“झाँसी की रानी” कविता | Jhansi ki Rani Poem in Hindi

Jhansi ki Rani Poem in Hindi

महारानी लक्ष्मीबाई के साहस और पराक्रम के बारे में कौन नहीं जानता? झांसी की रानी लक्ष्मीबाई ने अपने जिंदगी की तमाम कठिनाइयों को पार करते हुए न सिर्फ अंग्रेजों को डटकर सामना किया, बल्कि उन्हें अद्मय शक्ति और बहादुरी का भी एहसास करवाया और अपनी जिंदगी की आंखिरी सांस तक वे अपने राज्य झांसी को स्वतंत्र करवाने के लिए लड़ती रहीं।

यही नहीं भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में उन्होंने अपना अभूतपूर्व योगदान दिया। महारानी लक्ष्मीबाई ने लोगों को अंग्रेजों के अत्याचारों के खिलाफ आवाज उठाने के लिए एकजुट किया था, वहीं उनके आह्रावन पर इस लड़ाई में कई महिलाएं भी शामिल हुईं थी।

1857 के युद्ध में झांसी की रानी ने अपनी अदम्य शक्ति और साहस का परिचय देकर, बड़े-बड़े वीर योद्धाओं को भी हैरान कर दिया था। उनके वीर और पराक्रम की तो प्रशंसा उनके दुश्मनों ने भी की थी।

19 नवंबर, साल 1828 को उत्तरप्रदेश के वाराणसी के भदैनी नगर में जन्मी रानी लक्ष्मीबाई को बचपन से ही अस्त्र-शस्त्र चलाने, तीरंदाजी करने, घुड़सवारी करने, निशानेबाजी आदि का शौक था, वे बेहद कम उम्र में ही युद्ध विद्या में निपुण हो गई थी।

उनकी अद्भुत प्रतिभा के चर्चे उस समय कई राज्यों में थे। वहीं झांसी के महाराज गंगाधर राव नेवलेकर के साथ विवाह के बाद वे रानी लक्ष्मीबाई कहलाईं और महाराज की मौत के बाद उन्होंने एक कुशल शासक की तरह झांसी का राज-पाठ संभाला और अपने राज्य को बचाने के लिए वे अपने जीवन के आखिरी क्षण तक दुश्मनों से लड़ती रहीं। वहीं उनकी वीरता  के किस्से आज भी मशहूर हैं।

हिन्दी साहित्य की मशहूर कवियित्री  Subhadra Kumari Chauhan ने अपनी “झाँसी की रानी” – Jhansi Ki Rani इस कविता के माध्यम से वीरांगना रानी लक्ष्मी बाई के अद्भुत साहस और पराक्रम की वीर गाथा, बताने की कोशिश की है।

उन्होंने जिस तरह से झांसी की रानी के साहस, शक्ति और पराक्रम को इस कविता के माध्यम से बताया है  वो काफी प्रशंसनीय हैं – तो आइए नजर डालते हैं सुभद्रा कुमारी जी की इस मशहूर कविता पर –

Jhansi ki Rani Poem
Jhansi ki Rani Poem

“झाँसी की रानी” कविता – Jhansi ki Rani Poem in Hindi

सिंहासन हिल उठे राजवंषों ने भृकुटी तनी थी,
बूढ़े भारत में आई फिर से नयी जवानी थी,
गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी,
दूर फिरंगी को करने की सब ने मन में ठनी थी।
चमक उठी सन सत्तावन में, यह तलवार पुरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी।

“झाँसी की रानी” कविता की इन पंक्तियों में मशहूर कवियित्री सुभद्रा कुमारी जी ने झांसी की रानी की वीरता के बारे में बताया है कि , किस तरह उन्होंने गुलाम भारत को आजाद करवाने की चिंगारी हर भारतीय के मन में लगा दी थी और अंग्रेजों के अत्याचारों के खिलाफ आवाज उठाने का साहस भारतीयों के अंदर भरा था, जिससे सभी भारतीयों ने भारत से अंग्रेजों को भगाने का निश्चय किया और आजाद भारत में रहने की इच्छा जगाई थी।

कानपुर के नाना की मुह बोली बहन छब्बिली थी,
लक्ष्मीबाई नाम, पिता की वो संतान अकेली थी,
नाना के सॅंग पढ़ती थी वो नाना के सॅंग खेली थी
बरछी, ढाल, कृपाण, कटारी, उसकी यही सहेली थी।
वीर शिवाजी की गाथाएँ उसकी याद ज़बानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी।

