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क्या है गांधी-इरविन समझौता और आखिर इसके बाद गांधी जी को क्यों झेलनी पड़ी थी आलोचना

Gandhi Irwin Pact in Hindi

5 मार्च, 1931 को महात्मा गांधी और लॉर्ड इरविन के बीच हुआ समझौता गांधीइरविन पैक्ट और दिल्ली पैक्ट के नाम से जाना जाता है।

इस पैक्ट के तहत जहां लॉर्ड इरविन ने भारतीयों को समुद्र के किनारे नमक बनाने की इजाजत देने समेत शराब और विदेशी कपड़ों की दुकानों पर कानून की सीमा के अंदर शांतिपूर्ण तरीके से धरना देनी की स्वीकृति प्रदान की थी तो वहीं गांधी जी ने इस समझौते के तहत अपना सविनय अवज्ञा आंदोलन स्थगित करने के साथ कांग्रेस के गोलमेज सम्मेलन में शामिल होने की बात स्वीकार की थी।

आपको बता दें कि इस समझौते को गा्ंधी जी ने काफी महत्व दिया था, जबकि देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने इस समझौते की कड़ी निंदा की थी।

वहीं कांग्रेस के कुछ वामपंथी युवा भी इस समझौते नाखुश थी क्योंकि गांधी जी इस समझौते के बाद भी भारत के युवा क्रांतिकारी भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु की फांसी को नहीं बचा सके थे।

यही नहीं इस समझौते के बाद गांधी जी को यह तक कहकर कोसा गया था कि उन्होंने गुलाम भारत को आजाद करवाने के लक्ष्य को ध्यान में रखे बिना ही इस समझौते पर हस्ताक्षर कर दिए।

तो आइए जानते हैं आखिर क्या है गांधीइरविन समझौता और इसकी मुख्य शर्तें

क्या है गांधी-इरविन समझौता और आखिर इसके बाद गांधी जी को क्यों झेलनी पड़ी थी आलोचना – Gandhi Irwin Pact

गांधी-इरविन समझौता क्या है – What is Gandhi Irwin Pact

लंदन में हुए दूसरे गोलमेज सम्मेलन से पहले 5 मार्च साल 1931 को स्वतंत्रता संग्राम के सूत्रधार माने जाने वाले महात्मा गांधी और तत्कालीन वायसराय लॉर्ड इरविन के बीच कुछ महत्वपूर्ण शर्तों को लेकर हस्ताक्षर किए गए, जो कि गांधीइरविन समझौता के रुप में जाना जाता है।

आखिर कैसे हुई गांधीइरविन समझौते की शुरुआत – Gandhi-Irwin Pact Start

महात्मा गांधी जी ने गुलामी की दंश झेल रहे भारत देश को आजाद करवाने के लिए कई आंदोलन चलाए थे। उन्होंने अंग्रेजों की क्रूर नीतियों के खिलाफ मार्च और अप्रैल 1930 के बीच समुद्र के किनारे नमक बनाने के उद्देश्य से अपने कुछ साथियों के साथ पैदल दांडी यात्रा और नमक सत्याग्रह की शुरुआत की थी।

दरअसल, क्रूर ब्रिटिश सरकार ने भारतीयों पर नमक बनाने और बेचने की पर रोक लगाने के साथ ही इसकी खरीदारी पर भारी कर लगा दिया था।

जिसके बाद गांधी जी ने अंग्रेजों की इस नीति का विरोध करते हुए दांडी मार्च की शुरुआत की थी। वहीं उनके इस कदम ने सविनय अवज्ञा आंदोलन की नींव रखी थी।

हालांकि, इसकी वजह से गांधी जी और उनके साथियों को जेल की सजा भी भुगतनी पड़ी थी। यही नहीं उनके इस अहिंसात्मक आंदोलन ने हिंसात्मक रुप धारण कर लिया था, क्योंकि नमक सत्याग्रह का व्यापक असर देखकर गुस्साए अंग्रेजों ने गांधी जी के इस आंदोलन को बंद करने के लिए प्रदर्शनकारियों पर गोलीबारी, लाठीचार्ज कर क्रूरतापूर्ण व्यवहार किया था, जिससे पूरे देश में क्रोध और हिंसा का माहौल पैदा हो गया था।

