Sumitranandan Pant ki Rachnaye
सुमित्रा नंदन पंत जी हिन्दी साहित्य के छात्रावादी युग के 4 प्रमुख स्तंभों में से एक थे, जिन्होंने प्रकृति के खूबसूरती को अपनी रचनाओं में बेहद सृजनात्मक एवं खूबसूरत तरीके से दर्शाया है।
वे मानव सौंदर्य और आध्यात्मिक चेतना के भी सकुशल एवं सुप्रसिद्ध कवि माने जाते थे, क्योंकि उन्होंने अपनी रचनाओं में न सिर्फ प्रकृति के अद्भुत सौंदर्य का बखान किया, बल्कि प्रकृति के माध्यम से मनुष्य के जीवन को एक नई दिशा दी एवं उनके उन्नत भविष्य की कामना की है।
सुमित्रा नंदन पंत जी की रचनाएं – Sumitranandan Pant ki Rachnaye
सुमित्रा नंद पंत जी को आधुनिक हिन्दी साहित्य का युग प्रवर्तक भी माना जाता है। उन्होंने महज 7 साल की नन्हीं उम्र से ही कविताएं लिखना शुरु कर दिया था। दरअसल, उनका जन्म 20 मई सन् 1900 में उत्तराखंड के अल्मोड़ा की सुंदर वादियों के बीच बसे गांव कसौनी में हुआ था।
उत्तराखंड की प्राकृतिक खूबसूरती तो हर किसी को अपना दीवाना बना लेती हैं, वहीं सुमित्रा नंदन पंत जी भी प्राकृतिक सौंदर्य के कायल हो गए, लेकिन वे आसाधारण प्रतिभा वाले व्यक्ति थे, इसलिए उन्होंने प्राकृतिक सौंदर्य में डूबकर अपने लेखन के जादू से कई कविताएं लिख डाली। इसलिए सुमित्रा नंदन पंत जी को हिन्दी साहित्य का ”वर्डस्वर्थ’ भी कहा गया।
साल 1907 से 1918 के बीच लिखी गईं सुमित्रा नंदन पंत जी की कविताओं को संकलित कर साल 1927 में इसे ”वीणा” के नाम से प्रकाशित किया गया। जबकि हिन्दी साहित्य के महाकवि सुमित्रा नंदन पंत जी जब 22 साल के थे तब उनकी पहली किताब ”उच्छावास” और दूसरी किताब ”पल्लव” नाम से प्रकाशित हुई थी। इसके बाद उनकी प्रसिद्ध रचना ”ज्योत्स्ना” और ”गुंजन” प्रकाशित की गई। सुमित्रा नंदन जी की इन तीनों रचनाओं को कला साधना एवं सौंदर्य की सबसे अनुपम कृति माना जाता है।
सुमित्रा नंदन पंत जी के अंदर देश प्रेम की भावना भी निहित थी, वे साल 1930 में महात्मा गांधी के साथ ”नमक आंदोलन” में भी शरीक हुए और इस दौरान उन्होंने किसानों की स्थिति को बेहतर तरीके से समझा और अपनी रचना ”वे आंखे” के माध्यम से किसानों के प्रति संवेदना प्रकट की।
सुमित्रा नंदन पंत जी की रचनाओं पर न सिर्फ भारत के राष्ट्रगान के रचयिता एवं महान कवि रवींद्रनाथ टैगोर जी की कृतियों का प्रभाव रहा, बल्कि अंग्रेजी कवि टेनिसन एवं कीट्स का भी गहरा प्रभाव देखने को मिलता है।
छायावादी प्रकृति के उपासक सुमित्रा नंदन पंत जी को अपनी भाषा पर पूरी तरह से नियंत्रण था। सुमित्रानंदन जी अपने जीवन के 18 साल तक छात्रावादी रहे, इस दौरान उन्होंने प्राकृतिक अनुभव को अपनी रचनाओं में लिखा।
