रानी पद्मिनी का इतिहास | Rani Padmini History in Hindi

Rani Padmini – रानी पद्मिनी (पद्मावती – Padmavati) – पद्मावत की एक महान रानी थी। जिनपर कवी मलिक मुहम्मद जायसी ने एक कविता भी लिखी है। रानी पद्मावती अपनी सुन्दरता के लिये पुरे भारत में जानी जाती थी।

लेकिन रानी पद्मिनी के अस्तित्व को लेकर इतिहास में कोई दस्तावेज मौजूद नही है। लेकिन चित्तोड़ में हमें रानी पद्मावती की छाप दिखाई देती है।

Rani Padmini

रानी पद्मिनी का इतिहास | Rani Padmini History In Hindi

[बोलहु सुआ पियारे-नाहाँ । मोरे रूप कोइ जग माहाँ ?]
सुमिरि रूप पदमावति केरा । हँसा सुआ, रानी मुख हेरा ॥

पद्मिनी ने अपना जीवन अपने पिता गंधर्वसेन और माता चम्पावती के के साथ सिंहाला में व्यतीत किया था। पद्मिनी के पास एक बोलने वाला तोता “हीरामणि” भी था। उनके पिता ने पद्मावती के विवाह के लिये स्वयंवर भी आयोजित किया था जिसमे आस-पास के सभी हिन्दू-राजपूत राजाओ को आमंत्रित किया गया था। एक छोटे से राज्य के राजा मलखान सिंह भी उनसे विवाह करने के लिये पधारे थे।

चित्तोड़ के राजा रावल रतन सिंह रानी नागमती के होते हुए भी स्वयंवर में आये थे। और उन्होंने मलखान सिंह को पराजित कर पद्मिनी से विवाह भी कर लिया था। क्योकि राजा रावल रतन सिंह स्वयंवर के विजेता थे। स्वयंवर के बाद वे अपनी सुंदर रानी पद्मिनी के साथ चित्तोड़ लौट आये थे।

12 वी और 13 वी शताब्दी में दिल्ली सल्तनत के आक्रमणकारीयो की ताकत धीरे-धीरे बढ़ रही थी। इसके चलते सुल्तान ने दोबारा मेवाड़ पर आक्रमण कर दिया था। इसके बाद अलाउद्दीन खिलजी ने सुंदर रानी पद्मावती को पाने के इरादे से चित्तोड़ पर भी आक्रमण कर दिया था। यह पूरी कहानी इतिहासकार अलाउद्दीन के लिखान पर आधारित है जिन्होंने इतिहास में राजपूतो पर हुए आक्रमणों को अपने लेखो से प्रदर्शित किया था।

लेकिन कुछ लोगो को उनकी इन कहानियो पर जरा भी भरोसा नही था क्योकि उनके अनुसार अलाउद्दीन के लेख मुस्लिम सूत्रों पर आधारित थे, जिसमे मुस्लिमो को महान बताया गया था। उनके अनुसार अलाउद्दीन ने इतिहास के कुछ तथ्यों को अपनी कलम बनाकर काल्पनिक सच्चाई पर आधारित कहानियाँ बनायी थी।

उन दिनों चित्तोड़ राजपूत राजा रावल रतन सिंह के शासन में था, जो एक बहादुर और साहसी योद्धा भी थे। एक प्रिय पति होने के साथ ही वे एक बेहतर शासक भी थे, इसके साथ ही रावल सिंह को कला में भी काफी रूचि थी। उनके दरबार में काफी बुद्धिमान लोग थे, उनमे से एक संगीतकार राघव चेतन भी था।

ज्यादातर लोगो को इस बात की जानकारी आज भी नही है की राघव चेतन एक जादूगर भी थे। वे अपनी इस कला का उपयोग शत्रुओ को चकमा या अचंभित करने के लिये आपातकालीन समय में ही करते थे।

