कार्ल मार्क्स एक महान वैज्ञानिक, अर्थशास्त्री और दार्शनिक थे, जो कि समाजवाद के प्रणेता के रुप में जाने जाते थे। उन्होंने अपनी क्रांतिकारी विचारधारा से मजदूरों के साथ होने वाले भेदभाव को लेकर अपनी आवाज बुंलद की थी।
इसके साथ ही उन्होंने पूंजीवाद के खिलाफ जमकर विरोध किया और कम्यूनिज्म के लिए आधारभूत विचार विकसित किए। इसके अलावा कार्ल मार्क्स ने महिलाओं के हित के लिए भी उल्लेखनीय कई काम किए थे।
कार्ल मार्क्स ने अपनी रचनाओं और थ्योरी के माध्यम से लोगों को आर्थिक और राजनैतिक परिस्थियों के बारे में समझाया और मानवी स्वभाव और आर्थिक मजबूती को लेकर भी अपनी थ्योरी दी थी।
कार्ल मार्क्स को साम्यवाद के जनक के तौर पर भी जाना जाता है। उनका मानना था कि धर्म लोगों का अफीम है और लोकतंत्र समाजवाद का एकमात्र रास्ता है। तो आइए जानते हैं समाजवाद के प्रणेता कार्ल मार्क्स के जीवन के बारे में –
महान दार्शनिक और समाजवाद के प्रणेता कार्ल मार्क्स की जीवनी – Karl Marx in Hindi
एक नजर में –
पूरा नाम (Name) | कार्ल हेनिरीच मार्क्स |
जन्म (Birthday) | 5 मई, 1818,ट्रायर, जर्मनी |
पिता (Father Name) | हेईनरीच मार्क्स |
माता (Mother Name) | हेनरीएट प्रिजबर्ग |
पत्नी (Wife Name) | जेनी वोन वेस्टफलेन, एलेनर मार्क्स |
बच्चे (Childrens) | 7 बच्चे |
मुख्य रचनाएँ (Books) | ‘द कम्युनिस्ट मेनिफेस्टो’ (1848) और ‘दास कैपिटल’ (1867) |
मृत्यु (Death) | 14 मार्च, 1883, ब्रिटेन |
जन्म, शिक्षा एवं प्रारंभिक जीवन –
कार्ल्स मार्क्स का जन्म 5 मई, 1818 को जर्मनी के ट्राइटेर के रहेनिश प्रूशिया में हुआ था। उनके पिता हेईनरीच मार्क्स वकील थे और वोल्टेयर के प्रति समर्पित थे। उन्होंने प्रुसिया के लिए होने वाले आंदोलन में भी हिस्सा लिया था,जबकि उनकी मां हेनरीएट प्रिजबर्ग एक घरेलू महिला थीं।
मार्क्स अपने माता-पिता के 9 बच्चो में से पहले जीवित बच्चे थे। उनके माता-पिता दोनों ही यहूदी पृष्ठभूमि से थे और यहूदी धर्म की शिक्षा देते थे।
हालांकि इसकी वजह से मार्क्स को बाद में समाज में भेदभाव जैसी कई समस्याओं से जूझना पड़ा था।
शादी एवं बच्चे –
मार्क्स से जेनी वोनवेस्टफालेन नाम की महिला से शादी की थी। शादी के बाद वे अपनी पत्नी के साथ पेरिस चले गए। शादी के बाद दोनों को सात बच्चे हुए।
शिक्षा –
कार्ल्स मार्क्स बचपन में पढ़ाई में बहुत ज्यादा होश्यार नहीं थे, बल्कि वे एक मीडियम दर्जे के छात्र थे। उन्होंने अपनी शुरुआती पढ़ाई घर पर रहकर ही की थी।
इसके बाद उन्होने ट्रायर के जेस्युट हाईस्कूल में रहकर अपनी स्कूल पढ़ाई की। फिर दर्शन और साहित्य की पढ़ाई के लिए बॉन यूनिवर्सिटी में एडमिशन लिया था।
कार्ल मार्क्स ने लेटिन और फ्रेंच भाषा में अपनी कमांड काफी अच्छी कर ली थी। इसके बाद उन्होंने रशियन, डच, इटेलियन, स्पेनिश, स्कनडीनेवियन और इंग्लिश समेत तमाम भाषाओं का ज्ञान भी प्राप्त कर लिया था।
