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महान गणितज्ञ आर्यभट की जीवनी

आर्यभट्ट भारत के एक महान गणतिज्ञ थे, जिन्होंने शून्य और पाई की खोज की थी। वे एक अच्छे खगोलशास्त्री भी थे, जिन्होंने विज्ञान और गणित के क्षेत्र में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया, उनकी प्रसिद्धि न सिर्फ देश में बल्कि विदेशों में भी फैली थी। आर्यभट्ट के द्धारा की गई खोजों ने विज्ञान और गणित के क्षेत्र में एक नया आयाम प्रदान किया है और इसे आसान बना दिया है। आपको बता दें कि बीजगणित (एलजेबरा) का इस्तेमाल करने वाले आर्यभट्ट पहले शख्सियत थे। ऐसा माना जाता है कि ‘निकोलस कॉपरनिकस’ से करीब 1 हजार साल पहले ही आर्यभट्ट ने यह अविष्कार कर लिया था कि पृथ्वी गोल है और वह सूर्य के चारो ओर चक्कर लगाती है। यही नहीं आर्यभट्ट जी ने अपने नाम पर आर्यभट्टीय ग्रंथ की रचना की थी। उनके इस ग्रंथ में अंकगणित, बीजगणित और त्रिकोणमति गणित को समझाने की कोशिश की गई है साथ ही खगोल को समाहित को भी किया गया है। आइए जानते है भारत के महान वैज्ञानिक आर्यभट्ट जी की अविष्कार और उनके जीवन से जुड़ी महत्वपूर्ण खोजों के बारे में –

महान गणितज्ञ आर्यभट की जीवनी – Aryabhatta Biography In Hindi

एक नजर में-

नाम (Name) आर्यभट्ट
जन्म (Birthday)  476 ईसवी अश्मक, महाराष्ट्र, भारत
मृत्यु (Death) 550 ईसवी
कार्य (Work) गणितज्ञ, ज्योतिषविद एवं खगोलशास्त्री
पढ़ाई (Education) नालंदा विश्वविद्यालय
प्रसिद्ध रचनायें आर्यभटीय, आर्यभट्ट सिद्धांत
महत्वपूर्ण योगदान पाई एवं शून्य की खोज

जन्म और शुरुआती जीवन –

महान गणितज्ञ आर्यभट्ट जी का जन्म के बारे में इतिहासकारों के अलग-अलग मत है। कई इतिहासकार उनका जन्म  476 ईसवी में कुसुमपुर ( आधुनिक पटना) में बताते हैं, तो कई इतिहासकार उनका जन्म महाराष्ट्र के अश्मक में बताते हैं। वहीं ऐसा माना जाता है कि आर्यभट्ट पटना की मुख्य नालंदा यूनिवर्सिटी से जुड़े हुए थे।

प्रसिद्द रचनाएं –

आर्यभट्ट ने अपनी जीवनकाल में कई महान ग्रंथों की रचना की थी, जिनमें से उनके आर्य़भट्टीय, तंत्र, दशगीतिका और आर्यभट्ट सिद्धांत प्रमुख थे। हालांकि, उनकी आर्यभट्ट सिंद्धात नामक ग्रंथ एक विलुप्त ग्रंथ है। जिसके सिर्फ 34 श्लोक ही वर्तमान में उपलब्ध है। इतिहासकारों की माने तो आर्यभट्ट के इस ग्रंथ का सबसे अधिक इस्तेमाल सातवीं सदी में किया जाता था। यह उनका सबसे महत्वपूर्ण ग्रंथ था, जिसमें उन्होंने अंकगणित, बीजगणित, त्रिकोणमति की व्याख्या बेहद खूबसूरत तरीके से की थी। इसके अलावा इस ग्रंथ में वर्गमूल, घनमूल, सामान्तर श्रेणी समेत कई समीकरणों को भी आसान भाषा में समझाया गया है। उनके इस ग्रंथ में कुल 121 श्लोक हैं, जिन्हें अलग-अलग विषयों के आधार पर गीतिकापद, गणितपद, कालक्रियापद एवं गोलपद में बांटा गया है। आर्यभट्ट के इस ग्रंथ में 108 छंद है, उनके इस ग्रंथ को ”आर्यभट्टीय” नाम से संबोधित करते हैं।

”आर्यभट्ट सिद्धान्त” –

महान वैज्ञानिक आर्यभट्ट की यह प्रसिद्ध रचनाओं में से एक है। इसमें उन्होंने शंकु यंत्र, बेलनाकार यस्ती यंत्र, जल घड़ी, छाया यंत्र, कोण मापी उपकरण, छत्र यंत्र और धनुर यंत्र/चक्र यंत्र आदि का उल्लेख किया है।

गणित और विज्ञान के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान –

महान वैज्ञानिक और गणतिज्ञ आर्यभट्ट जी ने अपने महान खोजों और सिद्धान्तों से विज्ञान और गणित के क्षेत्र में अपना अभूतपूर्व योगदान दिया है। उन्होंने शून्य, पाई, पृथ्वी की परिधि आदि की लंबाई बताकर अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है। उनकी कुछ महत्वपूर्ण खोज इस प्रकार हैं-

उपग्रह एवं प्रेक्षण विज्ञान अनुसंधान –

19 अप्रैल, 1975 को भारत सरकार ने अपने पहला उपग्रह अंतरिक्ष में छोड़ा था, जिसका नाम उन्होंने महान गणितज्ञ और खगोल वैज्ञानिक आर्यभट्ट जी के नाम पर रखा था। यही नहीं इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन (ISRO) द्धारा वायुमंडल के संताप मंडल में जीवाणुओं की खोज की गई थी। जिनमें से एक प्रजाति का नाम बैसिलस आर्यभट्ट रखा गया था, जबकि भारत के उत्तराखंड राज्य के नैनीताल में आर्यभट्ट के सम्मान में एक वैज्ञानिक संस्थान का नाम ”आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान अनुसंधान” रखा गया है।

मृत्यु

गणित और विज्ञान के क्षेत्र में अपना महत्वपूर्ण योगदान देने वाले आर्यभट्ट जी ने लगभग 550 ईसा पूर्व में अपने जीवन की अंतिम सांस ली थी।

रोचक तथ्य –

महान वैज्ञानिक आर्यभट्ट जी ब्रम्हांड को अनादि-अनंत मानते थे। वहीं भारतीय दर्शन के मुताबिक इस सृष्टि का निर्माण वायु, अग्नि, जल, पृथ्वी और आकाश इन पांच तत्वों को मिलकर हुआ है, जबकि आर्यभट्ट जी आकाश को इन पंचतत्व में शामिल नहीं करते थे।

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