दिल्ली के दर्शनीय स्थल और जानकारी | Delhi tourism places

Delhi tourism places

भारत की राजधानी अपने आप में इतिहास की एक पूरी किताब जिसकी झलक दिल्ली की ऐतिहासिक इमारतों से लेकर खान पान में आज भी नजर आती है। फिर चाहे हम गालिब की शायरी में डूबी पुरानी दिल्ली की चमकती शामों की बात करें, दिल्ली के लजीज खाने की या फिर दिल्ली में घटी राजनीतिक गतिविधियों की जिसने समय समय पर पूरी दुनिया का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया।

ये हम सभी जानते है कि दिल्ली को भारत की राजधानी 1913 में ब्रिटिश से बनाया था। इसके अलावा में मुगल काल को लेकर भी आपने इतिहास की किताबों में बहुत सी बातें पढ़ी होंगी। पर मुगलों के शासक बाबर ने दिल्ली पर 16वीं शताब्दी में राज किया था। तो क्या दिल्ली का 16 वीं शताब्दी से पहले कोई इतिहास नहीं था। और दिल्ली को दिल्ली नाम क्या मुगलों ने दिया था चलिए आपको बताते है दिल्ली के असल इतिहास के बारे में।

दूसरी ओर, नई दिल्ली, एडविन लुटियंस और हर्बर्ट बेकर द्वारा डिजाइन किए एक आधुनिक शहर है। यहा विभिन्न शासकों ने अपने ट्रेडमार्क वास्तुकला शैली छोड़ दी है।

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दिल्ली के दर्शनीय स्थल | Delhi tourism places

दिल्ली में वर्तमान में कई प्रसिद्ध ऐतिहासिक स्मारकों और स्थलों जैसे कुतुब मीनार, पुराना किला, लोदी गार्डन, जामा मस्जिद, तुगलाकाबाद किला, हुमायूं की मकबरा, इंडिया गेट, राष्ट्रपति भवन, लाल मंदिर लक्ष्मीनारायण मंदिर, लोटस मंदिर और अक्षरधाम मंदिर शामिल हैं।

नई दिल्ली अपने ब्रिटिश औपनिवेशिक वास्तुकला, चौड़ी सड़कों, और वृक्षों के लिखित boulevards के लिए प्रसिद्ध है।

दिल्ली कई राजनीतिक स्थलों, राष्ट्रीय संग्रहालयों, इस्लामी तीर्थस्थलों, हिंदू मंदिरों, हरी उद्यानों और ट्रेंडी मॉल का घर है।

दिल्ली के प्रमुख पर्यटन स्थल

दिल्ली का इतिहास – History of Delhi

महाभारत के समय में दिल्ली को पांडवो की राजधानी इंद्रप्रस्थ के नाम से जाना जाता था। दरअसल महाभारत काल के समय इस जहां आज दिल्ली है वहां पर इंद्रप्रस्थ नाम का गांव हुआ करता था जहां पांडव रहा करते थे। लेकिन अगर हम दिल्ली के जन्म की बात करें तो माना जाता है कि दिल्ली का असल इतिहास हिंदू तोमर राजा अनंगपाल के राज से शुरु होता है। उस समय तोमर राजाओं ने दिल्ली का नाम दिल्लिका रखा था जो बाद में दिल्ली हो गया।

राजा तोमर ने दिल्ली की राजधानी आज के गुरुग्राम के पास अरावली पहाड़ियों पर सूरजकुंड के पास अनंगपुर नाम से बनाई थी। राजा अनंगपाल ने ही दिल्ली में लाल कोट का निर्माण भी कराया था। जो कुतुब मीनार के समीप है इसे दिल्ली का पहला लालकिला भी माना जाता है।

दरअसल राजा अनंगपाल के समय में दिल्ली के उत्तरी भार को राय पिथौरा और दक्षिणी भाग को लालकोट कहा जाता था। राजा अंनगपाल ने ही कुतुब मीनार के पास स्थित लौह स्तंभ को लाकर यहां स्थापित कराया था।

