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रहीम के दोहे हिंदी अर्थ सहित | Rahim Ke Dohe

Rahim ke Dohe with Meaning

रहीम दास न सिर्फ एक अच्छे कवि के रूप में विख्यात हुए बल्कि वे मुगल सम्राट अकबर के दरबार में नवरत्नों में से एक थे। उनका पूरा नाम नवाब अब्दुल रहीम खान-ई-खाना था। रहीम दास जी का हिन्दी साहित्य में दिया गया योगदान अभूतपूर्व है और रहीम के दोहे जिसे कभी नहीं भुलाया जा सकता।

रहीम दास जी ने अपने दोहोंRahim ke Dohe के माध्यम से न सिर्फ लोगों को सही तरीके से जीवन जीने की कला सिखाई बल्कि जनता को नीति से संबंधित बातें बताईं इसके साथ ही लोगों को सही मार्ग पर चलने के लिए भी प्रेरित किया है और उन्हें सही मार्गदर्शन देने की  कोशिश की है।

Rahim Ke Dohe With Image

रहीम के दोहे हिंदी अर्थ सहित – Rahim Ke Dohe In Hindi

रहीम दास जी कलाप्रेमी, महान कवि और एक अच्छे साहित्यकार थे। रहीम दास जी अपने काव्य में रामायण, महाभारत, पुराण तथा गीता जैसे ग्रंथों के अंशो को उदाहरण के रूप में  इस्तेमाल करते थे। जो भारतीय संस्कृति की झलक को पेश करता है। रहीम दास ने अपनी काव्य रचना द्वारा हिन्दी साहित्य की जो सेवा की वह अद्भुत और काफी प्रशंसनीय है। रहीम के दोहे और रचनाएं प्रसिद्ध हैं।

आपको बता दें कि उनकी सभी कृतियां “रहीम ग्रंथावली” में समाहित हैं। रहीम के ग्रंथो में रहीम दोहावली या सतसई, बरवै, मदनाष्ठ्क, राग पंचाध्यायी, नगर शोभा, नायिका भेद, श्रृंगार, सोरठा, फुटकर बरवै, फुटकर छंद तथा पद, फुटकर कवितव, सवैये, संस्कृत काव्य प्रसिद्ध हैं।

रहीम ने तुर्की भाषा में लिखी बाबर की आत्मकथा “तुजके बाबरी” का फारसी में अनुवाद किया। “मआसिरे रहीमी” और “आइने अकबरी” में इन्होंने “खानखाना” और रहीम नाम से कविता की है।

रहीम दास जी का व्यक्तित्व बेहद प्रभावशाली और हर किसी को अपनी तरफ आर्कषित करने वाला था। वे मुसलमान होकर भी कृष्ण भक्त थे। रहीम ने अपने काव्य में रामायण, महाभारत, पुराण तथा गीता जैसे ग्रंथों के कथानकों को लिया है।

आपको बता दें कि रहीम ने अपने दोहे में खुद को “रहिमन” कहकर भी सम्बोधित किया है। इनके काव्य में नीति, भक्ति, प्रेम और श्रृंगार का सुन्दर समावेश मिलता है।

रहीम ने अपने जीवन के अनुभवों से कई दोहों को बेहद सरल और आसान भाषा शैली में अभिव्यक्त किया है। जो कि  वास्तव में अदभुत है। रहीम दास जी ने अपनी कविताओं में छंदों, दोहों में पूर्वी अवधी, ब्रज भाषा तथा खड़ी बोली का इस्तेमाल किया है। रहीम ने तदभव शब्दों का ज्यादा इस्तेमाल किया है।

आज हम आपको अपने इस लेख में रहीम जी के दोहों समेत उनके अर्थ –Rahim ke Dohe with Meaning के बारे में बताएंगे जो कि इस प्रकार है –

रहीम दास का दोहा नंबर 1 – Rahim Ke Dohe 1

रहीम दास जी ने अपने इस दोहे के माध्यम से ऐसे लोगों को शिक्षा देने की कोशिश की है, जिन्हें यह लगता है कि उन्हें किसी अन्य नाम से पुकारने से उनका महत्व कम हो जाएगा या फिर वे छोटे हो जाएंगे।

दोहा:

“जो बड़ेन को लघु कहें, नहीं रहीम घटी जाहिं। गिरधर मुरलीधर कहें, कछु दुःख मानत नाहिं।”

अर्थ:

रहीम अपने दोहें में कहते हैं कि किसी भी बड़े को छोटा कहने से बड़े का बड़प्पन कम नहीं होता, क्योंकि गिरिधर को कान्हा कहने से उनकी महिमा में कमी नहीं होती।

क्या सीख मिलती है:

रहीम दास जी के इस दोहे से माध्यम से हमें यह सीख मिलती है कि बड़प्पन नाम से नहीं बल्कि कामों से दिखता है। इसलिए किसी भी बड़े को छोटा कहने पर उसका बड़प्पन कम नहीं होता।

