गोपाल कृष्ण गोखले जीवनी

Gopal Krishna Gokhale Information in Hindi

गोपाल कृष्ण गोखले भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी थे, जिन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। वे ब्रिटिश सम्राज्य के खिलाफ लड़ने वाले भारतीयों में से भी एक थे। आईये जानते हैं गोपाल कृष्ण गोखले के जीवन की सारी जानकारी।

गोपाल कृष्ण गोखले जीवनी – Gopal Krishna Gokhale Information in Hindi

Gopal Krishna Gokhale

गोपाल कृष्ण गोखले के बारेमें – Gopal Krishna Gokhale Biography in Hindi

नाम (Name) गोपाल कृष्ण गोखले
जन्म (Birth) 9 मई, 1866
जन्म स्थान (Birthplace) कोथलुक, रत्नागिरी, बॉम्बे प्रेसीडेंसी (अब महाराष्ट्र)
पिता का नाम (Father) कृष्ण राव गोखले
माता का नाम (Mother) वालुबाई
पत्नी (Wife) सावित्रीबाई (1870-1877)
और दूसरी पत्नी (1877-1900)A
बच्चे (Children) काशीबाई और गोदूबाई
शिक्षा (Education) राजाराम हाई स्कूल, कोल्हापुर; एलफिन्स्टन कॉलेज, बॉम्बे
निधन (Death) 19 फरवरी, 1915

 

गोपाल कृष्ण गोखले नरम दल के नेता थे, वे विरोधियों को हराने में नहीं, बल्कि उन्हें जीतने में विश्वास करते थे।

इसके अलावा वे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सामाजिक और राजनैतिक नेता भी थे। वहीं आजादी की लड़ाई के दौरान जब भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस एक प्रमुख राजनैतिक पार्टी हुआ करती थी, तब गोपाल कृष्ण गोखले इस पार्टी के वरिष्ठ और सबसे प्रभावशाली नेताओं में से एक थे।

यही नहीं उन्होंने साल 1905 में बनारस में हुए कांग्रेस के विशेष सत्र को भी संबोधित किया था। इसके साथ ही उन्होंने कांग्रेस पार्टी में उग्रवादियों के प्रवेश का भी विरोध किया था। राजनैतिक नेता होने के अलावा वह समाज सुधारक भी थे। जिन्होंने लोगों की भलाई के लिए कई काम किए और समाज के हित के बारे में सोचा। यही नहीं गोपाल कृष्ण गोखले ने सर्वेन्ट्स ऑफ इंडिया सोसाइटी की स्थापना भी की जो कि आम लोगों के हित के लिए समर्पित थी।

आपको बता दें कि महान स्वतंत्रता सेनानी गोपाल कृष्ण गोखले महाविद्यालय की शिक्षा पाने के लिए भारतीयों की पहली पीढ़ी में से एक थे। गोखले को भारतीय बौद्धिक समुदाय में काफी सन्मान दिया जाता था। वह भारतीय समाज के संस्थापक भी थे, जिन्होंने अपना पूरा जीवन सभी देशवासियों के अंदर राष्ट्रवादी भावनाओं को प्रेरित करने के लिए समर्पित कर दिया।

अपने राजनीतिक जीवन के दौरान, गोखले ने स्वशासन के लिए प्रचार किया और सामाजिक सुधार की जरूरत पर जोर दिया। कांग्रेस के अंदर, उन्होंने पार्टी के मध्यम गुट का नेतृत्व किया जो मौजूदा सरकारी संस्थानों और मशीनरी के साथ काम करने और सह-संचालन करके सुधारों के पक्ष में था।

गोपाल कृष्ण गोखले भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के मार्गदर्शकों में से एक थे। वह भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी को अपना आदर्श मानते थे और उनके बताए गए मार्ग पर चलते थे औऱ उन्हें अपना राजनैतिक गुरु भी मानते थे।

उन्होंने गुलाम भारत को अंग्रेजों के चंगुल से आजाद करवाने के लिए काफी संघर्ष किया और देश की आजादी के लिए और भारत को एक स्वतंत्र राष्ट्र बानने के लिए अपना अभूतपूर्व योगदान दिया।

आज हम आपको हम इस आर्टिकल में राष्ट्रीय आंदोलन में अपना महत्वपूर्ण योगदान देने वाले गोपाल कृष्ण गोखले के पूरे जीवन के बारे में बता रहे हैं, उनका जीवन हर एक भारतीय के लिए प्रेरणास्त्रोत है, वहीं उन्होंने एक सच्चे देश भक्त की तरह अपना पूरा जीवन अपने राष्ट्र की सुरक्षा के लिए समर्पित कर दिया।

