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संत कबीर दास के दोहे अर्थ सहित – Sant Kabir Ke Dohe

कबीर दास जी हिंदी साहित्य के महिमामण्डित व्यक्तित्व होने के साथ-साथ एक महान संत, एक महान विचारक और समाज सुधारक भी थे। कबीर दास जी ने अपने सकारात्मक विचारों से करीब 800 दोहों में जीवन के कई पक्षों पर अपने अनुभवों का जीवंत वर्णन किया है।

संत कबीर के दोहे ने सभी धर्मों, पंथों, वर्गों में प्रचलित कुरीतियों पर उन्होंने मर्मस्पर्शी प्रहार किया है। इसके साथ ही कबीर दास जी ने धर्म के वास्तविक स्वरुप को भी उजागर किया हैं। हिन्दी साहित्य में उनके योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता, कबीर के दोहे और उनकी रचनाएं बहुत प्रसिद्ध हैं।

आपको बता दें कि महान संत कबीर दास जी अनपढ़ थे लेकिन कबीर ने पूरी दुनिया को अपने जीवन के अनुभव से वो ज्ञान दिया जिस पर अगर कोई मनुष्य अमल कर ले तो इंसान का जीवन बदल सकता है। कबीर जी के दोहे  को पढ़कर इंसान में सकारात्मकता आती है और प्रेरणात्मक विचार उत्पन्न होते हैं। आइए जानते हैं कबीर दास जी के दोहों के बारे में –

संत कबीर के दोहे हिंदी अर्थ सहित – Kabir Ke Dohe in Hindi with meaning

जिन खोजा तिन पाइया (Jin Khoja Tin Paiyan)

वर्तमान समाज में कई ऐसे लोग हैं जो सफलता तो हासिल करना चाहते हैं लेकिन इसके लिए प्रयास ही नहीं करते या फिर उन्हें लक्ष्य को नहीं पा पाने और असफल हो जाना का डर रहता है। ऐसे लोगों के लिए महान संत कबीर दास ने अपने इस दोहे में बड़ी शिक्षा दी है –

दोहा-

“जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ, मैं बपुरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ।”

अर्थ-

जीवन में जो लोग हमेशा प्रयास करते हैं वो उन्हें जो चाहे वो पा लेते हैं जैसे कोई गोताखोर गहरे पानी में जाता है तो कुछ न कुछ पा ही लेता हैं। लेकिन कुछ लोग गहरे पानी में डूबने के डर से यानी असफल होने के डर से कुछ करते ही नहीं और किनारे पर ही बैठे रहते हैं।

क्या सीख मिलती है-

महान संत कबीर दास जी के इस दोहे से हमें सीख मिलती हैं तो हमें  अपने लक्ष्य को पाने के लिए लगातार प्रयास करते रहना चाहिए, क्योंकि कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती और एक दिन वे सफल जरूर होते हैं।

“कहैं कबीर देय तू”

आज के जमाने में कई लोग ऐसे हैं जिनके पास सब कुछ होने के बाद भी कुछ दान नहीं करते या फिर लोगों की सहायता नहीं करते और कई लोगों में परोपकार की भावना ही नही है, उन लोगों के लिए महान संत कबीरदास जी ने इस दोहे में  बड़ी शिक्षा दी है –

दोहा-

“कहैं कबीर देय तू, जब लग तेरी देह। देह खेह होय जायगी, कौन कहेगा देह।”

हिन्दी अर्थ-

कबीर दास जी कहते हैं जब तक देह है तू दोनों हाथों से दान किए जा। जब देह से प्राण निकल जाएगा। तब न तो यह सुंदर देह बचेगी और न ही तू फिर तेरी देह मिट्टी की मिट्टी में मिल जाएगी और फिर तेरी देह को देह न कहकर शव कहलाएगा।

क्या सीख मिलती है-

कबीर दास जी के इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि हमें गरीबों पर और जरूरतमंद लोगों की अपने जीवन में मद्द करते रहना चाहिए। इसका फल भी अच्छा होता है।

“या दुनिया दो रोज की”

आज के समय में कई लोग मायारूपी संसार के मोह में बंधे रहते हैं, या फिर पैसा कमाने की होड़ में वे बाकी चीजों को महत्व ही नहीं देते हैं। उन लोगों के लिए कबीर दास जी का यह दोहा काफी शिक्षा देने वाला है।

दोहा-

“या दुनिया दो रोज की, मत कर यासो हेत। गुरु चरनन चित लाइये, जो पुराण सुख हेत।”

अर्थ-

इस संसार का झमेला दो दिन का है अतः इससे मोह सम्बन्ध न जोड़ो। सद्गुरु के चरणों में मन लगाओ, जो पूर्ण सुखज देने वाले हैं।

क्या सीख मिलती है-

कबीर दास जी के इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि हमें मायारुपी संसार से मोह नहीं करना चाहिए बल्कि अपना ध्यान गुरु की वंदना में लगाना चाहिए।

Aisi vani boliye, man ka aapa khoye. – Kabir Das Doha

संत कबीर का दोहा – ऐसी बानी बोलिए (Aisi Vani Boliye)

आज के समय में अक्सर लोग अपनी कड़वी भाषा से दूसरे का मन दुखाते हैं या फिर ऐसे बोल बोलते हैं जो नकारात्मकता फैलाती है ऐसे लोगों के लिए कबीर दास जी का यह दोहा शिक्षाप्रद है –

दोहा-

“ऐसी बानी बोलिए, मन का आपा खोय। औरन को शीतल करै, आपौ शीतल होय।”

हिन्दी अर्थ-

मन के अहंकार को मिटाकर, ऐसे मीठे और नम्र वचन बोलो, जिससे दुसरे लोग सुखी हों और स्वयं भी सुखी हो।

क्या सीख मिलती है-

कबीरदास जी के इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि हमें अपने घमंड में नहीं रहना चाहिए और अक्सर दूसरों से मीठा ही बोलना चाहिए, जिससे दूसरे को खुशी मिल सके और सकारात्मकता फैल सके।

Sant Kabir Ke Dohe

कबीर दोहा – धर्म किये धन ना घटे (Dharm Kiye Dhan na Ghate)

समाज में कई ऐसे चतुर मनुष्य हैं तो यह सोचते हैं कि वे अगर गरीबों की मद्द के लिए दान-पुण्य करेंगे तो उनके पास धन कम बचेगा या फिर वह सोचते हैं कि दान-पुण्य से अच्छा है उन पैसों का इस्तेमाल बिजनेस में करो, ऐसी सोच वालों के लिए कबीरदास जी का यह दोहा काफी शिक्षा देने वाला है –

दोहा-

“धर्म किये धन ना घटे, नदी न घट्ट नीर। अपनी आखों देखिले, यों कथि कहहिं कबीर।”

अर्थ-

कबीर दास जी कहते हैं कि धर्म (परोपकार, दान सेवा) करने से धन नहीं घटना, देखो नदी सदैव बहती रहती है, परन्तु उसका जल घटता नहीं। धर्म करके स्वयं देख लो।

क्या सीख मिलती है-

महाकवि कबीरदास जी के दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि हमें हमेशा अपने जीवन में दूसरी की मद्द के लिए तत्पर रहना चाहिए और दान-पुण्य करते रहना चाहिए।

Kabir ke Dohe

संत कबीर दोहा – कहते को कही जान दे

आज के समय में कई ऐसे लोग मिल जाएंगे जो किसी  न किसी बात को लेकर अक्सर दूसरे पर आरोप लगाते हैं या फिर अपशब्दों का इस्तेमाल करते हैं ऐसे लोगों के लिए कबीर दास जी का यह दोहा काफी शिक्षा देने योग्य हैं-

दोहा-

“कहते को कही जान दे, गुरु की सीख तू लेय। साकट जन औश्वान को, फेरि जवाब न देय।”

अर्थ-

उल्टी-पल्टी बात बकने वाले को बकते जाने दो, तू गुरु की ही शिक्षा धारण कर। साकट (दुष्टों)तथा कुत्तों को उलट कर उत्तर न दो।

क्या सीख मिलती है-

महान विचारक कबीरदास जी के इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि हमसे अगर कोई बुरे वचन बोल रहा है तो उसे नजरअंदाज कर देना चाहिए और अपने मुख से कभी बुरे वचनों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए  और गुरुओं से शिक्षा ग्रहण करनी चाहिए।

संत कबीर दोहा – कबीर तहाँ न जाइये (Kabira tahan na jaiye)

समाज में कई ऐसे लोग हैं जहां उनको महत्व नहीं मिलता लेकिन फिर भी वह मुंह उठाकर चले जाते हैं उन लोगों के लिए कबीरदास जी का यह दोहा काफी सीख देने वाला है –

दोहा-

“कबीर तहाँ न जाइये, जहाँ जो कुल को हेत। साधुपनो जाने नहीं, नाम बाप को लेत।”

