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तुलसीदास जी की साहित्यिक रचनाएं – Tulsidas ki Rachnaye

Tulsidas ki Rachnaye

तुलसीदास जी भारतीय हिन्दी साहित्य के सर्वोच्च कवि थे, जिन्हे भक्तिकाल के रामभक्ति शाखा के महानतम कवियों में गिना जाता था। वे भगवान राम के अनन्य भक्त थे, जिन्हें अपनी पत्नी की धित्कारना के बाद वैराग्य हो गया और फिर उन्होंने भगवान राम की भक्ति में अपना शेष जीवन सर्मपित कर दिया और उनके उन्मुख हो गए।

दुनिया के सार्वधिक लोकप्रिय एवं विद्धंत महाकवि तुलसीदास जी ने अपनी दूरदर्शी सोच, महान विचारों के माध्यम से हिन्दू धर्म के सबसे पवित्र महाकाव्य एवं तमाम महान रचनाएं की और लोगों को एक आदर्श जीवन जीने के लिए प्रेरित किया साथ ही उन्हें नई सोच और अनुभव के साथ आगे बढ़ने की प्रेरणा दी।

तुलसीदास जी ने न सिर्फ अपने महान विचारों से रामचरितमानस एवं हनुमान चालीसा जैसी कई उत्कृष्ट ग्रंथों की रचना की, बल्कि तुलसीदास जी नेअपने प्रेरणादायक दोहों से लोगों को सकारात्मक जीवन जीने की भी प्रेरणा दी।

महामहिम तुलसीदास जी द्धारा रचित प्रमुख रुप से उनकी 12 कृतियां दुनिया भर में मशहूर हैं, जिनमें से 6 उनकी अति महत्वपूर्ण एवं प्रमुख रचनाएं हैं, जबकि 6 उनकी लघु रचनाएं हैं। वहीं अवधि एवं ब्रजा भाषा के आधार पर महाकवि तुलसीदास जी की रचनाओं को दो अलग-अलग समूहों में बांटा गया है।

तुलसीदास जी की साहित्यिक रचनाएं – Tulsidas ki Rachnaye

तुलसीदास जी की कुछ रचनाओं के बारे में संक्षिप्त में विवरण-

रामचरितमानस, महाकवि तुलसीदास जी का सबसे प्रसिद्ध एवं हिन्दू धर्म का सबसे पवित्र महाकाव्य है। जिसकी रचना वाल्मीकि जी के अवतार माने जाने वाले एवं हिन्दी साहित्य के सर्वोत्तम कवि तुलसीदास जी ने अयोध्या में की थी।

आपको बता दें कि महाकवि तुलसीदास जी ने इस पवित्र ग्रंथ को हिन्दू कैलेंडर के चैत्र महीने के रामनवमी में लिखना शुरु किया था, उन्होंने इस महाकाव्य को करीब 2 साल, 7 महीने 26 दिन में लिखा था।

महाकवि तुलसीदास जी की अपने प्रभु मर्यादित पुरुषोत्तम राम के प्रति गहरा आस्था और भक्ति थी। उन्होंने भगवान राम की भक्ति में डूबकर रामचरितमानस में भगवान श्री राम का एक आदर्श चरित्र का बेहद खूबसूरत तरीके से वर्णन किया है।

भारतीय साहित्य के सर्वश्रेष्ठ कवि तुलसीदास जी ने हिंदू ग्रंथ के इस महाकाव्य की रचना अवधि भाषा में बेहद आसान तरीके से की है। रामचरितमानस ने दोहा-चौपाईओं के माध्यम से भगवान राम के जीवन के समस्त दर्शन को बेहद सौम्यता एवं प्रेम भाव से अपनी कृतियों में दर्शाया है।

इसके साथ ही आपको यह भी बता दें कि रामचरितमानस के मूल रचियता महर्षि वाल्मीकि जी माने जाते हैं, लेकिन वाल्मीकि जी द्धारा रचित रामचरितमानस को सिर्फ उच्च कोटी के विद्धान ही समझ पाते थे।

जिसके बाद तुलसीदास जी ने इस महाकाव्य में भगवान राम की आदर्श जीवन गाथा का बेहद सरल शब्दों में उल्लेख किया है, जिससे रामचरितमानस पढ़ना हर व्यक्ति के लिए आसान हो गया है।

इसके साथ ही इस ग्रंथ के माध्यम से कोई भी शख्स भगवान राम के आदर्श जीवन के बारे में आसानी से जान सकता है एवं उनके आदर्शों पर चलकर सफल जीवन का निर्वाहन कर सकता है।

हिन्दी साहित्य के महाकवि तुलसीदास जी की यह रचना उनके सबसे प्रसिद्ध रचनाओं में से एक है, जिसे उन्होंने ब्रज भाषा में लिखा है। गीतावली में तुलसीदास जी ने पद्य रचना के माध्यम से मानव जीवन में प्रेम और भाईचारे का भावनात्मक तरीके से वर्णन किया है।