ऐसा इसलिए क्योंकि राजा अंनगपाल चंद्रगुप्त मौर्य के साहस और पराक्रम से बहुत ही प्रभावित थे। जिस वजह से उन्होनें उनकी इस निशानी को यहां पर स्थापित कराया। इस लौह स्तंभ की खास बात ये है कि इतने वर्षों पुराने होने के बावजूद भी इस स्तंभ में आजतक जंग नहीं लगा है।

इसके अलावा तोमर राजाओँ ने महरौली जिसे उस समय मिहिरपुरी कहा जाता था। उसे भी बसाया था। यहां पर तोमर राजाओं दारा बनाए तालाबों के अवशेष आज भी नजर आते है जो उस समय बारिश का पानी इक्ट्ठा करने के लिए उपयोग में लाए जाते थे। हालांकि रख रखाव के अभाव के कारण आज ये तालाब उतने आकर्षक नही है। हालांकि योगमाया का मंदिर और उसके पास का तालाब आज भी देखने योग्य है।

हरियाणा में स्थित सूरजकुंड को भी राजा अंनगपाल ने ही बसाया था। जहां हर साल शिल्पकला का मेला लगता है जिसे सूरजकुंड का मेला भी कहते है। हालाकि राजा अनंगपाल ने अपनी एक बेटी अजेमर के चौहानों के यहां ब्याही थी। राजा अनंगपाल के दामाद राजा सामेश्वर सिंह बहुत ही सुर वीर राजा थे। लेकिन उनकी एक युद्ध के दौरान मौत हो गई। जिसके बाद उनके पूरे राजपाट का जिम्मा उनके 11 साल के बेटे पृथ्वीराज चौहान पर आ गया।

पृथ्वीराज चौहान ने महज 14 साल की उम्र मे अजमेर का राजपाट संभाल लिया था। राजा अनंगपाल का कोई बेटा नहीं था। इसलिए तोमर राजा अनंगपाल ने अपना पूरा राजपाट अपने नाती पृथ्वीराज चौहान के नाम कर दिया। पृथ्वीराज चौहान ने दिल्ली पर राज करते हुए दिल्ली का काफी विस्तार किया और यहां पर कई भव्य मंदिर और किले बनाए। साथ ही राजा अंनगपाल के बनाए लालकोट किले का भी विस्तार किया।

हालांकि पृथ्वीराज चौहान के बाद दिल्ली पर तुगलकों का राज रहा और फिर दिल्ली पर मुगलों का आक्रमण हुआ। बाबर ने दिल्ली के सभी मंदिर और दूसरी स्मृतियों को तहसनहस कर दिया और मुगलों की स्थापना की। बाबर के बाद दिल्ली की गद्दी पर हूमायूं बैठा। जिसकी जल्द मृत्यु हो गई।

ये वो समय था जब मुगलों की ताकत दिल्ली में कमजोर पड़ने लगी थी क्योंकि हूमायूं का बेटा अकबर उम्र में बहुत छोटा था। जिस वजह से समय का लाभ उठाकर हेमचंद्र विक्रामदित्य ने दिल्ली पर राज किया था। लेकिन अकबर ने सल्तनत संभालने के बाद एक बार फिर दिल्ली पर आक्रमण किया।

विक्रामदित्य और अकबर के बीच हुए इस युद्ध को पानीपत का दूसरा युद्ध कहा जाता है। जो 1556 को अकबर और हेमचंद्र विक्रमादित्य के बीच लड़ा गया था। इस युद्ध में विक्रमादित्य की हार के बाद मुगल हमेशा के लिए दिल्ली की सल्तनत पर आसीन हो गए। इतिहास में जो भी हुआ उसने दिल्ली पर समय समय पर अपनी अलग एक छाप छोड़ी जिसकी झलक आज भी दिल्ली में साफ नजर आती है।

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