अर्थ-

गुरु कबीर साधुओं से कहते हैं कि वहाँ पर मत जाओ, जहाँ पर पूर्व के कुल-कुटुम्ब का सम्बन्ध हो। क्योंकि वे लोग आपकी साधुता के महत्व को नहीं जानेंगे, केवल शारीरिक पिता का नाम लेंगे ‘अमुक का लड़का आया है।

क्या सीख मिलती है-

परिवार वालों को कभी आपके गुणों का महत्व नहीं होता है। इसलिए साधुओं को अपने महत्व को परिवार वालों के सामने नहीं बताना चाहिए।

संत कबीर दोहा – जैसा भोजन खाइये (Jaisa Bhojan Kijiye)

समाज में कई ऐसे लोग हैं जो गलत संगत में पढ़कर खुद का ही नुकसान कर बैठते हैं, या फिर बहकावे में आकर अपने ही कुल का नाश कर देते हैं। उन लोगो के लिए कबीर दास जी ने इस दोहे में बड़ी सीख दी है –

दोहा-

“जैसा भोजन खाइये, तैसा ही मन होय। जैसा पानी पीजिये, तैसी बानी सोय।”

अर्थ-

‘आहारशुध्दी:’ जैसे खाय अन्न, वैसे बने मन्न लोक प्रचलित कहावत है और मनुष्य जैसी संगत करके जैसे उपदेश पायेगा, वैसे ही स्वयं बात करेगा। अतएव आहाविहार एवं संगत ठीक रखो।

क्या सीख मिलती है-

कबीर दास जी के इस दोहे से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें सदैव अच्छे लोगों की संगत करनी चाहिए। इससे हमारे अंदर सकारात्मक ऊर्जा पैदा होती है और अपने लक्ष्यों को पाने में सफलता हासिल होती है।

संत कबीर दोहा – कबीर तहाँ न जाइये

घमंडी लोगों के यहां जाने वालें के लिए कबीर दास जी ने निम्नलिखित दोहे में शिक्षा दी है –

दोहा-

“कबीर तहाँ न जाइये, जहाँ सिध्द को गाँव। स्वामी कहै न बैठना, फिर-फिर पूछै नाँव।”

अर्थ-

अपने को सर्वोपरि मानने वाले अभिमानी सिध्दों के स्थान पर भी मत जाओ। क्योंकि स्वामीजी ठीक से बैठने तक की बात नहीं कहेंगे, बारम्बार नाम पूछते रहेंगे।

क्या सीख मिलती है-

हमें ऐसे घमंडी लोगों के घर जाने से बचना चाहिए जहां पर सम्मान नहीं मिलता है। यहां तक कि वे बार-बार आपके नाम के बारे में ही पूछते रहते हैं।

संत कबीर दोहा – इष्ट मिले अरु मन मिले

आज की दिखावे की दुनिया में कई लोग ऐसे हैं, जिनके आंतरिक मन नही मिलते हैं लेकिन सिर्फ दिखावे के लिए वे, एक-दूसरे के खास बने रहते हैं उन लोगों के लिए कबीर दास जी ने नीचे लिखे गए दोहे में बड़ी सीख दी है –

दोहा-

“इष्ट मिले अरु मन मिले, मिले सकल रस रीति। कहैं कबीर तहँ जाइये, यह सन्तन की प्रीति।”

अर्थ-

उपास्य, उपासना-पध्दति, सम्पूर्ण रीति-रिवाज और मन जहां पर मिले, वहीँ पर जाना सन्तों को प्रियकर होना चाहिए।

क्या सीख मिलती है-

कबीरदास जी के इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि हमारे जहां दिल मिले और मन मिले, उन्हीं से दोस्ती रखनी चाहिए। सिर्फ दिखावे लिए ही मित्र नहीं बनना चाहिए, जो मन को अच्छा लगे उनसे ही दोस्ती करनी चाहिए।

संत कबीर दोहा – कबीरा ते नर अंध हैं (Kabira te nar andh hai)

जो लोग गुरु के महत्व को नहीं समझते है और उनका आदर-सम्मान नहीं करते हैं उन लोगों के लिए कबीरदास जी ने इस दोहे के माध्यम से सीख देने की कोशिश की है –

दोहा-

कबीरा ते नर अंध हैं, गुरू को कहते और, हरि रुठे गुरु ठौर है, गुरू रुठे नहीं ठौर!

अर्थ-

कबीरदास जी ने इस दोहे में जीवन में गुरू का महत्व बताया है। वे कहते हैं कि मनुष्य तो अंधा हैं सब कुछ गुरु ही बताता है अगर ईश्वर नाराज हो जाए तो गुरु एक डोर है जो ईश्वर से मिला देती है लेकिन अगर गुरु ही नाराज हो जाए तो कोई डोर नहीं होती जो सहारा दे।

क्या सीख मिलती है-

हमें हमेशा अपने गुरुओं का आदर करना चाहिए और ध्यान रखना चाहिए कि गुरु को हमारी किसी भी बात से बुरा नहीं लगे और वे नाराज नहीं हो क्योंकि, गुरू ही मात्र एक ऐसे साधक हैं जो कि हमें अपने लक्ष्य तक पहुंचाने में हमारी मद्द करते हैं।

संत कबीर दोहा – गारी मोटा ज्ञान

जो लोग सहनशील नहीं होते या फिर किसी दूसरे के ज्ञान देने पर जल्दी भड़क जाते हैं ऐसे लोगों के लिए संत कबीर दास जी ने नीचे एक दोहा लिखा है –

दोहा-

“गारी मोटा ज्ञान, जो रंचक उर में जरै। कोटी सँवारे काम, बैरि उलटि पायन परे। कोटि सँवारे काम, बैरि उलटि पायन परै। गारी सो क्या हान, हिरदै जो यह ज्ञान धरै।”

अर्थ-

इस दोहे में महाकवि कबीर दास जी कहते हैं यदि अपने ह्रदय में थोड़ी भी सहन शक्ति हो, तो मिली हुई गाई भी भारी ज्ञान का सामान है। सहन करने से करोड़ों काम (संसार में) सुधर जाते हैं। और शत्रु आकर पैरों में पड़ता है। यदि ज्ञान ह्रदय में आ जाय, तो मिली हुई गाली से अपनी क्या हानि है?

क्या सीख मिलती है-

हमें सहनशील बनना चाहिए, कभी-कभी सहना करना भी बहुत लाभदायक होता है। सहन करने से कई परेशानियों का समाधान खुद व खुद हो जाता है।

Kabir Ke Dohe

संत कबीर दोहा – गारी ही से उपजै

इस संसार में कई ऐसे लोग हैं जो गुस्से में आकर अपना आपा खो बैठते हैं, और तो और कई लोग दूसरे की जान तक लेने से नहीं हिचकिचाते ऐसे लोगों के लिए कबीर दास जी ने निम्नलिखित दोहे में बड़ी सीख दी है –

दोहा-

“गारी ही से उपजै, कलह कष्ट औ मीच। हारि चले सो सन्त है, लागि मरै सो नीच।”

अर्थ-

गाली से झगड़ा सन्ताप एवं मरने-मारने तक की बात आ जाती है। इससे अपनी हार मानकर जो विरक्त हो चलता है, वह सन्त है, और (गाली गलौच एवं झगड़े में) जो व्यक्ति मरता है, वह नीच है।

क्या सीख मिलती है-

कबीर दास जी के इस दोहे से हमें यह यह सीख मिलती है कि हमें अपने गुस्से पर नियंत्रण रखना चाहिए और विपरीत समय में समझदारी से काम लेना चाहिए।

Kabir ki Sakhiyan

संत कबीर दोहा – बहते को मत बहन दो

आज की दुनिया में कोई भी किसी के मामले में दखलअंदाजी नहीं करना चाहता फिर चाहे वो अपना ही क्यों न हो। और जानते हुए भी उसे गलत काम करने से नहीं रोकता  ऐसे लोगों के लिए महान संत कबीर दास जी ने इस दोहे में बड़ी सीख दी है –

दोहा-

“बहते को मत बहन दो, कर गहि एचहु ठौर। कह्यो सुन्यो मानै नहीं, शब्द कहो दुइ और।”

अर्थ-

बहते हुए को मत बहने दो, हाथ पकड़ कर उसको मानवता की भूमिका पर निकाल लो। यदि वह कहा-सुना न माने, तो भी निर्णय के दो वचन और सुना दो।

क्या सीख मिलती-

कबीर दास जी के इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि हमें, हमेशा किसी को गलत काम करने से रोककर इंसानियत का परिचय देना चाहिए। इसके साथ ही उसे गलत काम से मिलने वाले नतीजे के बारे में भी जरूर अवगत कराना चाहिए।

