Savitribai Phule
Savitribai Phule – सावित्रीबाई फुले, भारत की प्रथम महिला शिक्षिका ही नहीं बल्कि वे एक अच्छी कवियित्री, अध्यापिका, समाजसेविका और पहली शिक्षाविद् भी थी। इसके अलावा उन्हें महिलाओं की मुक्तिदाता भी कहा जाता है। इन्होंने अपना पूरा जीवन में महिलाओं को शिक्षित करने में और उनका हक दिलवाने में लगा दिया।
आपको बता दें कि महिलाओं को शिक्षा दिलवाने के लिए उन्हें काफी संघर्षों का भी सामना करना पड़ा, लेकिन वे हार नहीं मानी और बिना धैर्य खोए और पूरे आत्मविश्वास के साथ डटीं रहीं और सफलता हासिल की।
इसके साथ ही आपको यह भी बता दें कि उन्होंने साल 1848 में पुणे में देश के पहले महिला स्कूल की भी स्थापना की। वहीं उन्हें अपने पति ज्योतिराव फुले के सहयो़ग से ही आगे बढ़ने की प्रेरणा मिली क्योंकि ज्योतिबा अक्सर उन्हें आगे बढ़ने के लिए उनका एक अच्छे गुरु और संरक्षक की तरह हौसला अफजाई करते रहे।
हम आपको अपने इस लेख के माध्यम से उनके जीवन और उनसे जुड़ी खास बातों के बारे में बताएंगे-
समाजसुधारक सावित्रीबाई फुले – Savitribai Phule In Hindi
नाम (Name) | सावित्रीबाई फुले |
जन्म (Birth) | 3 जनवरी सन् 1831 |
जन्म स्थान (Birthplace) | नायगांव भारत |
मृत्यु (Death) | 10 मार्च, साल 1897 |
उपलब्धि (Award) | भारत की पहली महिला शिक्षिका, कर्मठ समाजसेवी जिन्होंने समाज के पिछड़े वर्ग खासतौर पर महिलाओं के लिए कई कल्याणकारी काम किए। उन्हें उनकी मराठी कविताओं के लिए भी जाना जाता है। |
सावित्रीबाई फुले की बायोग्राफी – Savitribai Phule Biography
भारत की महान समाजसेवी और प्रथम महिला शिक्षिका सावित्रीबाई फुले का जन्म महाराष्ट्र के सातारा जिले के नायगांव में 3 जनवरी 1831 को एक किसान परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम खण्डोजी नेवसे और माता का नाम लक्ष्मीबाई था।
सावित्री फुले का विवाह – Savitribai Phule Husband
उस समय भारत में बाल विवाह की परम्परा थी, जिसका शिकार वह भी हुईं और उनकी शादी साल 1840 में महज 9 साल की छोटी सी उम्र में 12 साल के ज्योतिराव फुले के साथ करवा दी गई।
सावित्रीबाई फुले की शिक्षा – Savitribai Phule Education
जब सावित्रीबाई की शादी हुई थी, उस समय तक वे पढ़ी-लिखी नहीं थी। शादी के बाद ज्योतिबा ने ही उन्हें पढ़ना-लिखना सिखाया। वहीं उन दिनों लड़कियों को दशा बेहद दयनीय थी यहां तक कि उन्हें शिक्षा ग्रहण करने की अनुमति नहीं थी।
वहीं सावित्रीबाई को शिक्षित करने के दौरान ज्योतिबा को काफी विरोध का सामना करना पड़ा, यहां तक की उन्हें उनके पिता ने रुढ़िवादिता और समाज के डर से घर से बाहर निकाल दिया लेकिन फिर भी ज्योतिबा ने सावित्रीबाई को पढ़ाना नहीं छोड़ा और उनका एडमिशन एक प्रशिक्षण स्कूल में कराया। समाज की तरफ से इसका काफी विरोध होने के बाद भी सावित्रीबाई ने अपनी पढ़ाई पूरी की।
अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद सावित्री बाई ने प्राप्त शिक्षा का इस्तेमाल अन्य महिलाओं को शिक्षित करने के लिए सोचा लेकिन यह किसी चुनौती से कम नहीं था क्योंकि उस समय समाज में लड़कियों की पढ़ाई-लिखाई करवाने की अनुमति नहीं थी।
जिसके लिए उन्होंने तमाम संघर्ष किए और इस रीति को तोड़ने के लिए सावित्रीबाई ने अपने पति ज्योतिबा के साथ मिलकर साल 1848 में लड़कियों के लिए एक स्कूल की स्थापना भी की और यह भारत में लड़कियों के लिए खुलने वाला पहला महिला विद्यालय था। जिसमें कुल नौ लड़कियों ने एडमिशन लिया और सावित्रीबाई फुले इस स्कूल की प्रिंसिपल भी बनी। और इस तरह वे देश की पहली शिक्षिका बन गई।
सावित्रीबाई फुले कहा करती थीं – Savitribai Phule Dialogue in English
Sit idle no more, go, get education
अब बिलकुल भी खाली मत बैठो, जाओ शिक्षा प्राप्त करो!