गोपाल कृष्ण गोखले का प्रारंभिक जीवन – Gopal Krishna Gokhale History in Hindi

भारत के वीर सपूत गोपाल कृष्ण गोखले 9 मई 1866 को महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले के कोथलक गांव में एक चितपावन ब्राह्राण परिवार में जन्मे थे। गोखले ने एक गरीब परिवार में जन्म लिया था, लेकिन दुनिया को उन्होंने इस बात का कभी एहसास नहीं होने दिया और अपने जीवन में कई ऐसे काम किए जिनके लिए उन्हें आजादी के इतने साल बाद आज भी याद किया जाता है।

इनके पिता का नाम कृष्ण राव था, जो कि एक किसान थे और अपने परिवार का पालन-पोषण खेती कर करते थे लेकिन क्षेत्र की मिट्टी खेती के उपयुक्त नहीं थी। जिसकी वजह से उन्हें इस व्यापार से कुछ खास आमदनी नहीं हो पाती थी। इसलिए मजबूरी में उन्हें क्लर्क का काम करना पड़ा।

वहीं गोपाल कृष्ण गोखले की माता का नाम वालूबाई था, जो कि एक साधारण घरेलू महिला थीं और हमेशा अपने बच्चों को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती थी।

बचपन से ही गोपाल कृष्ण को काफी दुख झेलने पड़े थे। दरअसल बचपन में ही उनके पिता का निधन हो गया था। जिससे बचपन से ही वे सहिष्णु और कर्मठ और कठोर बन गए थे। गोपालकृष्ण गोखले के अंदर शुरु से ही देश-प्रेम की भावना थी, इसलिए देश की पराधीनता उनको बचपन से ही कचोटती रहती और राष्ट्रभक्ति की अजस्त्र धारा का प्रवाह उनके ह्रदय में हमेशा बहता रहता था।

इसलिए बाद में उन्होंने अपना पूरा जीवन देश के लिए समर्पित कर दिया। वे सच्ची लगन, निष्ठा और कर्तव्यपरायणता की त्रिधारा में वशीभूत होकर काम करते थे।

गोपाल कृष्ण गोखले की शिक्षा – Gopal Krishna Gokhale Education

भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी गोपाल कृष्ण गोखले ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अपने बड़े भाई की मद्द से ली। परिवारिक स्थिति को देखते हुए उनके बड़े भाई ने गोखले की पढ़ाई के लिए आर्थिक सहायता की।

जिसके बाद उन्होंने राजाराम हाईस्कूल में अपनी प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की। इसके बाद वे मुंबई चले गए और साल 1884 में 18 साल की उम्र में मुंबई के एलफिंस्टन कॉलेज से स्नातक की डिग्री प्राप्त की।

खास बात यह है कि जिस समय गोपाल कृष्ण गोखले ने कॉलेज में ग्रेजुएशन( बीए) की डिग्री लेने की पढ़ाई की। उस समय वे भारतीय द्धारा पहली बार कॉलेज की शिक्षा प्राप्त करने वाले चंद लोगों में एक थे। इसके लिए उन्हें नवोदित भारतीय बौद्दिक समुदाय और पूरे भारत वर्ष में भी सम्मानित किया गया था।

साल 1884 में उन्होंने पूना के फर्ग्युसन कॉलेज में ही हिस्ट्री और पॉलिटिकल इकॉनमी पढ़ाना शुरू कर दिया और साल 1902 में वो वहां के प्रिंसिपल बन गए। इस तरह उन्होंने एक अच्छे शिक्षक के तौर पर भी काम किया।

हालांकि बीए की पढ़ाई के बाद उन्होंने पहले इंजीनियरिंग कॉलेज भी ज्वॉइन किया था, लेकिन शायद देश सेवा के लिए काम करने की वजह से उनका मन इसमें भी नहीं रमा और फिर उन्होंने IAS में अपीयर होने का सोचा, लेकिन फिर अपने रुझान के चलते उन्होंने लॉ (law) कोर्स शुरू कर दिया।

इतिहास के ज्ञान और उसकी समझ ने उन्हें स्वतंत्रता, लोकतंत्र और संसदीय प्रणाली को समझने और उसके महत्व को जानने में मद्द की। वहीं एक शिक्षक के रुप में गोपाल कृष्ण गोखले की सफलता को देखकर बाल गंगाधर तिलक और प्रोफेसर गोपाल गणेश आगरकर का ध्यान उनकी तरफ गया और उन्होंने गोपाल कृष्ण गोखले को मुंबई स्थित डेक्कन ऐजुकेशन सोसाइटी में शामिल होने के लिए निमंत्रण दिया।

जिसके बाद साल 1886 में वे इस सोसायटी के स्थायी सदस्य बन गए और इसी साल गोपाल कृष्ण गोखले को एक न्यू इंग्लिश स्कूल में टीचर बनने के लिए भी आमंत्रित किया गया। जहां पर उनकी मासिक आय सिर्फ 35 रुपए थी और वार्षिक बोनस 120 रुपये था।