रहीम दास का दोहा नंबर 2 – Rahim Ke Dohe 2

रहीम दास जी का यह दोहा उन लोगों के लिए है जो लोग अपनी असफलता के लिए या फिर किसी गलत काम के लिए खुद को नहीं बल्कि गलत लोगों से मित्रता यानि कि बुरी संगति को दोष देकर खुद को संतोष देते हैं।

दोहा:

“जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करी सकत कुसंग। चन्दन विष व्यापे नहीं, लिपटे रहत भुजंग।”

अर्थ:

रहीम जी ने कहा की जिन लोगों का स्वभाव अच्छा होता हैं, उन लोगों को बुरी संगती भी बिगाड़ नहीं पाती, जैसे जहरीले साप सुगंधित चन्दन के वृक्ष को लिपटे रहने पर भी उस पर कोई प्रभाव नहीं दाल पाते।

क्या सीख मिलती है:

महाकवि रहीम दास जी के इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि हमें सदैव अपनी बुद्धि और विवेक से काम करना चाहिए और कभी खुद पर किसी दूसरे का बुरा प्रभाव नहीं पड़ने देना चाहिए क्योंकि जब तक हम खुद अच्छे नहीं बनेंगे और खुद का आचरण सही नहीं रखेंगे तब तक हम दूसरों को भी अपनी असफलता के लिए कोसते रहेंगे।

रहीम दास का दोहा नंबर 3 – Rahim Ke Dohe 3

आज के समाज में कई लोग ऐसे होते हैं जिन्हें रिश्तों की कदर नहीं होती है और वे बड़ी आसानी से रिश्ता तोड़ लेते हैं और यह नहीं समझते कि प्यार का रिश्ता बडा़ ही नाजुक होता है जो एक बार टूट जाए तो उसे आसानी से दोबारा नहीं जोड़ा जा सकता है। ऐसे लोगों के लिए रहीम दास जी ने अपने इस दोहे में बड़ी सीख दी है।

दोहा:

“रहिमन धागा प्रेम का, मत टोरो चटकाय। टूटे पे फिर ना जुरे, जुरे गाँठ परी जाय”

अर्थ:

रहीम ने कहा कि प्यार का नाता नाजुक होता हैं, इसे तोड़ना उचित नहीं होता। अगर ये धागा एक बार टूट जाता हैं तो फिर इसे मिलाना मुश्किल होता हैं, और यदि मिल भी जाये तो टूटे हुए धागों के बीच गांठ पड़ जाती हैं।

क्या सीख मिलती है:

रहीम दास जी के इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि हमें रिश्तों की कदर करनी चाहिए और एक-दूसरे के प्रति आदर-सम्मान का भाव रखना चाहिए क्योंकि अगर  एक बार रिश्ता टूट जाता है तो फिर कितनी भी कोशिश क्यों न कर लें यह जोड़ा नहीं जा सकता है।

रहीम दास का दोहा नंबर 4 – Rahim Ke Dohe 4

इस दोहे के माध्यम से हिन्दी साहित्य के महान कवि रहीम दास जी ने यह समझाने की कोशिश की है कि इंसान के गुणों की पहचान इंसान की वाणी से होती है।

दोहा:

“दोनों रहिमन एक से, जों लों बोलत नाहिं। जान परत हैं काक पिक, रितु बसंत के नाहिं”

अर्थ:

रहीम कहते हैं कि कौआ और कोयल रंग में एक समान काले होते हैं। जब तक उनकी आवाज ना सुनायी दे तब तक उनकी पहचान नहीं होती लेकिन जब वसंत रुतु आता हैं तो कोयल की मधुर आवाज से दोनों में का अंतर स्पष्ट हो जाता हैं।

क्या सीख मिलती है-

रहीम दास जी के इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि हम किसी भी व्यक्ति के गुणों और उसके स्वभाव का अंदाजा उसकी वाणी से लगा सकते हैं अर्थात हमें भी मधुर भाषा का इस्तेमाल करना चाहिए क्योंकि मधुर आवाज सबको अपनी तरफ आर्कषित करती है और इससे हम अपने कई बिगड़े कामों को भी कर सकते हैं।

रहीम दास का दोहा नंबर 5 – Rahim Ke Dohe 5

कई लोग ऐसे होते हैं जो इंसान के नीच स्वभाव को जानते हुए भी उनसे दोस्ती कर लेते है या फिर किसी बात को लेकर झगड़ा कर लेते हैं। रहीम दास जी ने इस दोहे में ऐसे ही लोगों के लिए बड़ी सीख दी है।

दोहा:

“रहिमन ओछे नरन सो, बैर भली न प्रीत। काटे चाटे स्वान के, दोउ भाँती विपरीत।”

अर्थ:

गिरे हुए लोगों से न तो दोस्ती अच्छी होती हैं, और न तो दुश्मनी। जैसे कुत्ता चाहे काटे या चाटे दोनों ही अच्छा नहीं होता।

क्या सीख मिलती है:

महाकवि रहीम दास जी के इस दोहे से हमें यह सीखने को मिलता है कि इंसान के स्वभाव को जानकर ही उससे दोस्ती करनी चाहिए क्योंकि गलत इंसान से दोस्ती और दुश्मनी दोनों ही खराब होती हैं।

