Mahmud Of Ghazni
महमूद गज़नवी – Mahmud Of Ghazni History in Hindi
पूरा नाम (Name) | महमूद गज़नवी |
जन्म (Birthday) | 2 Oct 971 |
जन्मस्थान (Birthplace) | ग़ज़नी, अफगानिस्तान |
पिता (Father Name) | सुलतान सुबुक तिगिन |
महमूद गज़नवी ये मध्य आशिया का गझनी इस छोटे राज्य का तुर्की सुलतान था। इ.स. के पहले हजार की आखीर के तीस साल और दुसरे हजार के पहले तीस साल (970 से 1030) ये उनके जीवनकाल था। इस्लाम धर्म स्वीकार किये हुये और इराणी (पार्शियन) संस्कृति के प्रभाव के निचे आने-वाले तूर्क के लोगो ने मध्य आशियाई राजनीती में उस समय में वर्चस्व हासील किया था। महमूद उसमे से एक था। ये सैनिक इ.स. 998 में सुलतान हुआ।
समृद्ध भारत की तरफ जल्दी ही उसने अपना फ़ौज घुमायी। 1001 से 1027 इस युग में उसके आक्रमण के सतरा लहरे भारत पर आकर गिरी। पहले पेशा पर और पंजाब परिसर के हिंदू शाही राज्यकर्ताओ के खिलाफ उसने अभियान तैयार की। जयपाल और अगंनपाल इस हिंदुशाही राज्यकर्ताओं ने तुर्की आक्रमण का प्रतिकार किया।
लेकीन महमूद के आगे वो और उनसे हात मिलाने वाले मुलतानी मुस्लिम सत्ताधिश नहीं टिक पाये। हात में आये हुये और हारे हुये जयपाल को मुक्त करने का बड़ा दिल महमूद ने दिखाया। लेकीन जयपाल ने अपमान से ज्यादा आग में जाके मौत का स्वीकार किया। पंजाब – मुलतान प्रदेश महमूद गज़नवी / Mahmud of Ghazni के कब्जे में गया।
उसके बाद उत्तर भारत के बहोत से जगह आक्रमण करके उसने बहोत लूट हासिल की। थानेश्वर कन्नौज, मथुरा यहाँ डाका डालकर उसने शहर और मंदिरों को लुटा। इन सारे आक्रमणों में महमूद के सैनिको पहाड़, सिंधु से गंगा तक नदिया, जंगल, पार करके जाना पड़ा। इंन्सानो की तरह प्रकृति का भी सामना करना पड़ा। लेकीन पराक्रम और इच्छा शक्ती के बल पर इन सब पर उसने मात की। आखीर में महमूद ने गुजरात के सोमनाथ पर राजस्थान के रास्ते से स्वारी की।
प्रभासपट्टण का सोमनाथ मंदीर ये बारा ज्योतिर्लिंगों में से एक है। अमिर सोमनाथ के भक्तो की संख्या लाखो में पुजारियों की संख्या हजारों में थी। समुंदर के तट के इस वैभवशाली मंदीर को महमूद ने जी भरकर लूटा। पुरोदितों की प्रार्थना से ये लूट नही रुक पायी।
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महमूदी आक्रमण की लहर, संपत्ती की लूट, मंदीर और मूर्तियों का विनाश ये देखकर भारत में महमूद गज़नवी के तरफ एक ‘खलनायक’ के रूप में देखा गया। मध्य आशियाई प्रदेश में वो हमेशा लढाई में व्यस्त रहता था। उस वजह से निर्बल पर धनी भारत के संपत्ती की उसको जरुरत महसूस हुयी।
भारत में अपने खिलाफ राजकीय संघ निर्माण ना हो पाये इसकी पर्वा भी वो करता था। उसके लूटपाट के पिछें ये आर्थिक – राज्य गणित था। प्रार्थना मंदिरों की लूट ये उस समय के राजनीती का एक हिस्सा था। भारत के संदर्भ में महमूद ये आक्रामक भंजन के रूप में पहचाना जाता है। लेकीन गझनी के संदर्भ में उसकी छवि बिल्कुल अलग है। गझनी के राज्यो में उसने इराणी (पार्शियन) प्रबोधन को उत्तेजन दिया। गझनी ने यहाँ सुंदर इमारत बंधवाया। वैसेही विश्वविद्यालय, ग्रंथालय, और संग्रहालय खड़े किये।
ज्यादा समय तक चलने वाली प्रशासन व्यवस्था खडी करने में महमूद नाकामयाब रहा। उस वजह से उसके मौत के बाद उसके साम्राज्य का खतम हुवा। महमूद के आक्रमण के व्दारा भारत के नॉर्थवेस्ट सरहद की पहाड़ी यों की प्राकृतिक दीवार तुर्कियों ने पार की। उस वजह से और आक्रमणों के लिये रास्ते खुल गये। आगे इस रास्ते से मुस्लिम आक्रमक ही नही, तो एक नया पर्व ही भारत में आया।