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सिख धर्म के दसवें गुरु श्री गुरु गोबिन्द सिंह की जीवनी

Guru Gobind Singh

गुरु गोबिन्द सिंह सिक्खो के दसवें धार्मिक गुरु थे। वे एक गुरु ही नहीं बल्कि एक महान दार्शनिक, प्रख्यात कवि, निडर एवं निर्भीक योद्धा, अनुभवी लेखक और संगीत के पारखी भी थे। वे अपने पिता गुरु तेग बहादुर के उत्तराधिकारी बने। सिर्फ 9 वर्ष की आयु में सिक्खों के नेता बने एवं अंतिम सिक्ख गुरु बने रहे।

गुरु गोबिंद सिंह जी ने न सिर्फ अपने महान उपदेशों के माध्यम से लोगों को सही दिशा दिखाई, बल्कि उन्होंने समाज में हो रहे अत्याचारों और अपराधों के खिलाफ भी विरोध किया एवं खालसा पंथ की स्थापना की, जो को सिख धर्म के इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण घटना के तौर पर अंकित है।

गुरु गोबिंद जी ने लोगों को आपस में प्रेम और भाईचारे के साथ मिलजुल कर रहने का संदेश दिया। आइए जानते है सिखों के 10वें और महान गुरु गोबिंद  सिंह जी के बारे में –

सिख धर्म के दसवें गुरु श्री गुरु गोबिन्द सिंह की जीवनी – Guru Gobind Singh History in Hindi

गुरु गोबिंद सिंह के जीवन बारे में एक नजर में – Guru Gobind Singh Information

नाम (Name) गुरु गोबिंद सिंह
बचपन का नाम (Childhood Name) गोबिंद राय सोधी
जन्म (Birthday) 5 जनवरी, 1666, पटना साहिब, ( वर्तमान पटना, भारत)
पिता (Father Name) गुरु तेग बहादुर
माता (Mother Name) गुजरी
पत्नियों के नाम (Wife Name) माता जीतो, माता साहिब देवन, माता सुंदरी,
बच्चों के नाम (Sons or Daughter Name) जुझार सिंह, फ़तेह सिंह, जोरावर सिंह, अजित सिंह,
मृत्यु (Death) 7 अक्टूबर, 1708, हजुर साहिब नांदेड, भारत

गुरु गोबिंद सिंह का जन्म, शिक्षा और प्रारंभिक जीवन – Guru Gobind Singh Biography

गुरु गोबिंद जी के जन्म को लेकर विद्धानों के अलग-अलग मत है, लेकिन ज्यादातर विद्धानों का मानना है कि उनका जन्म 5 जनवरी, 1666, पटना साहिब, बिहार में हुआ था।

वे 9वें सिख गुरु, गुरु तेग बहादुर सिंह और गुजरी देवी के इकलौते बेटे थे, जिन्हें बचपन में सब उन्हें गोबिंद राय के नाम से पुकारते थे। करीब 4 साल तक वे पटना में ही रहे, वहीं उनका जन्म स्थान आज “तख़्त श्री पटना हरिमंदर साहिब” के नाम से मशहूर है।

इसके बाद 4 साल की उम्र में वे अपने परिवार के साथ पंजाब में लौट आए और फिर वो जब 6 साल के हुए तब हिमालय की शिवालिक घाटी में स्थित चक्क ननकी में रहने लगे।

आपको बता दें कि चक्क ननकी की स्थापना उनके पिता एवं 9वें सिख गुरु, गुरु तेग बहादुर सिंह ने की थी, जो कि आज आनंदपुर साहिब के नाम से जाना जाता है।

गुरु गोबिंद सिंह जी ने इसी स्थान पर अपनी प्राथमिक शिक्षा लेने के साथ एक महान योद्धा बनने के लिए अस्त्र-शस्त्र चलाने की विद्या, लड़ने की कला, तीरंदाजी करना एवं मार्शल आर्ट्स की अनूठी कला सीखी। इसके अलावा पंजाबी, ब्रज, मुगल, फारसी, संस्कृत भाषाओं का ज्ञान प्राप्त किया और “वर श्री भगौती जी की” महाकाव्य की रचना की।

गुरु गोबिंद सिंह जी का सिखों के दसवें गुरु बनना – Guru Gobind Singh Ji Stories

विद्दानों की माने तो गुरु गोबिंद जी के पिता एवं नौवें सिख गुरु, गुरु तेग बहादुर सिंह ने, कश्मीरी पंडितों का धर्म-परिवर्तित कर मुस्लिम बनाए जाने के खिलाफ खुलकर विरोध किया था एवं खुद भी इस्लाम धर्म कबूल करने से मना कर दिया था।