रहीम दास का दोहा 6 – Rahim Ke Dohe class 6

जो लोग बड़ी चीजों को देखकर छोटी चीजों को कोई महत्व नहीं देते या फिर या फिर कुछ लोग  यह भूल जाते हैं कि अलग-अलग चीजों का अलग-अलग महत्व होता है ऐसे लोगों के लिए रहीम दास जी का यह दोहा काफी शिक्षाप्रद है।

दोहा:

“रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिए डारी। जहां काम आवे सुई, कहा करे तरवारी।”

अर्थ:

बड़ी वस्तुओं को देखकर छोटी वास्तु को फेंक नहीं देना चाहिए, जहां छोटी सी सुई कम आती हैं, वहां बड़ी तलवार क्या कर सकती हैं?

क्या सीख मिलती है:

रहीम दास जी के इस दोहे से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें हर चीज के महत्व को समझना चाहिए क्योंकि अलग-अलग चीजों का अपना अलग महत्व होता है उदाहरण के लिए जहां सुई का इस्तेमाल किया जाना है वहां तलवार क्या काम आएगी।

रहीम दास का दोहा 7- Rahim Ke Dohe class 7

आज के समय में कई लोग ऐसे हैं कि बुरा वक्त या फिर दुख का समय आने पर डिप्रेशन में चले जाते हैं या फिर जरूरत से ज्यादा पछाताव करते हैं। उन लोगों के लिए रहीम दास जी ने निम्नलिखित दोहों में बड़ी सीख दी है।

दोहा:

”समय पाय फल होता हैं, समय पाय झरी जात। सदा रहे नहीं एक सी, का रहीम पछितात।”

अर्थ:

हमेशा हर किसी की अवस्था एक जैसी नहीं रहती जैसे रहीम कहते हैं की सही समय आने पर वृक्ष पर फल लगते हैं और झड़ने का समय आने पर वह झड़ जाते हैं। वैसे ही दुःख के समय पछताना व्यर्थ हैं।

क्या सीख मिलती है:

रहीम दास जी के इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि हमें हर परिस्थिति के लिए तैयार रहना चाहिए और इसका डटकर सामना करना चाहिए क्योंकि इंसान के जीवन में सुख और दुख दोनों समय आते हैं इसलिए इंसान को हर समय में एक जैसा रहना चाहिए।

अर्थात सुख आने पर ज्यादा खुश नहीं होना चाहिए और दुख की घड़ी में ज्यादा दुखी नहीं होना चाहिए।

रहीम दास का दोहा 8 – Rahim Ke Dohe class 8

रहीम दास जी ने इस दोहे के माध्यम से उन लोगों को सीख देने की कोशिश की है जो लोग दूसरे की मद्द नहीं करते या फिर जिनके अंदर दया करने की भावना ही नहीं होती है लेकिन सुंदर और बाहरी दिखावा के लिए अच्छा इंसान बनने की कोशिश करते हैं।

दोहा:

“वे रहीम नर धन्य हैं, पर उपकारी अंग। बाँटन वारे को लगे, ज्यो मेहंदी को रंग।”

अर्थ:

रहीमदास जी ने कहा की वे लोग धन्य हैं, जिनका शरीर हमेशा सबका उपकार करता हैं। जिस प्रकार मेहंदी बाटने वाले के शरीर पर भी उसका रंग लग जाता हैं। उसी तरह परोपकारी का शरीर भी सुशोभित रहता हैं।

क्या सीख मिलती है:

एक अच्छा इंसान बनने के लिए रहीम दास जी के इस दोहे से जरूर सीख लेना चाहिए, दूसरो की मद्द करने से न सिर्फ भलाई मिलती है बल्कि परोपकारी और सज्जन पुरुष का शरीर और अधिक सुंदर और सुशोभित रहता है क्योंकि दूसरों की भलाई में ही खुद की भलाई छिपी रहती है।

रहीम दास का दोहा 9 – Rahim Ke Dohe class 9

आज के समय में कई ऐसे लोग हैं जो बिना सोचे-समझे व्यवहार करते हैं, जिसकी वजह से उन्हें भारी परेशानी का सामना करना पड़ता है ऐसे लोगों के लिए रहीम दास जी का यह दोहा बड़ा शिक्षाप्रद है।

दोहा:

“बिगरी बात बने नहीं, लाख करो कीं कोय। रहिमन फाटे दूध को, मथे न माखन होय।”

अर्थ:

इन्सान को अपना व्यवहार सोच समझ कर करना चाहिेए, क्योंकि किसी भी कारण से अगर बात बिगड़ जाये तो उसे सही करना बहुत मुश्किल होता हैं जैसे एक बार दूध ख़राब हो गया तो कितनी भी कोशिश कर लो उसे मठ कर मख्खन नहीं निकाला जा सकता।

क्या सीख मिलती है:

रहीम दास जी के इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि हमें सभी से अच्छा व्यवहार करना चाहिए क्योंकि एक बार अगर हमारी छवि किसी के सामान बिगड़ जाती है तो उसे दोबारा से सही नहीं किया जा सकता है।

रहीम दास का दोहा 10 – Rahim Ke Dohe class 10

जहां ज्यादा प्यार होता है वहीं झगड़ा होना भी स्वभाविक है, लेकिन कई लोग ऐसे होते हैं कि छोटी सी बात को लेकर नाराजगी लिए बैठे रहते हैं। जिससे रिश्तों में दरार आ जाती है या फिर गुस्से की वजह से कई इंसान अपने प्रिय दोस्त या प्रिय सदस्य को खो देते हैं। रहीम दास जी ने ऐसे लोगों के लिए इस दोहे में बड़ी सीख दी है।

दोहा:

“रूठे सृजन मनाईये, जो रूठे सौ बार। रहिमन फिरि फिरि पोईए, टूटे मुक्ता हार।”

अर्थ:

यदि माला टूट जाये तो उन मोतियों के धागे में पीरों लेना चाहिये वैसे आपका प्रिय व्यक्ति आपसे सौ बार भी रूठे तो उसे मना लेना चाहिए।

क्या सीख मिलती है – महान विचारक रहीम दास जी के इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि हमें हमेशा अपनों का ख्याल रखना चाहिए और अपने कभी रूठ भी जाते हैं तो उन्हें जल्द ही मना लेना चाहिए क्योंकि कभी-कभी छोटी सी बात को लेकर ही अपनों का साथ छूट जाता है।

रहीम दास का दोहा नंबर 11- Rahim Ke Dohe 11

जो लोग सहनशील नहीं होते और खुशी में ज्यादा उत्साहित और दुख के समय में दुखी रहते हैं, उन लोगों के लिए रहीम दास जी अपने इस दोहे में बड़ी सीख दी है।

दोहा:

“जैसी परे सो सही रहे, कही रहीम यह देह। धरती ही पर परत हैं, सित घाम औ मेह।”

अर्थ:

रहीम कहते हैं की जैसे धरती पर सर्दी, गर्मी और वर्षा पड़ती तो वो उसे सहती हैं वैसे ही मानव शरीर को सुख दुःख सहना चाहिये।

क्या सीख मिलती है:

रहीम दास के इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि इंसान को सहनशील प्रवृत्ति का होना चाहिए क्योंकि जिन लोगों के अंदर सहनशक्ति नहीं होती है उन्हें काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है इसलिए मानव शरीर को दुख-सुख दोनो एक तरह से सहना चाहिए।

रहीम दास का दोहा नंबर 12 – Rahim Ke Dohe 12

आज के जमाने में कई लोग ऐसे हैं जो अपने कटु वचनों से दूसरों का मन दुखाते हैं या फिर दूसरों की परवाह नहीं करते हैं, ऐसे लोगों के लिए रहीम दास जी ने अपने इस दोहे में बड़ी बात कही है।

दोहा:

“खीर सिर ते काटी के, मलियत लौंन लगाय। रहिमन करुए मुखन को, चाहिये यही सजाय।”

अर्थ:

रहीमदस जी कहते हैं की खीरे के कड़वेपण को दूर करने के लिए उसके उपरी सिरे को काटने के बाद उस पर नमक लगाया जाता हैं। कड़वे शब्द बोलने वालो के लिये यही सजा ठीक हैं।

क्या सीख मिलती है:

रहीम दास जी के इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि हमें हमेशा मीठी और मधुर भाषा का ही इस्तेमाल करना चाहिए और हमेशा यह ध्यान रखना चाहिए कि हम जो भी वचन बोल रहे हैं, उससे किसी का मन नहीं दुखे और किसी तरह का नुकसान नहीं हो। नहीं तो इसकी सजा भुगतनी पड़ सकती है ठीक उसी तरह जैसे खीरे के कड़वे भाग को काटकर उसमें नमक लगा दिया जाता है।

रहीम दास का दोहा नंबर 13 – Rahim Ke Dohe 13

जिन लोगों को अपने लोग ही धोखा देते हैं या फिर जिन लोगों को अपने घर के लोगों से ही प्यार नहीं मिलता उन लोगों के लिए रहीम दास जी ने अपने इस दोहे में बड़ी बात कही है।

दोहा:

“रहिमन अंसुवा नयन ढरि, जिय दुःख प्रगट करेड़, जाहि निकारौ गेह ते, कस न भेद कही देई।”

अर्थ:

आंसू आंखों से बहकर मन का दुख प्रकट कर देते हैं, रहीमदास जी कहते हैं कि ये बिलकुल सत्य हैं की जिसे घर से निकाला जाएगा वह घर का भेद दूसरों को ही बताएगा।

क्या सीख मिलती है:

रहीम दास जी के इस दोहे से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें अपनों की कदर करनी चाहिए और अपने प्रिय मित्रों और परिवार के लोगों की मद्द करनी चाहिए क्योंकि जो लोग अपनों की कदर नहीं करते हैं वे लोग दूसरों से अपनी बातें शेयर करते हैं और अपने घर का राज दूसरों को बता देते हैं।

