English Education Startups India
कहते है की सबसे अधिक अंग्रेजी बोलने वाले लोग भारत में है। लेकिन हमे हर एक गली में अंग्रेजी से परेशान लोग मिल जायेगे जिन्हें ये बोलनी नहीं आती है। अगर बचपन से ऐसा माहौल बनाया जाए तो संभव है की हर कोई इसे बोल सके। ऐसा ही माहौल तैयार कर रहा है पश्चिम बंगाल का एक स्टार्टअप जिसका नाम है कृषवर्क्स- krishworks.
कृषवर्क्स गाँव के बच्चो को अंग्रेजी सिखाने के साथ साथ युवाओ के स्किल्स में ध्यान देता है। पूरे पश्चिम बंगाल में इन्होने 14 सेंटर खोल दिए है और 600 ग्रामीण बच्चो को पढाया जा रहा है।

गाँव के बच्चो को अंग्रेजी सिखाने के साथ युवाओ को रोजगार दे रहा ये स्टार्टअप – English Education Startups India
कोलकाता के इस स्टार्टअप की शुरुआत शुभजीत रॉय और गार्गी मजुमदार ने की और इसे आगे ले जाने में कई लोग उनके साथ आये। शुभजीत और गार्गी इसे शुरू करने से पहले एक बड़ी कंपनी में फुल टाइम जॉब करते थे लेकिन उन्होंने नौकरी छोड़ दी।
उन्होंने बच्चो की स्किल में काम करने का विचार बनाया और ऐसा सॉफ्टवेर तैयार करना चाहा की जो बिना इन्टरनेट के चल सके क्योकि सुदूर गांवो में इन्टरनेट की समस्या थी। उन्होंने गेमिंग सॉफ्टवेर के माध्यम से बच्चो को सिखाने की कोशिश की और इसके लिए उन्होंने टेबलेट्स की मदत ली।
शुभजीत और गार्गी के साथ सबसे पहले आये बालगोपाल और कौशिक जिन्होंने सुंदरवन इलाके में एक स्कूल में पायलट रन गेम शुरू किया। उद्देश्य था की बच्चे टेक्नोलॉजी से जुड़े। इन्होने स्कूलों में जाकर बच्चो को पहले मैथ्स पढ़ाना शुरू किया लेकिन ये समझ गए की पेरेंट्स टेबलेट्स का पैसा नहीं दे पायेगे।
तभी गार्गी और शुभजीत की मुलाक़ात आईआईएम के गौरव कपूर से हुई और उन्होंने सलाह दिया की आप आंत्रप्रेन्योर बनाना शुरू करे और ऐसा ही हुआ। अब इन्होने युवाओ को पकड़ा और उन्हें स्किल्स सिखाने में लग गए।
युवाओ को इनके साथ आने के लिए टेबलेट खरीदना पड़ता था जिसकी कीमत थी बीस हजार रुपये। इसके बाद वो युवा दो सौ रुपये की फीस पर बच्चो को टेबलेट की माध्यम से शिक्षा देते है। यानी की रोजगार भी दिया जा रहा है।
तैयार हुई टीम कृष्णा-
इन्होने 25 सदसीय लोगो को टीम बनाई जिसे नाम दिया गया “कृष्णा”। इसका उद्देश्य था की एक ऐसा गेम बनाया जाए जिसकी सहायता से बच्चे टेबलेट में अंग्रेजी सीख सके और फिर तैयार हुआ “गुरुकुल” नम का एप्प जिससे तंजानिया स्कूल के बच्चो से शुरुआत की गई।
इस स्टार्टअप को शुरुआत में पैसे की समस्या आई लेकिन बाद में आईआईएम कोलकाता, सिगम आइकेपी ईडन, उर इंडियन स्कूल ऑफ़ बिजनस हैदराबाद से वित्तीय सहायता मिली। इन पच्चीस लोगो ने गेम बनाने के दौरान अलग अलग कंपनियों में नौकरियां भी जिससे कोई ख़ास खर्चा नहीं आया।
टीम कृष्णा के द्वारा तैयार किये गए गुरुकुल सॉफ्टवेर को सराहा गया और इनका चयन तीस सबसे बेहतर टीम्स में किया गया। आज ये स्टार्टअप पश्चिम बंगाल में 14 सेंटर्स चला रहा है जहाँ लगभग 600 से अधिक बच्चे पढाई कर रहे है। इनका उद्देश्य है की आने वाले सात सालों में लगभग एक करोड़ बच्चो तक पहुचा जाएँ।
क्या कहते है शुभजीत और गार्गी-
इनका कहना है की “हमने माइक्रो आंत्रप्रेन्योर बनाये जिससे बच्चो को पढाया जा सके। हमारे देश में ऐसे युवाओ की कोई कमी नहीं है जो बेहतर पढ़ाई कर रहे है या चुके है लेकिन उनका इस्तेमाल सही से नहीं हो रहा है। उन्हें डायरेक्शन देनी है और हम ये काम कर रहे है। हमारी इस मुहिम से ग्रामीण बच्चो को शिक्षा तो मिल रही है और इसके साथ साथ युवाओं की स्किल्स भी बढाई जा रही है”।
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Ha bhai, vakai mera desh badal rha hai
धन्यवाद माही जी इस पोस्ट को पढ़ने के लिए, जी बिल्कुल सही कहा आपने हमारा देश बदल रहा है, जिससे न सिर्फ हमारे देश की आर्थिक व्यवस्था मजबूत हो रही है। बल्कि युवाओं को रोजगार भी मिल रहा है।