इसके अलावा आपको यह भी बता दें कि गोपाल कृष्ण गोखले महज 40 रुपये की मासिक वेतन पर पब्लिक सर्विस कमीशन एग्जामिनेशन की क्लास में भी पढ़ाते थे। आपको बता दें कि भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी गोपाल कृष्ण गोखले ने फर्ग्यूसन कॉलेज को अपने जीवन के करीब दो दशक दिए।

गोखले के गुरु थे एम.जी. रानाडे – Mahadev Govind Ranade

इसी दौरान वह श्री एम.जी. रानाडे के प्रभाव में आए। आपको बता दें कि रानाडे एक न्यायाधीश, विद्धान और समाज सुधारक थे, जिन्हें गोखले ने अपना गुरु बना लिया था। गोखले ने पूना सार्वजनिक सभा में रानाडे के साथ काम किया और उसके सचिव बन गए।

वहीं गोपाल कृष्ण गोखले को उच्च शिक्षा के दौरान ही लिबर्टी, डेमोक्रेसी और पार्लियामेंट्री सिस्टम अच्छी तरह समझ आ गए थे और तभी से उन्हें देश को आजाद करवाने की जरूरत महसूस होने लगी थी।

गोपाल कृष्ण गोखले का विवाह – Gopal Krishna Gokhale Family

भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी गोपाल कृष्ण गोखले ने 2 बार शादी की थी। आपको बता दें कि गोखले की पहली शादी साल 1880 में सावित्रीबाई से हुआ, तब उनकी उम्र ज्यादा नहीं थी, जो कि शारीरिक रुप से काफी कमजोर थी और किसी जन्मजात और असाध्य बीमारी से पीड़ित थी और जल्द ही उनका देहांत हो गया।

इसके बाद साल 1887 में उन्होंने दूसरा विवाह किया। जिनसे उन्हें दो पुत्रियां भी प्राप्त हुई लेकिन उनकी दूसरी पत्नी का भी साल 1900 में देहांत हो गया। इसके बाद गोखले पूरी तरह टूट गए और फिर उन्होंने विवाह नहीं किया और उनकी बेटियों का पालन-पोषण और देखभाल उनकी रिश्तेदारों ने ही किया। आपको बता दें कि इनकी एक बेटी का नाम काशी (आनंदीबाई) था। जबकि दूसरी बेटी का नाम गोदूबाई था।

गोपाल कृष्ण गोखले का राजनीति में प्रवेश – Gopal Krishna Gokhale Contributions

  • भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के साथ सहयोग

भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी गोपाल कृष्ण गोखले का राजनीति में पहली बार प्रवेश साल 1888 में इलाहाबाद में हुए कांग्रेस के अधिवेशन में हुआ। इसके बाद साल 1897 ई. में दक्षिण शिक्षा समिति के सदस्य के रूप में गोखले और वाचा को इंग्लैण्ड जाकर ‘वेल्बी आयोग’ के समक्ष गवाही देने को कहा गया।

जबकि 1902 ई. में गोखले को ‘इम्पीरियल लेजिस्लेटिव काउन्सिल’ का सदस्य चुना गया। इस दौरान उन्होंने भारतीयों के हित को ध्यान में रखते हुए और अपने कर्तव्य का पालन करते हुए नमक कर, अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा और सरकारी नौकरियों में भारतीयों को अधिक स्थान देने के मुद्दे को काउन्सिल में उठाया।

जबकि इस दौरान उन्हें उग्रवादी दल से आलोचना भी सहनी पड़ी पड़ी थी, गोखले को शिथिल उदारवादी कहा गया। इसके अलावा सरकार ने भी उन्हें कई बार उग्रवादी विचारों वाले व्यक्ति और छदम् विद्रोही की संज्ञा दी।

महादेव गोविंद रानाडे के शिष्य गोपाल कृष्ण गोखले को वित्तीय मामलों की इतनी अच्छी समझ थी कि बड़े-बड़े विद्दान भी उन्हें देखकर आश्चर्य चकित हो उठते हैं। वहीं और उस पर अधिकारपूर्वक बहस करने की क्षमता से उन्हें ‘भारत का ग्लेडस्टोन’ भी कहा जाता है। वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में नरमदल के प्रमुख नेताओं में से एक थे।

भारत के वीर सपूत गोपाल कृष्ण गोखले ने अपने पूरे जीवन को देश सेवा और राष्ट्रहित के कल्याण के लिए समर्पित कर दिया। वहीं साल 1905 में गोखले ने ‘भारत सेवक समाज’ (सरवेंट्स ऑफ़ इंडिया सोसाइटी) की स्थापना की ताकि युवा पीढ़ी के भविष्य के लिए उन्हें एक नई दिशा मिल सके और सार्वजनिक जीवन के लिए उन्हें प्रशिक्षित किया जा सके।