सुभद्रा कुमारी चौहान जी ने इन पंक्तियों में वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई के बचपन और उनकी अद्भुत प्रतिभा के बारे में बताया है कि- बचपन में बेहद आर्कषण रंग-रुप की वजह से वीरांगना लक्ष्मीबाई को छब्बिली कह कर बुलाया जाता था। उनकी विलक्षण और अद्भुत प्रतिभा ने नाना साहेब को भी प्रभावित किया था , जिसके बाद नानासाहेब ने  उन्हें शस्त्र विद्या सिखाई थी । इस कविता में कवियित्री ने यह भी बताया है कि कि रानी लक्ष्मीबाई बाकी लड़कियों से अलग थी , क्योंकि उन्हें बचपन में अस्त्र-शस्त्र चलाना, तीरंदाजी करना , घुड़सवारी करना , निशानेबाजी करना अच्छा लगता था।

लक्ष्मी थी या दुर्गा थी वो स्वयं वीरता की अवतार,
देख मराठे पुलकित होते उसकी तलवारों के वार,
नकली युध-व्यूह की रचना और खेलना खूब शिकार,
सैन्य घेरना, दुर्ग तोड़ना यह थे उसके प्रिय खिलवाड़।
महाराष्‍ट्रा-कुल-देवी उसकी भी आराध्या भवानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी।

इन पंक्तियों में कवियित्री ने रानी लक्ष्मीबाई की शस्त्र विद्या और युद्ध कौशल की तारीफ की है और उनकी धार्मिक होने का भी बखान किया है।

Jhansi ki Rani Kavita

हुई वीरता की वैभव के साथ सगाई झाँसी में,
ब्याह हुआ बन आई रानी लक्ष्मी बाई झाँसी में,
राजमहल में बाजी बधाई खुशियाँ छायी झाँसी में,
सुघत बुंडेलों की विरूदावली-सी वो आई झाँसी में।
चित्रा ने अर्जुन को पाया, शिव से मिली भवानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी।

कवियित्री सुभद्रा कुमारी जी ने अपनी कविता की इन पंक्तियों में साहसी और वीर रानी लक्ष्मीबाई के  विवाह के बारे में बताया है।

उदित हुआ सौभाग्या, मुदित महलों में उजियली च्छाई,
किंतु कालगती चुपके-चुपके काली घटा घेर लाई,
तीर चलाने वाले कर में उसे चूड़ियाँ कब भाई,
रानी विधवा हुई है, विधि को भी नहीं दया आई।
निसंतान मारे राजाजी, रानी शोक-सामानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी।

कवियित्री सुभद्रा कुमारी जी ने अपनी कविता की इन पंक्तियों में रानी लक्ष्मीबाई के जीवन के बेहद कठिन समय के बारे में बताया है। इसमें उन्होंने रानी लक्ष्मीबाई के पति गंगाधर राव नेवलेकर और उनके पुत्र दामोदर राव के निधन के बाद, रानी की व्यथा बताई है।

बुझा दीप झाँसी का तब डॅल्लूसियी मान में हरसाया,
ऱाज्य हड़प करने का यह उसने अच्छा अवसर पाया,
फ़ौरन फौज भेज दुर्ग पर अपना झंडा फेहराया,
लावारिस का वारिस बनकर ब्रिटिश राज झाँसी आया।
अश्रुपुर्णा रानी ने देखा झाँसी हुई वीरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी।

कवियित्री सुभद्रा कुमारी जी ने अपनी कविता की इन पंक्तियों में अंग्रेजों की झांसी राज्य हड़पने की नीति का बखान किया है कि किस प्रकार महाराज की मौत के बाद अंग्रेजों ने झांसी पर कब्जा करने की कोशिश की, लेकिन शायद अंग्रेजों को झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के अद्भुत पराक्रम का अंदेशा न था।

Jhansi ki Rani Hindi Poem

अनुनय विनय नहीं सुनती है, विकट शासकों की मॅयैया,
व्यापारी बन दया चाहता था जब वा भारत आया,
डल्हौसि ने पैर पसारे, अब तो पलट गयी काया
राजाओं नव्वाबों को भी उसने पैरों ठुकराया।
रानी दासी बनी, बनी यह दासी अब महारानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी।