संत कबीर दोहा – बन्दे तू कर बन्दगी

जो लोग इंसानियत के फर्ज को नहीं निभाते या फिर अपने जीवन में अच्छे कर्मों को नहीं करते हैं उन्हें महाकवि कबीरदास जी के इस दोहे से जरूर शिक्षा लेनी चाहिए –

दोहा-

“बन्दे तू कर बन्दगी, तो पावै दीदार। औसर मानुष जन्म का, बहुरि न बारम्बार।”

अर्थ-

हे दास! तू सद्गुरु की सेवा कर, तब स्वरूप-साक्षात्कार हो सकता है। इस मनुष्य जन्म का उत्तम अवसर फिर से बारम्बार न मिलेगा।

क्या सीख मिलती है-

कबीरदास जी के इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि हम सभी को अपने जीवन में अच्छे काम करने चाहिए तभी हमारा उद्दार होगा क्योंकि मनुष्य का जन्म बार-बार नहीं मिलता है।

संत कबीर दोहा – बार-बार तोसों कहा

आज के संसार में कई लोग ऐसे हैं जो गलत काम करने से पहले एक बार भी नहीं सोचते हैं और एक दिन फिर उसका अंत हो जाता है । ऐसे लोगों के लिए महाकवि कबीरदास जी ने नीचे लिखे गए दोहें में बड़ी सीख दी है ।

दोहा-

“बार-बार तोसों कहा, सुन रे मनुवा नीच। बनजारे का बैल ज्यों, पैडा माही मीच।”

अर्थ-

हे नीच मनुष्य ! सुन, मैं बारम्बार तेरे से कहता हूं। जैसे व्यापारी का बैल बीच मार्ग में ही मार जाता है। वैसे तू भी अचानक एक दिन मर जाएगा।

क्या सीख मिलती है-

कबीर दास जी के इस दोहे से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें गलत काम नहीं करना चाहिए क्योंकि इसका परिणाम हमेशा बुरा ही होता है।

संत कबीर दोहा – मन राजा नायक भया

जो लोग लालची होते हैं और पूरी जिंदगी सिर्फ पैसे कमाते रहते हैं, उन्हें न ही अपने रिश्तों की फिक्र होती है और न ही खुद की परवाह होती है, ऐसे लोगों के लोग संत कबीर दास जी ने निम्नलिखित दोहा लिखा है –

दोहा-

“मन राजा नायक भया, टाँडा लादा जाय।, पूँजी गयी बिलाय।”

अर्थ-

मन-राजा बड़ा भारी व्यापारी बना और विषयों का टांडा (बहुत सौदा) जाकर लाद लिया। भोगों-एश्वर्यों में लाभ है-लोग कह रहे हैं, परन्तु इसमें पड़कर मानवता की पूँजी भी विनष्ट हो जाती है।

क्या सीख मिलती है-

कबीर दास जी के इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि हमें लालची नहीं बनना चाहिए क्योंकि लालची लोग अक्सर इंसानियत ही भूल जाते हैं।

संत कबीर दोहा – बनिजारे के बैल ज्यों

इस दोहे में कबीरदास जी ने उन लोगों के लिए शिक्षा दी है जो गुरु का ज्ञान नहीं लेते, वे पूरी जिंदगी दूसरी की सेवा में ही उलझे रहते हैं इसका उदाहरण आजकल आपको प्राइवेट सेक्टर में जरूर मिल जाएगा यानि की जहां ऐसे लोगों की संख्या अधिक होती है जिनमे ज्ञान नहीं होता और वे अपने बॉस की सेवा कर आगे बढ़ने का प्रयत्न करते हैं। उन लोगों के लिए ही इस दोहे में कबीरदास जी ने बड़ी सीख दी है –

दोहा-

“बनिजारे के बैल ज्यों, भरमि फिर्यो चहुँदेश। खाँड़ लादी भुस खात है, बिन सतगुरु उपदेश।”

अर्थ-

सौदागरों के बैल जैसे पीठ पर शक्कर लाद कर भी भूसा खाते हुए चारों और फेरि करते है। इस प्रकार इस प्रकार यथार्थ सद्गुरु के उपदेश बिना ज्ञान कहते हुए भी विषय – प्रपंचो में उलझे हुए मनुष्य नष्ट होते है।

क्या सीख मिलती है-

कबीर दास जी के इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि हमें शिक्षा ग्रहण कर आगे बढ़ने का प्रयत्न करना चाहिए  और किसी दूसरे के बल पर हमें आगे बढ़ने की नहीं सोचना चाहिए।

संत कबीर दोहा – जीवत कोय समुझै नहीं

इस दोहे में कबीरदास जी ने उन लोगों के लिए बड़ा उपदेश दिया है जो ज्ञान की बात समझना ही नहीं चाहते। दरअसल आज की युवा खुद के अभिमान में इतनी डूबी रहती है कि उसे किसी की बात समझ में ही नहीं आती उन लोगों को इस दोहे से जरूर सीख लेनी चाहिए।

दोहा-

“जीवत कोय समुझै नहीं, मुवा न कह संदेश। तन – मन से परिचय नहीं, ताको क्या उपदेश।”

अर्थ-

शरीर रहते हुए तो कोई यथार्थ ज्ञान की बात समझता नहीं, और मार जाने पर इन्हे कौन उपदेश करने जायगा। जिसे अपने तन मन की की ही सुधि – बूधी नहीं हैं, उसको उपदेश देने से क्या फायदा?

क्या सीख मिलती है-

कबीर दास जी के इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि हमें जहां से ज्ञान मिला उसे फौरन ले लेना चाहिए और समझदार पुरुष की बातें सुननी चाहिए।

Sant Kabir Ke Dohe – “जिही जिवरी से जाग बँधा

जो लोग इस मायारूपी संसार के मोह से बंधा हुआ है संत कबीरदास ने उन लोगों के लिए यह दोहा लिखा है –

दोहा-

“जिही जिवरी से जाग बँधा, तु जनी बँधे कबीर। जासी आटा लौन ज्यों, सों समान शरीर।”

अर्थ-

जिस भ्रम तथा मोह की रस्सी से जगत के जीव बंधे है। हे कल्याण इच्छुक! तू उसमें मत बंध। नमक के बिना जैसे आटा फीका हो जाता है। वैसे सोने के समान तुम्हारा उत्तम नर – शरीर भजन बिना व्यर्थ जा रहा हैं।

क्या सीख मिलती है-

महान संत कबीदास जी के इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है हमें अपना ध्यान भगवान की वंदना में लगाना चाहिए। क्योंकि भगवान के भजन के बिना ये शरीर बेकार है।

Bura jo Dekhan Main Chala: Kabir Ke Dohe

Kabir ke Dohe

संत कबीर दोहा – बुरा जो देखन मैं देखन चला (Bura jo Dekhan Main Chala)

आज के समय में लोग दूसरों की बुराई ढूंढने में लगे रहते हैं भले ही वह खुद कैसे भी हो और तो और कई लोग ऐसे भी होते हैं जो  दूसरों की बुराई बताकर ही आगे बढ़ते हैं, ऐसे लोंगो के लिए कबीर दास जी ने कहा है कि –

दोहा-

“बुरा जो देखन मैं देखन चला, बुरा न मिलिया कोय, जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।”

अर्थ-

जब मैं इस दुनिया में बुराई खोजने निकला तो मुझे कोई बुरा नहीं मिला। पर फिर जब मैंने अपने मन में झांक कर देखा तो पाया कि दुनिया में मुझसे बुरा और कोई नहीं हैं।

क्या सीख मिलती है-

कबीरदास जी के इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि हमें किसी में बुराई ढूढ़ने से पहले खुद की बुराईयों से परिचित होना चाहिए। क्योंकि दूसरों में अच्छा-बुरा देखने वाला व्यक्ति हमेशा खुद को नहीं जानता वहीं जो दूसरों में बुराई ढूंढते है वास्तव में वही सबसे बड़ी बुराई है।

संत कबीर दोहा – पोथी पढ़ी पढ़ी जग मुआ (Pothi Padh Padh Jag Mua)

आज के समाज में कई ऐसे लोग भी है जिन्होनें मास्टर डिग्री तो हासिल कर लेकिन वे प्यार का महत्व नहीं जानते, ऐसे लोग अज्ञानी ही माने जाते हैं ऐसे लोगों के लिए कबीर दास जी ने इस दोहे में बड़ा उपदेश दिया है –

दोहा-

“पोथी पढ़ी पढ़ी जग मुआ, पंडित भया न कोय, ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।”

अर्थ-

संत कबीरदासजी कहते हैं की बड़ी बड़ी क़िताबे पढ़कर कितने लोग दुनिया से चले गये  लेकिन सभी विद्वान नहीं बन सके। कबीरजी का यह मानना हैं की कोई भी व्यक्ति प्यार को अच्छी तरह समझ ले तो वही दुनिया का सबसे बड़ा ज्ञानी होता हैं।