इसके साथ ही संवैधानिक मांगों को स्पष्ट किया जा सके। उनका मानना था कि वैज्ञानिक और तकनीकी शिक्षा भारत की सबसे महत्त्वपूर्ण जरूरत है। इसीलिए इन्होंने सबसे पहले प्राथमिक शिक्षा लागू करने के लिए सदन में विधेयक भी प्रस्तुत किया था। इसके सदस्यों में कई प्रमुख व्यक्ति भी थे। गोखले ने राजकीय और सार्वजनिक कार्यों के लिए 7 बार इंग्लैण्ड की यात्रा की।

इसके अलावा साल 1905 में ही गोपाल कृष्ण गोखले को बनारस सत्र में राष्ट्रपति के लिए चुना गया। इस दौरान उन्होंने सरकार की स्वतंत्रता, लोकतंत्र और संसदीय व्यवस्था के महत्व को भी अच्छी तरह समझाया।

गांधी जी को आदर्श मानने वाले गोपाल कृष्ण गोखले ने साल 1909 के मिंटों-मॉर्ले सुधारों के गठन में अपनी अहम भूमिका निभाई। लेकिन दुर्भाग्य से यह संस्था लोगों को एक लोकतांत्रिक व्यवस्था देने में नाकामयाब रही।

हालांकि राष्ट्रहित के बारे में सोचने वाले गोखले के प्रयास व्यर्थ नहीं गए। क्योंकि अब तक गोखले की पहुंच उस समय के उच्च प्राधिकरण की सीट तक हो गई थी। वहीं सार्वजनिक हित के मामले में अब उनकी आवाज को दबाया नहीं जा सकता था।

  • भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कट्टरपंथी गुट के साथ प्रतिद्दंद्धिता

आपको बता दें कि जब महान क्रांतिकारी और स्वतंत्रता सेनानी गोपाल कृष्ण गोखले भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हुए तो उस समय बाल गंगाधर तिलक, लाला लाजपत राय, और ऐनी बेसेंट समेत कई और नेता भारतीय राजनीति में प्रमुख थे।

गोपाल कृष्ण गोखले हमेशा आम जनता के हित के बारे में सोचते रहते थे और उनकी परेशानियों का समाधान करने को अपना फर्ज समझते थे। वे गांधी जी के आदर्शों पर चलते थे। जिसमें समन्वय का गुण हमेशा व्याप्त रहता था। वहीं कुछ समय के बाद वे बाल गंगाधर तिलक के साथ भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के ज्वाइंट सेक्रेटरी बन गए।

वहीं गोपाल कृष्ण गोखले और बाल गंगाधर तिलक दोनों में ही काफी सामानताएं थीं, जैसे कि दोनो ही चितपावन ब्राह्मण परिवार से तालुक्कात रखते थे और दोनों ने ही मुंबई के एलफिंस्टन कॉलेज से स्नातक की डिग्री प्राप्त की थी। इसके अलावा दोनों ही गणित के प्रोफेसर थे और दोनों ही डेक्कन एजुकेशन सोसाइटी के प्रमुख सदस्य भी थे।

भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी गोपाल कृष्ण गोखले और बाल गंगाधर तिलक जब कांग्रेस में साथ-साथ आए तो दोनों का ही मकसद गुलाम भारत को आजादी दिलवाने के साथ-साथ आम भारतीयों को मुश्किलों से उबारना था लेकिन समय के साथ गोखले और तिलक की विचारधाराओं और सिद्धांतों में एक अपरिवर्तनीय दरार पैदा हो गई।

समाज सुधारक गोपाल कृष्ण गोखले एक प्रगतिशील समाजवादी थे, जबकि बाल गंगाधर तिलक एक सांस्कृतिक रीति-रिवाजों से आए थे। उस दौरान “बाल विवाह” के संबंध में ब्रिटिश सरकार ने जो कानून पास किया था, उस बारे में गोखले और तिलक की विचारधारा एक-दूसरे से बिल्कुल अलग थी। वे इस पर एक मत नहीं थे और यहीं से भारत के दोनों वीर सपूतों रिश्तों के बीच दरार आने की शुरुआत हुई।

आपको बता दें कि गोपाल कृष्ण गोखले ने बाल विवाह के खिलाफ सामाजिक सुधार के ब्रिटिश प्रयासों की सराहना की थी, जबकि दूसरी तरफ बाल गंगाधर तिलक ने इस विधेयक का बहुत विरोध किया, जिसमें उन्होंने हिंदू परंपराओं पर अंग्रेजों द्वारा हस्तक्षेप को अपमान माना,लेकिन जब अंग्रेजों की गुलामी का दंश झेल रहे गुलाम भारत को आजादी दिलवाने के लिए अच्छे काम का फैसला करने की बात आई तो दोनों नेता विपरीत पक्षों पर बाहर आ गए।

और गोपाल कृष्ण गोखले ने जहां संवैधानिक आंदोलनों के माध्यम से स्वतंत्रता मांगी जबकि दूसरी तरफ बाल गंगाधर तिलक आक्रामक विचारधारा के थे और उन्होंने आक्रामक दृष्टिकोण में भरोसा करते थे।