महाकवि तुलसीदास जी की रामलालनहछू उनके द्धारा रचित लघु रचनाओं में से एक है, जिसे उन्होंने अवधि भाषा में लिखा है।

भगवान राम के परम भक्त और हिन्दी साहित्य के सर्वश्रेष्ठ कवि तुलसीदास जी ने अपनी यह रचना में दोहा और चौपाइयां द्धारा की है, इसमें उन्होंने भक्ति-सुख का उपदेश दिया है।

यह रचना महाकवि तुलसीदास जी द्धारा रचित एक मशहूर रचनाओं में से एक है, जिसमें उन्होंने बेहद शानदार ढंग से माता पार्वती एवं भगवान शंकर का विवाह, उनकी प्रेम साधना, तप, अदम्य निष्ठा आदि का बेहद सौम्यता से मनोरम वर्णन किया है।

महामहिम तुलसीदास जी ने अपनी इस कृति में मर्यादित पुरुर्षोत्तम श्री राम एवं माता सीता के विवाह का बेहद सुंदर ढंग से व्याख्या की है। इसमें कवि तुलसीदास जी ने माता सीता के स्वयंवर की तैयारियों से लेकर भगवान राम के द्धारा शक्तिशाली धनुष तोड़ने एवं माता सीता के अयोध्या नगरी और राजा दशरथ के महल में पहुंचने तक का विस्तृत रुप से वर्णन किया है।

महाकवि तुलसीदास जी की यह रचना दोहों, सर्गों और सप्तकों में लिखी गई है। इसमें कवि ने रामकथा के कई शुभ और अशुभ प्रसंगों की मिश्रित रुप से व्याख्या की है है।

भारतीय हिन्दी के महामहिम तुलसीदास जी अपनी इस रचना को करीब 573 दोहों के माध्यम से लिखा है। महाकवि तुलसीदास जी ने अपनी इस कृति में भक्ति और प्रेम की बेहद शानदार ढंग से व्याख्या की है।

हिन्दी साहित्य के महाकवि तुलसीदास जी की यह एक सार्वधिक लोकप्रिय एवं प्रसिद्ध रचनाओं में से एक है। ब्रज भाषा में रचित इस काव्य की रचना कवि ने चौपाईयां, छंदों और सवैया के माध्यम से की है।

श्रीकृष्ण गीतावली भी गोस्वामी जी की रचना है। श्रीकृष्ण-कथा के कतिपय प्रकरण गीतों के विषय हैं।

हिन्दी साहित्य के महामहिम गोस्वामी तुलसीदास जी की ब्रज भाषा में रचित उनकी प्रसिद्ध कृतियों में से एक हैं।

तुलसीदास जी की इस मशहूर रचना को करीब 61 पदों के माध्यम से लिखा है, इसमें उन्होंने भगवान श्री कृष्ण की अद्भुत लीलाओं का बेहद मनोहम ढंग से वर्णन किया है

गोस्वामी तुलसीदास जी की यह रचना उनकी हनुमान भक्ति को दर्शाती है। इस रचना को उन्होंने तब लिखा था, जब वह बेहद बीमार थे और काफी शारीरिक वेदना सह रहे थे, तब उन्होंने भगवान हनुमान की बिना किसी स्वार्थ के ईमानदारी से भक्ति की, जिसके बाद महाकवि के सारे कष्टों का समाधान हो गया।

वहीं इसके बारे में यह मान्यता है कि हनुमानबाहुक का पाठ जपने से मनुष्य की हर मनोकामना पूर्ण होती है।

विनय पत्रिका तलुसीदास जी द्धारा रचित उनकी प्रसिद्ध कृतियों में से एक है, जिसे उन्होंने बेहद शानदार ढंग से ब्रज भाषा में लिखा है। विनय पत्रिका, महाकवि तुलसीदास जी के करीब 279 स्त्रोत गीतों का संग्रह है, जिसमें भगवान शिव, माता पार्वती, गणेश, हनुमान, माता सीता, गंगा मैया, यमुना, काशी, श्री राम की स्तुतियां हैं।

इस कृति को तुलसीदास जी ने स्त्रोत और पदों के माध्यम से लिखा हैं। कवि की इस रचना में भक्ति एवं शांत रस स्पष्ट दिखाई देता है। विनय पत्रिका में विनय के पद हैं, इसलिए इसे राम विनयावली के नाम से भी जाना जाता है।

सतसई कवि तुलसीदास जी की प्रमुख रचनाओं में से एक हैं, जिसे उन्होंने दोहो और छंद के माध्यम से लिखा है। तुलसीदास जी की इस रचना में 700 से ज्यादा दोहे हैं। सतसई में दोहों के साथ-साथ सोरठा और बरवै छंद का भी इस्तेमाल किया गया है। ‘सतसई’ के कुछ दोहे उनकी रचना ‘दोहावली’ से भी मिलते हैं। इस रचना में श्रंगार रास का कवि तुलसीदास जी ने भरपूर इस्तेमाल किया है।

महाकवि तुलसीदास जी द्धारा अन्य रचित ग्रंथ –

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