क्या  सीख मिलती है-

महाकवि कबीरदास जी के इस दोहे से हमें यह शिक्षा मिलती है कि डिग्री हासिल करने से ही हमें ज्ञान की प्राप्ति नहीं होती है बल्कि इसके महत्व को समझकर ज्ञान की करुणा को हम सभी को अपने जीवन में उतारना चाहिए क्योंकि प्रेम के ज्ञान को समझने वाला पुरुष ही विद्धान माना जाता है ।

संत कबीर दोहा – साधू ऐसा चाहिये (Sadhu Aisa Chahiye)

आज के समय में आपको अपने सही मार्ग से भटकाने वाले कई मिल जाएंगे लेकिन सही राह दिखाने वाले इक्का-दुक्का ही मिलेंगे वहीं ऐसे लोगों के लिए संत कबीर दास जी ने इस दोहे में कहा है कि –

दोहा-

“साधू ऐसा चाहिये, जैसा सूप सुभाय, सार – सार को गहि रहै, थोथा देई उड़ाय।”

अर्थ-

जैसे अनाज साफ करने वाला सूप होता हैं वैसे इस दुनिया में सज्जनों की जरुरत हैं जो सार्थक चीजों को बचा ले और निरर्थक को चीजों को निकाल दे।

क्या सीख मिलती है-

कबीरदास जी के इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि हमें ईमानदार और एक सज्जन पुरुष बनना चाहिए तभी हम अच्छाईयों को अपना सकेंगे और इस दुनिया से बुराइयां दूर कर सकेंगे।

संत कबीर दोहा – तिनका कबहूँ ना निन्दिये (Tinka Kabhu na Nindiye)

आज के समय में अक्सर छोटे लोगों को महत्व नहीं दिया जाता या फिर उनको कोई सम्मान नहीं देता  है और अक्सर लोग उन्हें छोटा समझ कर उनका अपमान कर देते हैं जिनके लिए कबीरदास जी ने इस दोहे में बड़ी शिक्षा देने की कोशिश की है।

दोहा-

“तिनका कबहूँ ना निन्दिये, जो पाँवन तर होय, कबहूँ उड़ी आँखिन पड़े, तो पीर घनेरी होय।”

अर्थ-

अपने इस दोहे में संत कबीरदासजी कहते हैं की एक छोटे तिनके को छोटा समझ के उसकी निंदा न करो जैसे वो पैरों के नीचे आकर बुझ जाता हैं वैसे ही वो उड़कर आँख में चला जाये तो बहुत बड़ा घाव देता हैं।

क्या सीख मिलती है-

संत कबीरदास जी के दोहे में हमें यह सीख मिलती है कि हमें कभी किसी को छोटा नहीं समझना चाहिए और सभी का समान भाव से सम्मान करना चाहिए, क्योंकि जिदंगी में किसी क्षेत्र में कब कौन क्या कर जाए कहा नहीं जा सकता।

Kabir ke Dohe in Hindi

संत कबीर दोहा – धीरे धीरे रे मना (Dheere Dheere re Mana)

आज के समय में ज्यादातर ऐसे लोग देखे जाते हैं जिनके अंदर धैर्य नहीं है अर्थात वे थोड़ा सा ही कर्म किए फल की इच्छा करने लगते हैं या फिर कई ऐसे भी लोग होते हैं जो सोचते हैं कि तुरंत ही फल मिल जाए तो ऐसे लोगों के लिए कबीर दास जी ने निम्नलिखित दोहे में बड़ी शिक्षा दी है।

दोहा-

“धीरे – धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय, माली सींचे सौ घड़ा, ऋतु आए फल होय।”

अर्थ-

जैसे कोई आम के पेड़ को रोज बहोत सारा पानी डाले और उसके नीचे आम आने की राह में बैठा रहे तो भी आम ऋतु में ही आयेंगे, वैसे ही धीरज रखने से सब काम हो जाते हैं।

क्या सीख मिलती है-

महान कवि कबीर दास जो की इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि हमें अपने जीवन में धैर्य रखना चाहिए क्योंकि धैर्य रखने वालों का जीवन खुशी से बीतता है।

संत कबीर दोहा – माला फेरत जुग भया (Mala Ferat Jug Bhaya)

इस समाज में कई लोग ऐसे मिल जाएंगे जो लोग मन की शांति के लिए मंदिर जाते हैं, मस्जिद जाते हैं या फिर भगवान की माला करते रहते हैं लेकिन खुद के मन को टटौल कर नहीं देखेंगे। उन लोगों के लिए कबीर दास जी इस दोहे में बड़ी शिक्षा दी है –

दोहा-

“माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर, कर का मनका डार दे, मन का मनका फेर।”

अर्थ-

कबीरदास जी कहते हैं जब कोई व्यक्ति काफ़ी समय तक शांति के लिए  हाथ में मोती की माला लेकर ईश्वर की भक्ति करता हैं लेकिन फिर भी  उसका मन नहीं बदलता है । संत कबीरदास ऐसे इन्सान को सलाह देते हैं कि हाथ में मोतियों की माला को फेरना छोड़कर मन के मोती को बदलो।

क्या सीख मिलती है-

कबीरदास जी के इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि हमें शांति के लिए, ईश्वर की भक्ति करनी की बजाय अपने मन को टटौलना चाहिए और जानने की कोशिश करनी चाहिए कि आखिर हमारा मन चाहता क्या है।

संत कबीर दोहा – जाति न पूछो साधु की (Jaati na Pucho Sadhu ki)

वर्तमान समय में कई लोग आपको ऐसे भी मिल जाएंगे कि वे किसी व्यक्ति के ज्ञान और सज्जनता का अंदाजा उस व्यक्ति की  जाति से ही लगाने लगते हैं । उन लोगों के लिए संत कबीर ने निम्नलिखित दोहे  में बड़ी सीख दी है –

दोहा-

“जाति न पूछो साधू की, पुच लीजिए ज्ञान, मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान।”

अर्थ-

सज्जन और ज्ञानी की जाति पूछने से अच्छा हैं की उसके ज्ञान को समझना चाहिए। जैसे तलवार की कीमत होती हैं, ना की उसे ढ़कने वाले खोल की।

क्या सीख मिलती है-

कबीरदास जी के इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि हमें कभी सज्जन और ज्ञानी पुरुष की जाति नहीं पूछनी चाहिए बल्कि उसके ज्ञान के महत्व देकर उसका सम्मान करना चाहिए।

संत कबीर दोहा – दोस पराए देखि करि (Dosh Paraye Dekhi Kari)

आज के जमाने में आपको कई ऐसे लोग मिल जाएंगे जो दूसरे में बुराई देखकर मन  ही मन बेहद प्रसन्न होते हैं ऐसे लोगों के लिए कबीर दास जी ने निम्नलिखित दोहे में सीख दी है –

दोहा-

“दोस पराए देखि करि, चला हसन्त हसन्त, अपने याद न आवई, जिनका आदि न अंत।”

अर्थ-

संत कबीरदासजी अपने दोहे में कहते हैं की मनुष्य का यह स्वभाव होता है कि वो दूसरे के दोष देखकर और ख़ुश होकर हंसता है। तब उसे अपने अंदर के दोष दिखाई नहीं देते। जिनकी न ही शुरुवात हैं न ही अंत।

क्या सीख मिलती है-

कबीर दास जी के इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि हमें कभी किसी दूसरे की कमी देखकर हंसना नहीं चाहिए बल्कि पहले खुद के अंदर की कमी में सुधार लाने की कोशिश करनी चाहिए।

Kabir ki Sakhiyan

संत कबीर दोहा – गुरू गोविन्द दोऊ खड़े (Guru Govind Dou Khade)

जो लोग गुरु के महत्व को नहीं समझते, उन लोगों के लिए कबीरदास जी ने नीचे लिखे गिए दोहे में बड़ी सीख दी है –

दोहा-

गुरु गोविंद दोनो खड़े, काके लागूं पांय, बलिहारी गुरु आपनो, गोविंद दियो मिलाय!!

