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आख़िर क्या था होमरूल आंदोलन?

What is Home Rule Movement

होमरूल लीग आंदोलन की शुरुआत इसलिए की गई क्योंकि इसकी मुख्य वजह ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन रहते हुए संवैधानिक तरीके से स्वशासन को हासिल करना था। आपको बता दें कि इस होम लीग के प्रमुख नेता बाल गंगाधर तिलक और एनी बेसेंट थी।

स्वराज्य की प्राप्ति के लिए बाल गंगाधर तिलक ने 28 अप्रैल, 1916 को बेलगांव में होमरूल लीग की स्थापना की गई थी। जिसका सबसे ज्यादा प्रभाव कर्नाटक, महाराष्ट्र, मध्यप्रांत और बरार तक फैला हुआ था।

इस आंदोलन की खास बात यह थी कि अहिंसा का इस्तेमाल किए बिना ब्रिटिश सरकार से भारतीय उपनिवेश को स्वशासन देने की कोशिश की थी।

‘होमरूल’ शब्द मुख्य रूप से आयरलैंड के एक ऐसे आंदोलन से लिया गया था। जिसका सबसे पहले इस्तेमाल श्याम जी कृष्ण वर्मा ने 1905 में लंदन में किया था। वहीं भारतीय होमरूल लीग का गठन आयरलैंड के होमरूल लीग के नमूने पर किया गया था, जो तत्कालीन परिस्थितियों में तेजी से उभरती हुयी प्रतिक्रियात्मक राजनीति के नए स्वरूप का प्रतिनिधित्व करता था। ऐनी बेसेंट और तिलक की इस आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका थी।

Home Rule Movement

आख़िर क्या था होमरूल आंदोलन – What is Home Rule Movement

वहीं होमरूल का तात्पर्य एक ऐसी स्थिति से है, जिसमें किसी देश का शासन वहां के स्थायी नागरिकों के द्धारा ही चलाया जाता है। आपको बता दें कि होमरूल आंदोलन मुख्य रूप से ब्रिटिश शासन के नियंत्रण को कम करने के लिए चलाया गया था। होमरूल को एक आंदोलन के रूप में 1870 से 1907 के बीच आयरलैंड में चलाया गया था।

होमरूल लीग आंदोलन के उद्देश्य – Purpose of Home Rule Movement

भारत में होमरूल आंदोलन की शुरुआत की मुख्य वजह – 

बालगंगाधर तिलक की होम रूल लीग

आयररलैंड की तर्ज पर शुरू की गई होम लीग में बाल गंगाधर तिलक ने स्वराज और प्रशासकीय सुधार और भाषायी प्रांतो की स्थापना की मांग की। इसके अलावा शिक्षा को बढ़ावा देने पर भी इस लीग में जोर दिया गया।

होम रूल लीग की स्थापना  28 अप्रैल 1916 को बेलगांव में बालगंगाधर तिलक द्धारा की गई। आपको बता दें कि इस लीग का मुख्य प्रभाव कर्नाटक, महाराष्ट्र (मुंबई को छोड़कर), मध्य प्रांत एवं बरार क्षेत्र में बड़े स्तर पर पड़ा। जबकि होमरूल लीग में किसी तरह का टकराव न हो इसलिए तिलक और बेसेंट ने अलग-अलग लीग का गठन किया था।

तिलक ने होमरूल लीग जरूरत को समझते हुए कहा ‘भारत उस बेटे की तरह है, जो अब जवान हो चुका है। समय का तकाजा है कि बाप या पालक इस बेटे का वाजिब हक दे दे।’ तथा स्वराज प्राप्ति के लिए उनका मशहूर कथन है –

‘स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूंगा’

इसके अलावा बाल गंगाधर तिलक ने उस समय ये भी कहा कि हिंसा से भारत को आजादी नहीं दिलवाई जा सकती है, अहिंसा का मार्ग अपनाकर ही भारतीय को अंग्रेजों के चंगुल से छुटकारा दिलवाया जा सकता है।

