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चे ग्वेरा का क्रांतिकारी इतिहास

चे ग्वेरा एक महान क्रांतिकारी, सामरिक सिद्धांतकार, कूटनीतिज्ञ और प्रसिद्ध लेखक, थे। जिन्होंने क्यूबा समेत दक्षिणी अमेरिका के कई राष्ट्रों को आजाद करवाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। जब वे अपनी डॉक्टरी की पढ़ाई कर रहे थे, उस दौरान दक्षिणी अमेरिका में व्याप्त गरीबी और आर्थिक विषमता को देख उनका ह्रदय भावभिवोर हो गया था और फिर उन्होंने पूरी तरह खुद को राष्ट्र सेवा में समर्पित कर दिया।

14 जून, 1929 में अर्जेंटीना के रोजारियों में जन्में अर्नेस्तो चे ग्वेरा ने क्यूबा क्रांति में अपनी महत्वपूर्ण योगदान दिया एवं एक महान क्रांतिकारी के रुप में उभरे, उन्होंने एक बहादुर क्रांतिकारी की तरह फिदेल के साथ मिलकर 100 गुरिल्ला लड़ाको की फौज तैयार की और क्रूर शासक बतिस्ता के शासन को उखाड़ फेंका। उनकी इस क्रांतिकारी गतिविधि ने अमेरिका को पूरी तरह हिला डाला था।

साल 1959 में क्यूबा क्रांति के बाद चे ग्वेरा ने कास्त्रो मिशन के दौरान पकड़े गए कई आरोपियों को बिना केस चलाए ही फांसी दे दी थी, जिसके चलते उनकी काफी आलोचना भी हुई, लेकिन इसके बाबजूद भी उनकी लोकप्रियता आज भी कायम है। उन्हें न सिर्फ अमेरिका में पसंद किया जाता है, बल्कि उनके विचारों से भारत के कई लोग प्रेरित हैं, तो आइए जानते हैं, महान क्रांतिकारी चे ग्वेरा के जीवन के बारे में कुछ महत्वपूर्ण तथ्य-

महान क्रांतिकारी चे ग्वेरा की कहानी – Che Guevara in Hindi

चे का जन्म एर्नेस्टो ग्वेरा के नाम से हुआ था। उनकी पत्नी का नाम सलिया दे ला सरना ल्लोसा है। उनका जन्म 14 जून 1928 को अर्जेंटीना के रोसरिओ में हुआ था। पांच संतानों के आर्जेंटीयन परिवार के वे सबसे बड़े बेटे है।

चिकित्सक शिक्षा के दौरान एर्नेस्टो चे ग्वेरा पुरे लतीनी अमेरिका में काफी घुमे। इस दौरान पुरे महाद्वीप में व्याप्त गरीबी ने उन्हें हिला कर रख दिया। तब उन्होंने निष्कर्ष निकाला की इस गरीबी और आर्थिक विषमता के मुख्य कारन थे अकधिप्तय, पूंजीवाद, नवउपनिवेशवाद और साम्राज्यवाद, जिनसे छुटकारा पाने का एकमात्र तरीका है “विश्वक्रांति”।

इसी निष्कर्ष का अनुसरण करते हुए उन्होंने गुआटेमाला के राष्ट्रपति याकोबो आरबेंज गुजमान के द्वारा किये जा रहे समाज सुधारो में भाग लिया। उनकी क्रन्तिकारी सोच और मजबूत हो गयी जब 1954 में गुजमान को अमेरिका की मदद से हटा दिया गया।

इसके कुछ ही समय बाद मेक्सिको सिटी में उहे रायुल और फिदेल कास्त्रो मिले और ये क्यूबा की 26 जुलाई क्रांति में शामिल हो गये। एर्नेस्टो चे ग्वेरा शीघ्र ही क्रांतिकारियों की कमान में दुसरे स्थान पर पहोच गये और बतिस्ता के राज्य के विरुद्ध दो साल तक चले अभियान में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

क्यूबा की क्रांति के बाद एर्नेस्टो चे ग्वेरा ने नयी सरकार में कई महत्वपूर्ण कार्य किये और साथ ही सारे विश्व में घूमकर क्यूबा समाजवाद के लिये अंतर्राष्ट्रीय समर्थन भी जुटाया। इनके द्वारा प्रशिक्षित सैनिको ने पिंग्स की खाड़ी आक्रमण को सफलतापूर्वक पछाड़ा।