रहीम दास का दोहा नंबर 14 – Rahim Ke Dohe 14

जो लोग यह सोचते हीं कि अपनी परेशानी किसी और से सांझा करने में दुख कम हो जाएगा या फिर किसी तरह का हल  निकल जाएगा खासकर ऐसे लोगों के लिए रहीमदास जी ने अपने इस दोहे में बड़ी सीख दी है।

दोहा:

“रहिमन निज मन की बिथा, मन ही राखो गोय। सुनी इठलैहैं लोग सब, बांटी लैहैं कोय।”

अर्थ:

अपने मन के दुःख को मन के अंदर ही छिपा कर रखना चाहिये क्योंकि दूसरों का दुःख सुनकर लोग इठला भले ही लेते हैं लेकिन उसे बांट कर काम करने वाले बहु कम लोग होते हैं।

क्या सीख मिलती है:

रहीमदास जी के इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि हमें अपनी परेशानी का हल खुद ही ढूंढने की कोशिश करनी चाहिए क्योंकि आज की दुनिया में ऐसे बहुत कम लोग होते हैं तो किसी दूसरी की परेशानी को समझें।

रहीम दास का दोहा नंबर 15 – Rahim Ke Dohe 15

रहीम दास जी के इस दोहे में उन लोगों को बड़ी सीख देने की कोशिश की है जो लोग, अपने से छोटों की बदमाशियां करने पर उन्हें माफ नहीं करते और बड़े होकर भी बदमाशियां करना नहीं छोड़ते जिससे उन्हें कई बार भारी नुकसान उठाना पड़ता है।

दोहा:

“छिमा बड़न को चाहिये, छोटन को उतपात। कह रहीम हरी का घट्यौ, जो भृगु मारी लात।”

अर्थ:

उम्र से बड़े लोगों को क्षमा शोभा देती हैं, और छोटों को बदमाशी। मतलब छोटे बदमाशी करें तो कोई बात नहीं बड़ो ने छोटों को इस बात पर क्षमा कर देना चाहिये। अगर छोटे बदमाशी करते हैं तो उनकी मस्ती भी छोटी ही होती हैं। जैसे अगर छोटासा कीड़ा लात भी मारे तो उससे कोई नुकसान नहीं होता।

क्या सीख मिलती है:

रहीम दास जी के इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि हमें अपने छोटों को हमेशा माफ करना चाहिए और उनकी गलतियों के लिए उन्हें प्यार से समझाना चाहिए और हमें हमेशा समझदारी से काम करना चाहिए।

अगले पेज पर और भी दोहे हैं…

रहीम दास का दोहा नंबर 16 – Rahim Ke Dohe 16

आज की दुनिया में ज्यादातर लोग ऐसे हैं जो स्वार्थी होते हैं और खुद के बारे में ही हमेशा सोचते रहते हैं और किसी का भला नहीं करते है। ऐसे लोगों के लिए रहीम दास जी ने अपने इस दोहे में बड़ी सीख देने की कोशिश की है।

दोहा:

“तरुवर फल नहीँ खात हैं, सरवर पियहि न पान। कही रहीम पर काज हित, संपति संचही सुजान।”

अर्थ:

पेड़ अपने फ़ल खुद नहीं खाते हैं और नदियाँ भी अपना पानी स्वयं नहीं पीती हैं। इसी तरह अच्छा व्यक्ति वो हैं जो दूसरों को दान के कार्य के लिये अपनी संपत्ति को खर्च करते हैं।

क्या सीख मिलती है:

रहीम दास जी के इस दोहे  से  हमें यह सीख मिलती है कि हमें सदैव दूसरों की भलाई के लिए तत्पर रहना चाहिए और जरूरतमंद लोगों की सेवा करनी चाहिए तभी हम एक अच्छे इंसान कहलाएंगे।

रहीम दास का दोहा नंबर 17- Rahim Ke Dohe 17

जो लोग सिर्फ दुख के समय में या फिर विपत्ति के समय में ही ईश्वर को याद करते हैं उन लोगों के लिए रहीम दास जी ने नीचे लिखे गए दोहे के माध्यम से बड़ी सीख देने की कोशिश की है।

दोहा:

“दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय। जो सुख में सुमिरन करे, तो दुःख काहे होय।”

अर्थ:

दुःख में सभी लोग भगवान को याद करते हैं। सुख में कोई नहीं करता, अगर सुख में भी याद करते तो दुःख होता ही नही।

क्या सीख मिलती है:

रहीम दास जी के इस दोहे से हमें सुख के समय में ईश्वर की प्रार्थना करनी नहीं छोड़नी चाहिए और उनका शुक्रियादा अदा करना नहीं भूलना चाहिए ऐसा करने से दुख के समय ईश्वर हमारी प्रार्थना सुनेगा और हमारी परेशानियों का समाधान करेगा।