हालांकि इस दौरान अनुशासनहीनता के आरोप में उन्हें जेल भी जाना पड़ा था। वहीं इसी यूनिवर्सिटी के क्लब में शामिल होने के दौरान उनकी दिलचस्पी राजनीति में बढ़ी।
इसके बाद कार्ल्स मार्क्स ने अपने पिता के कहने पर बर्लिन यूनिवर्सिटी में फिलोसफी और लॉ की पढ़ाई की। 1841 में मार्क्स ने जेना यूनिवर्सिटी से डॉक्टरेट की उपाधि हासिल की।
करियर की शुरुआत –
1842 में कार्ल मार्क्स ने पत्रकारिता करना शुरु कर दिया और फिर उन्होंने रहेइन्स्चे ज़ितुंग नाम के न्यूजपेपर में एडिटर के तौर पर काम किया।
इसमें करीब 1 साल तक काम करने के बाद उन्होंने इस्तीफा दे दिया और वे पेरिस चले गए।
इसके बाद पेरिस में एर्नोल्ड र्युज के साथ मार्क्स ने जर्मन-फ्रैंच वार्षिक जर्नल शुरु किया, जिसने पेरिस की राजनीति में अपनी मुख्य भूमिका निभाई, हालांकि एर्नोल्ड और मार्क्स के बीच आपसी मतभेद के चलते यह जर्नल ज्यादा दिन तक नहीं चल सका।
इसके बाद मार्क्स ने 1844 में अपने दोस्त फ्राईएड्रीच एंगल्स के साथ मिलकर युवा हैगीलियन ब्रूनो ब्युर के दार्शनिक सिद्धांतों का क्रिटिसिज्म का काम करना शुरु कर दिया और फिर इसके बाद एक साथ दोनों ने ”होली फॉमिली’ नाम के पब्लिकेशन शुरु किया।
इसके बाद मार्क्स बेलिज्यम के ब्रुसेल चले गए और यहां वे ”वोर्टवार्ट्स” नाम के न्यूजपेपर के लिए काम करने लगे, यह पेपर बाद में कम्यूनिस्ट लीग बनकर उभरा।
इसके बाद उन्होंने समाजवाद में काम करना शुरु कर दिया और वे हैगीलियन के दर्शनशास्त्र से पूरी तरह अलग हो गए।
आपको बता दें कि हेगेलियन ऐसे छात्रों का समूह था, जो उन दिनों धार्मिक और राजनैतिक स्थितियों पर खुलकर चर्चा करता था और उसकी आलोचना करता था।
कार्ल मार्क्स ने ब्रुसेल में हैगीलियन एंग्ले के साथ काम किया। वे दोनों एक ही विचारधारा के थे। इस दौरान उन्होंने डाई ड्युटश्चे आइडियोलोजी लिखी, जिसमें उन्होंने समाज के ऐतिहासिक ढांचे के बारे में वर्णन किया और यह बताया कि किस तरह आर्थिक रुप से सक्षम वर्ग मजदूर और गरीब बर्ग को नीचा दिखाता आया है।
कम्यूनिस्ट लीग की स्थापना –
इस तरह की किताबों के माध्यम ने कार्ल मार्क्स ने मजदूर वर्ग के नेताओं के आंदोलन के साथ बैलेंस करने की कोशिश की। और फिर 1846 में उन्होंने कम्यूनिस्ट कोरेसपोंडेंस कमेटी की नींव रखी।
इसके बाद इंग्लैंड के समाजवादियों ने उनसे प्रेरित होकर कम्यूनिस्ट लीग बनाई और इस दौरान एक संस्था ने मार्क्स और एंगलस से कम्युनिस्ट पार्टी के लिए मेनिफेस्टो लिखने का आग्रह किया।
कार्ल्स मार्क्स ने साल 1847 में दी पोवेरटी पावर्टी ऑफ फिलासफी थिंकर पियर जोसफ प्राउडहोन का जमकर विरोध किया। इस दौरान उन्होंने प्राउडहोन के विचारों पर असहमति जताई और आर्थिक सिस्टम में दो विपरित ध्रुवों के बीच किसी तरह का कोई सामंजस्य नहीं रहने का तर्क दिया।
इसके कुछ दिन बाद 1848 में कम्युनिस्ट पार्टी का मेनिफेस्टो जारी हुआ।