वे बाद में सोवियत संघ से नाभिकीय प्रक्षेपास्त्र ले कर आये, जिनसे 1962 के क्यूबन प्रक्षेपास्त्र संकट की शुरुवात हुई और सारा विश्व नाभिकीय युद्ध की कगार पर पहोच गया। साथ ही एर्नेस्टो चे ग्वेरा ने बहोत कुछ लिखा भी है, इनकी सबसे प्रसिद्ध कृतिया है – गुरिल्ला युद्ध की नियम-पुस्तक और दक्षिणी अमेरिका में इनकी यात्राओ पर आधारित मोटर साइकिल डायरिया।

1965 में एर्नेस्टो चे ग्वेरा क्यूबा से निकलकर कांगो पहोचे जहा उन्होंने क्रांति लाने का विफल प्रयास किया। इसके बाद वे बोलविया पहुचे और क्रांति उकसाने की कोशिश की लेकिन पकडे गये और उन्हें गोली मार दी गयी।

एक पत्रिका ने चे को 20 वी शताब्दी के 100 सबसे प्रभावशाली लोगो में से एक बताया। जबकि विदेशो में तो उनके जीवन पर आधारित कुछ फिल्मे भी बनी हुई है। उनकी उपर फिल्माए गये फोटो को विश्व का सबसे सबसे प्रसिद्ध फोटोग्राफ माना गया था।

चे ग्वेरा एक जुनूनी क्रन्तिकारी थे। अपने अदम्य दुस्साहस, निरंतर संघर्षशीलता, अटूट इरादों व पूंजीवाद विरोधी मार्क्सवादी लेनिनवादी विचारधारा के कारन ही चे ग्वेरा आज पूरी दुनिया में युवाओ के महानायक है। वह चे ग्वेरा का ही जुनून था जिसमे 1959 में क्यूबा में क्रांति के बाद भी उन्हें चैन से बैठने नही दिया।

मरने से पहले चे का सपना तो पूरी हकीकत में नही बदल पाया लेकिन उनका संघर्ष अवश्य हकीकत बन गया। उनके द्वारा किये गये संघर्ष से आज भी करोडो लोग प्रेरणा लेते है। चे मार्क्सवाद को समर्पित बीसवी सदी के शायद सबसे प्रतिबद्ध विचारक-योद्धा थे। क्योकि चे के बाद क्रांतिकारी समाजवाद की डोर लगभग कट सी गयी थी। चे एक कुशल लेखक और विचारक थे।

उन्होंने युद्ध के विषय को लेकर अपनी एक पुस्तक “गुरिल्ला वारफेयर” भी लिखी। इतिहास का यह एक विद्रोही नेता सर्वश्रेष्ट कवी भी था। बोलिविया अभियान की असफलता को लेकर लिखी यह कविता उनकी आखरी वसीयत के समान है, “हवा और ज्वार” शीर्षक से लिखी गयी यह कविता उनके आदर्शवादी सोच की तरफ इशारा करती है।

अपनी कविता में चे ने अपना सब कुछ क्रांति के नाम समर्पित करने को कहा था। वैसा उन्होंने किया भी। औपनिवेशक शोषक से मुक्ति तथा जनकल्याण हेतु क्रांति की उपयोगिता को उन्होंने न केवल पहचाना बल्कि उसके लिये आजीवन संघर्ष करते रहे। अंततः उसी के लिये अपने जीवन का बलिदान भी दिया। चे में बुद्धि और साहस का अनूठा मेल था।

मृत्यु –

चे ग्वेरा के जीवन के आखिरी दिन काफी परेशानी और तकलीफों से भरे हुए थे, 8 अक्टूबर, 1967 को उन्हें बोलिविया से गिरफ्तार किया गया। और गिरफ्तारी के बाद उनके दोनों हाथ बेरहमी से काट दिए गए एवं उन्हें कई दिनों तक शारीरिक प्रताड़ना देकर जान से मार दिया गया और उनके शव को एक अनजान जगह पर दफना दिया गया।

महत्वपूर्ण तथ्य –

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