राम प्रसाद बिस्मिल भारत के एक महान स्वतंत्रता सेनानी और क्रांतिकारी ही नहीं बल्कि एक महान कवि, लेखक, साहित्यकार, शायर और अनुवादक भी थे। जिन्होंने देश की आजादी के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया और अपनी जान न्योछावर कर दी थी।
राम प्रसाद बिस्मिल द्धारा ही लिखा गया ”सरफरोशी की तम्मना” यह गीत आज भी युवाओं के अंदर देशप्रेम की भावना पैदा करता है। राम प्रसाद बिस्मिल एक ऐसे क्रांतिकारी थे, जिन्होंने काकोरी कांड को अंजाम देकर ब्रिटिश हुकूमत को हिला कर रख दिया था और देश की रक्षा के लिए हंसते-हंसते अपने प्राणों की आहुति दे दी थी।
आइए जानते हैं भारत के इस महान स्वतंत्रता सेनानी रामप्रसाद बिस्मिल के जीवन से जुड़ी कुछ खास बातें-
“सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है। देखना है जोर कितना बाजु-कातिल में है?”
राम प्रसाद बिस्मिल का जीवन परिचय – Ram Prasad Bismil in Hindi
एक नजर में –
पूरा नाम (Name) | राम प्रसाद ‘बिस्मिल |
जन्मतिथि (Birthday) | 11 जून 1897, शाहजहांपुर, उत्तरप्रदेश |
पिता (Father Name) | मुरलीधर |
माता (Mother Name) | मूलमती |
वैवाहिक स्थिति (Wife Name) | अविवाहित |
शैक्षणिक योग्यता (Education) | आठवीं पास |
मृत्यु (Death) | 19 दिसंबर, 1927, गोरखपुर जेल |
जन्म,परिवार, शिक्षा एवं प्रारंभिक जीवन –
भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी रामप्रसाद बिस्मिल जी उत्तरप्रदेश के शाहजहांपुर एक हिन्दू ब्राह्मण परिवार में जन्मे थे। उनके पिता मुरलीधर कोर्ट में सरकारी स्टाम्प पेपर बेचने का काम कर अपने परिवार का गुजारा करते थे, जबकि उनकी मां मूलमति एक घरेलू महिला थीं। राम प्रसाद बिस्मिल की पढ़ाई को लेकर शुरुआत से ही उनके पिता काफी गंभीरता से लेते थे।
6 साल की उम्र में उन्होंने बिस्मिल का दाखिला शाहजहांपुर के राजकीय स्कूल में करवा दिया था। हालांकि बिस्मिल जी का मन बचपन में पढ़ाई-लिखाई से ज्यादा खेलने-कूदने में अधिक लगता था, जिसकी वजह से इन्होंने कई बार अपने पिता जी मार भी खाई है।
बिस्मिल ने एक मौलवी से उर्दू की शिक्षा ग्रहण की थी। वहीं कुछ परिवारिक कारणों की वजह से उन्होंने आठवीं तक ही अपनी पढ़ाई की थी। वहीं इसके बाद रामप्रसाद बिस्मिल को उपन्यास पढ़ने का शौक लग गया और उपन्यास खरीदने के लिए उन्होंने अपने पिता की संदूक से पैसे चोरी तक करने शुरु कर दिए थे।
इसके अलावा उन्हें किशोरावस्था में सिगरेट, शराब पीने समेत नशाखोरी की तमाम बुरी आदतें लग गई थी। वहीं राम प्रसाद बिस्मिल अपनी इन्हीं गलत हरकतों की वजह से उर्दू भाषा की मिडिल परीक्षा में लगातर दो बार फेल हो गए थे। इस दौरान इनके घर के पास रहने आए एक विद्धान पंडित के चरित्र का बिस्मिल पर काफी प्रभाव पड़ा और फिर उन्होंने आत्मसुधार के प्रयास किए जिसके बाद उनका मन भगवान की साधना में लगने लगा।
आर्यसमाज के समर्थक के रुप में रामप्रसाद बिस्मिल:
पड़ोसी पंडित का रामप्रसाद बिस्मिल पर इतना अधिक प्रभाव पड़ा कि उन्होंने पूरी तरह आत्मसात कर लिया था। वहीं एक दिन वे मुंशी इंद्रजीत से मिले, जिन्होंने उन्हें आर्य समाज के कुछ उपदेश दिए और आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद की किताब सत्यार्थ प्रकाश पढ़ने की सलाह दी।
वहीं इस किताब को पढ़ने के बाद बिस्मिल ब्रहा्चर्य के नियमों का पालन करने लगे और आर्य समाज द्धारा आयोजित सम्मेलनों आदि में हिस्सा लेने लगे साथ ही आर्य समाज के सिद्धांतो का कठोरता से अनुसरण करने लगे। हालांकि, बिस्मिल के पिता ने उनके आर्य समाज की तरफ बढ़ रहे झुकाव का काफी विरोध किया था।
आचार्य सोमदेव के व्यक्तित्व का बिस्मिल पर प्रभाव एवं क्रांतिकारी बनने की प्रेरणा:
स्वामी सोमदेव एक बार आर्य समाज के प्रचार-प्रसार के लिए बिस्मिल के गांव शहाजहांपुर पहुंचे थे, तभी बिस्मिल की मुलाकात सोमदेव जी से हुई। सोमदेव जी के महान व्यक्तित्व और विचारों का बिस्मिल पर इतना गहरा असर हुआ कि उन्होंने सोमदेव जी को अपना गुरु बना लिया और उनके बताए गए मार्ग पर चलने लगे।
वहीं सोमदेव जी ने ही बिस्मिल को राजनैतिक व धार्मिक शिक्षा दी थी, और उनके अंदर देशप्रेम की भावना विकसित की थी। जिसके चलते राम प्रसाद बिस्मिल ने साल 1916 में उत्तरप्रदेश की राजधानी लखनऊ में हुए कांगेस अधिवेशन में हिस्सा लिया और फिर वे लाहौर षणयंत्र से जुड़ी हर खबर को पढ़ने लगे।
इस दौरान लाहौर षणयंत्र के मुख्य अभियुक्त परमानंद जी को दी गई फांसी की सजा से वे काफी आहत हुए और उनके मन में अंग्रेजों के खिलाफ गुस्सा बढ़ गया और उन्होंने अंग्रेजों को भारत से बाहर खदेड़ने का प्रण लिया और इस घटना के बाद ही उन्होंने एक महान क्रांतिकारी की तरह खुद को पूरी तरह देश की सेवा में समर्पित कर दिया
मैनपुरी षणयंत्र में बिस्मिल की भूमिका:
ब्रिटिश अधिकारियों के मन में खौफ पैदा करने के लिए राम प्रसाद बिस्मिल ने अपने कुछ साथियों के साथ मिलकर शिवाजी समिति का गठन किया और इस समिति के माध्यम से उन्होंने मैनपुरी, आगरा, इटावा और शहाजहांपुर के युवाओं को संगठित कर ब्रिटिश शासन में छापेमारी और डकैती आदि करवानी शुरु कर दी।
वहीं एक बार जब बिस्मिल अपने सहयोगियों के साथ दिल्ली और आगरा के बीच एक लूट की वारदात को अंजाम देने की प्लानिंग कर रहे थे, तभी ब्रिटिश पुलिस ने उनके संगठन के गेंदालाल को गिरफ्तार कर लिया, हालांकि वे बाद में पुलिस को चकमा देकर भाग गए थे।
लेकिन ब्रिटिश पुलिस इस दौरान बिस्मिल को पकड़ने में नाकामयाब रही थी,लेकिन बाद में जज ने रामप्रसाद बिस्मिल और गेंदालाल को फरार घोषित कर उनके खिलाफ मैनपुरी षणयंत्र के लिए सजा सुनाई थी। इस घटना के बाद बिस्मिल कुछ दिनों तक अंडर ग्राउंड रहे थे और इस दौरान उन्होंने कई किताबें भी लिखी थी।
इसके बाद जब ब्रिटिश सरकार ने मैनपुरी षणयंत्र के आरोपियों की सजा को माफ कर दिया, तब बिस्मिल शाहजहाँपुर में “भारत सिल्क मैनुफैक्चरिंग कंपनी” में एक मैनेजर के तौर पर काम किया और फिर सदर बाजार में कुछ समय तक रेशमी साड़ियों का व्यापार भी किया।