जिसके बाद भारतीय इतिहास के मुगल शासक औरंगजेब ने  11 नवम्बर 1675 को भारत की राजधानी दिल्ली के चांदनी चौक इलाके में गुरु तेग बहादुर सिंह का सिर कटवा (सिर कलम) दिया था।

फिर 29 मार्च 1676 को, महज 9 साल की छोटी सी उम्र में गुरु गोबिंद सिंह जी को औपचारिक रूप से सिखों का 10वां गुरु बनाया गया था।

गुरु गोबिंद जी का विवाह – Guru Gobind Singh Marriage And Family

10वें सिख गुरु, गुरु गोबिंद जी की तीन शादियां हुई थी, उनका पहला विवाह आनंदपुर के पास स्थित बसंतगढ़ में रहने वाले कन्या जीतो के साथ हुआ था। इन दोनों को शादी के बाद जोरावर सिंह, फतेह सिंह और जुझार सिंह नाम की तीन संतान पैदा हुई थी।

इसके बाद माता सुंदरी से उनकी दूसरी शादी हुई थी और शादी के बाद इनसे उन्हें अजित सिंह नाम के पुत्र की प्राप्ति हुई थी। फिर गुरु गोविंद जी ने माता साहिब से तीसरी शादी की थी, लेकिन इस शादी से उन्हें कोई भी संतान प्राप्त नहीं हुआ था।

खालसा पंथ की स्थापना – Khalsa Panth Ki Sthapna

अत्याचार और अन्याय के खिलाफ अपनी आवाज उठाने एवं मानवता की गरिमा की रक्षा के लिए समर्पित महान योद्धाओं की मजबूत सेना बनाने को ध्यान में रखते हुए बैसाखी के दिन साल 1699 में खालसा पंथ की स्थापना की गई।

आपको बता दें कि खालसा एक सिख धर्म के विधिवत दीक्षा प्राप्त अनुयायियों का एक सामूहिक रुप है। गुरु गोबिंद जी ने बैसाखी के दिन अपने सभी अनुयायियों को आनंदपुर में इकट्ठा किया और पानी और पातशा (पंजाबी मिठास) का मिश्रण बनाया और इस मीठे पानी को “अमृत” कहा।

इसके बाद उन्होंने अपने स्वयंसेवकों से कहा जो कि स्वयंसेवक अपने गुरु के लिए अपने सर का बलिदान देने के लिए तैयार है, वह खालसा से जुड़े। इस तरह 5 स्वयंसेवक अपनी अपनी इच्छा से खालसा से जुड़ गए।

जिसके बाद उन्होंने इन पांचों स्वयंसेवकों को अमृत दिया एवं खुद भी अमृत लिया एवं अपना नाम गुरु गोबिंद राया से गुरु गोबिंद सिंह रख दिया।

बपतिस्मा प्राप्त सिख बनने के बाद गुरु गोबिंद सिंह ने खालसा पंथ के मूल सिद्धांतों की स्थापना भी की जिन्हें गुरुगोबिंद जी के ‘5 ककार’ या ‘5 कक्के’ भी कहा जाता है। बपतिस्मा वाले खालसा सिखों पांच प्रतीक इस प्रकार है –

  1. कंघा: एक लकड़ी की कंघी, जो कि साफ-सफाई एवं स्वच्छता का प्रतीक मानी जाती है।
  2. कारा: हाथ में एक धातु का कंगन पहनना।
  3. कचेरा: कपास का कच्छा अर्थात घुटने तक आने वाले अंतर्वस्त्र
  4. केश: जिसे सभी गुरु और ऋषि मुनि धारण करते आए हैं अर्थात बपतिस्मा वाले सच्चे सिखों को कभी अपने सिर के बाल नहीं काटने चाहिए।
  5. कृपाण: एक कटी हुई घुमावदार तलवार।

वहीं गुरुगविंद सिंह जी की खालसा वाणी है – Guru Gobind Singh Ki Bani

“वाहेगुरु जी दा खालसा वाहेगुरु जी दी फतेह”