लेकिन राघव सिंह के कारनामे सभी के सामने आने के बाद राजा बहुत क्रोधित हुए और उन्होंने उसे अपने राज्य से निकाले जाने का भी आदेश दिया था। और उनके चेहरे को काला कर उन्हें गधे पर बिठाकर राज्य में घुमाने का आदेश भी दिया था। इस घटना के बाद वे राजा के सबसे कट्टर दुश्मनों में शामिल हो गए थे।

इसके बाद राघव चेतन ने दिल्ली की तरफ जाने की ठानी और वहाँ जाकर वे दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी को चित्तोड़ पर आक्रमण करने के लिये मनाने की कोशिश करते रहते।

दिल्ली आने के बाद राघव चेतन दिल्ली के पास ही वाले जंगल में रहने लगे थे, जहाँ सुल्तान अक्सर शिकार करने के लिये आया करते थे। एक दिन सुल्तान के शिकार की आवाज सुनते ही राघव ने अपनी बांसुरी बजाना शुरू कर दी। जब राघव चेतन की धुन सुल्तान की सेना और उन्हें सुनाई दी तो वे सभी आश्चर्यचकित हो गए थे की इस घने जंगल में कौन इतनी मधुर ध्वनि से बाँसुरी बजा रहा होगा।

सुल्तान ने अपने सैनिको को बाँसुरी बजाने वाले इंसान को ढूंडने का आदेश दिया और जब राघव चेतन स्वयं उनके सामने आये तब सुल्तान ने उनसे अपने साथ दिल्ली के दरबार में आने को कहा। तभी राघव चेतन ने सुल्तान से कहाँ की वह एक साधारण संगीतकार ही है और ऐसे ही और भी बहुत से गुण है उसमे। और जब राघव चेतन ने अलाउद्दीन को रानी पद्मावती की सुन्दरता के बारे में बताया तो अलाउद्दीन मन ही मन रानी पद्मावती को चाहने लगे थे।

इसके तुरंत बाद वे अपने राज्य में गये और अपनी सेना को चित्तोड़ पर आक्रमण करने का आदेश दिया, ताकि वे बेहद खुबसूरत रानी पद्मावती – Rani Padmini को हासिल कर सके और अपने हरम में ला सके।

चित्तोड़ पहुचते ही अलाउद्दीन खिलजी के हाथ निराशा लगी क्योकि उन्होंने पाया की चित्तोड़ को चारो तरफ से सुरक्षित तरीके से सुरक्षा प्रदान की गयी है। लेकिन वे रानी पद्मावती की सुन्दरता को देखने का और ज्यादा इंतज़ार नही करना चाहते थे इसीलिए उन्होंने राजा रतन सिंह के लिये यह सन्देश भेजा की वे रानी पद्मावती को बहन मानते है और उनसे मिलना चाहते है।

इसे सुनने के बाद निराश रतन सिंह को साम्राज्य को तीव्र प्रकोप से बचाने का एक मौका दिखाई दिया।

रानी पद्मावती – Rani Padmini ने अलाउद्दीन को उनके प्रतिबिम्ब को आईने में देखने की मंजूरी दे दी थी। अलाउद्दीन ने भी निर्णय लिया की वे रानी पद्मावती को किसी भी हाल में हासिल कर ही लेंगे। अपने कैंप ने वापिस आते समय अलाउद्दीन कुछ समय तक राजा रतन सिंह के साथ ही थे। सही मौका देखते ही अलाउद्दीन ने राजा रतन सिंह को बंदी बना लिया और बदले में रानी पद्मावती को देने के लिये कहा।

सोनगरा के चौहान राजपूत जनरल गोरा और बादल ने सुल्तान को उन्ही के खेल में पराजित करने की ठानी और कहा की अगली सुबह उन्हें रानी पद्मावती दे दी जायेंगी। उसी दिन 150 पालकी (जिसे पूरी तरह से सजाकर, ढककर उस समय में चार इंसानों द्वारा एक स्थान से स्थान पर ले जाया जाता था। (उस समय इसका उपयोग शाही महिलाये एक स्थान से दुसरे स्थान पर जाने के लिए करती थी) मंगवाई और उन्हें किले से अलाउद्दीन के कैंप तक ले जाया गया और पालकीयो को वही रोका गया जहाँ राजा रतन सिंह को बंदी बनाकर रखा गया था।