अर्थ-

कबीर दास जी ने कहते हैं कि जब गुरु और खुद ईश्वर एक साथ हों तब किसका पहले अभिवादन करें अर्थात दोनों में से किसे पहला स्थान दें? इस पर कबीर दास जी कहते हैं कि जिसने ईश्वर से मिलाया है वही श्रेष्ठ है क्योंकि उसने ही तुम्हे ईश्वर तक पहुंचने का रास्ता बताया है जिससे कि आज तुम ईश्वर के सामने खड़े हो।

क्या सीख मिलती है-

हमें हमेशा अपने गुरुओं का सम्मान करना चाहिए और अपनी सफलता के लिए उनको श्रेय देना नहीं भूलना चाहिए क्योंकि गुरु के बिना ज्ञान असंभव है।

संत कबीर दोहा – कबीरा सोई पीर है (Kabira Soi Peer Hai)

वर्तमान समय में जैसे लोग प्यार की परिभाषा भूलते जा रहे हैं, सिर्फ अपने स्वार्थ के बारे में सोचते रहते हैं। ऐसे लोगों के लिए कबीर दास जी ने अपने महान विचारों से इस दोहे के माध्यम से बड़ी सीख दी है –

दोहा-

कबीरा सोई पीर है, जो जाने पर पीर। जो पर पीर न जानही, सो का पीर में पीर।

अर्थ-

जो इंसान दूसरों की पीड़ा को समझता है, वही सच्चा इंसान है। जो दूसरों के कष्ट को ही नहीं समझ पाता, ऐसा इंसान भला किस काम का!

क्या सीख मिलती है-

एक अच्छा इंसान बनने के लिए हमें कबीर दास जी के इस दोहे से यह सीख मिलती है कि हमें हमेशा दूसरों के दुख-दर्द को समझना चाहिए और दूसरे से प्यार करना चाहिए क्योंकि दूसरों की दुख-तकलीफों में काम आने वाला व्यक्ति एक अच्छा इंसान कहलाता है।

संत कबीर दोहा  – माटी कहे कुमार से (Mati Kahe Kumhar Se)

आजकल ज़्यादातर लोग सिर्फ अपने बारे में, अपने दुःख-सुख के बारे में सोचते है, जैसे कि जानवर, जो सिर्फ अपने बारे में ही सोचते हैं ऐसे लोगों के लिए संत कबीर का निम्नलिखित दोहा बड़ा शिक्षाप्रद है

दोहा-

माटी कहे कुमार से, तू क्या रोंदे मोहे। एक दिन ऐसा आएगा, मैं रोंदुंगी तोहे।

अर्थ-

मिट्टी कुम्हार से कहती है कि आज तुम मुझे रौंद रहे हो, पर एक दिन ऐसा भी आयेगा जब तुम भी मिट्टी हो जाओगे और मैं तुम्हें रौंदूंगी!

क्या सीख मिलती है-

कबीरदास जी के इस  दोहे से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें  सिर्फ अपने बारे में नहीं सोचना चाहिए बल्कि हमें दूसरों का भी ख्याल रखना चाहिए।

संत कबीर दोहा – दुख में सुमिरन सब करै (Dukh me Sumiran Sab Kare)

जो लोग सिर्फ अपने बुरे वक्त में या दुख की घड़ी में ईश्वर को याद करते हैं और अच्छे वक्त में ईश्वर का शुक्रियादा भी अदा नहीं करते ऐसे मतलबी लोगों के लिए कबीरदास जी ने नीचे लिखे गए दोहे में बड़ी सीख दी है –

दोहा-

दुःख में सुमिरन सब करे सुख में करै न कोय। जो सुख में सुमिरन करे दुःख काहे को होय ॥

अर्थ-

इस दोहे में कबीरदास जी कहते हैं कि जब मनुष्य के जीवन में सुख आता है तो वह ईश्वर को याद नहीं करता लेकिन जैसे ही दुख आता है तब वो दौड़ा-दौड़ा ईश्वर के चरणों में आ जाता है फिर आप ही बताइए कि ऐसे भक्त की पीड़ा कौन सुनेगा?

क्या सीख मिलती है-

कबीरदास जी के इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि हमें अपने अच्छे और बुरे दोनों वक्त में ईश्वर की भक्ति करना और उन्हें धन्यवाद करना नहीं भूलना चाहिए।

संत कबीर दोहा – तन को जोगी सब करे (Tan ko Jogi sab kare)

समाज में कई ऐसे लोग मिल जाएंगे जो सिर्फ बाहरी मन से ही साफ-सुथरा और अच्छा बनने की कोशिश करते रहते हैं जबकि हकीकत में उनके मन में दुनिया भर का मैल भरा रहता है। ऐसे लोगों के लिए कबीरदास जी ने इस दोहे के माध्यम से बेहतरीन सीख देने की कोशिश की है –

दोहा-

तन को जोगी सब करे, मन को विरला कोय। सहजे सब विधि पाइए, जो मन जोगी होए।

अर्थ-

हम सभी हर रोज़ अपने शरीर को साफ़ करते हैं लेकिन मन को बहुत कम लोग साफ़ करते हैं। जो इंसान अपने मन को साफ़ करता है, वही हर मायने में सच्चा इंसान बन पाता है।

क्या सीख मिलती है-

कबीरदास जी के इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि हमें जिस तरीके से हम अपने कपड़े और बाहरी शरीर को साफ रखते हैं। उसी तरीके से हमें अपने मन को भी साफ रखना चाहिए तभी हम सही मायने में एक सच्चे इंसान कहलाएंगे।

संत कबीर दोहा – नहाये धोये क्या हुआ (Nahaye Dhoye kya Bhaya)

कबीर दास जी ने ऐसे ही ढोंगी लोगों पर, जो ऊपर से अपने आप को शुद्ध और महान दिखाने की कोशिश करते हैं, उनके लिए इस दोहे में कहा है कि –

दोहा-

नहाये धोये क्या हुआ, जो मन मैल न जाए। मीन सदा जल में रहे, धोये बास न जाए।

अर्थ-

अगर मन का मैल ही नहीं गया तो ऐसे नहाने से क्या फ़ायदा? मछली हमेशा पानी में ही रहती है, पर फिर भी उसे कितना भी धोइए, उसकी बदबू नहीं जाती।

क्या सीख मिलती है-

हमें महानसंत कबीरदास जी के इस दोहे से यह सीख मिलती है कि हमें बाहरी मन से खुद को महान दिखाने की कोशिश नहीं करनी चाहिए बल्कि आंतरिक मन से भी उतने ही शुद्ध होना चाहिए तभी हम सही मायने में एक सच्चे इंसान बन सकेंगे।

संत कबीर दोहा – कबीरा जब हम पैदा हुए (Kabira Jab Hum Paida Hue)

जो लोग हर वक्त खुद के बारे में ही सोचते रहते हैं और यह भूल जाते हैं कि  एक दिन हमें भी मिट्टी में ही विलीन हो जाना है और पीछे सिर्फ हमारे किये हुए अच्छे या बुरे काम रह जाने हैं। उन लोगों के लिए कबीरदास जी ने नीचे लिखे दोहों में बड़ी सीख दी है –

दोहा-

कबीरा जब हम पैदा हुए, जग हँसे हम रोये, ऐसी करनी कर चलो, हम हँसे जग रोये।

अर्थ-

कबीरदास जी कहते हैं कि जब हम पैदा हुए थे तब सब खुश थे और हम रो रहे थे। पर कुछ ऐसा काम ज़िन्दगी रहते करके जाओ कि जब हम मरें तो सब रोयें और हम हँसें।

क्या सीख मिलती है-

कबीरदास जी के इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि हमें अपनी जिंदगी में अच्छे कर्मों को करना चाहिए क्योंकि इंसान के अच्छे कामों को ही याद किया जाता है।

कबीर दोहा – साईं इतना दीजिए (Sai Itna Dijiye)

आज के समय में ऐश और आराम के लिए लोग ज्यादा कमाने की होड़ में लगे रहते हैं या फिर यूं कहें कि सिर्फ खुद के बारे में भी ईश्वर से प्रार्थना करते हैं । ऐसे लोगों के लिए कबीरदास जी ने नीचे लिखे दोहे में बड़ी सीख दी है –

दोहा-

साईं इतना दीजिए, जा में कुटम समाय, मै भी भूखा न रहूं, साधू न भूख जाय!!

अर्थ-

कबीरदास जी कहते हैं कि प्रभु इतनी कृपा करना कि जिसमें मेरा परिवार सुख से रहे और ना मै भूखा रहूं और न ही कोई सदाचारी मनुष्य भी भूखा सोए।

क्या सीख मिलती है-

कबीर दास जी के इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि हमें ईश्वर से यह प्रार्थना करनी चाहिए कि हमारा परिवार में हमेशा सुख-शांति बनी रही और वह कभी भूखा नहीं सो इसके साथ ही इस दोहे में कबीरदास जी ने परिवार में ही संसार के लिए इच्छा व्यक्त की है अर्थात दुनिया में कोई भी व्यक्ति भूखा न सोए और सभी सुख से अपना जीवन व्यतीत करें।

संत कबीर दोहे – माया मरी न मन मरा (Maya Mari na Man Mara)

जो लोग पूरी जिंदगी हाय-हाय करते रहते हैं या फिर सिर्फ और सिर्फ पैसे कमाने की होड़ में लगे रहते हैं और अपने परिवार और मित्र के रिश्तों को भी सही से नहीं निभाते हैं ऐसे लोगों के लिए कबीरदास जी ने नीचे लिखे दोहे में बड़ी शिक्षा दी है –

दोहा-

माया मरी न मन मरा, मर-मर गए शरीर,आशा तृष्णा न मरी, कह गए दास कबीर !!

