वीरभद्र स्वामी मंदिर | Veerabhadra Temple

वीरभद्र स्वामी मंदिर – Veerabhadra Temple

हर की मंदिर कोई भी हो उसके पीछे कुछ ना कुछ रोमांचकारी और रहस्यमयी कहानी जुडी होती है। वैसेही लेपक्षी जैसी जगह 470 साल पुराने वीरभद्र स्वामी मंदिर के लिए काफी जानी जाती है।

आंध्रप्रदेश के अनंतपुर जिले का लेपक्षी एक बहुत ही छोटा गाव है। वीरभद्र मंदिर को बहुत पुराना इतिहास है और उसका इतिहास भी काफी दिलचस्प है। मगर इस इतिहास के साथ ही इस मंदिर को धार्मिक दृष्टि से भी काफी उचा स्थान है।

Veerabhadra Temple

वीरभद्र स्वामी मंदिर – Veerabhadra Temple

उसी तरह की एक कहानी भी इस मंदिर से जुडी है। एक बार रावन सीता माता का अपहरण करके ले जा रहा था तभी इस दृश्य को वहासे जाते हुए जटायु पक्षी ने देख लिया। उसने रावन को रास्ते में रोकने की कोशिश की।

जिसके कारण रावन को गुस्सा आ गया और दोनों में युद्ध शुरू हो गया। मगर इस लड़ाई में जटायु काफी घायल हो गया था। जिस जगह पर यह लड़ाई हुई थी उसी जगह पर यह वीरभद्र मंदिर बनवाया गया है।

लेपक्षी का जो मुख्य मंदिर है वो वीरभद्र स्वामी मंदिर ही है और यहापर हर दिन भगवान की रस्मो रिवाजो के साथ पूजा की जाती है। इस मंदिर में वीरभद्र स्वामी के मंदिर के साथ साथ भगवान शिव, विष्णु और दुर्गा देवी के भी मंदिर बनाये गए है।

वीरभद्र स्वामी मंदिर का वास्तुकला – Veerabhadra Temple Architecture

लेपक्षी केवल मंदिर के लिए ही प्रसिद्ध नहीं बल्की यहाँ पर पाए जाने विजयनगर के शैली में बनी मुर्तिया, 100 स्तंभ से बना हुआ नाचने का भवन, खुबसूरती से किये गए नक्काशी के काम, छतो पर की गयी नक्काशी के काम, लटकने वाले स्तंभ जो कभी कबार ही जमीन को छुते है, मोनोलिथिक नागलिंग, मोनोलिथिक नंदी, शादी का मंडप, लेपक्षी सारी के लिए काफी मशहूर है।

अगर दूर से इस मंदिर को देखा जाए तो हमें एक बात साफ़ समझ में आती है की इस मंदिर को पूरी तरह से केवल एक ही पत्थर पर बनवाया गया है।

यहापर जितने भी वस्तुए और मुर्तिया बनवाई गयी वो सभी बड़ी नजाकत और सुन्दरता से बनाई गयी है और साथ ही वहापर पाए जाने वाले सभी स्मारक के ऊपर शिखर देखने को मिलते है। यहापर जितने भी इटो से बने गुबंद दिखाई देते है उन सब की मरम्मत करवाई गई।

यहापर हर साल फरवरी के महीने 10 दिन का त्यौहार मनाया जाता है। इस मौके पर यहापर कार का त्यौहार भी मनाया जाता है जिसे देखने के लिए लोगो की भीड़ लगी रहती है।

इस लेपक्षी मंदिर को तीन हिस्सों में बाटा गया है, ‘मुख मंडप’, ( ‘नित्य मंडप’ या ‘रंग मंडप’), ‘अर्थ मंडप’ और ‘गर्भगृह’ और ‘कल्याण मंडप’।

नाट्य मंडप और कल्याण मंडप में दिखने वाली मुर्तिया और मुरल पेंटिंग सुन्दरता का बहुत बड़ा उदहारण माना जाता है। यहापर जितनी भी मुर्तिया है उनमेसे ज्यादातर मुर्तिया तो पौराणिक कहानी के कुछ घटनाये बताने का काम करती है।

इस मंदिर के बारे में कई सारे पुराण में कुछ ना कुछ बात बताई गयी है। हर पुराण में इस मंदिर की विशेष बात बताई गयी। बिलकुल उसी तरह एक पुराण है जिसका नाम स्कन्द पुराण है, जिसमे भी इस मंदिर का गुणगान किया गया है।

उस स्कन्द पुराण में बताया गया है की हमारे यहाँ कई सारे भगवान शिव के दिव्यक्षेत्र है। उन दिव्यक्षेत्र में इस मंदिर का भी समावेश किया गया है। यानि की जितने भी शिव के दिव्यक्षेत्र है उनमेसे एक दिव्यक्षेत्र इस मंदिर को भी माना जाता है।

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