जब राजा ने देखा की पालकियाँ चित्तोड़ से आयी है तो राजा को लगा की उसमे रानी भी आयी होगी और ऐसा सोचकर ही वे शर्मिंदा हो गये थे। लेकिन जब उन्होंने देखा की पालकी से बाहर रानी नही बल्कि उनकी महिला कामगार निकली है और सभी पालकियाँ सैनिको से भरी हुई है तो वे पूरी तरह से अचंभित थे।

सैनिको ने पालकी से बाहर निकालकर तुरंत अलाउद्दीन के कैंप पर आक्रमण कर दिया और सफलता से राजा रतन सिंह को छुड़ा लिया। जिसमे दोनों राजपूत जनरल ने बलपूर्वक और साहस दिखाकर अलाउद्दीन की सेना का सामना किया था और रतन सिंह को उन्होंने सुरक्षित रूप से महल में पंहुचा दिया था। जहाँ रानी पद्मावती उनका इंतजार कर रही थी।

इस बात को सुनते ही सुल्तान आग-बबूला हो चूका था और उसने तुरंत चित्तोड़ पर आक्रमण करने का निर्णय लिया। सुल्तान की आर्मी ने चित्तोड़ की सुरक्षा दिवार को तोड़ने की बहुत कोशिश की लेकिन ऐसा करने में वे सफल नही हो सके। तभी अलाउद्दीन ने किले को चारो तरफ से घेरना शुरू कर दिया। ऐसा पाते ही राजा रतन सिंह ने सभी राजपूतो को आदेश दे दिया की सभी द्वार खोलकर अलाउद्दीन की सेना का सामना करे।

आदेश सुनते ही रानी पद्मावती ने देखा की उनकी सेना का सामना विशाल सेना से हो रहा है और तभी उन्होंने चित्तोड़ की सभी महिलाओ के साथ जौहर करने का निर्णय लिया, उनके अनुसार दुश्मनों के हाथ लगने से बेहतर जौहर करना ही था।

जौहर एक इसी प्रक्रिया है जिनमे शाही महिलाये अपने दुश्मन के साथ रहने की बजाये स्वयं को एक विशाल अग्निकुंड में न्योछावर कर देती है।

इस तरह खुद का जौहर कर उन्होंने आत्महत्या कर दी थी। जिसमे एक विशाल अग्निकुंड में चित्तोड़ की सभी महिलाये ख़ुशी से कूद गयी थी। यह खबर पाते ही चित्तोड़ के सैनिको ने पाया की अब उनके पास जीने का कोई मकसद नही है और तभी उन्होंने सका करने का निर्णय लिया। जिसमे सभी सैनिक केसरी पोशाक और पगड़ी के पहनावे में सामने आये और उन्होंने अलाउद्दीन की सेना का मरते दम तक सामना करने का निर्णय लिया था। इस विनाशकारी विजय के बाद अलाउद्दीन की सेना केवल राख और जले हुए शरीर को देखने के लिये किले में आ सकी।

आज भी चित्तोड़ की महिलाओ के जौहर करने की बात को लोग गर्व से याद करते है। जिन्होंने दुश्मनों के साथ रहने की बजाये स्वयं को आग में न्योछावर करने की ठानी थी। राणी पद्मिनी – Rani Padmini के बलिदान को इतिहास में सुवर्ण अक्षरों से लिखा गया है।

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104 thoughts on “रानी पद्मिनी का इतिहास | Rani Padmini History in Hindi”

  1. Pradeep Rajput

    जय महाराणा,
    जय राजपुताना,
    “धन्य है उस महाराणी का,जिन्होंने अभिमान और स्वाभिमान से जीना सिखाया।”
    ‘वीर अमर श्रीगोरासिंह जी और बदलसिंह जी
    को शतःनामन”
    “हमे गर्व है राजा रावल रतनसिंह पर।”

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