रहीम दास का दोहा नंबर 18- Rahim Ke Dohe 18

महाकवि रहीम दास जी ने इस दोहे में उन लोगों को सीख दी है जो लोग  किसी से दुश्मनी, किसी के प्रति प्यार, शराब का नशा या फिर अपनी खुशी, खून और खांसी को छिपाने की कोशिश करते हैं।

दोहा:

“खैर, खून, खाँसी, खुसी, बैर, प्रीति, मदपान। रहिमन दाबे न दबै, जानत सकल जहान।”

अर्थ:

सारा संसार जानता हैं की खैरियत, खून, खाँसी, ख़ुशी, दुश्मनी, प्रेम और शराब का नशा छुपाने से नहीं छिपता हैं।

क्या सीख मिलती है:

महाकवि रहीम दास जी के इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि हमें किसी के प्रति प्यार है तो उसे छिपाना नहीं चाहिए क्योंकि वह एक न एक दिन सबके सामने उजागर हो ही जाता है। इसी तरह किसी से दुश्मनी है तो भी नहीं छिपानी चाहिए क्योंकि जो लोग दुश्मन होते हैं उनका पता सबको अपने आप चल जाता है और शराब का नशा करके कभी नहीं छिपाना चाहिए क्योंकि व्यक्ति के हाव-भाव से ही उसके नशा करने का अंदाजा लगा लिया जाता है।

इसके अलावा किसी भी व्यक्ति को अपनी खुशी, खांसी और खैरियत को भी छिपाने की कोशिश नहीं करनी चाहिए।

रहीम दास का दोहा नंबर 19- Rahim Ke Dohe 19

जो लोग अपनी छोटी-मोटी सफलता पर ही घमंडी बन जाते हैं और अपने अभिमान में चूर होकर किसी के साथ सही तरह से व्यवहार नहीं करते हैं उन लोगों के लिए रहीम दास जी ने इस दोहे में बड़ी सीख दी है।

दोहा:

“जो रहीम ओछो बढै, तौ अति ही इतराय। प्यादे सों फरजी भयो, टेढ़ों टेढ़ों जाय।”

अर्थ:

नीच प्रवृत्ति के लोग जब प्रगति करते हैं और अपने जीवन में आगे बढ़ते हैं, तो वो बहुत घमंड करने लगते हैं। वैसे ही जैसे शतरंज के खेल में ज्यादा फ़र्जी बन जाता हैं तो वह टेढ़ी चाल चलने लगता हैं।

क्या सीख मिलती है:

रहीम दास जी के इस दोहे से  हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें अपनी छोटी-मोटी सफलता पर कभी अभिमान नहीं करना चाहिए क्योंकि ऐसा करने वाले लोगों की सफलता ज्यादा देर तक नहीं टिकती और आगे वे कुछ नहीं कर पाते।

रहीम दास का दोहा नंबर 20- Rahim Ke Dohe 20

रहीम दास जी ने उन लोभियों के लिए इस दोहे में बड़ी सीख दी है जो अक्सर कुछ न कुछ पाने की चाह में लगे रहते हैं और अपनी जिंदगी बेकार कर लेते हैं।

दोहा:

“चाह गई चिंता मिटीमनुआ बेपरवाह। जिनको कुछ नहीं चाहिये, वे साहन के साह।”

अर्थ:

जिन लोगों को कुछ नहीं चाहिये वों लोग राजाओं के राजा हैं, क्योंकि उन्हें ना तो किसी चीज की चाह हैं, ना ही चिन्ता और मन तो पूरा बेपरवाह हैं।

क्या सीख मिलती है:

रहीम दास जी के इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि हमें लालची नहीं बनना चाहिए और किसी चीज को पाने की इच्छा नहीं रखनी चाहिए क्योंकि जो लोग किसी चीज को पाने के लिए भागते रहते हैं। ऐसे लोग खुशी से अपनी जिंदगी नहीं बिता पाते।

रहीम दास का दोहा नंबर 21- Rahim Ke Dohe 21

आज की दुनिया में ज्यादातर लोग अपने बारे में सोचते रहते हैं और अन्य लोगों की परवाह नहीं करते हैं। उन लोगों के लिए रहीम दास जी ने इस दोहे में बड़ी सीख दी है।

दोहा:

“जे गरिब पर हित करैं, हे रहीम बड। कहा सुदामा बापुरो, कृष्ण मिताई जोग।”

अर्थ:

जो लोग गरीब का हित करते हैं वो बड़े लोग होते हैं। जैसे सुदामा कहते हैं कृष्ण की दोस्ती भी एक साधना हैं।

क्या सीख मिलती है:

रहीम दास जी के इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि हमें गरीबों  की मद्द करनी चाहिए क्योंकि इसी में हमारा हित छिपा हुआ है।

रहीम दास का दोहा नंबर 22 – Rahim Ke Dohe 22

जिन लोगों को अपने बुरे आचरण वाली संतान पर घमंड होता है और जो लोग अपनी संतान के अवगुण छिपाने की कोशिश में लगे रहते हैं ऐसे लोगों के लिए रहीम दास ने इस दोहे में बड़ी बात कही है।