अर्थ-

कविवर कबीरदास जी कहते हैं कि मनुष्य की इच्छा, उसका ऐश्वर्य अर्थात धन सब कुछ नष्ट होता है यहां तक की शरीर भी नष्ट हो जाता है लेकिन फिर भी आशा और भोग की आस नहीं मरती।

क्या सीख मिलती है-

कबीरदास जी के इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि हमें अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण रखना चाहिए क्योंकि वे कभी खत्म नहीं होती और धन के पीछे हद से ज्यादा नहीं भागना चाहिए क्योंकि एक दिन यह सब नष्ट हो जाता है।

निष्कर्ष-

अगर आप भी एक सच्चा इंसान बनना चाहते हैं और अपनी जिंदगी में सफलता हासिल करना चाहते हैं और खुशी से अपनी जिंदगी काटना चाहते हैं तो आप कबीरदास जी के ऊपर लिखे गए दोहों से सीख लेकर अपनी जिंदगी में काफी बदलाव कर सकते हैं और एक ऐसे इंसान बन सकते हैं जिससे दूसरे भी आपसे प्रेरणा ले सकें।

गुरु के दोहे अर्थ समेत – Guru ke Dohe

गुरु का हर किसी के जीवन में बहुत महत्व है। गुरु के बिना ज्ञान असंभव है अर्थात इसकी महत्वत्ता की वजह से ही गुरु को ईश्वर से भी ऊंचा पद दिया गया है। गुरु को ईश्वर के अलग-अलग रुप बह्रा-विष्णु एवं महेश्वर का रुप भी माना गया है क्योंकि गुरु, अपने शिष्य को न सिर्फ ज्ञान देता है बल्कि एक नया जीवन देता है और उसकी रक्षा करता है।

यही नहीं गुरु के महत्व का वर्णन शास्त्रों में किया गया है। पुराने समय में  ऋषि-मुनि से अपने शिष्यों को शस्त्र विद्या, दर्शनशास्त्र और साहित्यिक ज्ञान देकर उनका मार्ग दर्शन करते थे साथ ही समाज के विकास का बीड़ा भी उठाते रहे हैं।

गुरु शब्द दो अक्षरों से मिलकर बना है- ‘गु’ का अर्थ होता है अंधकार (अज्ञान) एवं ‘रु’ का अर्थ होता है प्रकाश (ज्ञान)। अर्थात गुरु हमें अज्ञान रूपी अंधकार से ज्ञान रूपी प्रकाश की तरफ ले जाते हैं। इसके साथ ही गुरु ही इंसान की जीवन की ज्योति जगाता है और गुरु,सद्मार्ग की राह दिखता है।  गुरु,भवसागर के सागर से तारना सिखाता है।

इसलिए हिन्दी साहित्य के महान कवि कबीर दास जी ने अपने कुछ दोहे के माध्यम से गुरु और शिष्य के संबंध को बेहद सुंदर और सरल तरीके से समझाया है, इसके साथ ही उन्होंने गुरु का स्थान सबसे ऊंचा बताया है।

संत कबीर दोहा – Kabir ke Dohe

वर्तमान में गुरु-शिष्य के रिश्ते की परिभाषा ही बदल गई है लेकिन फिर भी इस दोहे के माध्यम से हिन्दी साहित्य के महान कवि कबीर दास जी ने गुरु से ज्ञान प्राप्त करने के लिए लोगों को प्रेरित किया है और ऐसे मूर्खों को सीख दी है।

जो गुरुओं को कुछ नहीं समझते हैं और अपने घमंड में चूर रहते हैं जिन्हें बाद में निराशा ही हाथ लगती है और वे अपने जीवन में सफलता हासिल नहीं कर पाते हैं।

दोहा–

गुरु सो ज्ञान जु लीजिये,

सीस दीजये दान।

बहुतक भोंदू बहि गये,

सखि जीव अभिमान।।

दोहे का अर्थ-

इस दोहे में कबीरदास जी ने यह बताया है कि अपने सिर को दान में देकर गुरु से ज्ञान प्राप्त करो, लेकिन यह सीख न मानकर कई लोग अपने शरीर, धन समेत कई चीजों के घमंड में चूर होकर इस संसार से चले गए, जिन्हें कभी ज्ञान की प्राप्ति नहीं हुई है अर्थात उनके गुरुपद- पोत में नहीं लगे।

क्या सीख मिलती है-

कबीरदास जी के इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि हमें अपने घमंड में नहीं रहना चाहिए और अपने गुरु से ज्ञान प्राप्त करना चाहिए क्योंकि ज्ञान के बिना इंसान का जीवन असंभव है।

संत कबीर दोहा– Kabir ke Dohe

वर्तमान में गुरु और शिष्य के रिश्ते में काफी बदलाव आ गया है। न ही अब गुरु, अपने शिष्य की भलाई और उसके रक्षा के बारे में सोचता है और न ही शिष्य अपने गुरुओं को उतना सम्मान देते हैं जितना कि उन्हें देना चाहिए ऐसे ही लोगों के लिए संत कबीर दास ने इस दोहे में बड़ी सीख दी है जो अपने गुरुओं की आज्ञा का पालन नहीं करते हैं और न उन्हें सम्मान देते हैं।

दोहा–

गुरु की आज्ञा आवै,

गुरु की आज्ञा जाय।

कहैं कबीर सो संत हैं,

आवागमन नशाय।।

दोहे का अर्थ-

इस दोहे में कबीरदास जी ने यह कहा है कि व्यवहार में भी किसी साधु को गुरु की आज्ञा का पालन करना चाहिए और गुरु के मुताबिक ही आना-जाना चाहिए अर्थात सद् गुरु के कहने का तात्पर्य यह है कि संत वही है जो जन्म- मरण से पार होने के लिए कठोर साधना करता है।

क्या सीख मिलती है-

हिन्दी साहित्य के महानकवि कबीरदास जी के इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि हमें अपने गुरु की आज्ञा का पालन करना चाहिए क्योंकि जो लोग गुरु के अनुसार चलते हैं उनकी जीवन की नैया पार लग जाती है।

संत कबीर दोहा– Kabir ke Dohe

कलियुग में भले ही गुरु की परिभाषा बदल गई हो लेकिन महत्व तो गुरु का आज भी उतना ही है। महान संत कबीरदास जी ने अपने इस दोहे के माध्यम से यह बताने की कोशिश की है कि गुरु अपने शिष्य को किस तरह से अपने गुर सिखाकर उसे महान बनाता है।

दोहा–

गुरु पारस को अन्तरो,

जानत हैं सब सन्त।

वह लोहा कंचन करे,

ये करि लये महन्त।।

दोहे का अर्थ-

इस दोहे में संत कबीर दास जी ने गुरु और पारस पत्थर की तुलना करते हुए कहा है कि यह सब सन्त जानते हैं कि पारस तो लोहे को सोना ही बनाता है, लेकिन गुरु वो होता अपने शिष्यों को महान बनाता है।

क्या सीख मिलती है-

संत कबीर दास जी के इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है, हमें अपने गुरुओं की इज्जत करनी चाहिए क्योंकि गुरु ही अपने शिष्यों को महान बनाता है और उनका मार्गदर्शन करता है।

अगले पेज पर और भी कबीर के दोहे हैं….