हालांकि, वे इन सबसे संतुष्ट नहीं हुए और क्योंकि उनके मन में अंग्रेजों को भारत से निकालने की ज्वाला अभी भी भड़क रही थी। जिसके चलते उन्होंने गांधी जी के असहयोग आंदोलन में हिस्सा लिया।
असहयोग आंदोलन में राम प्रसाद बिस्मिल की भूमिका:
देश के महान क्रांतिकारी रामप्रसाद बिस्मिल पर गांधी जी द्धारा अंग्रेजों के खिलाफ चलाए गए असहयोग आंदोलन का काफी प्रभाव पड़ा था। इससे प्रेरित होकर वे साल 1921 में अहमदाबाद के कांग्रेस अधिवेशन में गए और यहां उन्होंने कांग्रेस के सदस्य मौलाना हसरत मौहाना के पूर्ण स्वराज के प्रस्ताव का समर्थन किया।
इस अधिवेशन से लौटने के बाद उन्होंने भारतीय युवाओं को अपने जोशीले भाषणों, कविताओं और लेखों के माध्यम से असहयोग आंदोलन में हिस्सा लेने के लिए प्रेरित किया। इस दौरान ब्रिटिश अधिकारियों ने इनके द्धारा लिखित कुछ लेखों को प्रकाशित करने पर प्रतिबंध भी लगा दिया था।
साल 1922 में जब चौरीचौरा कांड के बाद महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन वापस ले लिया, तब उन्होंने गांधी जी का विरोध किया था, वहीं इसी के बाद कांग्रेस दो गुटों में बंट गई थी।
क्रांतिकारी पार्टी/ हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन की स्थापना –
रामप्रसाद बिस्मिल ने संयुक्त प्रांत के युवाओं को इकट्ठा कर क्रांतिकारी दल का निर्माण किया था। उन्होंने जय गोपाल मुखर्जी, शचीन्द्र नाथ सान्याल, योगेश चन्द्र चटर्जी के साथ मिलकर क्रांतिकारी पार्टी की स्थापना की और फिर सबकी सहमित से पार्टी का नाम बदलकर हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन कर दिया गया।
काकोरी कांड में भूमिका –
हिन्दुस्तान रिपब्लिकन पार्टी के लिए फंड इकट्ठा करने के लिए रामप्रसाद बिस्मिल ने ब्रिटिश सरकार का खजाना लूटने की योजना बनाईं।
उनके नेतृत्व में चन्द्र्शेखर आजाद, राजेन्द्र लाहिड़ी, मुरारी शर्मा, मुकुन्दरी लाल, शचीन्द्र नाथ बख्शी अशफाक उल्ला खां, बनवारी लाल, मन्मथनाथ गुप्त, केशव चक्रवर्ती ने मिलकर 9 अगस्त, 1925 को लखनऊ के पास काकोरी स्टेशन के पर ट्रेन रोककर सराकारी खजाना लूट लिया। वहीं काकोरी कांड के बाद बिस्मिल को उनके साथियों समेत करीब 40 और लोगों को गिरप्तार कर लिया गया।
फांसी –
काकोरी कांड के दोषी पाए जाने के बाद अंग्रेजों ने 19 दिसंबर साल 1927 में रामप्रसाद बिस्मिल को अशफाक उल्ला खां और राजेन्द्र लाहिड़ी के साथ गोरखपुर जिले में फांसी के फंदे पर लटका दिया। फांसी पर झूलने से पहले महान क्रांतिकारी बिस्मिल ने ‘सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है’ कविता गायी थी और हंसते हुए देश के लिए शहीद हो गए थे।
साहित्यकार के रुप में –
एक महान देशभक्त और क्रांतिकारी होने के साथ-साथ रामप्रसाद बिस्मिल साहित्यकार और प्रसिद्ध कवि भी थे। उन्होंने अपने जीवन में देशप्रेम पर कई कविताओं की रचना की थी। उनके द्धारा रचित प्रसिद्ध रचनाओं में “सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है ज़ोर कितना बाजुए-क़ातिल में है”, ”मन की लहर”, क्रांति गीतांजली, बोल्वेशिक की करतूत आदि हैं।
