भारत के अंतिम वाइसराय और पहले गवर्नर जनरल माउंटबेटन | Mountbatten Biography

लुइस फ्रांसिस एल्बर्ट विक्टर निकोलस जॉर्ज माउंटबेटन – Mountbatten, वे भारत के अंतिम वाइसराय (1947) और आज़ाद भारत (1947-48) के पहले गवर्नर जनरल थे।

वह बीसवीं सदी के मध्य से अंत तक ब्रिटिश साम्राज्य के पतन के समय के सबसे प्रभावशाली और विवादित शख्सियतों में से एक थे।

Mountbatten

भारत के अंतिम वाइसराय और पहले गवर्नर जनरल माउंटबेटन – Mountbatten Biography

अपने जन्म से लेकर 1917 तक वे बर्कशायर के विंडशोर के होम पार्क में फ्रोग्मोर हाउस में रह रहे थे, जहाँ उन्होंने और किंग जॉर्ज V के दुसरे रिश्तेदारों ने जर्मन प्रथा और शीर्षकों का विरोध किया। इसके बाद माउंटबैटन वहा बैटनबर्ग के शांत राजकुमार लुइस के नाम से जाने जाते थे।

युवा माउंटबैटन को उनके पारिवारिक लोग और दोस्त प्यार से “डिक्की” कहकर बुलाते थे। ऐसा इसलिए, क्योकि उनकी बड़ी-दादी रानी विक्टोरिया ने उनका उपनाम “निकी” रखा था, लेकिन बहुत से “निकी” नामो से उलझन होने की वजह से उनका नाम निकी से बदलकर डिक्की रखा गया। और साथ ही रशियन शाही परिवार के ज्यादातर लोगो का नाम निकी ही था।

जीवन के पहले दस वर्षों के लिए माउंटबेटन की पढाई घर पर ही हुई। उसके बाद उन्हें हर्टफोर्डशायर के लाकर्स पार्क स्कूल भेजा गया और अंततः अपने बड़े भाई का अनुसरण करते हुए वह नौसेना कैडेट स्कूल गए।

निजी जिंदगी:

18 जुलाई 1922 को माउंटबैटन ने विल्फ्रेड विल्लैम आश्ले की बेटी एडविन सिंथिया एनिटे आश्ले से शादी कर ली। शादी के बाद उन्हें एक बेटी भी हुई।

भारत के अंतिम वाइसराय और पहले गवर्नर जनरल:

क्लीमेंट एटली को इस भूखंड में मिले अनुभव और उनके लेबर समर्थन की समझ के चलते लड़ाई के बाद उन्हें 20 फरवरी 1947 को भारत का वायसराय नियुक्त किया गया। माउंटबैटन ने ही अपनी शक्तियों का उपयोग कर अविभाजित भारत की नीव रखी थी। लेकिन परिस्थिति के अनुरूप उन्हें अपने इस निर्णय को आगे जाकर बदलना पड़ा।

माउंटबेटन के निर्देशों ने इस पर जोर दिया की सत्ता हस्तांतरण में भारत संगठित रहे, लेकिन यह भी निर्देश दिया कि तेज़ी से परिवर्तित हो रही स्थिति पर अनुकूल रवैया रखें ताकि ब्रिटेन की वापसी में उसके यश को क्षति न पहुंचे। जब स्वतंत्रता का मसौदा और प्रारूप तैयार हुआ तो दोनों पक्षों, हिन्दू और मुसलमानों, के बीच इन्ही प्राथमिकताओं के चलते ही मूल प्रभाव दिखा।

माउंटबैटन कांग्रेसी नेता जवाहरलाल नेहरु के निकटवर्ती थे और उन्हें जवाहरलाल नेहरु का देश के प्रति उदारवादी दृष्टिकोण भी खासा पसंद था। मुस्लिम नेता मुहम्मद अली जिन्नाह के प्रति उनकी सोच अलग थी लेकिन उन्हें जिन्नाह की शक्तियों का अहसास था।

5 अप्रैल 1947 को जिन्नाह के साथ हुई मीटिंग के दौरान माउंटबैटन ने जिन्नाह को अविभाजित भारत की तर्ज पर राजी करने की कोशिश की, जिसमे उन्होंने यह भी बताया की भारत को विभाजित कर पंजाब और बंगाल को मिलाना निश्चित रूप से एक बेहद मुश्किल कार्य है। लेकिन मुस्लिम नेता अपनी शर्तो पर ही अड़े हुए थे और बार-बार वे मुस्लिम राज्य पाकिस्तान के निर्माण की ही मांग कर रहे थे।

यह देखते हुए कि ब्रिटिश सरकार तुरंत आजादी देने के लिए आग्रही है, माउंटबेटन ने निष्कर्ष निकाला कि स्वतन्त्र भारत एक अप्राप्य लक्ष्य है और उन्होंने स्वतन्त्र भारत और पाकिस्तान के विभाजन की योजना मान ली।

भारतीय नेताओ ने बलपूर्वक एक एकजुट भारत के सपने का समर्थन किया और कुछ समय तक लोगों को इस उद्देश्य के लिए एकत्र किया। लेकिन जब माउंटबेटन की सीमा ने जल्द स्वतंत्रता प्राप्त करने की सम्भावना पर मुहर लगायी तब लोगों के मत बदल गए। माउंटबेटन के निश्चय की दृढ़ता देखते हुए, मुस्लिम लीग से किसी भी तरह के समझौते में नेहरु और पटेल की असफलता और जिन्ना की जिद्द के चलते सभी नेताओ ने जिन्ना के विभाजन के प्लान को मान लिया, जिसने माउंटबेटन के नियुक्त काम को आसान बना दिया।

माउंटबेटन ने उन भारतीय राजकुमारों के साथ मजबूत रिश्ता भी बनाया, जो भारत के उन हिस्सों पर राज कर रहे थे जो सीधे ब्रिटिश शासन के अंतर्गत नहीं आते थे।

जब भारत और पाकिस्तान ने 14 से 15 अगस्त 1947 की रात स्वतंत्रता प्राप्त की, तो माउंटबेटन जून 1948 तक भारत के पहले गवर्नर जनरल के रूप में कार्य करते हुए दस महीने तक नई दिल्ली में रहे। माउंटबैटन की सलाह पर ही जनवरी 1948 में भारत ने कश्मीर का मुद्दा उठाया। और कश्मीर का मुद्दा ही आज भी दोनों देशो के बीच कटुता का मुख्य कारण बना हुआ है।

आज भी इस मुद्दे का हल नही निकल पाया है। पाकिस्तानी नेताओ के अनुसार माउंटबैटन कश्मीर मुद्दे को लेकर केवल भारत की ही तरफ से बोल रहे थे, क्योकि नेहरु के साथ उनके करीबी संबंध थे। वाइसराय ने कांग्रेस और मुस्लिम नेताओ के बीच संबंधो को सुधारने की काफी कोशिश की लेकिन मुस्लिम नेता जिन्नाह शुरू से ही स्वतंत्र पाकिस्तान की मांग कर रहे थे। सूत्रों के नुसार जिन्नाह की मांग पर ही भारत को विभाजित किया गया और स्वतंत्र पाकिस्तान की स्थापना की गयी।

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