पद्मनाभस्वामी मंदिर | Sree Padmanabhaswamy Temple History In Hindi

केरला में अंगिनत मंदिर है। उनकी अनोखी कारीगरी उनको एक संम्मान देती है और हर मंदिर के पीछे एक कहानी है। पद्मनाभस्वामी मंदिर – Padmanabhaswamy Temple तिरुवनंतपुरम का उन में से एक है।

इस मंदिर में सैकड़ो श्रद्धालु हर साल आकर्शित होते है। यह मंदिर भारत देश का सबसे पुराने मंदिरों में से एक है और साथ ही सबसे अमिर मंदिरों में से भी एक है।
Sree Padmanabhaswamy Temple

पद्मनाभस्वामी मंदिर का इतिहास – Sree Padmanabhaswamy Temple History In Hindi

पद्मनाभस्वामी मंदिर भारत के केरल राज्य के तिरुअनन्तपुरम में स्थित है। इस मंदिर के निर्माण में बहोत सी शैली का मिश्रण किया गया है। देशी केरला शैली और द्रविड़ शैली का संयुक्त रूप से इस्तेमाल इस मंदिर का निर्माण किया गया है।

यह तमिलनाडु के पास में स्थित है। इसकी उंची दीवारे और 16 वी सदी में बनी है जो मन को लुभाती है। अन्न्तपुरम मंदिर में दिखाई देता है। जो की अदिकेश्वा पेरूमल मंदिर कन्न्याकुमारी में है दुनिया का सबसे धनि मंदिर में से एक है। अपार धन संपत्ति सोना चांदी हीरे जवाहरात के लिए इस मंदिर ने दुनिया में इतिहास रचा है।

मंदिर के गर्भ गृह में भगवान विष्णु की विशाल मूर्ति है। इस प्रतिमा में भगवान विष्णु शेष नाग पर विराजमान है।

यहाँ पर भगवान पद्मनाभस्वामी त्रावनकोर के राज परिवार के शासक थे। उस समय शासन कर रहे त्रवंकोर के महाराज मूलं थिरूनल रोमा वर्मा श्री पद्मनाभा दाता के रूप में मंदिर के ट्रस्टी थे वे भगवान पद्मनाभा के दास थे। इस मंदिर में हिन्दुओ को ही प्रवेश मिलता है। प्रवेश के लिए विशेष वेशभूषा है।

पद्मनाभस्वामी मंदिर का इतिहास – History Of Padmanabhaswamy Temple

Padmanabhaswamy Temple में विभिन्न हिन्दू मूल के ग्रंथ ब्रह्मा पुरना, मत्स्य पुरना, वरः पुरना, स्कन्द पुरना, पद्म पुरना, वायु पुरना, भगवत पुरना और महाभारत का उल्लेख मिलता है। यह मंदिर तमिल साहित्य के 500 बी.सी. से 300 ए.डी. के बिच के संगम दौर का है।

कई इतिहासकार इसें स्वर्ण मंदिर कहते है। अपनी अथाह धन संपत्ति के लिए यह मंदिर अकल्पनीय है। 9 वी सदी के तमिल साहित्य व कविताओ और संत कवी नाम्माल्वर के अनुसार यह मंदिर और साथ ही शहर में सोने की दीवारे है।

कुछ स्थानों में साथ ही मंदिर और शहर के अंदरूनी भागो को देख कर एसा प्रतीत होता है की जैसे स्वर्ग में आ गए हो।

मध्यकालीन तमिल साहित्य और सिधान्तो तमिल अलवर संत (6 वी 9 वी सदी) ने कहा यह मंदिर प्रमुख 108 धार्मिक स्थलों में से एक है और इसके दिव्य प्रबंध की महिमा देखते ही बंती है। इस मंदिर के दिव्य प्रबंध की महिमा मलाई नाडू के 13 धार्मिक स्थलों में से एक है।

8 वी सदी के संत कवी नाम्माल्वर पद्मनाभा की महिमा गाते थे। अन्न्त्पुरम मंदिर कासरगोड का विश्वास सिर्फ मंदिर के मूलास्थानाम में था। पंडित विल्वामंगालात्हू स्वमियर जो अनंथापुरम मंदिर के पास रहते थे कासरगोड जिल्हे में उन्होंने विष्णु जी की खुप प्रार्थना की और उनके दर्शन प्राप्त किए।

उनका मानना था की विष्णुजी एक छोटे नटखट बालक के रूप में आए थे। और उस बालक ने पूजा की मूर्ति को दूषित कर दिया था। इस से पंडित जी गुस्सा हो गए और बालक का पीछा करने गए परंतु वह बालक गायब हो चूका था।

बहुत खोज के बाद जब वो अरबी समुद्र के तट पर पहुचे तो उन्होंने एक पुलाया महिला की आवाज सुनी जो अपने पुत्र से कह रही थी की वह उसे अनंथान्कदु में फेक देंगी। उसी क्षण स्वामी ने अनंथान्कदु शब्द सुने तो वे आनंदित हो गए। फिर स्वामी ने उस महिला से पूछ कर अनंथान्कदु की ओर प्रस्थान किया। फिर वे वहा पहुच कर बालक की खोज करने लगे। वहा उन्होंने देखा की वह बालक इलुप्पा वृक्ष में विलीन हो गया।

