मूकाम्बिका मंदिर, कोल्लूर का इतिहास | Mookambika Temple History

Mookambika Temple

मूकाम्बिका मंदिर यह दुर्गादेवी को समर्पित मंदिर है। यह मंदिर कर्नाटक (भारत) के उडुपी जिले के कोल्लूर में स्थित है।

इस मंदिर को मूकाम्बिका देवी मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। इनकी तीन अलग अलग रूपों में पूजा की जाती है जैसे की सुबह में महाकाली (शक्ति की देवता) के रूप में, दोपहर में महालक्ष्मी (संपत्ति की देवता) के रूप में और शाम में महा सरस्वती (ज्ञान की देवता) के रूप में।

Mookambika Temple

मूकाम्बिका मंदिर, कोल्लूर का इतिहास – Mookambika Temple History

पौराणिक कथा के अनुसार कोल्लूर मूकाम्बिका मंदिर में एक कौमसुरा नामक एक राक्षस रहता था। उसने भगवान शिव से विशेष शक्ति प्राप्त की थी और इन शक्तियों से वो देवताओ पर आतंक फैलाता था।

सभी देवता अपने प्रयास से उस राक्षस से दुरी बनाए रखने की पूरी कोशिस करते थे तभी उन्हें एक अच्छी खबर ज्ञात हुई की इस राक्षस की मृत्यु होने वाली है। उसके ऊपर आने वाले इस संकट को जान कर उस राक्षस ने गंभीर तपस्या की।

भगवान शिव उसके सामने प्रकट हुए और उसे पूछा की क्या वरदान चाहिए।

इस राक्षस को वरदान देने के गंभीर खतरे को जानकर भाषण की देवी सरस्वती ने इसकी बोलने की क्षमता को छीन लिया। और इस कारण कौमासुरा का नाम मुकासुरा यानि मूक राक्षस पड़ा।

इसके बाद सर्वोच्च देवी दुर्गा देवी ने सब देवताओ की शक्ति जुटाई और इस राक्षस का अंत कर दिया, और इस कारण देवी का नाम मूकाम्बिका पड़ा। जिस स्थान पर देवी मूकाम्बिका ने राक्षस को मारा था उस जगह को मरना कट्टे कहते है।

मूकाम्बिका मंदिर की स्थापना का श्रेय सर्वोच्च भगवान को दिया जाता है ना की किसी एक व्यक्ति को। ऐतिहासिक दृष्टी से यह मंदिर 1200 साल पुराना है और हलुगल्लू वीरा संगय्या राजा ने देवी के मूर्ति की स्थापना की थी।

तमिलनाडु के पूर्व मुख्य मंत्री एम जी रामचंद्रनने आधे किलो की सोने की तलवार मूकाम्बिका मंदिर को भेट के रूप में दी थी।

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