक समय ऐसा भी आया जब अरुणिमा की पूरी टीम ने उनसे कहा कि वो वापस लौट चले। लेकिन अरुणिमा सिन्हा ने हार नहीं मानी और माउटं एवरेस्ट पर पहुंचकर भारत का झण्डा फहराया।

अरुणिमा सिन्हा को मिले हुए सन्मान – Arunima Sinha Awards

2015 में, सिन्हा को पद्मश्री से सम्मानित किया गया था, जो भारत का चौथा सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार था। दिसंबर 2014 में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने उनकी क़िताब ‘बोर्न अगेन ऑन द माउंटेन’ लॉन्च की।

अरुणिमा सिन्हा जी की इस सफ़लता की कहानी को जानने के बाद हमें यह सिख मिलती हैं की जिदंगी में ऐसा पल कभी नहीं आता जहां से आप आगे न बढ़ पाए। लेकिन जरुरत है तो थोड़ी सी हिम्मत और हौसले की, और उसके बाद रास्त खुद तैयार हो जाता है। और वैसे भी वो मंजिल ही क्या जिसकी राहें आसान हो।

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3 thoughts on ““अरुणिमा सिन्हा” बहादुर बेटी के साहस की कहानी | Arunima Sinha Biography”

    1. Editorial Team

      धन्यवाद पिहू जी ! आपने हमारे इस पोस्ट को पढ़ा और इसकी तारीफ की। जी हां अरुणिमा सिन्हा की जितनी तारीफ की जाए उतनी कम है उन्होनें अपने लक्ष्य के आगे अपनी शारीरिक अक्षमता को भी आड़े नहीं आने दिया और अपने साहस, और कड़ी मेहनत से इस मुकाम को हासिल कर पूरी दुनिया में अपना परचम लहराया।

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