ग्वालियर किल्ले का इतिहास और रोचक तथ्य | Gwalior fort information in Hindi

Gwalior fort – ग्वालियर किला मध्य भारत के मध्य प्रदेश में ग्वालियर के पास स्तिथ है। किला एक सुरक्षित बनावट के के साथ २ भागों में बंटा हुआ है। एक भाग गुजरी महल और दूसरा मन मंदिर। इसे 8 वी शताब्दी में राजा मान सिंग तोमर ने बनवाया था।

इतिहास में बहुत से राजाओं ने इस किले पर अलग अलग समय पर इस नियंत्रण रखा है। गुजरी महल को रानी मृगनयनी के लिए बनवाया गाया था। ये अब एक ऐतेहासिक संग्रहालय के रूप में जाना जाता है। “शुन्य” से जुड़े हुए सबसे पुराने दस्तावेज़ इसी किले के ऊपर की और जाने वाले रास्ते पर एक मंदिर में मिले थे। ये करीबन 1500 साल पुरे थे।

Gwalior fort history

ग्वालियर किल्ले का इतिहास – Gwalior fort history information in Hindi

ग्वालियर किले को बनने में कितना वक़्त लगा इसके कोई पुख्ता साक्ष नहीं हैं। पर स्थानीय निवासियों के अनुसार इसे राजा सूरज सेन ने आठंवी शताब्दी में बनवाया था। उन्होंने इसे ग्वालिपा नाम के साधू के नाम पर धन्यवाद् के रूप में बनवाया। कहा जाता है की साधू ने उन्हें एक तालब का पवित्र जल पीला कर कुष्ठ रोग से निजात दिलाई थी।

साधू ने उन्हें “पाल” की उपाधि से नवाज़ा था और आशीर्वाद दिया था। जब तक वे इस उपाधि को अपने नाम के साथ लगाएंगे तब तक ये किला उनके परिवार के नियंत्रण में रहेगा। सूरज सेन पाल के 83 उत्तराधिकारियों के पास इस किले का नियंत्रण रहा पर 84 वे वंशज के करण इस किले को हार गए।

ऐतेहासिक दस्तावेज और साक्ष्यों के अनुसार ये किला 10 वी शताब्दी में तो ज़रूर था परन्तु उसके पहले इसके अस्तित्व में होने के साक्ष नही हैं।

परन्तु किले के परिसर में बने नक्काशियों और ढांचों से इसके इसके 6 वी शताब्दी में भी अस्तित्व में होने का इशारा मिलता है; इसका कारण यह है की ग्वालियर किले में मिले कुछ दस्तावेजों में हुना वंश के राजा मिहिराकुला के द्वारा सूर्य मंदिर बनांये जाने का उल्लेख है। गुर्जरा-प्रतिहरासिन ने 9 वी शताब्दी में किले के अंदर “तेली का मंदिर” का निर्माण कराया था।

चंदेला वंश के दीवान कछापघ्त के पास 10 वी शताब्दी में इस किले का नियंत्रण था। 11 वी शताब्दी से ही मुस्लिम राजाओं ने किले पर हमला किया। महमूद गजनी ने 4 दिन के लिए किले को अपने कब्जे में ले लिया और 35 हाथियों के बदले में किले को वापस किया, ऐसा तबकती अकबरी में उल्लेख है।

घुरिद वजीर क़ुतुब अल दिन ऐबक जो की बाद में दिल्ली सल्तनत का भी राजा बना ने लम्बी लड़ाई के बाद किले को जीत लिया। उसके बाद दिल्ली ने फिर ये किला हारा पर 1232 में इल्तुमिश ने दोबारा इस पर कब्ज़ा किया।

1398 में यह किला तोमर राजपूत वंश के नियंत्रण में चला गया। तोमर राजा मान सिंग ने किले में किले के अंदर खुबसूरत निर्माण कराये। दिल्ली के सुलतान सिकंदर लोधी ने 1505 में किले पर कब्ज़ा करने की नियत से हमला किया पर वो सफल नहीं हुआ।

1516 में सिकंदर लोधी के बेटे इब्राहिम लोधी ने दोबारा हमला किया, इस लड़ाई में मान सिंग तोमर अपनी जान गवां बैठे और तोमर वंश ने एक साल के संघर्ष के बाद हथियार डाल दिए।

10 सालों के बाद मुग़ल बादशाह बाबर ने दिल्ली सल्तनत से ये किला हथिया लिया पर 1542 में मुगलों को शेर शाह सूरी से ये किला Gwalior fort हारना पड़ा। 1558 में बाबर के पोते अकबर ने वापस से किले को फ़तह किया। अकबर ने अपने राजनैतिक कैदियों के लिए इस किले को कारागार में बदल दिया।