इसके बाद 1849 में कार्ल्स मार्क्स को बेल्जियम से निकाल दिया गया, जिसके बाद वे फ्रांस चले गए और वहां उन्होंने समाजवाद की क्रांति शुरु कर दी, लेकिन वहां से भी बाहर निकाल दिया गया, इसके बाद वे लंदन आ गए।
लेकिन यहां पर भी उनके संघर्ष खत्म नहीं हुए उन्हें ब्रिटेन ने नागरिकता देने से मना कर दिया, लेकिन वे अपने जीवन के आखिरी समय तक लंदन में ही रहे।
फिर जब जर्मनी और ऑस्ट्रेलिया में क्रांति शुरु हुई, जब मार्क्स राइनलैंड वापस लौट गए।
मार्क्स ने कोलोग्ने में डेमोक्रेटक बोर्जियोसी और वर्किंग क्लास के बीच गठबंधन की नीति की सराहना की और कम्यूनिस्ट के मेनिफेस्टो को नष्ट करने एवं कम्यूनिस्ट लीग को खत्म करने के फैसले को समर्थन दिया।
इसके बाद उन्होंने एक न्यूज पेपर के माध्यम से अपनी नीति समझाने की कोशिश की, और लंदन में जर्मन वर्कर्स एज्यूकेशनल सोसायटी की मद्द कर कम्यूनिस्ट लीग का हेडक्वार्टर शुरु किया, लेकिन वे पत्रकार के तौर पर भी काम करते रहे।
इसके बात कार्ल मार्क्सन ने कैपिटिलज्म और इकनॉमिक की थ्योरी में अपना ध्यान केन्द्रित किया।
प्रमुख रचनाएं –
कार्ल्स मार्क्स ने साल 1848 में ”द कम्युनिस्ट मेनिफेस्टो” की रचना की थी। उनकी यह रचना काफी प्रसिद्ध हुई। यही नहीं उनकी इस रचना को विश्व की सबसे प्रभावशाली राजनीतिक पांडुलिपियों में से एक माना गया है।
उनकी यह रचना फ्रेंच में पब्लिश हुई थी, जिसका अंग्रेजी में भी अनुवाद भी हुआ था, इसे चार भागों में ”कॉमिक बुक” के रुप में पब्लिश किया गया था।
इसके अलावा उनके द्धारा लिखी गई रचना दास कैपिटल भी काफी प्रसिद्ध हुई। यह उनकी सबसे अधिक बिकने वाली पुस्तक साबित हुई, यह कुल तीन खंडों वाली रचना थी, इस किताब का अंग्रेजी, जर्मन, फ्रेंच और रुसी में अनुवाद किया गया था।
आपको बता दें कि इस पुस्तक के शेष भाग मार्क्स की मौत के बाद एंजेल्स ने संपादित करके पब्लिश किए थे।
रचनाएं –
- द सिविल वॉर इन फ्रैंस
- इनऑर्गेरल एड्रेस टू द इंटरनेशनल वर्किंग मैन एसोसिएशन
- द क्रिटिक्यू ऑफ पॉलिटिकल इकॉनोमी
- द पॉवर्टी ऑफ फिलोसिफी (1847),
- द गोथा प्रोग्राम,
- द जर्मन आइडियोलॉजी
- क्लास-स्ट्रर्गल इन फाइनेंस
- द होलली फैमिली
निधन –
कार्ल मार्क्स के जीवन के आखिरी दिनों में उन्हें गंभीर बीमारियों ने घेर लिया था, वहीं 1881 में पत्नी की मौत के बात वे काफी उदास रहने लगे थे इसी उदासीनता के चलते उनकी बीमारी भी रिकवर नहीं हो सकी, जिसके चलते 14 मार्च, 1883 में लंदन में उनकी मृत्यु हो गई।
अनमोल विचार –
- शांति का अर्थ साम्यवाद के विरोध का नहीं होना है।
- दुनिया के मजदूरों एकजुट हो जाओ, तुम्हारे पास खोने को कुछ भी नहीं है,सिवाय अपनी जंजीरों के।
- सामाजिक प्रगति समाज में महिलाओं को मिले स्थान से मापी जा सकती है।
- धर्म मानव मस्तिष्क जो न समझ सके उससे निपटने की नपुंसकता है।
- ज़रुरत तब तक अंधी होती है जब तक उसे होश न आ जाये, आज़ादी ज़रुरत की चेतना होती है।