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दीपा मलिक का प्रेरणात्मक जीवन सफर

रियो पैरालंपिक में मेडल जीतकर इतिहास रचने वाली दीपा मलिक शॉटपुट एवं जेवलिन थ्रो की एक अच्छी एथलीट होने के साथ-साथ एक बेहतरीन बाइकर एवं भारतीय तैराक भी हैं, जिनके जोश और जज्बे के आगे उनकी जानलेवा बीमारी भी आड़े नहीं आ सकी।

दीपा मलिक ने अपनी जिंदगी में काफी शारीरिक संघर्षों को झेलने के बाद सफलता के इस मुकाम को हासिल किया है। आपको बता दें कि भारत की यह बेटी दीपा मलिक जानलेवा बीमारी से पीड़ित थी, दीपा के कमर के नीचे का हिस्सा लकवा से ग्रसित था।

इसके साथ ही उन्हें स्पाइन ट्यूमर हो गया था, जिसकी वजह से उनका चलना-फिरना तक मुश्किल हो गया था, जिसके चलते उनके करीब 31 ऑपरेशन करवाने पड़े और उनकी कमर और पांव के बीच करीब 183 टांके लगाए गए, इसके बाद भी उन्होंने न सिर्फ साहसिक खेलों में अपनी भागीदारी ली बल्कि, खेल में मेडल के भी अंबार लगा डाले।

पैरालंपिक गेम्स में सिल्वर मैडल जीतकर भारत का सिर गर्व से ऊंचा करने वाली दीपा मलिक भारत की पहली महिला खिलाड़ी हैं। दीपा मलिक एक साहसी और दृढ़निश्चयी स्वभाव की एथलीट हैं, जो वे ठान लेती हैं उसे पूरा करके ही चैन लेती हैं तो आइए जानते हैं इस बेहद साहसिक खिलाड़ी दीपा मलिक के संघर्ष, करियर और सफलता की कहानी –

रियो पैरालंपिक में इतिहास रचने वाली दीपा मलिक का प्रेरणात्मक जीवन सफर – Deepa Malik Biography

नाम (Name) दीपा मलिक
जन्मतिथि (Birthday) 30 सितंबर 1970, भैंसवाल, सोनीपत जिला, हरियाणा
पिता (Father Name) बाल कृष्ण नागपाल (भारतीय सेना)
माता (Mother Name) वीना नागपाल
पति (Husband Name) कर्नल विक्रम सिंह
कोच (Coach) वैभव सिरोही

जन्म एवं परिवार –

आसाधारण प्रतिभा वाली दीपा मलिक हरियाण के सोनीपत में 30 सितंबर, 1970 को जन्मी थी। वे एक इंडियन आर्मी फैमिली बैकग्राउंड से तालोक्कात रखती हैं। उनके पिता बाल कृष्ण नागपाल भारतीय सेना में एक अनुभवी अधिकारी थे, उनकी माता वीना नागपाल एक घरेलू महिला हैं। दीपा मलिक की शादी सेना के अधिकारी कर्नल विक्रम सिंह के साथ हुई है। इन दोनों की अंबिका और देविका नाम की दो खूबसूरत बेटियां भी हैं।

दर्द भरा दीपा का सफर –

दीपा आसाधारण प्रतिभा वाली जज्बे से भरी एक ऐसी साहसी खिलाड़ी हैं, जिनके जीवन से हर किसी को प्रेरणा लेने की जरूरत है। दीपा मलिक जब 30 साल की हुईं तो उन्हें लकवे जैसी जानलेवा बीमारी ने घेर लिया। उनके शरीर में कमर से पैर तक का हिस्सा एकदम खराब हो गया था, लेकिन फिर भी पल भर के लिए भी दीपा की न तो हिम्मत टूटी और न ही उनके आत्मविश्वास में कोई कमी आई।

यही नहीं साल 1999 में जब दीपा के पति कर्नल विक्रम सिंह कारगिल युद्ध में देश के लिए जंग लड़ रहे थे, उसी दौरान दीपा को स्पाइनल ट्यूमर ने घेर लिया, जिसकी वजह से दीपा अपने रोजर्मरा के कामों के लिए दूसरे पर निर्भर हो गईं, और वे अपने पैरों पर चलने के लिए भी मोहताज हो गईं।

यह वक्त दीपा के परिवार के लिए सबसे दुखद समय था, हालांकि दीपा और उनके परिवार में इस विकट परिस्थिति में भी धैर्य नहीं खोया और साहस से काम लिया और दोनों ही जंग जीत लीं। एक तरफ भारत ने जहां कारगिल युद्ध में अपने दुश्मनों के छक्के छुड़ाकर जाबांजी दिखाई, तो वहीं दूसरी तरफ दीपा के स्पाइनल ट्यूमर से जंग जीती।

इस दौरान दोपा के करीब 31 ऑपरेशन हुए और कमर और पैर के बीच करीब 183 टांके लगे, हालांकि, बाद में उनकी सर्जरी सफल रही और फिर उन्होंने अपनी अद्भुत प्रतिभा का प्रदर्शन कर पूरी दुनिया के सामने अपने साहस और काबिलियत का लोह मनवाया और आज दुनिया उन्हें एक विजेता एथलीट के रुप में जानती है। उनके नाम कई रिकॉर्ड्स दर्ज हैं।