जिसे देखते हुए तत्कालीन वायसराय लॉर्ड इरविन ने महात्मा गांधी से शांतिपूर्ण वार्ता करने का फैसला किया और गांधी जी को साल 1931 में जेल से रिहा भी कर दिया।

इसके बाद कुछ महत्वपूर्ण मुद्दों और शर्तों को लेकर लॉर्ड इरविन और महात्मा गांधी जी के बीच शांतिपूर्ण तरीके से हस्ताक्षर किए गए जो कि गांधीइरविन समझौता और दिल्ली पैक्ट के नाम से जाना गया।

तो आइए जानते हैं गांधीइरविन समझौते की महत्वपूर्ण शर्तें और प्रमुख मुद्दों के बारे में जो कि इस प्रकार हैं

गांधी-इरविन समझौते की महत्वपूर्ण शर्तें – Terms of Gandhi Irwin Pact

गांधी इरविन समझौते के तहत लार्ड इरविन ने निम्नलिखित शर्ते स्वीकार की:

गांधी इरविन समझौते के तहत कांग्रेस की तरफ से गांधी जी ने निम्नलिखित शर्ते स्वीकार की:

गांधी-इरविन समझौते के बाद गांधी जी की कटु आलोचना:

गांधीइरविन समझौता गांधी जी की नजर में भारतीय और कांग्रेस के लिए काफी महत्वपूर्ण था क्योंकि इस समझौते के बाद पहली बार ब्रिटिश सरकार ने भारतीय नेताओं के साथ समानता के स्तर पर बातचीत की थी।

जबकि दूसरी तरफ इस समझौते से आजाद भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू एवं नेता जी सुभाष चन्द्र बोस बिल्कुल असहमत थे, उनका मानना था कि गांधी जी ने कांग्रेस के पूर्ण स्वाधीनता के लक्ष्य पर ध्यान न देते हुए प्रमुख मुद्दों को अंग्रेजों के हाथ में रखने की बात मानी थी।

इसके साथ ही कांग्रेस के वामपंथी खासकर युवा वर्ग में गांधीइरविन पैक्ट को लेकर काफी गुस्सा था, उन्होंने इस समझौते को ब्रिटिश सरकार के सामने आत्मसमर्पण करार दिया था।

इसके साथ ही कांग्रेस वामपंथियों में इस बात को लेकर भी गांधी जी के खिलाफ आक्रोश था कि वे इस समझौते के तहत भारत के तीन युवा महान क्रांतिकारी सुखदेव, सरदार भगत सिंह और राजगुरु की फांसी को नहीं रुकवा पाए थे, जिसके चलते 23 मार्च, 1931 को इन तीनों क्रांतिकारियों को फांसी पर लटका दिया गया था।

वहीं इसके 2 दिन बाद करांची में सरदार वल्लभ भाई पटेल की अध्यक्षता में हुए कांग्रेस के अधिवेशन में इन तीनों क्रांतिकारियों की फांसी को लेकर गांधी जी के खिलाफ युवाओं ने काले झंडे भी दिखाए थे।

इस तरह गांधीइरविन समझौते को लेकर लोगों की मिश्रित प्रतिक्रिया रही हालांकि यह समझौता काफी प्रभावशाली रहा।

गांधी-इरविन समझौता का भारत पर प्रभाव – Impact of Gandhi – Irwin Pact on India

महात्मा गांधी और लॉर्ड इरविन के बीच हुए इस समझौता का भारत पर काफी प्रभाव पड़ा। इसके साथ ही इस समझौते के बाद कांग्रेस पार्टी एक मजबूत पार्टी बनकर उभरी।

हालांकि इस समझौते को लेकर कई लोगों ने गांधी जी पर कई सवाल खड़े किए और उनकी निंदा की तो कई लोगों ने इस समझौते को दूरदर्शितापूर्ण कदम बताया था।

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