इसलिए उन्होनें आयरिस होमरूल जैसे आंदोलन के द्धारा भारतीयों की दशा में सुधार लाने के लिए वकालत शुरु कर दी है। इसके साथ उन्होनें ऐसे मुश्किल दौर में ब्रिटेन का सहयोग करने की भी बात कही।

एनीबेसेंट की होम रूल लीग

एनी बेसेंट, जो कि आयरलैंड की थियोसोफिस्ट की महिला थी उन्होनें भी होम लीग आंदोलन में अपना पूरा सहयोग दिया। वह साल 1896 में भारत आईं। स्वराज प्राप्ति के लिए इसकी शुरुआत एनी बेंसेंट ने, साल 1914 से ही कर दी थी। इसके साथ ही इन पत्रों के माध्यम से भारतीयों को राजनीति एवं स्वतंत्रता से परीचित किया जाता था।

सितंबर1916 में एनी बेसेंट ने मद्रास के अडयार में होम रूल लीग की स्थापना की। इस दौरान जार्ज अरूड़ेल को सचिव नियुक्त किया गया। मद्रास के अलावा पूरे भारत में इन्होंने करीब 200 ब्रांच खोलीं थी।

एनीबेसेंट की होमरूल लीग में यूसुफ बेपतिस्ता,वी.पी.वाडिया,सी. पी. रामास्वामी अय्यर ने मुख्य भूमिका निभाई थी। जबकि जवाहरलाल नेहरू, पंडित मदनमोहन मालवीय, सुरेंद्र नाथ बनर्जी, वी. चक्रवर्ती उनके लीग के मुख्य सदस्यों में से एक थे।

जबकि गोपालकृष्ण गोखले की ‘सर्वेंट ऑफ इंडिया सोसायटी’ के सदस्यों को होम रूल लीग में प्रवेश की अनुमति नहीं थी। एनी बेसेंट की होम रूल लीग के सदस्यों की संख्या ज्यादा थी लेकिन तिलक की होम रूल लीग का संगठन की तुलना में ये कमजोर था।

होम रूल लीग आंदोलन की उपलब्धियां – Achievements of the Indian Home Rule Movement

होमरूल लीग आंदोलन की कई महत्वपूर्ण उपलब्धियां भी रहीं। जो कि नीचे लिखी गईं हैं –

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम पर प्रभाव

इस तरह होमरूल आन्दोलन ने भारत में राष्ट्रीय आन्दोलन के दौरान पनप रहे सूनेपन को खत्म किया और जन-मानस को स्वतंत्रता आंदोलन से जोड़ने का काम किया।

होम रूल लीग के परिणाम – Results of the Home Rule Movement

होम रूल लीग के प्रभाव लगातार बढ़ता जा रहा था, जिसके बाद ब्रिटिश सरकार ने इस आंदोलन का प्रभाव कम करने के लिए साल 1917 में एनी बेसेंट, जार्ज अरूड़ेल और वी.पी. वाडिया को गिरफ्तार किया गया।

इसके लिए मोहम्मद अली जिन्ना ने केस लड़ा और एस. सुब्रमण्यम ने विरोध स्वर ‘नाइटहुड’ की उपाधि वापस कर दी। वहीं होम रूल लीग आंदोलन में एनी बेसेंट को गिरफ्तार कर लिया गया। जिसके बाद एनीबेसेंट की लोकप्रियता काफी बढ़ गई। यही मुख्य वजह थी कि उन्हें 1917 के कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में पहली महिला अध्यक्ष चुना गया।

इसके साथ ही तिलक को एक अंग्रेजी लेखक वेलन्टीन सिरोल ने अपनी पुस्तक में ‘भारतीय अशांति का जनक’ कहा जिसके बाद वे उस लेखक पर मानहानि का मुकदमा करने लंदन आ गए।

वहीं हर तरफ से दबाव होने की वजह से भारत सचिव मांटेग्यू ने भारतीय उपनिवेशीय शासन का प्रस्ताव पारित करने की घोषणा कर दी। जिसके बाद 20 अगस्त 1917 को होम रूल लीग आंदोलन को खत्म कर दिया गया।

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