अहिंसा परमो धर्म: का संदेश फैलाने वाले महावीर स्वामी की जयंती

Mahavir Jayanti in Hindi

भगवान् महावीर स्वामी के जन्मदिवस को हर साल जैन धर्म के लोगों द्धारा महापर्व के रुप में मनाया जाता है। इसके साथ ही भगवान महावीर स्वामी की जयंती के मौके पर भारत सरकार की तरफ से अधिकारिक तौर पर छुट्टी भी घोषित की गई है।

महावीर जयंती में पूरे भारत में स्कूल, कॉलेज, बैंक समेत सभी सरकारी संस्थान बंद रहते हैं।

अहिंसा परमो धर्म: का संदेश फैलाने वाले भगवान् महावीर स्वामी की जयंती – Mahavir Jayanti in Hindi

Mahavir Jayanti in Hindi

कब मनाई जाती है महावीर जयंती – When is Mahavir Jayanti Celebrated

जैन धर्म के 24वें और प्रमुख तीर्थकर और पूरी दुनिया में अहिंसा परमो धर्म: का संदेश फैलाने वाले भगवान महावीर स्वामी का जन्म करीब 599 ईसवी पूर्व में हिन्दी कैलेंडर के चैत्र महीने के 13वें दिन (शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी) को, बिहार के वैशाली में कुण्डलपुर गांव हुआ था।

वे कुण्डलपुर ग्राम के राजा सिद्धार्थ और माता त्रिशाला की तीसरी संतान थी। उनकी जन्म तिथि अंग्रेजी कैलेंडर के मुताबिक मार्च महीने के आखिरी और अप्रैल माह की शुरुआत में पड़ती है।

कैसे मनाई है महावीर जयंती और क्या है इसका महत्व? – How Mahavir Jayanti Celebrated

महावीर जयंती, जैन धर्म का सबसे मुख्य त्योहार है, इस दिन जैन मंदिरों में भगवान महावीर स्वामी की मूर्तियों का अभिषेक किया जाता है। इस मौके पर जैन मंदिरों को बेहद खूबसूरत तरीके से सजाया जाता है। इसके साथ ही इस दिन जैन मंदिरों में बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़ जुटती है।

इसके साथ ही सुंदर शोभायात्रा भी निकाली जाती है, जिसमें बड़ी संख्या में जैन समुदाय के लोग हिस्सा लेते हैं।

वहीं महिलाएं इस दिन 16 श्रंगार कर, जैन मंदिरों में पूजा-अर्चना करती हैं और अपने स्वामी महावीर के बताए गए उपदेशों पर चलने का प्रण लेती है।

इसके अलावा महावीर जयंती पर जैन मंदिरों में भव्य कार्यक्रमों का भी आयोजन किया जाता है। वहीं महावीर जयंती के मौके पर पुण्य, धर्म के काम करना शुभ माना जाता है, मान्यता है कि ऐसा करने से व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

संसारिक सुखों को त्याग कर महावीर स्वामी ने प्राप्त किया था परम ज्ञान:

आपको बता दें कि महावीर स्वामी एक बड़े और राज परिवार में जन्में थे, जिसकी वजह से उनके पास धन, वैभव , यश, समृद्ध, सुख-सुविधाओं आदि की कोई कमी नहीं थी, लेकिन इन सबके बाबजूद भी उन्होंने संसारिक मोह-माया का पूरी तरह त्याग कर दिया और ज्ञान प्राप्त करने के लिए महज 30 साल की उम्र में घर छोड़कर साधना के लिए निकल पड़े।

और उन्होंने 12 साल की कठोर तपस्या के बाद अपने इच्छा शक्ति पर काबू कर अपनी इंद्रियों को जीत लिया था, जिसकी वजह से वे जितेन्द्रिय या ‘जिन’ कहलाए थे। वहीं ‘जिन’ से ही जैन धर्म को अपना नाम मिला था।

इन गुणों की वजह से कहलाए महा’वीर’:

आपको बता दें कि महावीर स्वामी बचपन का नाम वर्धमान था, इसके अलावा उन्हें महा’ वीर’ ‘अतिवीर’, सन्मति’, सज्जंस (श्रेयांस) और जसस (यशस्वी) आदि नामों से भी जाना जाता था। महावीर स्वामी बचपन से ही बेहद बलशाली, तेजस्वी, साहसी और बुद्दिजीवी और बेहद दयालु थे, उनमें क्षमा करने का अद्भुत गुण था।