फिर वह वृक्ष निचे गिरा और वहा अनंता सयाना की मूर्ति बन गई। किन्तु यह जरुरत से ज्यादा बड़ी बन गई जिनका सर थिरुवाल्लोम में, नभी थिरुवानान्थापुर्म में और उनके चरण कमल थ्रिप्पदापुरम में और जिनकी लंबाई कुछ 8 मिल्स बन गई।

पंडित जीने भगवान विष्णु जी से प्रार्थना की और उन्हें अपना रूप छोटा करने को कहा। उसी क्षण भगवान जी ने अपने आप को 3 गुणा सिकोड़ लिया वर्तमान में जिस रूप में मंदिर में विराजमान है यह वाही रूप है।

किंतु भगवान पूर्ण रूप से दिखाई नही दे रहे थे क्योकि इलुप्पा वृक्ष उसमे बाधा बन गया था। पंडित ने भगवान को थिरुमुक्हम, थिरुवुदल और थ्रिप्पदम इन तीनो भागो को देखा। स्वामी ने प्रार्थना करके पद्मनाभा से माफ़ी मांगी।

स्वामी ने राइस कांजी और उप्पुमंगा खोबरे के कवच के अंदर पुलाया महिला से प्राप्त कर के भगवान को अर्पण किया।

जिस स्थान पर पंडित को भगवान ने दर्शन दिए कूपक्कारा पोट्टी और करुवा पोट्टी से संबंधित है। उस समय शासण कर रहे राजा और वहा के ब्राम्हणों ने साथ मिलकर मंदिर का निर्माण कार्य संभाला।

कूपक्कारा पोट्टी मंदिर की तंत्री बन गई। पद्मनाभस्वामी मंदिर के उत्तर पश्चिम में अनंथान्कदु नागराजा मंदिर स्थित है।

स्वामी की समाधी पद्मनाभा मंदिर के बाहर पश्चिम में स्थित है। समाधी के ऊपर कृष्ण मंदिर है। यह मंदिर विल्वामंगालम श्री कृष्ण स्वामी के नाम से जाना जाता है। जोकि थ्रिस्सुर नादुविल मधोम से संबंधित है।

पद्मनाभस्वामी मंदिर के बारे में कुछ रोचक बाते- Interesting Facts About Padmanabhaswamy Temple

1. त्रवंकोरे शाही मुकुट मंदिरों में रखा है- भगवान विष्णु यहा के प्रमुख देव है पद्मनाभस्वामी मंदिर के और त्रवंकोरे के शासक भी।

यह मुकुट 18 वी सदी के त्रवंकोरे के राजा का है और शाही परिवार के सदस्य उनकी और से राज करते है। यह शाही मुकुट हमेशा त्रवंकोरे मंदिर में सुरक्षित रहता है।

2. इस मंदिर का निर्माण सम्मिश्रण है द्रविड़ और देशी केरला के शैली से बना है। अगर आप ने ध्यान दिया होंगा तो करला का कोई मंदिर इतना बड़ा नही है। जिनमे से कइयो की ढलान वाली छत है। जिनकी कुछ कहानिया भी है।

पद्मनाभस्वामी मंदिर निर्माण की द्रविड़ शैली से बहोत प्रभावित होते है। इस में से बहुत से मंदिर बहुत से मंदिर पास के राज्य तमिलनाडु से प्रभावित है।

3. इस मंदिर में लंबे समय से नृत्य चलता आ रहा है इसके सहारे से बिना किसी की मदद से पद्मनाभा मंदिर का खजाना दुसरे सभी खजानों से अधिक है।

2011 में इस मंदिर का तहखाना खुला जिसमे इतना धन निकला की यह मंदिर दुनिया का सबसे आमिर मंदिर बन गया। इसके पहले मुगल खजाना 90$ बिलियन का सबसे बड़ा था।

4. लक्षा दीपम त्यौहार- यह त्योहार इस मंदिर मे हर छ: साल के बाद तानुँरी में मनाया जाता है। यह इस मंदिर का सबसे बड़ा फेस्टिवल है इसमें हजारों लाखों दिये मंदिर में जलते । इसे मकंर सक्रांति के दिन मनाया जाता है।

यह फेस्टिवल 12 भद्रोद एपमस का अन्न होने का संकेत देता है। इस दिन पदमनाभ, नरसिम्हा और कृष्ण की तसवीरों के साथ विशाल शोभा यात्रा निकलती है।

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3 thoughts on “पद्मनाभस्वामी मंदिर | Sree Padmanabhaswamy Temple History In Hindi”

  1. umesh lavhrale

    श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर का इतिहास अपने बहुत ही अच्छी तरह से बताया हैं।
    और मंदिर के बारे में सभी प्रश्नो के उत्तर मिल जायेंगे आपके इस पोस्ट में।
    इतने अच्छे किसी ने नहीं बताया जितने अच्छे से अपने बताया।

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