इसके बाद उन पर स्वतंत्रता आंदोलन का गहरा असर पड़ा और फिर वे फ्रायड और मार्क्स की विचारधारा से भी काफी प्रभावित हुए। इसके बाद फिर उन्होंने एक प्रगतिवादी कवि के रुप में अपने विचारों को अपनी कृतियों में सृजनात्मक तरीके से उतारा।
सुमित्रानंद जी अपने जीवन में अध्यात्मवादी पड़ाव से भी गुजरे, दरअसल जब वे पोंडिचेरी में एक आश्रम गए थे, तो वे श्री अरविंदों के दर्शन के प्रभाव में आए, और फिर उन्होंने अध्यात्म के भाव को अपनी रचनाओं में उकेरा।
इस तरह सुमित्रानंदन पंत जी अपने जीवन के अलग-अलग पड़ाव में अध्यात्मवादी, छायावादी और प्रगतिवादी रचनाकार रहे। सुमित्रा नंदन जी ने नवमानववादी रचनाएं भी लिखीं, वे अपनी सहज और कोमल कल्पना के कारण सुविख्यात रहे हैं।
आपको बता दें कि छायावाद युग के प्रमुख कवि सुमित्रानंदन पंत जी ने अपनी 77 साल के जीवन काल में कई पुस्तकें लिखीं, जिनमें उपन्यास, कविता, निबंध, पद्य नाटक आदि शामिल हैं।
उनकी महत्वपूर्ण रचनाओं में उच्छ्वास, ज्योत्सना, पल्लव, स्वर्णधूलि, वीणा, युगांत, गुंजन, ग्रंथि, मेघनाद वध (कविता संग्रह), ग्राम्या, मानसी, हार (उपन्यास), युगवाणी, स्वर्णकिरण, युगांतर, काला और बूढ़ा चाँद, अतिमा, उत्तरा, लोकायतन, मुक्ति यज्ञ, अवगुंठित, युग पथ, सत्यकाम, शिल्पी, सौवर्ण, चिदम्बरा, पतझड़, रजतशिखर, तारापथ, आदि शामिल हैं।
इसके अलावा पांच कहानियों नाम से उनका एक कहानी संग्रह भी काफी लोकप्रिय रहा। इसके अलावा उनका उपन्यास ”हार” को भी काफी ख्याति मिली, उनके इस उपन्यास को साल 1960 में प्रकाशित किया गया था।
सुमित्रानंदन पंत जी ने आत्मकथा ”साठ वर्ष: एक रेखांकन” भी लिखी यह साल 1963 में प्रकाशित हुई, यह सुमित्रानंदन जी की सबसे प्रसिद्ध रचनाओं में से एक है। ”लोकायतन” महाकाव्य भी सुमित्रा नंदन जी का सबसे प्रसिद्ध महाकाव्यों में से एक है, इस नोवेल में उनकी जीवन के प्रति सोच स्पष्ट झलकती है।
सुमित्रा नंदन पंत जी को साहित्य में अभूतपूर्व योगदान देने के लिए उन्हें कई पुरस्कारों से नवाजा गया। उन्हें साल 1961 में भारत के सर्वश्रेष्ठ सम्मान से सम्मानित किया गया। इसके अलावा साल 1960 में उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार, ज्ञानपीठ, साहित्य लैंड नेहरू पुरस्कार से भी नवाजा जा चुका है।
सुमित्रा नंदन पंत जी की मुख्य रचनाएं
युगवाणी (1938)
कवि सुमित्रानंदन पंत जी ने अपनी यह अपनी यह कृति प्रगतिवाद से प्रभावित होकर लिखी है।
वीणा, (1919)
महाकवि सुमित्रानंदन पंत जी ने अपने इस काव्य संग्रह में कुदरत की अद्भुत सौंदर्यता का चित्रण, कुछ गीतों के माध्यम से किया है।