वहीं उन्हें इन सभी गुणों की वजह से ही महा’वीर’ कहा गया था।

इसके साथ ही भगवान महावीर स्वामी ने श्रावक, श्राविका, साधु, साध्वी इन चार तीर्थों को स्थापना की, जिसकी वजह से वे जैन धर्म के महान तीर्थकर के रुप में भी जाने गए थे।

इन 5 मूल सिंद्दांतों को अपनाने का दिया उपदेश:

महावीर स्वामी दुनिया के समस्त प्राणियों को एक नजर से देखते थे, और कभी भी किसी को दुख नहीं पहुंचाते थे, साथ ही बाकी लोगों को भी जीवों की हत्या नहीं करने और हिंसा नहीं करने के लिए कहते हैं।

भगवान महावीर स्वामी जी ने यज्ञ के नाम पर होने वाली पशु-पक्षी और नर की बली का भी पूरजोर विरोध किया था। इसके साथ ही उन्होंने जातिगत भेदभाव, ऊंच नीच, लिंग भेदभाव समेत समाज में फैली तमाम कुरोतियों के खिलाफ अपनी आवाज उठाई थी और सभी लिंग, पंथ, धर्म, जाति के लोगो को धर्म के पालन करने का अधिकार बताया था।

महावीर स्वामी हमेशा लोगों को सत्य और अहिंसा के मार्ग को अपनाने के लिए प्रेरित करते थे। उन्होंने लोगों को सत्य, अहिंसा, अपरिग्रह, ब्रहा्चर्य और अस्तेय, जैसे 5 मूल सिद्धान्तों पर चलने की शिक्षा दी।

अर्थात उन्होंन लोगों को मुश्किल से मुश्किल वक्त में भी सत्य का साथ नहीं छोड़ने, किसी की भावना को गलती से भी ठेस नहीं पहुंचाने और अपने कर्म, वाणी और विचार में हमेशा अहिंसा का भाव रखने का उपदेश दिया था।

इसके अलावा महावीर स्वामी ने लोगों को किसी भी तरह की भौतिक सुख-सुविधाओं और संपत्ति की लालच में नहीं पड़ने और किसी भी तरह की चोरी नहीं करने की सलाह दी।

यही नहीं, उन्होंने जैन मुनियों को भोग विलास से दूर रहने के प्रेरित किया और ग्रहस्थ लोगों से अपने साथी के प्रति ईमानदारी और वफादार रहने का भी आग्रह किया था।

इसके अलावा महान यशस्वी और तपस्वी भगवान महावीर स्वामी ने समाज के लोगों को जियो और जीने दो का संदेश अपनाने के लिए भी प्रोत्साहित किया।

भगवान महावीर ने निर्वाण प्राप्त किया:

अपना पूरा जीवन दूसरों की भलाई के लिए समर्पित करने वाले भगवान महावीर ने 527 ईसा पूर्व कार्तिक महीने की अमावस्या को बिहार के पावापुरी में रात के समय अपना देह त्यागा दिया था और निर्वाण को प्राप्त हुए थे। वहीं इस स्थान को जैन धर्म के पवित्र स्थल के रुप में पूजा जाता है।

उनके निर्वाण दिवस पर जैन समुदाय के लोग दीप जलाकर, दीपावली के रुप में भी मनाते हैं।

वहीं भगवान महावीर स्वामी के निर्वाण प्राप्त होने के करीब 200 साल बाद, जैन धर्म को श्वेताम्बर और दिगम्बर, दो अलग-अलग सम्प्रदायों में विभाजित कर दिया गया। दिगम्बर सम्प्रदाय के जैन संत, वस्त्रों का त्याग कर देते हैं, इसलिए दिगम्बर कहलाते हैं, जबकि श्वेताम्बर सम्प्रदाय के संत श्वेत वस्त्र धारण करते हैं।

महावीर स्वामी ने जिस तरह सुख-विलास का त्याग कर परम ज्ञान प्राप्त किया और लोगों को पांच मूल सिंद्दांत बताएं। हमें उनके जीवन से शिक्षा लेने और इन सिद्धांतों को अपनाने की जरूरत है, तभी हम अपने जीवन में सफल हो सकेंगे।

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