इन पंक्तियों में कवियित्री ने बताया कि किस तरह झांसी की रानी ने ब्रिटिश शासकों के आदेशों का उल्लंघन कर अंग्रंजो के खिलाफ विद्रोह को और तेज कर दिया था और अपना राज्य झांसी को उनके कब्जे में नहीं आने दिया।

छीनी राजधानी दिल्ली की, लखनऊ छीना बातों-बात,
क़ैद पेशवा था बिठुर में, हुआ नागपुर का भी घाट,
ऊदैपुर, तंजोर, सतारा, कर्नाटक की कौन बिसात?
जबकि सिंध, पंजाब ब्रह्म पर अभी हुआ था वज्र-निपात।
बंगाले, मद्रास आदि की भी तो वही कहानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी।

इन पंक्तियों में कवियित्री ने ब्रिटिश शासकों द्धारा भारत के ज्यादतर राज्यों को हड़पने की बात कही है।

रानी रोई रनवासों में, बेगम गुम सी थी बेज़ार,
उनके गहने कपड़े बिकते थे कलकत्ते के बाज़ार,
सरे आम नीलाम छपते थे अँग्रेज़ों के अख़बार,
“नागपुर के ज़ेवर ले लो, लखनऊ के लो नौलख हार”।
यों पर्दे की इज़्ज़त परदेसी के हाथ बीकानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी।

इन पंक्तियों में कवियित्री ने रानी लक्ष्मीबाई की प्रशंसा की है और बताया है कि उस स्थ्ति का बखान किया है जब रानी ने अपने राज्य को बचाने के लिए सेना की तैयारी के लिए अपने गहने तक बेच दिए थे।

Khoob Ladi Mardani Poem

कुटियों में भी विषम वेदना, महलों में आहत अपमान,
वीर सैनिकों के मान में था अपने पुरखों का अभिमान,
नाना धूंधूपंत पेशवा जूटा रहा था सब सामान,
बहिन छबीली ने रण-चंडी का कर दिया प्रकट आहवान।
हुआ यज्ञा प्रारंभ उन्हे तो सोई ज्योति जगानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी।

इन पंक्तियों में कवियित्री ने – रानी लक्ष्मीबाई का  नाना और पेशवा के साथ अंग्रेजों को भारत से खदेड़ने और सबक सिखाने के लिए  युद्ध का आह्वान करने के बारे में बताया है।

महलों ने दी आग, झोंपड़ी ने ज्वाला सुलगाई थी,
यह स्वतंत्रता की चिंगारी अंतरतम से आई थी,
झाँसी चेती, दिल्ली चेती, लखनऊ लपटें छाई थी,
मेरठ, कानपुर, पटना ने भारी धूम मचाई थी,
जबलपुर, कोल्हापुर, में भी कुछ हलचल उकसानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी।

कवियित्री सुभद्रा कुमारी चौहान ने इन पंक्तियों के माध्यम से बताया है कि जब झांसी की रानी ने अपने राज्य को बचाने के लिए अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध छेड़ा था, तब उसकी चिंगारी मेरठ, कानपुर, लखनऊ, दिल्ली, जबलपुर कोल्हापुर में भी लगी थी।

इस स्वतंत्रता महायज्ञ में काई वीरवर आए काम,
नाना धूंधूपंत, तांतिया, चतुर अज़ीमुल्ला सरनाम,
अहमदशाह मौलवी, ठाकुर कुंवर सिंह, सैनिक अभिराम,
भारत के इतिहास गगन में अमर रहेंगे जिनके नाम।
लेकिन आज जुर्म कहलाती उनकी जो क़ुर्बानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी।

इन पंक्तियों में कवित्रियी ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के उन वीरों का बखान किया है, जो रानी लक्ष्मीबाई के सहयोग के लिए आागे बढ़े थे, और अपनी आखिरी सांस तक युद्ध लड़ते रहे थे।

Khub Ladi Mardani Kavita in Hindi

इनकी गाथा छोड़, चले हम झाँसी के मैदानों में,
जहाँ खड़ी है लक्ष्मीबाई मर्द बनी मर्दनों में,
लेफ्टिनेंट वॉकर आ पहुँचा, आगे बड़ा जवानों में,
रानी ने तलवार खींच ली, हुआ द्वंद्ध आसमानों में।
ज़ख़्मी होकर वॉकर भागा, उसे अजब हैरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी।

इन पंक्तियों में कवियित्री ने झांसी की रानी के साहस का बखान किया है कि उनकी बहादुरी के आगे किस तरह अंग्रेजों को झांसी छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा।