संत कबीर दोहा – Kabir ke Dohe

वर्तमान में कई लोग ऐसे भी हैं जो गुरु के महत्व को नहीं समझते और अंधकार में अपना जीवन व्यतीत करते हैं। ऐसे लोगों को कबीरदास जी ने इस दोहे के माध्यम से बड़ी सीख देने की कोशिश की है और बताया है कि गुरु के ज्ञान से पैदाइश बुराई भी जड़ से खत्म हो जाती है।

दोहा–

कुमति कीच चेला भरा,

गुरु ज्ञान जल होय।

जनम – जनम का मोरचा,

पल में डारे धोया।।

दोहे का अर्थ-

इस दोहे में महान संत कबीरदास जी कहते हैं कि कुबुद्धि रूपी कीचड़ से शिष्य भरा पड़ा है, जिसे धोने के लिए गुरु का ज्ञान जल है। वहीं गुरुदेव एक ही पल में जन्म – जन्मान्तरो की बुराई भी नष्ट करते जा रहे हैं।

क्या सीख मिलती है-

महान कवि तुलसीदास जी ने यह सीख दी है कि हम सभी के जीवन में गुरु का खास स्थान और अपना एक अलग महत्व है क्योंकि गुरु,अपने शिष्यों की जन्म-जम्नान्तरों की बुराई भी जड़ से खत्म कर देते  हैं और शिष्य को सफलता के पथ पर अग्रसर करते हैं।

संत कबीर दोहा – Kabir ke Dohe

आजकल जैसे कि हम रोज खबरों में सुनते हैं जिस तरह गुरु-शिष्य का रिश्ता तार-तार हो रहा है अर्थात वर्तमान में गुरु-शिष्य का रिश्ता उतना पवित्र नहीं रह गया और न अब गुरु अपने शिष्य की भलाई के लिए उतनी मेहनत करना चाहता है, जिस तरह उसको अपने शिष्य के भविष्य को संवारने के लिए करनी चाहिए।

वहीं दूसरी तरफ शिष्य भी अपने गुरुओं की बात को नजरअंदाज कर रहे हैं जिससे उनमें ज्ञान की कमी रह जाती है और वह अपने जीवन के लक्ष्यों को हासिल नहीं कर पाते। फिलहाल कबीरदास जी ने अपने इस दोहे में ऐसे लोगों को बड़ी सीख देने की कोशिश की है और इस दोहे में उन्होंने बेहद सरल और सुंदर ढंग से गुरु-शिष्य की तुलना कुम्हार और घड़े से की है।

अर्थात जैसे कुम्हार मिट्टी के मथ-मथ कर घड़ा का आकार देते हैं वैसे ही एक गुरु भी अपने शिष्य को उसकी बुराईयों को दूर कर अच्छाइयों की तरफ ले जाता है।

दोहा–

गुरु कुम्हार शिष कुंभ है,

गढ़ि – गढ़ि काढ़ै खोट।

अन्तर हाथ सहार दै,

बाहर बाहै चोट।।

दोहे का अर्थ-

इस दोहे में कवि कबीरदास जी गुरु-शिष्य की तुलना कुम्हार और घड़े से कर रह रहे हैं। इसमें कवि कह रहे हैं कि गुरु, एक कुम्हार की तरह है और शिष्य एक घड़े की तरह है, अर्थात जिस तरह से कुम्हार, घड़े में अंदर से हाथ का सहारा देकर और बाहर से चोट मारकर और गढ़ – गढ़ कर शिष्य की बुराई को निकलते हैं।

और घड़े को एक सुंदर आकार देते हैं उसी तरह गुरु भी अपने शिष्यों की बुराइयों को दूर करते हैं और उन्हें अच्छाई के रास्ते पर चलना सिखाते हैं।

क्या सीख मिलती है-

कवि कबीरदास जी के इस दोहे से यह सीख मिलती है कि एक गुरु के लिए अपने शिष्य के भविष्य को संवारने के लिए उनकी बुराइयों को दूर करना बेहद जरूरी है।

संत कबीर दोहा – Kabir ke Dohe

इस दोहे में संत कबीरदास जी बेहद सुंदर ढंग से गुरु को दानवीर और शिष्य को याचक बताया है।

दोहा–

गुरु समान दाता नहीं,

याचक शीष समान।

तीन लोक की सम्पदा,

सो गुरु दीन्ही दान।।

दोहे का अर्थ-

इस दोहे में कवि कबीरदास जी ने गुरु-शिष्य के अनमोल रिश्ते की व्याख्या करते हुए बताया है कि गुरु के समान कोई देने वाला नहीं है अर्थात दाता नहीं हैं और शिष्य के सामान कोई लेने वाला नहीं है यानि कि याचक नहीं। इस दोहे में कवि ने कहा है कि गुरु ने त्रिलोक की सम्पत्ति से भी बढ़कर ज्ञान दिया है।

संत कबीर दोहे– Kabir ke Dohe

जो लोग गुरु से ज्ञान लेकर भूल जाते हैं अथवा उसका अनुसरण नहीं करते हैं या फिर लगातार अभ्यास नहीं करते हैं। ऐसे लोगों के लिए महान संत कबीर दास जी ने अपने इस दोहे के माध्यम से बड़ी सीख दी है।

दोहा–

जो गुरु बसै बनारसी,

शीष समुन्दर तीर।

एक पलक बिखरे नहीं,

जो गुण होय शारीर।।

दोहे का अर्थ-

इस दोहे में महान संत कबीर दास जी ने कहा है कि अगर गुरु वाराणसी में निवास करें और शिष्य समुद्र के पास हो, लेकिन शिष्य के शरीर में गुरु का गुण होगा, जो कि गुरु को एक पल भी नहीं भूलेगा।

क्या सीख मिलती है-

इस दोहे में महान संत कबीर दास जी ने यह सीख दी है कि हमें हमेशा गुरु के संपर्क में रहना चाहिए और उनसे ज्ञान लेते रहना चाहिए।

कबीर की साखियाँ – Kabir ki Sakhiyan

इस दोहे में कबीरदास जी ने गुरु को भगवान से भी बड़ा बताया है। कबीरदास जी ने गुरु को ब्रह्मा विष्णु महेश तीनों के समकक्ष बताया गया है। क्योंकि एक गुरु ही साधक की ज्ञानज्योति जगाता है और  शिष्य की आंख और दृष्टिक क्षमता भी बताता है।

दोहा–

गुरुब्रह्मा गुरुविर्ष्णुः, गुरुर्देवो महेश्वरः।

गुरुः साक्षात् परब्रह्म, तस्मै श्री गुरवे नमः।।

दोहे का अर्थ-

इस दोहे में कबीरदास जी कहते हैं कि गुरू ही ब्रह्मा है, गुरु ही विष्णु है, गुरु ही भगवान शिव है। गुरु ही साक्षात परम ब्रहम है। ऐसे गुरु के चरणों में मैं प्रणाम करता हूँ।

क्या सीख मिलती है-

कबीरदास जी के इस दोहे से में हमें यह सीख मिलती है कि हमें गुरुओं के महत्व को समझना चाहिए और उनका सम्मान करना चाहिए क्योंकि गुरु, हमारे जीवन के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है।

संत कबीर दोहा– Kabir ke Dohe

आज के समय में जो लोग अपने गुरुओं की कदर नहीं करते और अपने गुरुओं को नाराज करते हैं ऐसे लोगों के लिए कवि ने इस दोहे के माध्यम से बड़ी सीख दी है।

दोहा–

‘हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहिं ठौर ॥’

दोहे का अर्थ-

इस दोहे के माध्यम से कवि कबीरदास जी ने कहा है कि भगवान के रूठने पर तो गुरू की शरण रक्षा कर सकती है लेकिन गुरू के रूठने पर कहीं भी शरण मिलना सम्भव नहीं है।

जिसे ब्राह्मणों ने आचार्य, बौद्धों ने कल्याणमित्र, जैनों ने तीर्थंकर और मुनि, नाथों तथा वैष्णव संतों और बौद्ध सिद्धों ने उपास्य सद्गुरु कहा है उस श्री गुरू से उपनिषद् की तीनों अग्नियाँ भी थर-थर काँपती हैं। त्रोलोक्यपति भी गुरू का गुणगान करते है। ऐसे गुरू के रूठने पर कहीं भी ठौर नहीं।

क्या सीख मिलती है-

इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि हमें सदैव अपने गुरु की आज्ञा का पालन करना चाहिए और हमेशा वो काम करना चाहिए जो गुरु को अच्छा लगे क्योंकि अगर एक बार गुरु नाराज हो जाते हैं तो उस मनुष्य का जीवन बेकार हो जाता है क्योंकि फिर उसे कोई भी नहीं पूछता है।

संत कबीर दोहा– Kabir ke Dohe

वर्तमान परिवेश में तो अध्यात्मिक गुरु का मिलना या मिलने के बाद भी उन्हें पहचानना हमारे बस की बात नहीं है इसलिए वर्तमान में तो गुरु और गोविंद में से किसी एक को ज्यादा और कम महत्व नहीं दिया जा सकता है। फिलहाल संत कबीर दास जी ने गुरु के महत्व का वर्णन करते हुए गुरु को ही सर्वोपरि बताया है –

दोहा–

गुरू गोविन्द दोऊ खङे का के लागु पाँव।

बलिहारी गुरू आपने गोविन्द दियो बताय।।

दोहे का अर्थ-

इस दोहे में संत कबीरदास जी कहते हैं कि गुरू और गोबिंद अर्थात भगवान दोनों एक साथ खड़े हों तो किसे प्रणाम करना चाहिए – गुरू को अथवा गोबिन्द को ?

