श्रद्धालुओ का श्रद्धास्थान “बांके बिहारी मंदिर”

Banke Bihari Temple History in Hindi

उत्तरप्रदेश के मथुरा में स्थित बांके बिहारी जी का मंदिर हिन्दुओं के सबसे प्राचीन और प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है, जिससे कई चमत्कारी रहस्य जुड़े हुए हैं। इस मंदिर में ठाकुर जी (श्री कृष्ण जी) के दर्शन करने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं। इस मंदिर से भक्तों की गहरी आस्था जुड़ी हुई है।

देश के सबसे प्रतिष्ठित मंदिरों में से एक बांके बिहारी जी का मंदिर एक ऐसा मंदिर है, जिसमें श्यामवर्ण वाले भगवान श्री कृष्ण और राधारानी का एकाकार रुप है। भगवान श्री कृष्ण के बालक रुप की छवि इस मंदिर में स्पष्ट दिखाई देती हैं।

श्री कृष्ण की नगरी वृंदावन में स्थित यह मंदिर भगवान श्री कृष्ण के 7 प्रमुख मंदिरों में से एक है, जिसमें श्री गोविंद जी, राधावल्लभ जी और अन्य चार मंदिर और शामिल हैं। वहीं जो भी भक्त बांके बिहारी जी के मंदिर में दर्शन के लिए आता है, वो इनके दर्शन पाकर अभिभूत हो जाता है एवं उसके मन को शांति मिलती है।

इस मंदिर से जु़ड़ी यह मान्यता है कि, जो भी भक्तजन सच्चे मन से इस मंदिर के दर्शन करते हैं, उनकी सभी मुरादें पूरी होती हैं।

राजस्थानी शैली में बने इस भव्य मंदिर के बारे में सबसे रोचक बात यह है कि इस मंदिर के परिसर में कोई भी शंख या फिर घंटी नहीं है, क्योंकि भगवान को इन उपकरणों की आवाज पसंद नहीं है।

आइए जानते हैं इस मंदिर का निर्माण, इसका इतिहास, इससे जुड़ी पौराणिक कथाओं एवं इसके रहस्य एवं रोचक तथ्यों के बारे में –

श्रद्धालुओ का श्रद्धास्थान “बांके बिहारी मंदिर” – Banke Bihari Temple History In Hindi
Banke Bihari Temple

बांके बिहारी मंदिर का निर्माण एवं इससे जुड़ी पौराणिक कथा – Banke Bihari Temple Story And Information

ऐसा माना जाता है कि भारत के इस प्रतिष्ठित बांके बिहारी जी के मन्दिर का निर्माण स्वामी श्री हरिदास जी के वंशजों  के सामूहिक प्रयास से साल 1921 में किया गया था।

आपको बता दें कि स्वामी हरिदास जी प्राचीन समय में एक बेहद मशहूर गायक एवं तानसेन के गुरु थे। उन्होंने खुद श्री कृष्ण की भक्ति में कई गीत भी गाए जो आज भी मशहूर हैं।

वहीं अगर इस मंदिर के निर्माण के इतिहास पर गौर करें तो यह पता चलता है कि श्री कृष्ण को समर्पित इस प्रसिद्ध मंदिर के निर्माण के लिए शुरुआत में किसी भी दान-दाता का धन नहीं लगाया था।

श्री हरिदास जी एक वैष्णव भक्त थे, जिनकी भजन-कीर्तन एवं सच्ची भक्ति से प्रसन्न होकर निधिवन (स्वामी हरिदासजी महाराज की साधना स्थली) से श्री बांके बिहारी जी प्रकट हुए थे। दरअसल हरिदास जी का ज्यादाकर समय भगवान श्री कृष्ण के पूजा में व्यतीत होता था।

उन्होंने खुद को पूरी तरह श्री कृष्ण की भक्ति में समर्पित कर दिया था। हरिदास जी हर वक्त अपने प्रभु श्री कृष्ण का नाम जपते रहते थे। वहीं एकांत रुप से ठाकुर जी की भक्ति के लिए वृंदावन आ गए थे।

वहीं जहां बैठकर हरिदास जी ने भगवान श्री कृष्ण की तल्लीनता से भक्ति की थी, उसे निधिवन के नाम से जाना जाता है।

एक दिन जब स्वामी जी के शिष्य निधिवन पहुंचे तो हरिदास जी उस समय भी अपने प्रभु के लिए भजन-कीर्तन गा रहे थे, तभी उनके शिष्यों ने एक अद्भुत चमत्कार देखा, उन्होंने देखा कि निधिवन तेज प्रकाश से भरा हुआ था, भगवान श्री कृष्ण राधारानी जी के साथ अवतरित हुए थे।

वहीं साक्षात भगवान श्री कृष्ण के दर्शन पाकर स्वामी हरिदास जी और उनके सभी भक्त आश्चर्यचकित रह गए। इस दौरान हरिदास जी ने अपने ठाकुर जी से यहीं रहने का अनुरोध किया।

जिसके बाद प्रभु श्री कृष्ण ने स्वामी जी की इस प्रार्थना को स्वीकार कर लिया और अपने भक्त की इच्छा को पूरा करते हुए अपनी अद्भुत और श्यामवर्ण की आर्कषक छवि यहां छोड़ दी।

बांके बिहारी जी के मंदिर में भगवान श्री कृष्ण जी की यही सांवले रंग की मूर्ति आज भी विराजमान है।

इसके बाद करीब 1864 ईसवी में भारत के इस प्रसिद्ध बांके बिहारी जी का गोस्वामियों के योगदान से औपचारिक रुप से निर्माण किया गया था।

