विजेंदर सिंह बेनीवाल साधारणतः विजेंदर सिंह / Vijender Singh के नाम से जाने जाते है, वे हरियाणा के भिवनी जिले के कलुवास के एक भारतीय प्रोफेशनल बॉक्सर और पूर्व शौकिया बॉक्सर भी है। अपने गाँव से ही उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा ग्रहण की और फिर भिवनी के स्थानिक महाविद्यालय से ही उन्होंने बैचलर की डिग्री हासिल की। भिवनी के बॉक्सिंग क्लब में ही उन्होंने बॉक्सिंग का अभ्यास किया था जहाँ कोच जगदीश सिंह ने उनके हुनर को पहचाना और उन्हें बॉक्सिंग में अपना करियर बनाने के लिए प्रोत्साहित भी किया। भारतीय बॉक्सिंग कोच गुरबक्श सिंह संधू ने विजेंदर सिंह को ट्रेनिंग दी है।
ग्रेट बॉक्सर विजेंदर सिंह – Vijender Singh Biography In Hindi
बहुत सी नेशनल लेवल प्रतियोगिताओ में उन्होंने मेडल जीते है, इसके बाद विजेंदर को इंटरनेशनल लेवल प्रतियोगिताओ के लिए ट्रेन किया गया और इसके बाद उन्होंने बहुत सी प्रतियोगिताओ में भाग भी लिया जैसे 2004 के एथेंस समर ओलंपिक्स और 2006 के कामनवेल्थ गेम्स में भी उन्होंने हिस्सा लिया। 2006 में दोहा में हुए एशियन गेम्स में कजाखस्तान के बख्तियार अर्तायेव के खिलाफ सेमीफाइनल हारने के बाद ब्रोंज मेडल जीता। 2008 के बीजिंग समर ओलंपिक्स में क्वार्टरफाइनल में इक्वेडोर के कार्लोस गोंगोरा को 9-4 से हराकर अपना ब्रोंज मेडल पक्का किया – किसी भी भारतीय बॉक्सर के लिए यह पहला ओलंपिक्स मेडल था।
इस जीत के बाद विजेंदर को बहुत से अवार्ड से नवाजा गया, जिसमे खेल क्षेत्र में भारत के सर्वोच्च अवार्ड राजीव गाँधी खेल रत्न अवार्ड और भारत के चौथे नागरिक सर्वोच्च सम्मान पद्म श्री से सम्मानित किया गया। 2009 में उन्होंने वर्ल्ड अमटुर बॉक्सिंग चैंपियनशिप में हिस्सा लिया और उसमे उन्होंने ब्रोंज मेडल भी जीता। उसी साल इंटरनेशनल बॉक्सिंग एसोसिएशन (AIBA)ने विजेंदर को अपने वार्षिक मिडिलवेट केटेगरी की सूचि में 2800 पॉइंट के साथ टॉप बॉक्सर घोषित किया। 2012 के लन्दन ओलंपिक्स में उन्होंने भारत का प्रतिनिधित्व किया था।
29 जून 2015 को विजेंदर सिंह ने अपने करियर को अलविदा कहा
अधिक जानकारी –
Vijender Singh का जन्म 29 अक्टूबर 1985 को हरियाणा के भिवनी जिले से 5 किलोमीटर दूर कलुवास ग्राम में एक जाट परिवार में हुआ था। उनके पिता महिपाल सिंह बेनीवाल हरियाणा रोडवे में एक बस ड्राईवर और माता एक गृहिणी है। उनके पिता विजेंदर और उनके बड़े भाई मनोज के शिक्षा की फीस देने के लिए ओवरटाइम कर ज्यादा बसेस चलाते थे। विजेंदर ने कालवास से प्राथमिक शिक्षा पूरी की और भिवनी की माध्यमिक शाला से उन्होंने माध्यमिक शिक्षा ग्रहण की और फिर वैश कॉलेज से उन्होंने बैचलर डिग्री हासिल की। 1990 में बॉक्सर राज कुमार सांगवान को अर्जुन अवार्ड मिला और इसी वजह से भारत में बॉक्सिंग के प्रति लोगो की रूचि बढती गयी। और आज यह खेल भारत के मुख्य खेलो में भी शामिल हो गया है। परिवार की आर्थिक स्थिति को सँभालने के लिए विजेंदर और उनके बड़े भाई मनोज ने बॉक्सिंग सिखने का निर्णय लिया। विजेंदर को अपने बड़े भाई मनोज से प्रेरणा मिली है और उन्होंने ही विजेंदर को बॉक्सिंग में जाने के लिए प्रेरित किया। बॉक्सिंग के बल पे 1998 में मनोज को भारतीय आर्मी में शामिल किया गया और उन्होंने विजेंदर को आर्थिक रूप से सहायता करने का निश्चय भी किया और समय-समय पर उन्हें बॉक्सिंग ट्रेनिंग दिलाते रहे। विजेंदर के माता-पिता ने भी विजेंदर को कभी पढने के लिए जबरदस्ती नही की और वे भी विजेंदर की बॉक्सिंग में करियर बनाने में सहायता करते थे। विजेंदर के लिए बॉक्सिंग ही उनका करियर है, बचपन से ही उन्हें बॉक्सिंग में रूचि थी।