अकबर के चचेरे भाई कामरान को यही बंदी बना कर रखा गया था और फिर उसे मौत की सज़ा दी गयी थी। औरंगज़ेब के भाई मुराद ओर भातिजून सोलेमान एवं सफ़र शिको को भी इसी किले में मौत की सज़ा दी गयी थी। ये सारी हत्याएँ मन मंदिर महल में की गयी थी।

औरंगज़ेब की मृत्यु की के बाद गोहड के राणाओं के पास इस किले का नियंत्रण चला गया। मराठा राजा महाड़ जी शिंदे (सिंधिया) ने गोहद राजा राणा छतर सिंग के हरा कर इस किले पर कब्ज़ा कर लिया पर जल्द ही वे इसे ईस्ट इंडिया कंपनी के हाथों हार गये।

3 अगस्त 1780 को कैप्टन पोफाम और ब्रूस के नेतृत्व में अर्ध रात्रि छापामार युद्ध के द्वारा ब्रिटिशों ने Gwalior fort पर कब्ज़ा कर लिया। 1780 में गवर्नर वारेन हास्टिंग्स ने गोहड राणा को किले के अधिकार वापस दिलाये। 4 साल बाद मराठाओं ने फिर से किले पर कब्ज़ा कर लिया।

इस बार अंग्रेजों ने कोई हस्तक्षेप नहीं किया क्योंकि गोहड़ राणा से उन्हें धोखा मिला था। दुसरे मराठा-अंग्रेज युद्ध में दौलत राव सिंधिया इस किले को फिर हार गए।

1808 ओर 1844 के बीच इस किले का नियंत्रण कभी मराठाओं तो कभी अंग्रेजों के हाथ में आता जाता रहा। महाराजपुर के युद्ध के बाद जनवरी 1844 में यह किला अंग्रेजों ने माराठा सिंधिया वंश को अपना दीवान नियुक्त कर के दे दिया।

1857 की क्रान्ति के समय ग्वालियर में स्थित तकरीबन 7000 सिपाहियां ने कंपनी राज के खिलाफ बगावत कर दी। इस वक़्त भी वस्सल राजा जियाजी सिंधिया ने अंग्रेजों के प्रति अपनी निष्ठां बरकरार रखी। 1858 में अंग्रेजों ने इस किले पर फिर से कब्ज़ा कर लिया। अग्रेजों ने जिय्याजी को कुछ रियासतें दी पर किले का कब्ज़ा अपने पास ही रखा।

1886 में अंग्रेजों ने पुरे भारत पर नियंत्रण कर लिया ओर उनके लिए इस किले का कोई ख़ास महत्व नहीं रहा इसलिए उन्होंने इसे सिंधिया घराने को दे दिया। सिंधिया घराने ने भारत के आज़ाद होने तक (1947) इस किले पर राज किया और बहुत से निर्माण भी किये जिसमे जय विलास महल भी शामिल है।

किले को अच्छी देख रेख में रखा गया और इसमें बहुत से निर्माण भी किये गए जैसे की महल, मंदिर, पानी की टंकियां इत्यादि। इसमें मन मंदिर, गुजरी जहाँगीर, शाहजहाँ जैसे कई महल हैं। यह किला 3 किलोमीटर के क्षेत्रफल में हैं ओर 35 फीट ऊंचा है। पहाड़ के किनारों से इसकी दीवारें बनायी गयी है एवं इसे 6 मीनारों से जोड़ा गया है।

इसमें दो दरवाज़े हैं एक उत्तर-पूर्व में और दूसरा दक्षिण-पश्चिम में। मुख्य द्वार का नाम हाथी पुल है एवं दुसरे द्वार का नाम बदालगढ़ द्वार है। मनमंदिर महल उत्तर-पश्चिम में स्थित है, इसे 15वि शताब्दी में बनाया गया था और इसका जीर्णोद्धार 1648 में किया गाया।

और इसीलिए इतिहास में इस Gwalior fort को लेकार काफी चर्चा रही हैं। इतिहास ने हमें दिया ये एक अनमोल ख़जाना हैं जिसका महत्त्व आज भी उतना ही जितना सालोसे था।

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13 thoughts on “ग्वालियर किल्ले का इतिहास और रोचक तथ्य | Gwalior fort information in Hindi”

  1. Sir fort per Ko jouhar kund Bana hua hai uske baare me bhi bataiye.ki waha per kisne or kiske Sasan kaal me kab jouhar Kiya tha

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