प्रसिद्ध रचनाएँ –
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है।
देखना है ज़ोर कितना बाज़ु-ए-कातिल में है।
करता नहीं क्यूँ दूसरा कुछ बातचीत।
देखता हूँ मैं जिसे वो चुप तेरी महफ़िल में है।
ए शहीद-ए-मुल्क-ओ-मिल्लत मैं तेरे ऊपर निसार।
अब तेरी हिम्मत का चरचा गैर की महफ़िल में है।
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है।
वक्त आने दे बता देंगे तुझे ऐ आसमान।
हम अभी से क्या बतायें क्या हमारे दिल में है।
खैंच कर लायी है सब को कत्ल होने की उम्मीद।
आशिकों का आज जमघट कूच-ए-कातिल में है।
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है।
है लिये हथियार दुशमन ताक में बैठा उधर।
और हम तैय्यार हैं सीना लिये अपना इधर।
खून से खेलेंगे होली गर वतन मुश्किल में है।
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है।
हाथ जिन में हो जुनूँ कटते नही तलवार से।
सर जो उठ जाते हैं वो झुकते नहीं ललकार से।
और भड़केगा जो शोला-सा हमारे दिल में है।
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है।
हम तो घर से निकले ही थे बाँधकर सर पे कफ़न।
जान हथेली पर लिये लो बढ चले हैं ये कदम।
जिन्दगी तो अपनी मेहमान मौत की महफ़िल में है।
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है।
यूँ खड़ा मक़तल में क़ातिल कह रहा है बार-बार।
क्या तमन्ना-ए-शहादत भी किसी के दिल में है।
दिल में तूफ़ानों की टोली और नसों में इन्कलाब।
होश दुश्मन के उड़ा देंगे हमें रोको ना आज।
दूर रह पाये जो हमसे दम कहाँ मंज़िल में है।
वो जिस्म भी क्या जिस्म है जिसमें ना हो खून-ए-जुनून।
तूफ़ानों से क्या लड़े जो कश्ती-ए-साहिल में है।
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है।
इसके आलावा और भी बहुत सी रचनाएँ हैं जो आज भी बहुत मशहूर हैं। उन्होंने अपनी अंतिम रचना ”मिट गया जब मिटने वाला फिर सलाम आया तो क्या, दिल की बर्वादी के बाद उनका पयाम आया तो क्या” की थी।
इस तरह रामप्रसाद बिस्मिल अपने पूरे जीवन भर गुलाम देश को अंग्रेजों के चंगुल से आजाद करवाने के लिए लगे रहे और उन्होंने देश के खातिर अपने प्राणों की आहुति दी थी। उनके विचार और उनकी रचनाएं आज भी युवाओं के अंदर देशप्रेम की भावना जागृत करती हैं। उनके लिए आज भी हर भारतीय के ह्रदय में सम्मान है।
प्रेरक विचार –
- मुझे विश्वास है कि मेरी आत्मा मातृभूमि तथा उसकी दीन संतति के लिए नए उत्साह और ओज के साथ काम करने के लिए फिर लौट आयेगी……
- किसी को घृणा तथा उपेक्षा की दृष्टि से न देखा जाये, किन्तु सबके साथ करुणा सहित प्रेमभाव का बर्ताव किया जाए..
- मैं ब्रिटिश साम्राज्य का सम्पूर्ण नाश चाहता हूँ।
भारत सरकार ने उनके सम्मान में उत्तर रेलवे में ”पंडित राम प्रसाद बिस्मिल रेलवे स्टेशन” भी स्थापित किया है। इसके साथ ही उनके जीवन पर विनोद गणात्रा ने एक फिल्म भी बनाई है। राम प्रसाद बिस्मिल जी को ज्ञानी पंडित की टीम की तरफ से भावपूर्ण श्रद्धांजली।।