राणी ताराबाई का इतिहास | Tarabai History

Tarabai History

हमारे देश के सबसे प्रगत और समझदार शासको में छत्रपति शिवाजी महाराज का नाम आता है। उनकी शुर वीरता की और जीत की अनगिनत कहानिया है। मुग़ल के जुलमी शासन के विरुद्ध शिवाजी महाराज के परिवार के कई सारे लोगो ने डट कर सामना किया था। उनमेसें एक थी Tarabai – राणी ताराबाई।

Tarabai

राणी ताराबाई का इतिहास – Tarabai History

राणी ताराबाई छत्रपति राजाराम महाराज की विधवा राणी थी और छत्रपति शिवाजी महाराज की बहु थी। मराठा सेना के सर सेनापति हम्बीरराव मोहिते की राणी ताराबाई बेटी थी।

राणी ताराबाई बहुत ही उत्साहित और शक्तिशाली महिला थी। छत्रपति राजाराम महाराज की मृत्यु के बाद राणी ताराबाई ने मराठा राज्य की बागडोर संभाली। जिस समय मराठा साम्राज्य को अच्छे नेतृत्व की जरुरत थी उस समय ताराबाई ने उस नेतृत्व को अच्छे तरीके से निभाया था और मुग़ल सम्राट औरंगजेब का डटकर सामना किया।

जब 1680 में छत्रपति शिवाजी महाराज की मृत्यु हो गई। यह खबर मिलते ही मुग़ल साम्राज्य का सम्राट औरंगज़ेब बहुत खुश हो गया। इसलिए उसने शिवाजी महाराज की मृत्यु के बाद सोचा की अब यह सही मौका है जब दक्षिण में अपना आधार बनाकर पश्चिम भारत पर साम्राज्य स्थापित कर लिया जाए।

शिवाजी महाराज की मृत्यु के पश्चात उनके पुत्र संभाजी राजा बने और उन्होंने बीजापुर सहित मुगलों के अन्य ठिकानों पर हमले किये।

1682 में औरंगजेब ने दक्षिण में अपना ठिकाना बनाया, ताकि वहीं रहकर वह फ़ौज पर नियंत्रण रख सके और पूरे भारत पर साम्राज्य का सपना सच कर सके।

उसने 1686 और 1687 में बीजापुर तथा गोलकुण्डा पर अपना कब्ज़ा कर लिया था। और अपने सैनिको की गद्दारी से संभाजी महाराज को 1689 में औरंगजेब ने पकड़ लिया और फिर औरंगजेब ने संभाजी की हत्या कर दी।

संभाजी महाराज का छोटा बेटा “शिवाजी द्वितीय” जो बहुत छोटा था अब आधिकारिक रूप से मराठा साम्राज्य का उत्तराधिकारी था। लेकिन औरंगजेब ने इस बच्चे का अपहरण करके सौदेबाजी करने के लिए उसे अपने हरम में रखने का फैसला किया। उसने इस बच्चे का नाम बदलकर शाहू रख दिया।

औरंगजेब यह सोचकर बेहद खुश था कि अब उसकी विजय निश्चित ही है क्योकि उसने लगभग मराठा साम्राज्य और उसके उत्तराधिकारियों को खत्म कर दिया है। लेकिन संभाजी महाराज की मृत्यु और उनके पुत्र के अपहरण के बाद संभाजी का छोटा भाई राजाराम अर्थात राणी ताराबाई के पति ने मराठा साम्राज्य के उत्तराधिकारी बने।

उन्होनें अपने काल में मुगलों से कई सारे युद्ध किये लेकिन सन 1700 में किसी बीमारी के कारण राजाराम की मृत्यु हो गई है।

अब मराठाओं के पास राज्याभिषेक के नाम पर सिर्फ विधवाएँ और दो छोटे-छोटे बच्चे ही बचे थे। औरंगजेब पुनः यह सोच कर प्रसन्न हुआ कि आखिरकार मराठा साम्राज्य समाप्त होने को है।

लेकिन उसे क्या पता था की वह फिर से एक बार गलत साबित होंगा… क्योंकि 25 वर्षीय रानी ताराबाई ने सत्ता के सारे सूत्र अपने हाथ में ले लिए और अपने पुत्र शिवाजी द्वितीय को राजा घोषित कर दिया जो सिर्फ चार वर्ष के थे।

ताराबाई ने मराठा सरदारों को साम-दाम-दण्ड-भेद सभी पद्धतियाँ अपनाते हुए अपनी तरफ मिलाया और अपनी पकड़ मजबूत की। और साथ राजाराम की दूसरी रानी राजसबाई को जेल में डाल दिया।

अगले कुछ वर्षों तक ताराबाई ने शक्तिशाली बादशाह औरंगजेब के खिलाफ अपना युद्ध जारी रखा।

ताराबाई ने भी औरंगजेब की रिश्वत तकनीक अपना कर विरोधी सेनाओं के कई राज़ मालूम कर लिए और धीरे-धीरे ताराबाई ने अपनी सेना और जनता का विश्वास अर्जित कर लिया। इसी समय में मराठाओं को खत्म नहीं कर पाने की कसक लिए हुए सन 1707 में 89 की आयु में औरंगजेब की मृत्यु हुई।

ताराबाई 1761 तक जीवित रही। जब उन्होंने अब्दाली के हाथों पानीपत के युद्ध में लगभग दो लाख मराठों को मरते देखा तब उस धक्के को वह बर्दाश्त नहीं कर पाई और अंततः 86 की आयु में ताराबाई का निधन हुआ।

हमारे देश के इतिहास में जब भी बहादुर महिला का नाम लिया जाता है तो हमें बहुत ही कम महिलाओ के नाम याद आते है। जिनके नाम याद आते है उनमेसे भी बहुत कम के बारे में हमें जानकारी होती है जैसे की झासी की राणी लक्ष्मी बाई। लेकिन हमारे देश में उनके जैसे एक और बहादुर महिला हुआ करती थी। वो महाराष्ट्र से थी।

ऐसी बहादुर महिला राणी ताराबाई थी। वो बहुत निडर और साहसी थी। उनकी एक खास बात यह थी की उन्होंने अकेले ही लड़ाई में मुघलो को हराकर उनसे पुरे 6 प्रान्त जीत लिए थे। जो काम कोई राजा नहीं कर सका वो काम अकेले राणी ताराबाई ने कर दिखाया था।

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