Hadi Rani History
एक सच्ची देशभक्ति और राष्ट्रप्रेम के लिए बलिदान की ढेरों कहानियां का उल्लेख इतिहास में देखने को मिलता है लेकिन राजस्थान की वीरांगना की अद्भुत कहानी है। हम बात कर रहे हैं मेवाड़ की हाड़ी रानी – Hadi Rani की जिन्होनें मातृभूमि के लिए और अपने राजा की जीत के लिए इतना बड़ा त्याग किया है कि शायद ही किसी ने किया हो।
हाड़ी रानी एक ऐसी वीरागंना थी जिन्होनें अपने अपने सतीत्व की रक्षा के लिए अपना मेवाड़ की रानी ने अपने पति को उसका फर्ज याद दिलाने के लिए अपने सिर ही काटकर पेश कर दिया। रानी ने खुद की कुर्बानी देकर बलिदान की मिसाल पेश की और इतिहास के पन्नो पर ऐसा करने वाली सर्वश्रेष्ठ वीरांगना कहलाईं। इसके पीछे एक अमर प्रेम कथा छिपी हुई है आइए जानते हैं – हाड़ी रानी की वीरगाथा।
जानिए क्या है हाड़ी रानी की वीरगाथा – Hadi Rani History
हाड़ी रानी का संक्षिप्त परिचय- Hadi Rani Information
Hadi Rani – हाड़ी रानी बूंदी के हाड़ा शासक की बेटी थी। जिनकी शादी उदयपुर ( मेवाड़ ) के सलुंबर ठिकाने के सरदार रावत रतन सिंह चूड़ावत से हुई और फिर बाद में उन्हें हाड़ी रानी के नाम से जाना गया।
हाड़ी रानी की सरदार चूड़ावत से शादी – Hadi Rani Story
राजस्थान की वीरांगना हाड़ी रानी – Hadi Rani का विवाह को महज एक हफ्ता ही बीता था। यहां तक कि रानी के हाथों की मेंहदी तक नहीं छूटी थी कि उनके पति को युद्ध जाने का फरमान आ गया।
फरमान में औरंगजेब की सेना को रोकने का आदेश था। जिसके बाद सरदार चूड़ावत ने अपने सैनिकों को यूद्ध की तैयारी और कूच करने का आदेश दे दिया था। लेकिन सरदार हाड़ी रानी से दूर नहीं जाना चाहता था।
एक राजपूत युद्धभूमि में अपने शीश का मोह त्यागकर उतरता है और जरूरत पड़ने पर सिर काटने से भी पीछे नहीं हटता। यही वजह थी कि हाड़ी सरदार को उनका पत्नी प्रेम यूद्ध भूमि में जाने से मन ही मन रोक रहा था।
लेकिन दूसरी तरफ औरंगजेब की सेना आगे बढ़ रही थी। जिसके बाद हाड़ी सरदार अपना भारी मन लेकर हाड़ी रानी – Hadi Rani से विदा लेने पहुंचे। यह संदेश सुनकर हाड़ी रानी को भी सदमा लगा लेकिन हिम्मती हाड़ी रानी ने अपने पति रतन सिंह को युद्ध पर जाने के लिए प्रेरित किया।
लेकीन हाड़ी सरदार को अपनी रानी की चिंता मन ही मन खाय जा रही थी। राजा का मन में संदेह था कि अगर उन्हें युद्धभूमि में कुछ हो गया तो उनकी रानी का क्या होगा लेकिन एक राजपूतानी स्त्री होने के नाते हाड़ी रानी ने अपने पति सरदार चूड़ावत को बेफिक्र होकर युद्ध के लिए कूच करने को कहा और ये भी कहा कि वे उनके बारे में चिंता नहीं करें और राजा की विजय की कामना करते हुए उन्हें विदाई किया।
सरदार रतन सिंह चूड़ावत एक राजा होने के नाते अपने फर्ज को निभाने के लिए युद्धभूमि के लिए निकल तो पड़े लेकिन पत्नी प्रेम राजा को विजय से दूर ले जा रहा था। सरदार इस बात से व्याकुल था कि वे अपनी रानी को कोई सुख नहीं दे सके इसलिए कहीं उनकी रानी उन्हें भूला नहीं दे।
इसलिए राजा ने रानी के पास संदेशवाहक से एक पत्र भी भेजा और इस पत्र में लिखा था कि प्रिय, मुझे भूलना नहीं, मै युद्धभूमि से जरूर लौटकर आऊंगा। और इसके साथ ही इस पत्र में राजा ने अपनी पत्नी से उसकी अनमोल चीज मांगने का भी प्रस्ताव रखा और कहा कि वे राजा को कोई ऐसी चीज भेंट दें जिसे देखकर राजा का मन हल्का हो जाए।
हाड़ी रानी ने मातृभूमि के लिए दी खुद की कुर्बानी –
हाड़ी रानी राजा का यह पत्र देखकर चिंता में पड़ गईं और यह सोचने लगी कि अगर उनके पति इस तरह पत्नी मोह से घिरे रहेंगे तो शत्रुओं से कैसे लड़ेगे। फिर क्या था मातृभूमि के लिए हाड़ी रानी ने खुद की कुर्बानी देने का फैसला लिया।
एक सच्ची वीरांगना और राष्ट्र प्रेम की भावना के चलते हाड़ी रानी ने पति का मोह भंग करने के लिए और राजा को जीत दिलाने के लिए अपनी अंतिम निशानी के रूप में राजा के पास खुद का सिर काटकर संदेशवाहक से भेज दिया।
जब संदेशवाहक ने राजा चूड़ावत के सामने हाड़ी रानी के अंतिम निशानी के रूप में रानी का कटा हुआ सिर पेश किया तब राजा अपनी फटी आंखों से अपनी पत्नी का सिर देखता रह गया और इस तरह राजा का मोह भंग हो गया था क्योंकि राजा की सबसे प्रिय चीज से उनसे छीन ली गई थी।
फिर क्या था हाड़ा सरदार विजय प्राप्त करने के लक्ष्य के साथ शत्रुओं पर टूट पड़ा और औरंगजेब की सेना को आगे नहीं बढ़ने दिया। लेकिन इस जीत का श्रेय शौर्य को नहीं बल्कि वीरागंना हाड़ी रानी के उस बलिदान को भी जाता है।
राजस्थान के मेवाड़ की हाड़ी रानी की वीरगाथा वाकई लोगों को प्रेरणा देने वाली है और त्याग और बलिदान की भावना को जगाने वाली है। हाड़ी रानी ने अपने पति को जीतने के लिए न सिर्फ प्रेरित किया बल्कि एक ऐसा बलिदान दिया जिसे शायद ही कोई बहादुर से बहादुर व्यक्ति भी करने की जहमत उठाए।
जी हां मेवाड़ की वीरांगना ने एक ऐसा बलिदान दिया जिसे करना तो दूर सोचना भी शायद मुमकिन नहीं है।
इस तरह हाड़ी रानी ने त्याग और बलिदान देकर अपनी सतीत्व की रक्षा की। इसके साथ ही वीरांगना हाड़ी रानी ने इतिहास के पन्नों पर अपनी अमिट छाप छोड़ी है। उनके मातृभूमि के त्याग और बलिदान को हमेशा याद किया जाएगा।
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