साल 1906 में भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी गोपाल कृष्ण गोखले को साल 1906 में राष्ट्रीय कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया था। तभी दोनों की विचारधारा एकदम अलग हो गई थी और दोनों के बीच प्रतिद्धंद्धिता अपने चरम पर पहुंच गई थी।

राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी दो गुटों में बंट गई थी – जिसमें उदारवादी दल का नेतृत्व गोपाल कृष्ण गोखले ने किया जबकि बाल गंगाधर तिलक ने आक्रामक राष्ट्रवादी दल का नेतृत्व किया। वहीं एक तरफ जहां बाल गंगाधर तिलक बेकसूर भारतीयों पर अत्याचार करने वाले ब्रिटिश सरकार को क्रांतिकारी कार्यों के साथ खदेड़ना चाहते थे वहीं दूसरी तरफ गांधीवादी विचारधारा के गोपाल कृष्ण गोखले शांतिपूर्ण तरीके से भारत को आजाद करवाना चाहते थे।

  • सर्वेन्ट्स ऑफ इंडिया सोसायटी की स्थापना – Servants of India Society

साल 1905 में गोपाल कृष्ण गोखले की प्रतिभा और उनके राष्ट्रहित के काम को देखते हुए उनको जब कांग्रेस का प्रेसिडेंट बनाया गया, तब उन्हें राजनीति की ताकत भी माना जाता था। उस समय के वे दिग्गज नेताओं में से एक थे और इसी समय उन्होंने सर्वेन्ट्स ऑफ इंडिया सोसायटी की स्थापना की थी।

आपको बता दें कि गोखले जी ने भारतीयों को शिक्षित करने के उद्देश्य से इस सोसाइटी की स्थापना की थी। गोपाल कृष्ण गोखले का मानना था कि जब भारतीय शिक्षित होंगे तभी वे अपने देश और समाज के प्रति जिम्मेदारी को सही से समझेंगे और इसका निर्वाह भली-भांति करेंगे।

गोखले जी की इस सोसाइटी ने कई नए स्कूल और कॉलेजों की स्थापना की ताकि ज्यादा से ज्यादा भारतीय शिक्षित हो सकें और एक सभ्य और शिक्षित समाज का निर्माण हो सके और लोगों के अंदर आजाद भारत में रहने की इच्छा प्रकट हो सके। इसके अलावा गोपाल कृष्ण गोखले ने लोगों को शिक्षा के महत्व के बारे में बताया।

  • गोखले ने दिया शिक्षा पर विशेष जोर प्राथमिक शिक्षा को करवाया अनिवार्य – Demand About compulsion of Primary Education

गोपाल कृष्ण गोखले पाश्चात्य शिक्षा को भारत के लिए वरदान मानते थे और इसका विस्तार करना चाहते थे। वहीं साल 1903 में उन्होंने अपने एक बजट-भाषण में कहा था कि भावी भारत दरिद्रता और असंतोष का भारत नहीं होगा बल्कि उद्योगों, जाग्रत शक्तियों और संपन्नता का भारत होगा। भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी गोपाल कृष्ण गोखले देशवासियों को रुढ़िवादी और जीर्ण-शीर्ण विचारों विचारधारा से मुक्त करवाना चाहते थे।

इसके अलावा उन्होंने उस दौरान सरकार से 6 से 10 साल तक के बच्चों के लिए प्राथमिक शिक्षा को अनिवार्य करने की बात कही और पढ़ाई का खर्च सरकार और संस्थान से उठाने का अनुरोध किया।

लेकिन सरकार इस बात के लिए राज़ी नहीं थी। उनका मानना था कि शिक्षा के प्रसार से अंग्रेज़ी साम्राज्य को दिक्कत होगी। इसके साथ ही गोखले ने अपनी तर्क बुद्धि से उन्हें समझाया कि सरकार को अनपढ़ लोगों से ही डरना चाहिए, शिक्षित लोगों से उन्हें किसी तरह का कोई डर नहीं है इसलिए सरकार को प्राथमिक शिक्षा की अनिवार्यता का उनका फैसला मान लेना चाहिए।

  • महात्मा गांधी और जिन्ना को गोखले का मार्गदर्शन – Guidance To Mahatma Gandhi And Jinna

गोपाल कृष्ण गोखले साल 1896 में भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी से मिले शुरुआती सालों में वह उनके सलाहकार रहे। इसके बाद साल 1901 मे उन दोनों ने कलक्ता में करीब एक महीना गांधी जी के साथ बिताया था।

