मस्तानी के प्यार में बना “मस्तानी महल” | Mastani Mahal

बाजीराव पेशवा का नाम आते ही तो हर किसी को मस्तानी का भी नाम की याद आता हैं। उन्होंने मस्तानी से बहुत प्यार किया। इसलिए शनिवार वाडे के बगल में बाजीराव ने मस्तानी के लिए इ. स. 1734 महल बनाया था जिसे मस्तानी महल – Mastani Mahal का नाम दिया गया।

Mastani Mahal

मस्तानी के प्यार में बना “मस्तानी महल” – Mastani Mahal

इ. स. 1728 में मुग़ल सूबेदार मुहम्मद खान बंगाश ने बुंदेलखंड पर हमला कर दिया बंगाश की ताकद को देखते हुए महाराजा छत्रसाल ने एक गुप्त सन्देश भेजकर बाजीराव से मदत मांगी सन्देश मिलते ही बाजीराव अपने मराठा सैन्यो के साथ बुंदेलखंड पहुंचकर छत्रसाल की सेना के साथ मिलकर मुहम्मद खान बंगाश की सेना को मुह तोड़ जवाब दिया और उसमें छत्रसाल की जीत हुयी।

महाराजा छत्रसाल ने अपने राज्य के तीन तुकडे कर एक हिस्सा बाजीराव को भेट स्वरुप दिया इसमें झाँसी, सागर और कालपी का भी समावेश था। राज्य देने के साथ साथ महाराजा ने अपनी बेटी मस्तानी का हाथ भी बाजीराव को दे दिया।

लेकिन इतिहासकारों के अनुसार मस्तानी ये छत्रसाल के दरबार की नर्तकी थी। बाजीराव, मस्तानी के प्रेम में पड़ने के बाद उनका मस्तानी से विवाह हुआ।

बाजीराव उच्च दर्जे के ब्राह्मण होने की वजह से पुरे ब्राह्मण समुदाय एवं हिन्दुओ ने उनका विरोध किया। साथ ही मस्तानी को बाजीराव की पहली पत्नी काशी बाई और उनके परिवार के अन्य सदस्यों ने कभी स्वीकार नहीं किया।

लेकिन बाजीराव पीछे हटने वालों में से नहीं थे। मस्तानी को खुद के महल में रखना असंभव होने के वहज से और परिवार के विरोध को देखते हुए बाजीराव ने शनिवारवाडा के बगल में मस्तानी के लिए आलिशान एक आईना महल बनवाया था इस महल में हजारों आईने लगे थे।

जिसे मस्तानी महल के नाम से जाना जाता हैं। महल के बगल में दिवे घाट पर मस्तानी के नहाने के लिए एक विशेष कुंड भी बनवाया था। और इस महल में मस्तानी के लिए सभी सुविधाए उपलब्ध करवाई थी।

कहा जाता हैं की यह महल उस समय का सबसे सुंदर और आलिशान महल था। मस्तानी महल को बाजीराव मस्तानी के प्यार की निशानी के रूप देखा गया ।

मस्तानी धर्म से मुस्लीम होने के बावजूद कृष्ण को मानने वाली थी। श्रीकुष्ण पर उनकी पूरी भक्ति थी। इसलिए बाजीराव और उनके बेटे का एक नाम कृष्णसिंह रखा जिसे हम शमशेरबहादुर के नाम से जानते हैं जिसका पालन पोषण बाजीराव की पहली पत्नी काशीबाई ने किया और जो आगे चलकर पानीपत के युद्ध में योद्धा रूप में शामिल हुआ।

मस्तानी दरवाज़ा – Mastani Darwaja:

यह दरवाज़ा दक्षिण दिशा की और खुलता है। बाजीराव की पत्नी मस्तानी जब किले से बाहर जाती तो इस दरवाज़े का उपयोग करती थी। इसलिए इसका नाम मस्तानी दरवाज़ा है।

मस्तानी का यह आलिशान महल एक भीषण अग्निकांड में जलकर राख हो गया था कुछ इतिहासकार इसे एक साजिश भी करार देते हैं ।

आज भी मस्तानी महल के अवशेष पुणे शहर के राजा केलकर संग्रहालय में मौजूद हैं।

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