दोहा:

“जो रहीम गति दीप की, कुल कपूत गति सोय। बारे उजियारो लगे, बढे अंधेरो होय।”

अर्थ:

दिए के चरित्र जैसा ही कुपुत्र का भी चरित्र होता हैं। दोनों ही पहले तो उजाला करते हैं पर बढ़ने के साथ अंधेरा होता जाता हैं।

क्या सीख मिलती है:

महान विचारक रहीम दास जी के इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि हमें अपनी संतान पर पूरा ध्यान देना चाहिए और उसके अवगुणों को छिपाना नहीं चाहिए बल्कि उन्हें उजागर कर उसमें सुधार लाना चाहिए। जहां एक अच्छे गुण वाली संतान पूरे कुल को लेकर चलती है वहीं बुरे आचरण वाली संतान सब कुछ नष्ट कर देती है।

रहीम दास का दोहा नंबर 23 – Rahim Ke Dohe 23

रहीम दास जी ने इस दोहे में उन सभी के लिए बड़ी सीख दी है जो व्यक्ति किसी अन्य के पास कुछ पाने की चाह में जाते हैं।

दोहा:

“रहिमन वे नर मर गये, जे कछु मांगन जाहि। उतने पाहिले वे मुये, जिन मुख निकसत नाहि।”

अर्थ:

जो इन्सान किसी से कुछ मांगने के लिये जाता हैं वो तो मरे हैं ही परन्तु उससे पहले ही वे लोग मर जाते हैं जिनके मुंह से कुछ भी नहीं निकलता हैं।

क्या सीख मिलती है:

रहीम दास जी के इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि हमें कभी किसी से कुछ पाने की चाहत नहीं रखनी चाहिए।

रहीम दास का दोहा नंबर 24 – Rahim Ke Dohe 24

ये दोहा उन लोगों के लिए हैं जो अच्छे और बुरे इंसानों में फर्क नहीं कर पाते और यूं ही किसी पर भी भरोसा कर अपनी जिंदगी काटते रहते हैं।

दोहा:

“रहिमन विपदा ही भली, जो थोरे दिन होय। हित अनहित या जगत में, जानि परत सब कोय।”

अर्थ:

संकट आना जरुरी होता हैं क्योंकि इसी दौरान ये पता चलता है की संसार में कौन हमारा हित सोचता है और कौन हमारा बुरा सोचता हैं।

क्या सीख मिलती है:

रहीम दास जी के इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि हमें अपने बुरे वक्त में काम में आने वालों को ही अपना सच्चा मित्र मानना चाहिए क्योंकि सुख के समय में तो हर कोई मद्द के लिए तत्पर रहता है लेकिन संकट के समय में बेहद कम लोग ही ऐसे होते हैं जो साथ देते हैं और ऐसे लोग ही सच्चे मित्र कहलाने लायक होते हैं।

रहीम दास का दोहा नंबर 25 – Rahim Ke Dohe 25

बुहत सारे लोग लंबे कद के होते हैं जो दिखने में तो बड़े लगते हैं लेकिन हकीकत में वे किसी के काम नहीं आते ऐसे लोगों के लिए रहीम दास जी ने इस दोहे में बड़ी सीख दी है।

दोहा:

“बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर। पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर।”

अर्थ:

बड़े होने का यह मतलब नहीं हैं की उससे किसी का भला हो। जैसे खजूर का पेड़ तो बहुत बड़ा होता हैं लेकिन उसका फल इतना दूर होता है की तोड़ना मुश्किल का काम है।

क्या सीख मिलती है:

रहीम दास जी के इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि अच्छा कामों से बड़ा बनना चाहिए न कि सिर्फ कद से ऊंचे होकर बड़े बनने की कोशिश करनी चाहिए।

रहीम दास का दोहा नंबर 26 – Rahim Ke Dohe 26

जो लोग बुरे वक्त में घबराकर उल्टे-सीधे काम करते रहते हैं, रहीम दास जी का यह दोहा उन्हीं  लोगों के लिए हैं। ऐसे लोगों को रहीम दास जी के इस दोहे से बड़ी सीख लेनी चाहिए।

दोहा:

“रहिमन चुप हो बैठिये, देखि दिनन के फेर। जब नाइके दिन आइहैं, बनत न लगिहैं देर।”

अर्थ:

जब बुरे दिन आये तो चुप ही बैठना चाहिये, क्योंकि जब अच्छे दिन आते हैं तब बात बनते देर नहीं लगती।

क्या सीख मिलती है:

रहीम दास जी के इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि हमें बुरे वक्त में चुप रहना चाहिए क्योंकि जब इंसान का वक्त सही नहीं चलता है तो अच्छे काम भी उल्टे पड़ जाते हैं।

रहीम दास का दोहा नंबर 27 – Rahim Ke Dohe 27

जो लोग कटु वचन बोलते हैं और अपने वचनों से अन्य लोगों का मन दुखाते हैं। ऐसे लोगों के लिए रहीम दास जी ने नीचे लिखे दोहे में बड़ी सीख दी है।