इस दौरान उन्होंने गांधी जी के साथ विचार-विमर्श किया और गांधी जी को भारत लौटकर कांग्रेस के कामों में सहयोग देने के लिए प्रेरित किया। हमेशा राष्ट्र के कल्याण के बारे में सोचने वाले गोपाल कृष्ण गोखले ने अफ्रीका में गांधी जी के “इनडेंट्युरड लेबर बिल” में भी मदत की थी इसके साथ ही उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में महात्मा गांधी जी के प्रयासों के लिए पैसे इकट्ठे किए।

इसके बाद 1912 में उन्होंने दक्षिण अफ्रीका का दौरा किया जहां पर उन्होंने अफ्रीकन नेताओं से बातचीत की।

वहीं उस समय महात्मा गांधी नए-नए बैरिस्टर बने थे और दक्षिण अफ्रीका में अपने आंदोलन के बाद भारत लौटे थे। तब उन्होंने भारत के बारे में और भारतीयों के विचारों के बारे में समझने के लिए गोखले का साथ चुना क्योंकि गांधी जी, गोपाल कृष्ण गोखले के व्यक्तित्व से बेहद प्रभावित थे।

जिसके बाद स्वतंत्रता सेनानी गोखले ने कुछ समय तक महात्मा गांधी जी के सलाहकार के रुप में काम किया और भारतीयों की समस्याओं पर विचार-विमर्श किया। साल 1920 में गांधी जी भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के लीडर बन गए। महात्मा गांधी ने अपनी आत्मकथा में गोखले को अपना सलाहकार और मार्गदर्शक कहकर भी संबोधित किया है।

महात्मा गांधी के मुताबिक गोपाल कृष्ण गोखले को राजनीति का अच्छा ज्ञान था। गोखले के प्रति गांधी जी की अटूट श्रद्धा थी लेकिन फिर भी वह उनके वेस्टर्न इंस्टिट्यूशन के विचार से सहमत नहीं थे और उन्होंने गोखले की सर्वेन्ट्स ऑफ इंडिया सोसाइटी का सदस्य बनने से मना कर दिया और उन्होंने गोखले के ब्रिटिश सरकार के साथ मिलकर सामाजिक सुधार कार्यों को आगे बढ़ाते हुए देश चलाने वाले उद्देश्य का समर्थन नहीं किया।

इसके साथ ही आपको यह भी बता दें कि गोखले पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना के भी परामर्शदाता रहे हैं। वहीं गोखले का जिन्ना पर खासा प्रभाव था इसी वजह से उन्हें ‘मुस्लिम गोखले’ भी कहा जाता है।

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और मुस्लिम लीग के समझौते के बाद सरोजिनी नायडू द्धारा जिन्ना को ‘हिन्दू–मुस्लिम एकता’ का ब्रांड एम्बेसेडर भी कहा जाता है। वे ब्रिटिश राज के खिलाफ हिंदू मुस्लिम एकता के राजदूत भी माने जाते थे। वहीं गोखले हिन्दू-मुस्लिम एकता को भारत के लिए कल्याणकारी मानते थे।

भारतीय राष्ट्रवादी आंदोलन पर गोपाल कृष्ण गोखले का प्रभाव – Influence of Gopal Krishna Gokhale On Indian National Movement

भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी गोपाल कृष्ण गोखले उदारवादी होने के साथ-साथ एक सच्चे राष्ट्रवादी और समन्वयवादी नेता थे। जिसकी वजह से उनका ब्रिटिश इंपीरियल के साथ सामजस्य पूर्ण व्यवहार भी पड़ा था वहीं गोखले ने लोगों को शिक्षा के महत्व को समझाया और राष्ट्र की सेवा के लिए राष्ट्रीय प्रचारकों को तैयार करने हेतु गोखले ने 12 जून, 1905 को ‘भारत सेवक समिति’ की स्थापना की।

वहीं इस संस्था से पैदा होने वाले महत्वपूर्ण समाज सेवकों में वी.श्री निवास शास्त्री जी.के.देवधर, एन.एम. जोशी, पंडित ह्रद्य नारायण कुंजरू आदि थे। आपको बता दें कि उन्होंने लोगों में राष्ट्र प्रेम का भाव जगाने के लिए ‘पूना सार्वजनिक सभा’ की पत्रिका और ‘सुधारक’ का संपादन भी किया।

  • गोखले की वजह से ही गांधी जी ने स्वदेश आन्दोलन चलाया था:
Gopal Krishna Gokhale Image
Gopal Krishna Gokhale Image

आज जहां पूरे देश में जब ‘मेक इन इंडिया’ और ‘मेक फ़ॉर इंडिया’ के बीच बहस ज़ारी है, तो इसके लिए हम आपको यह भी बता दें कि गोखले पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने स्वदेशी विचार पर जोर दिया। इसके साथ ही गोखले को उदारवादियों का सिरमौर और भारत के संवैधानिक विकास का जनक भी माना जाता है।

गोपाल कृष्ण गोखले के प्रमुख 6 अर्थशास्त्र संबंधी विचार – Top 6 Economic Ideas of Gopal Krishna Gokhale