काफी संघर्षों के बाद भी छेड़ी महिला-शिक्षा की मुहिम – First Indian Woman Teacher
वहीं थोड़े दिनों के बाद ही उनके स्कूल में दबी-पिछड़ी जातियों के बच्चे, खासकर लड़कियों की संख्या बढ़ती गई। वहीं इस दौरान उन्हें काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा, बताया जाता है कि जब वो पढ़ाने जाती थी, तो उनका रोजाना घर से विद्यालय जाने तक का सफर बेहद कष्टदायक होता था।
दरअसल जब वो घर से निकलती थी तो धर्म के कथित ठेकेदारों द्धारा उनके ऊपर सड़े टमाटर, अंडे, कचरा, गोबर और पत्थर तक फेंकते थे यही नहीं उन्हें अभद्र गालियां देते थे यहां तक की उन्हें जान से मारने की धमकियां भी देते थे। लेकिन सावित्रीबाई यह सब चुपचाप सहती रहीं और महिलाओं को शिक्षा दिलवाने और उनके हक दिलवाने के लिए पूरी हिम्मत और आत्मविश्वास के साथ डटीं रहीं।
आपको बता दें कि काफी संघर्षों के बाद 1 जनवरी 1848 से लेकर 15 मार्च 1852 के बीच सावित्रीबाई फुले ने अपने पति ज्योतिबा फुले के साथ बिना किसी आर्थिक मदत से ज्यादा से ज्यादा लड़कियों को शिक्षित करने के मकसद से 18 स्कूल खोले। वहीं इन शिक्षा केन्द्र में से एक 1849 में पूना में ही उस्मान शेख के घर पर मुस्लिम स्त्रियों और बच्चों के लिए खोला था।
इस तरह वे लगातार महिलाओं को उच्च शिक्षा दिलवाने के लिए काम करती रहीं। वहीं शिक्षा के क्षेत्र में सावित्रीबाई फुले और ज्योतिबा फुले के महत्वपूर्ण योगदान को देखते हुए ब्रिटिश सरकार के शिक्षा विभाग ने उन्हें 16 नवम्बर 1852 को उन्हें शॉल भेंटकर सम्मानित भी किया।
सती प्रथा का विरोध किया और विधवा पुर्नविवाह कर स्त्रियों की दशा सुधारी
सावित्रीबाई फुले ने केवल महिला की शिक्षा पर ही ध्यान नहीं दिया बल्कि स्त्रियों की दशा सुधारने के लिए भी उन्होंने कई महत्वपूर्ण काम किए। उन्होंने 1852 में ”महिला मंडल“ का गठन किया और भारतीय महिला आंदोलन की वे पहली अगुआ भी बनीं।
सावित्री बाई नें विधवाओं की स्थिति को सुधारने, और बाल हत्या पर भी काम किया। उन्होंने इसके लिए विधवा पुनर्विवाह की भी शुरुआत की और 1854 में विधवाओं के लिए आश्रम भी बनाया।
इसके अलावा उन्होंने नवजात शिशुओं का आश्रम खोला ताकि कन्या भ्रूण हत्या को रोका जा सके। वहीं आज जिस तरह कन्या भ्रूण हत्या के केस लगातार बढ़ रहे हैं और यह एक बड़ी समस्या के रूप में उभरकर सामने आ रही है। वहीं उस समय सावित्रीबाई ने शिशु हत्या पर अपना ध्यान केन्द्रित कर उसे रोकने की कोशिश की थी। उनके द्धारा उठाया गया यह कदम काफी महत्वपूर्ण और सराहनीय हैं।
वहीं इस दौरान सावित्रीबाई फुले ने अपने पति ज्योतिबा फुले के साथ मिलकर काशीबाई नामक एक गर्भवती विधवा महिला को आत्महत्या करने से भी रोका था और उसे अपने घर पर रखकर उसकी अपने परिवार के सदस्य की तरह देखभाल की और समय पर उसकी डिलीवरी करवाई।
फिर बाद में सावित्रीबाई और ज्योतिबा फुले ने उसके पुत्र यशवंत को गोद लेकर उसको खूब पढ़ाया लिखाया और बड़ा होकर यशवंत एक मशहूर डॉक्टर भी बने।
