क्रांतिकारी अल्लूरी सीताराम राजू | Alluri Seetharama Raju Biography

Alluri Seetharama Raju

देश को आजादी दिलाने में कई सारे क्रांतिकारियों ने योगदान दिया तब जाकर भारत को आजादी मिल सकी। लेकिन जितने भी क्रांतिकारी हुए और जिन्होंने अंग्रेजो के खिलाफ लड़ाई लड़ी उनके उद्देश्य और रास्ते अलग अलग थे। कोई देशभक्त शहरो में रहकर अंग्रेजो के खिलाफ लड़ता था। कुछ देशभक्त ऐसे भी थे जिन्होंने गाव में रहकर अंग्रेजी सेना को शिकस्त दी। लेकिन कुछ ऐसे भी क्रांतिकारी थे जो जंगलो में रहकर अंग्रेजो के खिलाफ लड़ते थे।

Alluri Sitarama Raju
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क्रांतिकारी अल्लूरी सीताराम राजू – Alluri Seetharama Raju Biography

एक ऐसे ही देशभक्त जंगलो में रहकर अंग्रेजो के खिलाफ युद्ध करते थे। वे देश को आजादी दिलाना तो चाहते ही थे लेकिन जंगलो में रहने वाले लोगो को न्याय दिलाने के लिए भी लड़ते थे। आंध्रप्रदेश में रहने वाले अल्लूरी सीताराम राजू भी जंगलो में रहकर अंग्रेजो के साथ लड़ाई करते थे। उन्होंने कई बार युद्ध में अंग्रेजो को हराया था। आज इसी महान देशभक्त की जानकारी हम आपको देने जा रहे है।

अल्लूरी सीताराम राजू एक महान भारतीय क्रांतिकारी थे जिन्होंने देश के स्वतंत्रता आन्दोलन में महत्वपूर्ण योगदान दिया था। सन 1882 में मद्रास फारेस्ट एक्ट को मंजूरी दी गयी थी जिसके कारण जंगल में रहने वाले जनजाति के लोगो पर बहुत बड़ा संकट आ गया था।

जंगल में रहने वाले सभी लोग पोडू खेती करते थे। इस तरह की खेती में किसान कुछ समय एक जगह पर खेती करते थे और बाद में कुछ सालों तक उस जमीन को बंजर ही रखते थे। लेकिन नए कानून के आने से उन्हें इस तरह की खेती करने पर पाबन्दी लगा दी गयी थी।

इसके खिलाफ आवाज उठाने के लिए सन 1922-24 के दौरान जनजाति के लोगो ने अंग्रेजो के खिलाफ आवाज उठाई और आन्दोलन किया उनके इस आन्दोलन का नेतृत्व अल्लूरी सीताराम राजू ने किया था। स्थानीय लोग उन्हें ‘मन्यम वीरुदु’ कहकर बुलाते थे। हिंदी में इसका मतलब जंगल का नायक कहा जाता है। उन्होंने पूर्व गोदावरी और मद्रास प्रान्त के विशाखापत्तनम के सीमा पर बहुत बड़ा आन्दोलन किया था। यह आन्दोलन जिस जगह पर हुआ था वह जगह आज के आंध्रप्रदेश में स्थित है।

अल्लूरी सीताराम राजू बंगाल के अन्य क्रांतिकारियों से काफी प्रेरित हुए थे और उनसे प्रेरित होकर उन्होंने चिंतापल्ले, राम्पचोदावाराम, दम्मानापल्ली, कृष्णा देवी पेटा, राजवोम्मंगी, अद्दतीगाला, नर्सिपट्नम और अन्नावाराम के कई सारे पुलिस थानों पर हमला किया था और वहासे उन्होंने कई सारे हथियार, बंदूके और गोलाबारूद बरामद किये थे और कई सारे अंग्रेज अधिकारियो को भी मार डाला था जिनमे स्कॉट कोवार्ड भी शामिल थे।

उन्होंने दम्मंपल्ली के नजदीक ही स्कॉट कोवार्ड की हत्या कर दी थी। लेकिन आखिरी में अंग्रेजो ने उन्हें अपने जाल में फसाकर चिंतापल्ली के जंगल में पकड़ लिया था और उसके बाद उन्हें कोयुरु गाव में किसी पेड़ से बांध दिया था और उनकी गोली मारकर हत्या कर दी गयी थी। उनका स्मारक कृष्णा देवी पेटा गाव में स्थित है।

अल्लूरी सीताराम राजू का जीवन परिचय – Alluri Seetharama Raju Jivan Parichay

अल्लूरी सीताराम राजू के बारे में अलग अलग जगह से अलग अलग जानकारी मिली है। कुछ जगहों से मालूम पड़ता है की अल्लूरी सीताराम राजू का जन्म 4 जुलाई 1897 में विशाखापत्तनम जिले के भीमुनिपत्नाम में हुआ था। लेकिन कुछ जगहों पर बताया गया है की उनका जन्म पन्द्रंगी गाव में हुआ था। कुछ स्रोतों में यह भी बताया गया है की उनका जन्म 4 जुलाई 1898 में हुआ था।

जब राजू केवल 12 साल के थे तब उनके पिताजी की मृत्यु हो गयी थी। फिर उनके चाचा उन्हें नरसापुर ले गए और उसके बाद में वे कोव्वादा में रहते थे। बचपन से ही उन्हें पढाई में ज्यादा रुची नहीं थी लेकिन उन्हें वेदांत और योग में कुछ अधिक ही रुची थी।