महान स्वतंत्रता सेनानी और एक अच्छे राजनेता होने के साथ-साथ गोपाल कृष्ण गोखले गणित के भी एक सर्वश्रेष्ठ प्रोफेसर भी थे। उन्होंने देश की अर्थव्यवस्था को सुधारने के लिए भी कई प्रयास किए। इसके अलावा कुछ क्षेत्रों में इसके विकास के लिए उन्होंने अपने कुछ आइडिया दिए थे जो कि निम्नलिखित हैं –

  • इंडियन फाइनेंस
  • डीसेंट्राइजेशन ऑफ पॉवर
  • लैंड रेवन्यू
  • पब्लिक एक्सपांडीचर
  • एजुकेशन
  • ट्रेड

गोपाल कृष्ण गोखले को मिले हुए अवार्ड और उपलब्धि – Gopal Krishna Gokhale Achievements

साल 1904 में उनकी सेवाओं की वजह से ब्रिटिश सरकार द्वारा उन्हें न्यू ईयर की ऑनर लिस्ट में सीआईए (कम्पैनियन ऑफ़ दी आर्डर ऑफ़ दी इंडियन) नियुक्त किया गया।

गोपाल कृष्ण गोखले की मृत्यु – Gopal Krishna Gokhale Death

भारत का हीरा कहे जाने वाले गोपाल कृष्ण गोखले के जीवन के आखिरी दिनों में डाईबिटिज, कार्डिएक और अस्थमा जैसी बीमारियां हो गई थी। जिसके बाद 19 फरवरी साल 1915 को मुंबई, महाराष्ट्र में उनकी मृत्यु हो गई और इस तरह भारत का बहादुर और पराक्रमी सपूत हमेशा के लिए सो गया।

आपको बता दें कि गोखले ने भारत के लिए ‘काउंसिल ऑफ द सेक्रेटरी ऑफ स्टेट’ और नाइटहु़ड की उपाधि में पद ग्रहण करने से मना कर दिया। क्योंकि वे हिन्दुओं की निम्न जातियों को भी शिक्षित करना चाहते थे और रोजगार में सुधार की मांग कर रहे थे, जिससे उनको आत्मसम्मान मिल सके और सामाजिक स्तर प्रदान किया जा सके।

इसके अलावा गोपाल कृष्ण गोखले ने भारत में औद्योगिकरण का सर्मथन किया। लेकिन वे बायकाट की नीति के खिलाफ थे। उन्होंने साल 1906 में कलकत्ता अधिवेशन में उन्होंने बायकाट के प्रस्ताव का समर्थन किया। उन्हें भारत का ‘हीरा’ ‘महाराष्ट्र का लाल’ और ‘कार्यकर्ताओं का राजा’ कहकर भी लोग बुलाते थे। उनके द्धारा देश के लिए किए गए त्याग और समर्पण को भी कभी भूलाया नहीं जा सकता है।

गोपालकृष्ण के नाम पर धरोहर

Gopal Krishna Gokhale Photo
Gopal Krishna Gokhale Photo

सरकार ने इस महापुरुष के सम्मान में उनका फोटो 15 पैसे में मिलने वाले पोस्टल स्टाम्प पर भी लगाया हैं। मुंबई के मुलुंड ईस्ट में उनके नाम पर एक गोपाल कृष्ण गोखले नाम की रोड हैं। इसके अलावा पुणे में भी इनके नाम पर एक गोखले रोड है।

पुणे में उनके नाम पर इकोनॉमिक्स का एक इंस्टिट्यूट भी हैं जिसका नाम गोखले इंस्टिट्यूट ऑफ़ पॉलिटिक्स एंड इकोनॉमिक्स हैं। कलकत्ता में उनके नाम पर गोखले मेमोरियल गर्ल्स कॉलेज हैं।

चेन्नई में उनके नाम पर गोखले हॉल है और कोल्हापुर में उनके नाम पर गोपाल कृष्ण गोखले कॉलेज है। वहीं बैंगलोर में उनके नाम पर एक शिक्षण संस्थान है जिसका नाम गोखले इंस्टियूट ऑफ पब्लिक अफेयर्स है। वहीं भोपाल में गोखले हॉस्टल भी है।

इसके अलावा भी गोखले एजुकेशनल सोसाइटी 50 से ज्यादा शिक्षण संस्थान चला रही है। जो कि मुंबई, नासिक, कोंकण आदि स्थानों पर स्थित है। इस सबसे बढ़कर हम उनके कार्यों के लिए साल 2015-2016 को गोखले की जयंती के रुप में मना रहे हैं।

गोपाल कृष्ण गोखले एक ऐसे स्वतंत्रता सेनानी थे जिनका रोम-रोम देशभक्ति की भावना से भरा हुआ था और जिन्होंने अपना पूरा जीवन भारत के विकास में लगा दिया। वह उदारवाद के ना केवल समर्थक थे, बल्कि जुनून से मुक्त और दिमाग को समृद्ध करने वाली शिक्षा को ही महत्वपूर्ण समझते थे।

