Kumbh Mela
भारत में अलग – अलग धर्म होने के कारण संस्कृतिक विविधता भी देखने को मिलती है। जिस कारण भारत में पूरा साल किसी त्योहार की तरह बीतता है क्योंकि लगभग हर महीने कोई ना कोई त्योहार आ ही जाता है जो लोगों को खुश होने और मेल मिलाप करने का मौका दे देता है। हालांकि इन त्योंहारों की आस्था की दृष्टि से भी काफी एहमियत होती है।
वैसे तो लगभग सभी त्योहार हर साल आते है लेकिन कुछ त्योहार या आस्था की दृष्टि से खास दिन सिर्फ कुछ सालों मे सिर्फ एक बार ही आते है। जिनमें से एक कुंभ का मेला – Kumbh Mela भी है हिंदुओं संस्कृति में कुंभ का मेला खास महत्व रखता है। लेकिन दिलचस्प बात ये है कि कुंभ का मेला 12 साल में सिर्फ एक बार ही लगता है।
यानी कि कुम्भ के मेले – Kumbh Mela के लिए लोगों को 12 साल इंतजार करना पड़ता है। पर क्या आप जानते है ऐसा क्यों है, क्यों कुम्भ का मेला 12 साल में एक बार लगता है।
क्या आप जानते है क्यों कुम्भ का मेला 12 साल में एक बार लगता है – Kumbh Mela
कुम्भ मेले का इतिहास – Kumbh Mela History
महाकुंभ का मेला इतिहास की दृष्टि से 850 साल पुराना माना जाता है। हालांकि इसकी शुरुआत को लेकर कुछ अलग – अलग तथ्य है माना जाता है कि आदि शंकराचार्य ने कुंभ के मेले की शुरुआत की। दस्तावेजों के अनुसार कुंभ का मेला 525 बीसी में शुरु हुआ था।
कुंभ से जुड़े तथ्य सम्राट शिलादित्य हर्षवर्धन के शासनकाल 617-647 ई. से प्रापत होते है। लेकिन वहीं कुछ कथाओं में कुंभ का जिक्र समुद्र मंथन के समय से ही मिलता है। और माना जाता है क्योंकि समुद्र मंथन का कलश चार स्थानों पर गिरा था हरिद्वार, इलाहाबाद, उज्जैन और नासिक। इसीलिए इन्ही चार जगहों पर कुंभ का मेला हर तीन साल में लगता है। और 12 साल बाद यह मेला अपने पहले स्थान पर पहुंचता है इसलिए उसे महाकुंभ कहते है।
शास्त्रों के अनुसार समुद्र मंथन में दैत्य देवताओं से अमृत लेकर भाग गए थे जिसके बाद भगवान विष्णु ने देवताओं की सहायता के लिए मोहिनी अवतार धारणा किया था। और अमृत देवताओं को दिया था। इस दौरान कलश जहां जहां गिरा वहां कुंभ मेले का आयोजन की प्रथा शुरु हुई।
माना जाता है कि कल गणना के अनुसार देवताओं का एक दिन पृथ्वी के एक साल के बराबर होता है जिस वजह से हर बारह साल में कुंभ पुन: अपने स्थान पर लौट आता है और यही कारण है कि हर 12 साल में हरिद्वार, इलाहाबाद, उज्जैन और नासिक इन चार जगहों पर महाकुँभ का भव्य आयोजन होता है।
साथ ही ये भी माना जाता है कि पृथ्वी के 144 साल पूरे होने पर देवताओं का एक साल पूरा होता है और तभी देवता भी स्वर्ग में महाकुंभ का आयोजन होता है। महाकुंभ के लिए निर्धारित जगह प्रयाग को मानी जाती है। जिस वजह से प्रयाग कुंभ का सबसे अधिक महत्व है।
हालाकिं कुंभ का मेला किस स्थान पर लगेगा ये राशियों के अनुसार तय किया जाता है। हिंदु शास्त्रों के अनुसार इलाहाबाद प्रयाग में महाकुंभ – Allahabad Kumbh Mela माघ अमावस्या के दिन जब सूर्य और चंद्रमा मकर राशि में होते है और गुरु मेष राशि में तब ही कुंभ का संयोग बनता है। जो आखिरी बार साल 2013 में 20 फरवरी को बना था। अब ये योग साल 2025 में बनेगा।
इसी तरह हरिद्वार में महाकुंभ – Haridwar Kumbh Mela समय लगता है जब गुरु कुंभ राशि में होता है और सूर्य मेश राशि में प्रवेश करता है। हरिद्वार में अगला महाकुंभ 2021 में लगेगा।
इसके अलावा नासिक में महाकुंभ – Nashik Kumbh Mela तब लगता है जब सूर्य और गुरु दोनों सिंह राशि में होते है।
उज्जैन में कुँभ मेले – Ujjain Kumbh Mela के आयोजन के लिए गुरु को कुंभ राशि में प्रवेश करना पड़ता है।
कुंभ मेले के दौरान भारतीय संस्कृति का अलग ही रुप देखने को मिलता है साथ ही कुंभ मेले के कारण इन जगहों पर पर्यटकों की संख्या भी करोड़ों में होती है जिसके कारण राज्य सरकारों को भी फायदा मिलता है।
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