वहीं इसकी वजह से भी उन्हें काफी विरोध का सामना करना पड़ा था लेकिन सावित्रीबाई रुढिवादिता से खुद को दूर रखती थी और समाज के कल्याण और महलिाओं के उत्थान के काम करने में लगी रहती थी।
दलितों के उत्थान के लिए किए काम –
महिलाओं के हित के बारे में सोचने वाली और समाज में फैली कुरोतियों को दूर करने वाली महान समाज सुधारिका सावित्रीबाई ने दलित वर्ग के उत्थान के लिए भी कई महत्वपूर्ण काम किए। उन्होंने समाज के हित के लिए कई अभियान चलाए।
वहीं समाज के हित में काम करने वाले उनके पति ज्योतिबा ने 24 सितंबर 1873 को अपने अनुयायियों के साथ ‘सत्यशोधक समाज’ नामक एक संस्था का निर्माण किया। जिसके अध्यक्ष वह ज्योतिबा फुले खुद रहे जबकि इसकी महिला प्रमुख सावित्रीबाई फुले को बनाया गया था।
आपको बता दें कि इस संस्था की स्थापना करने का मुख्य उद्देश्य शूद्रों और अति शूद्रों को उच्च जातियों के शोषण और अत्याचारो से मुक्ति दिलाकर उनका विकास करना था ताकि वे अपनी सफल जिंदगी व्यतीत कर सकें।
इस तरह महिलाओं के लिए शिक्षा का द्धारा खोलने वाली सावित्रीबाई ने अपने पति ज्योतिबा के हर काम कंधे से कंधे मिलाकर सहयोग किया।
कवयित्री के रूप में सावित्रीबाई फुले – Savitribai Phule Poem
भारत की पहली शिक्षिका और समाज सुधारिका के अलावा वे एक अच्छी कवियित्री भी थी जिन्होंने दो काव्य पुस्तकें लिखी थी जिनके नाम नीचे लिखे गए हैं।
- ‘काव्य फुले’
- ‘बावनकशी सुबोधरत्नाकर’
बच्चों को स्कूल आने के लिए प्रेरित करने के लिए वे कहा करती थीं- Savitribai Phule Quotes
“सुनहरे दिन का उदय हुआ आओ प्यारे बच्चों आज
हर्ष उल्लास से तुम्हारा स्वागत करती हूं आज”
सावित्रीबाई की मृत्यु – Savitribai Phule Death
अपने पति ज्योतिबा की मौत के बाद भी उन्होंने समाज की सेवा करना नहीं छोड़ा। इस दौरान साल 1897 में पुणे में “प्लेग”जैसी जानलेवा बीमारी काफी खतरनाक तरीके से फैली, तो इस महान समाजसेवी ने इस बीमारी से पीड़ित लोगों की निच्छल तरीके से सेवा करनी शुरू कर दी,और रात- दिन वह मरीजो की सेवा में लगी रहती थी, और इसी दौरान वो खुद भी इस जानलेवा बीमारी की चपेट में आ गई और 10 मार्च 1897 में उनकी मृत्यु हो गई।
तमाम तरह की परेशानियों, संघर्षों और समाज के प्रबल विरोध के बावजूद भी सावित्रीबाई ने महिलाओं को शिक्षा दिलवाने और उनकी स्थिति में सुधारने में जिस तरह से एक लेखक, क्रांतिकारी, समाजिक कार्यकर्ता बनकर समाज के हित मे काम किया वह वाकई सरहानीय है।
वहीं महिला शिक्षा के क्षेत्र में योगदान के लिए उन्हें कई पुरस्कार से भी नवाजा जा चुका है। इसके अलावा केंद्र और महाराष्ट्र सरकार ने सावित्रीबाई फुले की स्मृति में कई पुरस्कारों की स्थापना की है और उनके सम्मान में एक डाक टिकट भी जारी किया गया है।
उनके द्धारा समाज में दिए गए महत्वपूर्ण योगदान को हमेशा याद रखा जाएगा और इसके लिए हमारा देश उनका हमेशा कर्जदार रहेगा। भारत की ऐसी क्रांतिकारी और महाज समाजसेविका को ज्ञानीपंडित की टीम भावपूर्ण श्रद्धांजली अर्पित करती हैं और उन्हें शत-शत नमन करती है।
जरुर पढ़े सावित्रीबाई के पति: महात्मा ज्योतिबा फुले का इतिहास
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