सन 1918 में जब वे तुनि में रहते थे तो पहाड़ी पर रहने वाले जनजाति के लोगो से मिलते थे। जब वे उन लोगो से पहली बार मिले तो उनकी बुरी हालत देखकर बेहद निराश हो गये थे। उन्हें देखने के बाद अल्लूरी सीताराम राजू ने पढाई पूरी तरह से छोड़ दी और पूर्व गोदावरी और विजाग में अपनी खास मुहीम पर काम करना शुरू कर दिया था।

1922 के रामपा आन्दोलन

सन 1882 में मद्रास फारेस्ट एक्ट को मंजूरी दी गयी थी जिसकी वजह से जंगल में रहने वाले जनजाति के लोगो को खेती करने पर कई सारे कड़े कानून बनाये गए थे जिसके चलते सभी लोग उनकी पारंपरिक पोडू खेती कर नहीं सकते थे। लेकिन अल्लूरी सीताराम राजू ने अंग्रेजो के इस जुल्म के खिलाफ आवाज उठाई और उनके खिलाफ आंध्रप्रदेश में पूर्व गोदावरी और विशाखापत्तनम के सीमा पर एक बड़ा आन्दोलन शुरू किया था।

बंगाल के कई सारे क्रांतिकारियों से प्रेरित होकर अल्लूरी सीताराम राजू ने चिंतापल्ले, राम्पचोदावाराम, दम्मानापल्ली, कृष्णा देवी पेटा, राजवोम्मंगी, अद्दतीगाला, नर्सिपट्नम और अन्नावाराम के कई सारे पुलिस थानों पर हमला करके वहासे कई सारे हथियार, बंदूके और गोलाबारूद कब्जे में कर लिया। इस आन्दोलन के दौरान उन्होंने कई सारे अंग्रेज अधिकारियो की हत्या भी कर दी जिसमे उन्होंने दम्मानापल्ली के नजदीक स्कॉट कोवार्ड की भी हत्या कर दी थी।

दिसंबर 1922 में सांडर्स के नेतृत्व में पगादापल्ले के पास आसाम राइफल्स को तैनात किया था। उस वक्त अल्लूरी राजू छिपकर आन्दोलन करते थे। लेकिन उसके चार महीने बाद वे सामने आकर लड़ाई करने लगे थे उनके साथ में सभी जंगल में रहने वाले लोग धनुष और बानो से लड़ाई करते थे। उस वक्त उनकी सेना का नेतृत्व गम मल्लू और गन्तम डोरा करते थे।

अल्लूरी सीताराम राजू की मृत्यु – Alluri Seetharama Raju Death

18 सितम्बर 1923 को अल्लूरी राजू ने अन्नावाराम पुलिस थाने पर हमला कर दिया था लेकिन उस हमले के दौरान गम मल्लू डोरा को गिरफ्तार किया गया था। उनके इस आन्दोलन को नियंत्रण में रखने के लिए विशाखापत्तनम के कलेक्टर रुदरफोर्ड को जिम्मेदारी सौपी गयी थी।

उसके नेतृव में जो सेना उसने भेजी थी उसने सूर्य नारायण राजू पेरिचेर्ला को गिरफ्तार किया था। पेरिचेर्ला को सभी अग्गिराजू नाम से जानते थे और वह अल्लूरी राजू का सबसे महान अनुयायी था। अंग्रेजो ने जो दिसंबर 1922 में मुहीम शुरू की थी वह करीब एक साल तक चलती रही।

लेकिन आखिरी में चिंतापल्ली के जंगल में अंग्रेजो ने अल्लूरी राजू को अपने जाल में फसाकर पकड़ लिया था। बाद में कोय्युरु गाव में उन्हें पेड़ से बांधकर गोली मारकर उनकी हत्या कर दी गयी थी। पुलिस अफसर ज्ञानेश्वर राव ने उन्हें पकड़ने का काम किया था इसीलिए अंग्रेजो ने बदले में उन्हें राव बहादुर बना दिया था।
अल्लूरी राजू की कब्र कृष्णा देवीपेटा गाव में है।

सन 1986 में भारतीय डाक विभाग ने अल्लूरी राजू की याद में एक टिकेट जारी किया था। भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन की सीरीज में उस टिकेट को जारी किया गया था।

अल्लूरी सीताराम राजू के जीवन पर एक तेलेगु फ़िल्म भी बनायीं गयी थी और उस फिल्मे अभिनेता कृष्णा ने उनकी भूमिका निभाई थी। एलुरु के एक मैदान को अल्लूरी का ही नाम दिया गया है और उस मैदान को सभी अल्लूरी सीताराम राजू क्रिकेट स्टेडियम नाम से जानते है। आंध्र प्रदेश में उनके 4 जुलाई को उनके जन्म दिन को राज्य का त्यौहार के रूप में मनाया जाता है।

उन्होंने एक क्रांतिकारी के रूप में देश की आजादी के लिए जो काम किया और जंगलो में रहने वाले जनजाति के लोगो के कल्याण के लिए जो महत्वपूर्ण योगदान दिया उसकी याद में भारत सरकार ने संसद के सामने उनका स्मारक बनाने का फैसला किया है। लेकिन उनके स्मारक को बनाने के लिए 9 अक्तूबर 2017 को संसद सदस्य थोटा नर्सिम्हम और वी विजयासाईं रेड्डी ने संसद में सबके सामने विनती की थी।

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