रानी बढ़ी कालपी आई, कर सौ मील निरंतर पार,
घोड़ा थक कर गिरा भूमि पर, गया स्वर्ग तत्काल सिधार,
यमुना तट पर अँग्रेज़ों ने फिर खाई रानी से हार,
विजयी रानी आगे चल दी, किया ग्वालियर पर अधिकार।
अँग्रेज़ों के मित्र सिंधिया ने छोड़ी राजधानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी।

इन पंक्तियों में कवियित्री ने झांसी की रानी के कालपी पहुंचने और उनके घोड़ा के घायल होने के बारे में बताया  है। साथ ही यह भी बताया है कि उनके सामने अंग्रेजों को एक बार फिर झुकना पड़ा और रानी के ग्वालियर के कब्जा करने की योजना के बारे में भी बताया है।

विजय मिली, पर अँग्रेज़ों की फिर सेना घिर आई थी,
अबके जनरल स्मिथ सम्मुख था, उसने मुंहकी खाई थी,
काना और मंदरा सखियाँ रानी के संग आई थी,
यूद्ध क्षेत्र में ऊन दोनो ने भारी मार मचाई थी।
पर पीछे ह्यूरोज़ आ गया, हाय! घिरी अब रानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी।

इन पंक्तियों में कवियित्री ने बताया कि, रानी लक्ष्मी बाई ने ग्वालियर पर अपना अधिकार जमाया और इस युद्ध में उनके साथ महिलाओं ने भी अपनी हिस्सेदारी निभाई थी , हालांकि यह लड़ाई काफी दिन तक चली थी , इसलिए रानी लक्ष्मी बाई का इस तरह लड़ना मुमकिन नहीं था।

Jhansi ki Rani Poem in Hindi Summary

तो भी रानी मार काट कर चलती बनी सैन्य के पार,
किंतु सामने नाला आया, था वो संकट विषम अपार,
घोड़ा अड़ा, नया घोड़ा था, इतने में आ गये अवार,
रानी एक, शत्रु बहुतेरे, होने लगे वार-पर-वार।
घायल होकर गिरी सिंहनी, उसे वीर गति पानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी।

कवियित्री भारत की वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई की वीरगति हासिल होने के बारे में बताया है, कि किस तरह रानी के नए घोड़े ने उनका साथ नहीं दिया और फिर वे वीरगति को प्राप्त हो गईं, हलांकि आखिरी सांस तक वे अपने राज्य झांसी को बचाने के लिए अंग्रेजों से लड़ती रहीं।

रानी गयी सिधार चिता अब उसकी दिव्य सवारी थी,
मिला तेज से तेज, तेज की वो सच्ची अधिकारी थी,
अभी उम्र कुल तेईस की थी, मनुज नहीं अवतारी थी,
हमको जीवित करने आई बन स्वतंत्रता-नारी थी,
दिखा गयी पथ, सीखा गयी हमको जो सीख सिखानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी।

कवियित्री ने रानी लक्ष्मीबाई के प्रेरणादायक जीवन के बारे में बताया है कि किस तरह कठिन समय में भी वो हिम्मत नहीं हारी और सच्ची वीरांगना की तरह हिम्मत के साथ अपनी अंतिम सांस तक दुश्मनों का सामना करती रहीं।

जाओ रानी याद रखेंगे ये कृतज्ञ भारतवासी,
यह तेरा बलिदान जागावेगा स्वतंत्रता अविनासी,
होवे चुप इतिहास, लगे सच्चाई को चाहे फाँसी,
हो मदमाती विजय, मिटा दे गोलों से चाहे झाँसी।
तेरा स्मारक तू ही होगी, तू खुद अमिट निशानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी।

~ सुभद्रा कुमारी चौहान (Subhadra Kumari Chauhan)

अपनी कविता की इन पंक्तियों में कवियित्री सुभद्र कुमारी जी ने रानी लक्ष्मीबाई के भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में दिए गए उनके अमिट योगदान के प्रति कृतज्ञता प्रकट की है।

सुभद्रा कुमारी चौहान एक महान लेखिका होने के साथ साथ एक महान कवियत्री भी थी, उन्होंने “झाँसी की रानी” इस कविता के साथ साथ और भी बहुत सी रचनाएँ भी की हैं, उनकी और भी कवितायेँ हम आपके लिए हमारी अगली पोस्ट में जरुर लायेंगे। – Subhadra Kumari Chauhan Poems

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