गुरु गोबिंद सिंह जी के प्रमुख काम – Guru Gobind Singh Work

गुरु गोबिंद सिंह के द्धारा किए गए प्रमुख कामों की सूची इस प्रकार है-

गुरु गोबिंद सिंह द्धारा लड़े हुए कुछ प्रमुख युद्ध – Guru Gobind Singh Battles

सिखों के 10वें गुरु गोबिंद सिंह जी ने अ्पने सिख अनुयायियों के साथ मुगलों के खिलाफ कई बड़ी लड़ाईयां लड़ीं।

इतिहासकारों की माने तो गोबिंद सिंह जी ने अपने जीवन में 14 युद्ध किए, इस दौरान उन्हें अपने परिवार के सदस्यों के साथ कुछ बहादुर सिख सैनिकों को भी खोना पड़ा।

लेकिन गुरु गोविंद जी ने बिना रुके बहादुरी के साथ अपनी लड़ाई जारी रखी। गुरु गोबिंद सिंह द्धारा लड़ी गई लड़ाईयां इस प्रकार है –

गुरु गोबिंद सिंह जी की प्रमुख रचनाएं – Guru Gobind Singh Books

गुरु गोविंद जी की कुछ रचनाओं के नाम निम्नलिखित हैं –

गुरु गोबिंद सिंह जी की मृत्यु कब हुई थी? – Guru Gobind Singh Death

मुगल बादशाह औरंगजेब की मृत्यु के बाद उसके बेटे बहादुर शाह को उत्तराधिकरी बनाया गया था। बहादुर शाह को बादशाह बनाने में गुरु गोबिंद जी ने मद्द की थी।

इसकी वजह से बहादुर शाह और गुरु गोबिंद जी के बीच काफी अच्छे संबंध बन गए थे।

वहीं सरहद के नवाब वजीद खां को गुरु गोविंद सिंह और बहादुर शाह की दोस्ती बिल्कुल पसंद नहीं थी, इसलिए उसने अपने दो पठानो से गुरु गोबिंद जी की हत्या की साजिश रखी और फिर 7 अक्तूबर 1708 में महाराष्ट्र के नांदेड़ साहिब में गुरु गोबिंद सिंह जी ने अपनी आखिरी सांस ली।

गुरु गोबिंद ने न सिर्फ अपने जीवन में लोगों को गरीबों की मद्द करना, जीवों पर दया करना, प्रेम-भाईचारे से रहने का उपदेश दिया बल्कि समाज और गरीब वर्ग के उत्थान के लिए कई काम किए एवं अत्याचार के खिलाफ लड़ाई की।

आज भी उनके अनुयायी उनके उपदेशों का अनुसरण करते हैं, और उनके ह्दय में अपने गुरु जी के प्रति अपार प्रेम और सम्मान है।

गुरु गोबिंद सिंह जी की जयंती – Guru Gobind Singh Jayanti

सिखों के 10वें गुरु यानी गुरु गोबिंद सिंह जी की जयंती सिखों के प्रमुख त्योहार है, इसे सिख समुदाय के लोग बहुत धूम-धाम से मनाते हैं। गुरु गोबिंद सिंह जी के जन्म को लेकर अलग-अलग मतभेद हैं, कुछ विद्धान 5 जनवरी, 1666 में गुरु गोबिंद जी का जन्म मनाते हैं तो वहीं ग्रेग्रोरियन कलेंडर के मुताबिक गुरु गोबिंद जी का जन्म 2 जनवरी, 1667 में हुआ था, जबकि हिन्दू कैलेंडर में इनका जन्म पौष, शुक्लपक्ष सप्तमी 1723 विक्रम संवत को माना जाता है।

इसलिए इनकी जयंती को तिथि के मुताबिक हर साल मनाया जाता है। इस दिन गुरुद्धारों में खास तरीके से सजावट की जाती है, साथ ही लंगर का आयोजन किया जाता है। इस दिन गुरुद्धारों में अलग ही रौनक देखने को मिलती है। इसके साथ ही इस खालसा पंथ की सुंदर-सुंदर झांकियां निकाली जाती हैं।

गुरु गोबिंद सिंह जी की जयंती के मौके पर गुरुवाणी का पाठ एवं शबद कीर्तन भी किया जाता है। इस दिन सिख समुदायों के लोगों को गुरु गोबिंद जी के बताए गए मार्ग पर चलने की सीख दी जाती है, साथ ही उनकी वीरता की गाथा भी सुनाई जाती है।

गुरु गोबिन्द सिंह की कुछ रोचक बाते – Guru Gobind Singh Facts

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