दोहा:

“बानी ऐसी बोलिये, मन का आपा खोय। औरन को सीतल करै, आपहु सीतल होय।”

अर्थ:

अपने अंदर के अहंकार को निकालकर ऐसी बात करनी चाहिए जिसे सुनकर दूसरों को और खुद को ख़ुशी मिले।

क्या सीख मिलती है:

रहीम दास जी के इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि हमें  सबसे मीठे और मधुर बोली बोलनी चाहिए जिसे सुनकर दूसरों को खुशी मिले और उसके अंदर सकारात्मक भाव पैदा हो।

रहीम दास का दोहा नंबर 28 – Rahim Ke Dohe 28

जिन लोगों के आपस में मन खट्ठे हो जाते हैं लेकिन वह फिर से पहले जैसे करने की कोशिश में लगे रहते हैं और सोचते हैं कि जो हो गया उसे छोड़ो और फिर से अच्छे से मिलकर रहो उन लोगों के लिए रहीम दास जी ने अपने इस दोहे में बड़ी सीख दी है।

दोहा:

“मन मोटी अरु दूध रस, इनकी सहज सुभाय। फट जाये तो न मिले, कोटिन करो उपाय।”

अर्थ:

मन, मोती, फूल, दूध और रस जब तक सहज और सामान्य रहते हैं तो अच्छे लगते हैं लेकिन अगर एक बार वो फट जाएं तो कितने भी उपाय कर लो वो फिर से सहज और सामान्य रूप में नहीं आते।

क्या सीख मिलती है:

इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि हमें आपस में अच्छे संबंध रखने चाहिए और एक-दूसरे का मन नहीं दुखाना चाहिए क्योंकि जब एक बार मन खट्ठे हो जाते है तो इंसान चाहे कितनी भी कोशिश क्यों नहीं कर ले फिर पहले जैसी बात नहीं आ पाती।

रहीम दास का दोहा नंबर 29 – Rahim Ke Dohe 29

जो लोग कठोर होते हैं और हर किसी से कठोर बर्ताव करते हैं, ऐसे लोगों के लिए रहीम दास जी ने इस दोहे में बड़ी बात कही है।

दोहा:

“रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सुन। पानी गये न ऊबरे, मोटी मानुष चुन।”

अर्थ:

इस दोहे में रहीम ने पानी को तीन अर्थों में प्रयोग किया है, पानी का पहला अर्थ मनुष्य के संदर्भ में है जब इसका मतलब विनम्रता से है। रहीम कह रहे हैं कि मनुष्य में हमेशा विनम्रता होनी चाहिये। पानी का दूसरा अर्थ आभा, तेज या चमक से है जिसके बिना मोती का कोई मूल्य नहीं। पानी का तीसरा अर्थ जल से है जिसे आटे से जोड़कर दर्शाया गया हैं।

रहीमदास का ये कहना है की जिस तरह आटे का अस्तित्व पानी के बिना नम्र नहीं हो सकता और मोती का मूल्य उसकी आभा के बिना नहीं हो सकता है, उसी तरह मनुष्य को भी अपने व्यवहार में हमेशा पानी यानी विनम्रता रखनी चाहिये क्योंकि इसके बिना उसका मूल्यह्रास होता है।

क्या सीख मिलती है:

रहीम दास जी के इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि हमें पानी की तरह अपने स्वभाव में विनम्रता रखनी चाहिए।

रहीम दास का दोहा नंबर 30 – Rahim Ke Dohe 30

जो लोग अच्छे-बुरे का फर्क नहीं कर पाते हैं उन लोगों के लिए रहीम दास जी ने इस दोहे में बड़ी सीख दी है।

दोहा:

“रहिमन विपदा हु भली, जो थोरे दिन होय। हित अनहित या जगत में, जान परत सब कोय।”

अर्थ:

यदि संकट कुछ समय का हो तो वह भी ठीक ही हैं, क्योंकि संकट में ही सबके बारे में जाना जा सकता हैं की दुनिया में कौन हमारा अपना हैं और कौन नहीं।

क्या सीख मिलती है:

रहीम दास जी के इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि संकट के समय में ही साथ देने वाले व्यक्ति को हमें अपना सच्चा मित्र मानना चाहिए क्योंकि विपत्ति के समय में जो साथ देता है असली में वही सच्चा मित्र कहलाता है।

निष्कर्ष:

बहरहाल रहीम दास जी के दोहों का अगर सही मायने में कोई व्यक्ति अनुसरण करें तो निश्चय ही वह अपने जीवन में बदलाव ला सकता है और सफलता की नई ऊंचाइयों को छू सकता है।

अगर आप भी रहीम दास जी के दोहों से प्रभावित हैं और अपनी जीवन में बदलाव लाना चाहते हैं तो यह दोहे आपके लिए बड़े कामगार सिद्ध हो सकते हैं। फिलहाल अगर आपको सही में रहीम दास जी के दोहे पसंद आए तो आप इन पर अपने विचार दें और कमेंट जरूर करें।

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