वो स्पष्ट रूप से आध्यात्मिकता और धार्मिकता के बीच की सीमा को समझते थे और उनके लिए राष्ट्रवाद ही उनका धर्म था। उन्होंने ही ब्रिटिश सम्राज्य के भीतर ‘सुराज’ का मंत्र दिया।

वह न सिर्फ महात्मा गांधी समेत भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के कई नेताओं के लिए एक प्रेरणा बने बल्कि आज की युवा पीढ़ी भी उनके संघर्षमय जीवन से प्रेरणा लेती है। भारत के ऐसे, साहसी और बहादुर वीर सपूत को ज्ञानीपंडित की टीम शत-शत नमन करती है और भावपूर्ण श्रद्धांजली अर्पित करती है।

गोपाल कृष्ण गोखले द्वारा कहे गए कुछ प्रेरणादायक कोट्स – Gopal Krishna Gokhale Quotes in Hindi

स्वतंत्रता सेनानी गोपाल कृष्ण गोखले भारत के विद्वान और प्रभावी व्यक्तिमत्व के साथ, एक दूरदर्शी राजकीय प्रतिनिधी थे। जिनका मकसद भारत को स्वतंत्रता दिलवाना साथमे अंग्रेजो द्वारा समाज सुधार के प्रमुख कार्य करवाना भी था।

भारतीय राष्ट्रीय कॉंग्रेस के प्रतिनिधी के अलावा समाज मे अन्य तौर पर योगदान देकर गोखले जी ने देश के स्वतंत्रता और समाज के प्रबोधन और विकास संबंधी कार्य किये।जिसमे उन्होने कुछ सामाजिक संस्थाओ का निर्माण किया था, तथा सरकार द्वारा लाये गये सुधार प्रस्ताव पर भी कार्य किया। इसके अलावा कुछ वरिष्ठ स्वतंत्रता सेनानियो को उनका अनमोल मार्गदर्शन भी प्राप्त हुआ।

  • मेरा ये स्पष्ट रूप से मानना है के सरकार ने ६ साल से १० साल तक के बच्चो को प्राथमिक शिक्षा लेना अनिवार्य करना चाहिये।
  • मौजुदा हालात मे देश के उच्च शिक्षित युवको द्वारा स्वतंत्रता संग्राम मे  संपूर्ण समर्पण और निष्ठा देने की जरुरत है।
  • बालविवाह के खिलाफ सामाजिक सुधार के ब्रिटीश सरकार द्वारा किये गये प्रयास सचमे प्रशंसनीय है।
  • युवा पिढी को नई दिशा मिले और सार्वजनिक जीवन मे उनको प्रशिक्षित करने के मकसद से ही हमने भारत सेवक समाज की स्थापना की है।

इस विषय पर अधिक बार पुछे गये सवाल (FAQ)

१. डेक्कन सभा की स्थापना किसने की थी?

जवाब:  गोपाल कृष्ण गोखले।

२. गोपाल कृष्ण गोखले जी के गुरु कौन थे? (Gopal Krishna Gokhale ke Guru Kaun The)

जवाब: न्यायमूर्ती एम.जी. रानडे।

३. सर्वेन्ट्स ऑफ इंडिया सोसायटी की स्थापना किसने की?

जवाब: गोपाल कृष्ण गोखले।

४. महात्मा गांधी के राजनीतिक सलाह्कार कौन थे?

जवाब: गोपाल कृष्ण गोखले।

५. लोकमान्य तिलक जी ने भारत का हिरा कहकर किनका उल्लेख किया था?

जवाब: गोपाल कृष्ण गोखले।

६. गोपाल कृष्ण गोखले ने कौनसे दो प्रमुख व्यक्तियो को सलाहगार के तौर पर मार्गदर्शन दिया था?

जवाब: महात्मा गांधी और मोहम्मद अली जिन्ना।

७. किसने अपनी आत्मकथा मे गोपाल कृष्ण गोखले को अपना मार्गदर्शक और सलाह्कार कहा है?
जवाब: महात्मा गांधी।

८. गोपाल कृष्ण गोखले को टीचर बनने के लिये कहा आमंत्रित किया गया था?

जवाब: न्यू इंग्लिश स्कूल।

९. शिक्षा के सुधार के लिये गोपाल कृष्ण गोखले जी का प्रमुख कार्य क्या था?

जवाब: ६ साल से १० साल तक के बच्चो को प्राथमिक शिक्षा अनिवार्य करने की मांग गोपाल कृष्ण गोखले जी ने की थी।

१०. मोर्ले-मिंटो सुधार प्रस्ताव पर किसने महत्वपूर्ण कार्य किया था?

जवाब: गोपाल कृष्ण गोखले

1 thought on “गोपाल कृष्ण गोखले जीवनी”

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