वहीं मंदिर का निर्माण कार्य पूरा होने के बाद गोस्वामियों जी ने भगवान की मूर्ति को मंदिर स्थानांतरित कर दिया। श्वामवर्ण छवि वाली यह मूर्ति जग में श्री बांके बिहारी जी के नाम से प्रसिद्ध हुई।

बांके बिहारी जी की इस सुंदर मूर्ति को मार्गशीर्ष, शुक्ला की पंचमी तिथि को निकाला गया था, वहीं इनकी अवतरित तिथि को यहां बिहार पंचमी के रुप में हर्ष-उल्लास के साथ मनाया जाता है।

बांके बिहारी जी के मंदिर से कई अन्य चमत्कारी एवं अद्भुत रहस्य और भी जुड़े हुए हैं

बांके बिहारी मंदिर से जुड़े अद्भुत एवं चमत्कारिक रहस्य – Banke Bihari Temple Miracles

कान्हा जी के होने का एहसास दिलाती है, बांके बिहारी जी की अलौकिक मूर्ति:

श्री कृष्ण नगरी मथुरा में स्थित बांके बिहारी मंदिर से कई मान्यताएं एवं रहस्य जुड़े हुए हैं।

इस मंदिर के बारे में यह सबसे प्रचलित है कि, भगवान श्री कृष्ण की इस अलौकिक मूर्ति को जो भी भक्त आंखों में आंखें डालकर ज्यादा समय तक देखता है, उसकी आंखों की रो्श्नी चली जाती है।

वहीं इससे अलग कुछ लोगों का यह भी मानना है कि श्यामवर्ण वाले बांके बिहारी जी की मूर्ति को देखे बिना यहां की यात्रा पूरी नहीं होती है।

आपको बता दें कि बांके बिहारी जी मंदिर में स्थित मूर्ति में आंखों में आज भी उतना ही तेज है, जो कि कान्हा के होने का एहसास करवाता है।

इकलौता ऐसा मंदिर जहां नहीं बजाए जाते घंटे:

मथुरा के बांके बिहारी मंदिर इकलौता ऐसा मंदिर है, जहां बिना घंटे बजाए ही आरती की जाती है और कान्हा जी को धीमे-धीमे एक छोटे बच्चे की तरह प्यार-दुलार कर उठाया जाता है, ताकि उनकी नींद में किसी तरह का खलल नहीं पड़े।

हर थोड़ी देर में मूर्ति को पर्दे से ढकने का रहस्य:

मथुरा में स्थित बांके बिहारी जी के मंदिर में बांके बिहारी जी की आलौकिक मूर्ति को थोड़ी-थोड़ी देर में पर्दे से ढक दिया जाता है।

ऐसा करने के पीछे यह कहा जाता है कि अगर कोई भक्त बांके बिहारी जी को पूर्ण श्रद्धा और भक्ति से उनको देखता है और उनके गुणगान करता है तो नटखट नंद किशोर अपने भक्त की भक्ति से प्रसन्न होकर उनके साथ चल देते हैं।

इसलिए हर थोड़ी देर में इस मंदिर की मूर्ति को पर्दे से ढक दिया जाता है,ताकि वह अपने यह दिव्य स्थान छोड़कर कहीं और नहीं जाएं। देश के इस प्रतिष्ठित बांके बिहारी जी के मंदिर में पुजारियों का एक समूह दर्शन के समय लगातार मूर्ति के सामने लगे पर्दे को खींचता और गिराता रहता है।

इस तरह बांके बिहारी जी भक्तों को अपनी एक झलक दिखाकर फिर पर्दे में छिप जाते हैं और ऐसे में भक्त काफी इंतजार करने के बाद अपने प्रभु की क्षणिक भऱ ही दर्शन कर पाते हैं।

वहीं कई लोककथाओं के मुताबिक कई बार प्रभु श्री कृष्ण इस मंदिर से गायब भी हो चुके हैं, इसलिए यहां ये पर्देदारी की जाती है।

बांके बिहारी जी मंदिर में धूमधाम से मनाए जाने वाले उत्सव एवं हिंडोला:

मथुरा में स्थित भगवान श्री कृष्ण जी के बांके बिहारी मंदिर में श्री कृष्ण जन्माष्टमी, होली का त्योहार, शरद ऋतु पूर्णिमा एवं अक्षय तृतीया का पर्व बेहद धूमधाम से मनाया जाता है।

इस दौरान भक्तजनों में काफी उत्साह रहता है। यहां जन्माष्टमी के दिन ही केवल मंगला आरती होती है, जिसके दर्शन भक्तजन को सौभाग्य से ही प्राप्त होते हैं।

जबकि अक्षय तृतीया के दिन भक्तजन इस मंदिर में भगवान श्री कृष्ण के चरण कमलों के दर्शन कर सकते हैं। वहीं होली के त्योहार के दौरान भगवान श्री कृष्ण की अद्भुत मूर्ति को बाहर लाया जाता है।

इस दौरान पूरी गोकुल नगरी भगवान श्री कृष्ण की भक्तिरस में डूबी रहती है। इसके अलावा यहां निकलने वाली झूलन यात्रा को देखने भी दूर-दूर से लोग आते हैं।

झूलन यात्रा के दौरान ठाकुर जी को सोने के झूले पर विराजित किया जाता है, इसे हिंडोला कहा जाता है।

ऐसी मान्यता है कि बांके बिहारी जी के आलौकिक मंदिर के दर्शन कर यहां आने वाला हर भक्त धन्य हो जाता है और उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

मथुरा-वृंदावन के लिए देश के सभी प्रमुख शहरों और महानगरों से अच्छी यातायात सुविधा उपलब्ध हैं। सड़क, रेल और वायु तीनों मार्गों द्धारा यहां आसानी से पहुंचा जा सकता है।यहां सबसे निकटतम एयरपोर्ट आगरा और दिल्ली है।

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