भिवनी बॉक्सिंग क्लब में वे बॉक्सिंग का अभ्यास करते थे, जहाँ नेशनल लेवल बॉक्सर जगदीश सिंह ने उनके टैलेंट को पहचाना। विजेंदर ने मॉडलिंग में भी अपने हात आजमाए। विजेंदर के सफल करियर की शुरुवात तब हुई जब उन्होंने स्टेट लेवल प्रतियोगिता जीती थी। 1997 में विजेंदर ने सिल्वर मेडल जीता और 2000 में उन्होंने राष्ट्रिय स्तर पर मेडल जीते। 2003 में वे ऑल इंडिया यूथ बॉक्सिंग चैंपियन बने। उनके जीवन का टर्निंग पॉइंट 2003 के एफ्रो-एशियन गेम्स में आया। जूनियर बॉक्सर बनने के बाद भी उन्होंने बहुत से सिलेक्शन ट्रायल्स में हिस्सा लिया।
उनके बॉक्सिंग स्टाइल, हुक्स और अप्परकट को स्टाइल एक्टर सिल्वेस्टर स्टाल्लोन के समान माना जाता है। विजेंदर के अनुसार बॉक्सर माइक टायसन और मुहम्मद अली से वे काफी प्रेरित हुए।
विजेंदर की शादी अर्चना सिंह से हुई है। उन्हें एक लड़का अर्बिर सिंह भी है।
ड्रग विवाद –
6 मार्च 2012 को चंडीगढ़ के पास के NRI रेसीडेंस में पड़ी रेड (Raid) के दौरान पंजाब पुलिस ने 26 किलोग्राम हेरोइन और दुसरे ड्रग जप्त किए, जिसकी कीमत तक़रीबन 1.3 बिलियन (US$ 19 मिलियन) थी। वहाँ से उन्होंने एक कार भी जप्त की जो विजेंदर की पत्नी के नाम से रजिस्टर थी, यह कार उन्हें ड्रग डीलर अनूप सिंह के घर के बाहर खड़ी मिली। बाद में मार्च महीने में पंजाब पुलिस का स्टेटमेंट आया, “छानबीन के अनुसार विजेंदर सिंह ने 12 बार ड्रग्स का सेवन और राम सिंह ने तक़रीबन 5 बार ड्रग्स का सेवन किया है।“ लेकिन सिंह ने इसे बिल्कुल गलत बताया और टेस्टिंग (जाँच) के लिए उन्होंने अपना खून और बाल भी दिए। NADA (नेशनल एंटी डोपिंग एजेंसी) ने भी विजेंदर की जाँच करने से इंकार कर दिया क्योकि उनके अनुसार वे प्रतियोगिता से बाहर हुए खिलाडियों की जाँच नही करते। इसके बाद 3 अप्रैल को स्पोर्ट मिनिस्ट्री ऑफ़ इंडिया ने NADA के डायरेक्शन में एक टेस्ट लिया और जाँच के बाद बताया की इस अशांति और झूटे आरोपों का असर देश के दुसरे खिलाडियों पर भी पड़ सकता है।
मई 2013 में इस ओलंपिक्स ब्रोंज मेडल विजेता को नेशनल एंटी डोपिंग एजेंसी ने “ऑल क्लीन” का सर्टिफिकेट भी दी दिया।
Vijender Singh बॉलीवुड में पर्दापण –
13 जून 2014 को रिलीज हुई फिल्म फगली में बतौर एक्टर उन्होंने अपने बॉलीवुड करियर की शुरुवात की। इस फिल्म को अक्षय कुमार और अश्विनी यार्दी की ग्राज़िंग गोट प्रोडक्शन ने प्रोड्यूस किया था। उनकी यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर एवरेज (औसतन) रही।
Vijender Singh प्रोफेशनल करियर –
IOS स्पोर्ट एंड एंटरटेनमेंट के तहत फ्रैंक वारेन क्वीनबेर्री प्रमोशन के साथ बहुवर्षीय अग्रीमेंट साईन कर उन्होंने प्रोफेशनल करियर की शुरुवात की। 10 अक्टूबर 2015 को उन्होंने अपना पहला प्रोफेशनल बॉक्सिंग मैच खेला। उसमे उन्होंने TKO से उनके विरोधी सोनि व्हिटिंग को पराजित किया था। 7 नवम्बर को डबलिन के नेशनल स्टेडियम में उन्होंने पहले राउंड में ब्रिटिश बॉक्सर डीन गील्लें को नॉक किया था। इसके बाद टेक्निकल नाकआउट से उन्होंने समेट ह्युसेंओव को पराजित किया। 21 मार्च 2016 को सिंह ने फ्लानागन-मैथ्यू अंडरकार्ड में उन्होंने तीसरे राउंड में हंगरी के एलेग्जेंडर होर्वाथ को पराजित किया। इसके बाद 30 अप्रैल को 5 वे राउंड में TKO से ही उन्होंने फ्रेंच बॉक्सर मटियो रोएर को कॉपर बॉक्स एरीना में पराजित किया था। इसके बाद अब 16 जुलाई को सिंह की लढाई WBO एशिया पसिफ़िक सुपर मिडिलवेट का टाइटल पाने के लिए ऑस्ट्रलियन केरी होप से होगी।
Vijender Singh एक प्रोफेशनल बॉक्सर है। पारिवारिक स्थिति कमजोर होने के बावजूद उन्होंने अपने अपने लक्ष्य से ध्यान नही हटाया और हमेशा बॉक्सिंग का अभ्यास करते रहे। वो कहते है की की महेनत किसी की जाया नही जाती, ऐसा ही विजेंदर सिंह के साथ भी हुआ उनकी महेनत आखिर रंग लायी और मेडल जीतने में उन्हें सफलता भी मिली। उनका हमेशा से यह मानना था की एक बॉक्सर के तौर पे उन्हें हमेशा अपनी सेहत और अपने खन-पान का ध्यान रखना पड़ता था। और किसी भी खिलाडी के लिए सबसे मुश्किल और सबसे महत्वपूर्ण बात उसकी सेहत ही होती है। आज के युवाओ को उनसे प्रेरणा लेनी ही चाहिए।
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