कवि कहते हैं कि ऐसी स्थिति में गुरू के श्रीचरणों में शीश झुकाना उत्तम है क्योंकि गुरु ने ही भगवान तक जाने का रास्ता बताया है अर्थात गुरु की कृपा से ही गोविंद के दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है।

क्या सीख मिलती है – कवि के इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि दुनिया में सबसे पहले हमें अपने गुरु के सामने अपना सिर झुकाना चाहिए अर्थात इनकी आज्ञा का पालन करना चाहिए क्योंकि गुरु ने ही भगवान तक पहुंचने का रास्ता बताया है।

संत कबीर दोहा – Kabir ke Dohas

जो लोग गुरुओं का आज्ञा का पालन नहीं करते और उनकी हर बात को नजरअंदाज करते हैं ऐसे लोगों के लिए कबीरदास ने इस दोहे में बड़ी सीख दी है –

दोहा–

गुरु को सिर राखिये,

चलिये आज्ञा माहिं।

कहैं कबीर ता दास को,

तीन लोकों भय नाहिं।।

दोहे का अर्थ-

इस दोहे में कबीरदास जी ने कहा है कि गुरु को अपना सिर मुकुट मानकर, उसकी आज्ञा मैं चलना चाहिए। जो लोग ऐसा करते हैं उनके लिए कवि कह रहे हैं कि ऐसे  शिष्यों को अथवा सेवक को तीनों लोकों से कोई डर नही हैं। अर्थात वह हमेशा ही सही मार्ग पर चलेगा और अपनी जिंदगी में तरक्की हासिल करेगा।

क्या सीख मिलती है-

कबीरदास जी के इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि हमें अपने गुरुओं के कहने के आधार पर चलना चाहिए क्योंकि गुरु हमेशा अपने शिष्यों को सही मार्ग दिखाता है और उनके सफल जीवन के लिए निरंतर प्रयासरत रहता है।

संत कबीर दोहा – Kabir ke Doha

इस दोहे में कबीरदास जी ने उस लोगों को बड़ी सीख दी है जो लोग गुरु का ज्ञान नहीं लेते हैं और इस मायारूपी संसार में जकड़े रहते हैं।

दोहा –

गुरू बिन ज्ञान न उपजै, गुरू बिन मिलै न मोष।

गुरू बिन लखै न सत्य को गुरू बिन मिटै न दोष।।

दोहे का अर्थ-

इस दोहे में कबीर दास जी कहते हैं – संसारिक प्राणियों। बिना गुरू के ज्ञान का मिलना असम्भव है। तब तक मनुष्य अज्ञान रूपी अंधकार में भटकता हुआ मायारूपी सांसारिक बन्धनों मे जकड़ा रहता है जब तक कि गुरू की कृपा प्राप्त नहीं होती। मोक्ष रूपी मार्ग दिखलाने वाले गुरू हैं। बिना गुरू के सत्य एवं असत्य का ज्ञान नहीं होता। उचित और अनुचित के भेद का ज्ञान नहीं होता फिर मोक्ष कैसे प्राप्त होगा? अतः गुरू की शरण में जाओ। गुरू ही सच्ची राह दिखाएंगे।

क्या सीख मिलती है-

इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि हमें गुरुओं के पास ज्ञान प्राप्त करने के लिए जाना चाहिए क्योंकि गुरु के बिना सत्य और असत्य की पहचान करना मुश्किल है क्योंकि गुरु ही हमें सच्चाई और सफलता के मार्ग पर चलना सिखाता है।

कबीर की साखियाँ – Kabir ki Sakhiyan

इस दोहे में कबीर दास जी ने गुरु की तुलना चन्द्रमा से की है –

दोहा–

गुरु मूरति गति चन्द्रमा,

सेवक नैन चकोर।

आठ पहर निरखत रहे,

गुरु मूरति की ओर।।

दोहे का अर्थ-

इस दोहे में कबीरदास जी कहते हैं कि गुरु की मूर्ति  चन्द्रमा के समान है और सेवक के नेत्र चकोर के सामान हैं। अर्थात आठो पहर गुरु है – मूर्ति की ओर ही देखते रहो।

क्या सीख मिलती है-

इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि हमें अपने गुरुओं का आदर करना चाहिए और उनके दिए ज्ञान का अनुसरण करना चाहिए तभी हमारे जीवन का उद्धार संभव है।

संत कबीर दोहा– Kabir ke Dohe

जो लोग गुरुओं का आदर नहीं करते उन लोगों के लिए हिन्दी साहित्य के महान कवि कबीरदास जी ने कहा है कि गुरु सर्वोपरि है इसलिए गुरु के आगे किसी अन्य की मत सुनो क्योंकि गुरु अपने शिष्य की हमेशा भलाई के लिए सोचता है।

दोहा–

गुरु मूरति आगे खड़ी,

दुतिया भेद कुछ नाहिं।

उन्हीं कूं परनाम करि,

सकल तिमिर मिटि जाहिं।।

दोहे का अर्थ-

इस दोहे में कबीरदास जी कहते हैं कि अगर गुरु की मूर्ति आगे खड़ी है, उसमें दूसरा भेद कुछ मत मानो। उन्हीं की सेवा बंदगी करो, फिर सब अंधकार मिट जाएगा।

क्या सीख मिलती है-

महान संत कबीरदास जी के दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि हमें हमेशा अपने गुरुओं की बात पर यकीन करना चाहिए और उनकी सच्चे मन से सेवा करनी चाहिए क्योंकि एक गुरु ही है जो हमारे जीवन से अंधकार मिटाने में हमारी मद्द करता है।

संत कबीर दोहा– Kabir ke Dohe

जो लोग गुरु की सेवा नहीं करते हैं, उन लोगों के लिए कबीरदास जी ने इस दोहे में बड़ी सीख दी है –

दोहा –

ज्ञान समागम प्रेम सुख,

दया भक्ति विश्वास।

गुरु सेवा ते पाइए,

सद् गुरु चरण निवास।।

दोहे का अर्थ-

इस दोहे मे कबीरदास जी ने कहा है कि ज्ञान, सन्त- समागम, सबके प्रति प्रेम, निर्वासनिक सुख, दया, भक्ति सत्य-स्वरुप और सद् गुरु की शरण में निवास – ये सब गुरु की सेवा से ही मिलते हैं।

क्या सीख मिलती है-

कबीरदास जी के इस दोहे में हमें यह सीख मिलती है कि हमें सदैव अपने गुरु की सेवा करनी चाहिए क्योंकि गुरु की सेवा करने से ही हमें मोक्ष की प्राप्ति होती है।

संत कबीर दोहा– Kabir ke Dohe

इस दोहे में कबीरदास जी ने गुरु के गुणों के महत्व को समझाने की कोशिश की है –

दोहा–

सब धरती कागज करूँ,

लिखनी सब बनराय।

सात समुद्र की मसि करूँ,

गुरु गुण लिखा न जाय।।

दोहे का अर्थ-

सब पृथ्वी को कागज, सब जंगल को कलम, सातों समुद्रों को स्याही बनाकर लिखने पर भी गुरु के गुण नहीं लिखे जा सकते।

क्या सीख मिलती है-

इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि हमें गुरु के गुण के महत्व को समझना चाहिए क्योंकि गुरु के सिखाए गए गुणों से ही इंसान अपने जीवन में सफलता हासिल कर सकता है।

संत कबीर दोहा– Kabir ke Dohe

जो लोग यह सोचते हैं कि बड़े-बड़े शास्त्रों को पढ़कर वे ज्ञानी पुरुष बन जाएंगे तो ऐसे लोगों के लिए कवि ने इस दोहे में बड़ी सीख दी है।

दोहा–

पंडित यदि पढि गुनि मुये,

गुरु बिना मिलै न ज्ञान।

ज्ञान बिना नहिं मुक्ति है,

सत्त शब्द परमान।।

दोहे का अर्थ – इस दोहे में कबीरदास जी कहते हैं कि बड़े-बड़े विद्धान शास्त्रों को पढ़-लिखकर ज्ञानी होने का दम भरते हैं, लेकिन गुरु के बिना उन्हें ज्ञान नही मिलता। ज्ञान के बिना मुक्ति नहीं मिलती।

क्या सीख मिलती है-

हमें इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि हमे चाहे कितनी भी किताबी विद्या क्यों नहीं हासिल कर लें लेकिन गुरु के बिना हमारा ज्ञान अधूरा ही है क्योंकि गुरु ही हमें अपने लक्ष्य तक पहुंचाने में हमारी मद्द करता है।

निष्कर्ष-

इन दोहों के माध्यम से कबीरदास जी ने बेहद सुंदर ढंग से गुरु के महत्व को समझाया है जो कि वाकई प्रशंसनीय है। एक बेहतर भविष्य के निर्माण में गुरुओं की अहम भूमिका होती है। गुरु सिर्फ अपने शिष्य को ही नहीं सही दिशा दिखाते बल्कि एक सभ्य समाज का निर्माण भी करते हैं। इसलिए हम सभी को भी गुरुओं का सम्मान करना चाहिए।

और भी Kabir Ke Dohe हम जल्द ही लेकर आयेंगे… धन्यवाद

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