लोकायतन, (1964) –
सुमित्रानंदन पंत जी का यह प्रसिद्ध महाकाव्यों में से एक है, इस महाकाव्य में कवि ने अपने दार्शनिक एवं सांस्कृतिक विचारधारा अभिव्यक्त की है। इसमें कवि ने ग्राम्य जीवन की दशा को समझते हुए संवेदना प्रकट की है, और सामान्य जन भावना को भी स्वर प्रदान किया है।
पल्लव (1926) –
हिन्दी साहित्य के महान कवि सुमित्रानंदन पंत जी ने इसमें खुद को एक छायावादी कवि के रुप में स्थापित किया है। इसके अलावा इसमें उन्होंने अपने प्रकृति के प्रति प्रेम एवं उसकी खूबसूरती का बखान किया है।
ग्रंथी (1920) –
हिन्दी साहित्य के महाकवि सुमित्रानंदन पंत जी ने अपने इस काव्य संग्रह में कुदरत को माध्यम बनाकार अपने वियोग-व्यथा को व्यक्त किया है।
गुंजन (1932) –
अपनी इस रचना में भी महाकवि सुमित्रानंदन पंत जी ने अपने कुदरती प्रेम और इसकी अद्भुत छटा का खूबसूरत तरीके से वर्णन किया है।
ग्राम्या, (1940) –
महाकवि सुमित्रानंदन पंत जी ने अपनी इस रचना को समाजवाद और प्रगतिवाद से प्रभावित होकर लिखा है। दलित -पीड़ितों के प्रति कवि ने अपनी इस रचना में संवेदना प्रकट की है।
युगांत (1937)–
महाकवि सुमित्रानंदन पंत जी की इस रचना में भी समाजवाद का प्रभाव साफ दिखता है।
सुमित्रानंदन पंत जी की कुछ अन्य रचनाएं इस प्रकार हैं –
- युगपथ, (1949)
- मुक्ति यज्ञ
- स्वर्णकिरण,(1947)
- ‘स्वर्ण-धूलि’ (1947)
- ‘उत्तरा’ (1949)
- तारापथ
- ‘अतिमा’,
- ‘रजत-रश्मि’
- गीतहंस (1969)
- चिदंबरा, (1958)
- अनुभूति
- मोह
- सांध्य वंदना
- वायु के प्रति – सुमित्रानंदन पंत
- चंचल पग दीप-शिखा-से
- लहरों का गीत
- यह धरती कितना देती है
- मछुए का गीत
- चाँदनी
- काले बादल
- तप रे!
- आजाद
- गंगा
- नौका-विहार
- धरती का आँगन इठलाता
- बाँध दिए क्यों प्राण
- चींटी
- बापू
- दो लड़के
- गीत विहग
- कला और बूढ़ा चाँद, (1959)
- उच्छावास
- मधु ज्वाला
- मानसी
- वाणी
- सत्यकाम
- पतझड़
- ज्योत्सना
- अवगुंठित
- मेघनाथ वध
- अतिमा
- सौवर्ण
- शिल्पी
- रजतशिखर
कहानियाँ
- पाँच कहानियाँ (1938)
उपन्यास
- हार (1960)
आत्मकथात्मक संस्मरण
- साठ वर्ष: एक रेखांकन (1963)।
सुमित्रानंदन पंत जी ने जिस तरह खड़ी और प्रांजल भाषा का इस्तेमाल कर अपनी भावनाओं को बेहद सरल और सरस तरीके से अपनी कृतियों में प्रकट किया है, वह प्रसंशनीय है।
इसके साथ ही उनकी भाषा शैली में मधुरता और कोमलता का भाव है। इसी वजह से पाठक उनकी किताबों में शुरु से अंत तक बंधें रहते हैं।
सुमित्रानंदन जी का स्थान हिन्दी साहित्य के विशिष्ट कवियों में आता है। उनके द्धारा साहित्य में दिए गए महत्वपूर्ण योगदान के लिए वे हमेशा याद किए जाएंगे।