करियर, रिकॉर्ड्स और उपलब्धियां –

भारत का सिर गर्व से ऊंचा करने वाली दीपा मलिक ने अपनी प्रतिभा का लोहा पूरी दुनिया के सामने मनवाया है और अपने शानदार प्रदर्शन के बलबूते पर कई रिकॉर्ड्स अपने नाम किए हैं –

आपको बता दें कि भाला फेंक प्रतियोगिता में दीपा मलिक के नाम एशियाई रिकॉर्ड दर्ज है जबकि साल 2011 में चक्का फेंक और गोला फेंक में वर्ल्ड चैम्पियनशिप में उन्होंने रजत पदक जीते थे। इसके अलावा कॉमनवेल्थ गेम्स की टीम में भी दीपा मलिक का चयन किया गया था।

सामाजिक कार्यों में भी पीछे नहीं है –

दीपा मलिक एक बेहद अच्छी एथलीट होने के साथ-साथ एक बेहतरीन सामाजिक कार्यकर्ता भी हैं। वे कई गंभीर बीमारी से पीड़ित गरीब, जरूरमंदों और असहाय लोगों के लिए कई कैंपेन चलाती हैं एवं सामाजिक संस्थानों के कार्यक्रमों में बढ़चढ़ कर हिस्सा लेती हैं एवं समाज के हित के लिए काम करती रहती हैं।

लेखन से व्यक्त करती हैं अपनी महान सोच –

दीपा मलिक सिर्फ खेलकूद में ही आगे नहीं है, बल्कि उन्हें अपने विचारों को लेखन के माध्यम से व्यक्त करना काफी अच्छा लगता है। वह अपनी बायोग्राफी और खिलाड़ियों के बारे में लिखती हैं, ताकि लोग उनके जीवन और संघर्षों से प्रेरणा लेकर आगे बढ़ सकें और अपनी विकलांगता या फिर शारीरिक अक्षमता को कमजोरी नहीं माने बल्कि इसे अपनी ताकत मानकर आगे बढ़ सकें।

दमदार ड्राइविंग –

दीपा मलिक अपने लक्ष्य के प्रति अडिग रहने वाली एक दृढ़निश्चयी और ईमानदार खिलाड़ी ही नहीं बल्कि एक बेहतरीन मोटर रेसलर भी हैं, उन्होंने साल 2009 में देश की सबसे खतरनाक और मुश्किल कार रैली “रेड दे हिमालय” और डेजर्ट स्टॉर्म 2010 मोटरस्पोर्ट्स में हिस्सा लेकर जीरो तापमान में लेह, शिमला, जम्मू, हिमालय जैसे कई कठिन रास्तों पर चलकर यात्रा की थी।

हाड़-मांस को कंपा देने वाली ठंड में दीपा मलिक ने अपनी 1700 किलोमीटर की यात्रा करीब 8 दिनों में पूरी की। इसके साथ ही उन्होंने 18 हजार फीट ऊंचाई पर चढ़कर सबको हैरान कर दिया, और एक बेहतरीन मोटर रेसलर के रुप में अपनी पहचान बनाई।

आपको बता दें कि दीपा मलिक भारत की पहली ऐसी शारीरिक रुप से अपंग महिला हैं, जिन्हें ‘फेडरेशन ऑफ इंडिया मोटर स्पोर्ट्स क्लब’ की तरफ से अधिकारिक रुप से संशोधित वाहन रैली के लिए लाइसेंस मिला था। दीपा भारतीय मोटरस्पोर्ट्स क्लब के महासंघ (F.M.S.C.I) एवं हिमालय मोटरस्पोर्ट्स एसोसिएशन (H.M.A) से भी जुड़ी हुई हैं। आपको बता दें एक अच्छे बाइकर के तौर पर अपनी पहचान बनाने वाली दीपा मलिक का मोटर रैली में हिस्सा लेने का मुख्य मकसद शारीरिक रुप से अक्षम लोगों के बीच जागरूकता फैलाने एवं उनके अंदर आत्मविश्वास को जगाना है।

कई दिग्गज भी हैं दीपा की अद्भुत प्रतिभा के कायल:

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर भारतीय क्रिकेट के भगवान कहे जाने वाले मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर और अभिनव बिंद्रा जैसे दिग्गज खिलाड़ियों ने भी अपनी काबिलियत से कई रिकॉर्ड्स को अपने नाम दर्ज करने वाली दीपा मलिक की अद्भुत खेल प्रतिभा की जमकर तारीफ की है।

सम्मान एवं पुरस्कार –

पैरालंपिक गेम्स में दीपा के उपलब्धियों की वजह से उन्हें भारत सरकार द्धारा अर्जुन पुरस्कार समेत खेल जगत में मिलने वाले कई महत्वपूर्ण पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है, दीपा मलिक को मिले पुरस्कारों और अवॉर्ड की लिस्ट इस प्रकार है –

इस तरह दीपा मलिक ने अपने जीवन में कई संघर्षों और कष्टों को झेलते हुए साहसिक खेलों में हिस्सा लेकर और मेडल जीतकर न सिर्फ भारत का मान बढ़ाया है, बल्कि वे कई लोगों के लिए प्रेरणास्त्रोत भी हैं।

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