“दुर्गाबाई देशमुख”

दुर्गाबाई देशमुख की पहचान न सिर्फ एक स्वतंत्रता सेनानी के रुप में है, बल्कि वे एक अच्छी समाजसेविका भी थी, जिन्होंने महिलाओं के जीवन को एक नई दिशा दी है, उन्होंने उस समय महिलाओं की शिक्षा को बढ़ावा दिया, जब समाज में बेटियों की स्थिति बेहद खराब थी, महिलाओं की शिक्षा पर भी इतना जोर नहीं दिया जाता था। यहां तक महिलाओं को घर से बाहर तक नहीं निकलने दिया जाता था।

10 साल की छोटी से उम्र में जब बच्चे के अंदर सोचने-समझने की शक्ति विकसित ही होती है, उस उम्र में दुर्गाबाई देशमुख ने महिलाओं के लिए आंध्रप्रदेश के काकीनाद में हिंदी पाठशाला की आधारशिला रखी और इस पाठशाला में उन्होंने अपनी मां समेत गांव की 50 से ज्यादा महिलाओं को हिन्दी की शिक्षा दी और खुद को एक सेविका के रुप में तैयार किया।

दुर्गाबाई देशमुख का प्रभावशाली व्यक्तिव, साहस और कर्तव्यनिष्ठा ने भारत के राष्ट्रपिता गांधी जी को भी काफी प्रभावित किया था, इन्होंने अपने जीवन में समाज और महिलाओं के कल्याण के कई काम किए हैं, आइए जानते हैं दुर्गाबाई देशमुख के निडर और साहसी जीवन के बारे में –

Durgabai Deshmukh

साहस और नारी शक्ति की अमिट मिसाल – “दुर्गाबाई देशमुख” -Durgabai Deshmukh Biography

नाम (Name) दुर्गाबाई देशमुख
जन्म (Birthday) 15 जुलाई 1909
जन्म स्थान (Birthplace) काकीनाडा, आंध्र प्रदेश
माता का नाम (Mother Name) कृष्णा वेनम्मा
पिता का नाम (Father Name) BVN रामा राव
जीवनसाथी का नाम (Husband Name) सी डी देशमुख
शिक्षा (Education) आंध्र विश्वविद्यालय, मद्रास विश्वविद्यालय
प्रमुख सम्मान (Award) पद्म विभूषण
मृत्यु (Death) 9 मई 1981

जन्म और शुरुआती जीवन –

भारत की स्वतंत्रता सेनानी और महान समाज सेविका दुर्गाबाई देशमुख, आंध्रप्रदेश के राजमुंदरी जिले के पास एक छोटे से गांव काकीनाडा में जन्मी थी। उनकी माता का नाम श्रीमती कृष्णवेनम्मा था, जिनका दुर्गाबाई देशमुख पर काफी प्रभाव पड़ा था, उनकी माता की वजह से ही दुर्गाबाई के अंदर बचपन से ही देशप्रेम और समाजसेवा का भाव विकिसत हुआ था।

वहीं दूसरी तरफ दुर्गाबाई देशमुख के सिर से बचपन में ही पिता का साया उठ गया है, हालांकि उनके पिता रामाराव ने उनकी शादी बाल विवाह प्रथा के अनुरुप महज 8 साल में ही कर दी थी, लेकिन दुर्गाबाई अपने पिता के इस फैसले से खुश नहीं थी। हालांकि, दुर्गाबाई ने 15 साल की उम्र में इस शादी के बंधन से खुद को आजाद कर लिया था।

महज 10 साल की उम्र में रखी पाठशाला की नींव

महिलाओं के विकास के लिए काम करने वाली दुर्गाबाई देशमुख बचपन से बेहद होनहार छात्रा थी, उन्हें पढ़ने की इतनी लगन थी कि, उन्होंने अपने पड़ोस में रह रहे अध्यापक से हिन्दी की शिक्षा ग्रहण कर ली। यह उस समय की बात है, जब राष्ट्रीय आंदोलन में हिन्दी का प्रचार-प्रसार किया जा रहा था।

वे दिमाग की इतनी तेज थी कि उन्होंने बेहद जल्दी ही इस विषय पर कमांड हासिल कर ली और महज 10 साल की उम्र में महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए उनके लिए अपने गांव काकीनाद में ही एक हिन्दी पाठशाला की नींव रख दी।

वहीं जिस उम्र में बच्चे खुद पढ़ाई के लिए तैयार होते हैं, उस उम्र में दुर्गाबाई एक टीचर बन गई थी, उनकी पाठशाला में उनकी मां समेत गांव में 500 से ज्यादा महिलाओं को हिन्दी पढ़ाती थी, इस तरह उन्होंने खुद को एक सेविका के रुप में तैयार किया था।

वहीं इतनी छोटी से टीचर को देख हर कोई हक्का-बक्का रह जाता था। वहीं उसी समय भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने कस्तूरबा गांधी और सी.एफ एंड्रूज के साथ दुर्गाबाई के गांव काकिनाद जाकर उनकी पाठशाला का निरीक्षण किया था, तब गांधी जी ने उनकी प्रतिभा को भाप लिया था और वह उनसे बेहद प्रभावित हुए थे, उसी वक्त से दुर्गाबाई गांधी जी के संपर्क में आई थी।

आपको बता दें कि दुर्गाबाई उस वक्त 12 साल की थी, और उन्होंने उस दौरान गांधी जी के सामने विदेशी कपड़ों की होली जलाई थी और अपने कीमती जेवरातों को दान में देकर खुद को एक सेविका के रुप में सर्मपित कर दिया था।

जिससे प्रभावित होकर महात्मा गांधी जी ने दुर्गाबाई के साहस की काफी तारीफ भी की थी, यही नहीं इसके लिए उन्होंने दुर्गाबाई को स्वर्णपदक से सम्मानित भी किया था।

‘नमक सत्याग्रह’ के दौरान जेल यात्रा –

दुर्गाबाई एक ऐसी स्वतंत्रता सेनानी थी, जिनके रोम-रोम में देशभक्ति की भावना समाहित थी, यही वजह है कि वह छोटी उम्र से ही स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लेने लगी थी। उन्होंने प्रख्यात नेता टी.प्रकाशम के साथ मद्रास में नमक सत्याग्रह में भी हिस्सा लिया था, इस दौरान उन्हें तीन बार जेल भी जाना पड़ा था।

यही नहीं दुर्गाबाई को उस वक्त काफी शारीरिक यातनाओं को भी झेलना पड़ा था, हालांकि वह एक स्वाभिमानी स्वभाव की महिला थी, इसलिए उन्होंने जेल से छूटने के लिए क्षमा नहीं मांगी, बल्कि इस दौरान उन्होंने अंग्रेजी भाषा में अपनी पकड़ बनाई।

मर्डर केस सॉल्व करने वाली पहली महिला वकील बनी –

वहीं जब दुर्गाबाई,जेल से छूटी तब उन्होंने मद्रास यूनिवर्सिटी से एम.ए की पढ़ाई पूरी और फिर वकालत करने के लिए उन्होंने LLB की डिग्री हासिल की। आपको बता दें कि दुर्गाबाई देशमुख मर्डर केस में वकालत करने वाली पहली महिला वकील के रुप में भी जानी जाती हैं।

दूसरी शादी –

अपनी आगे की पढ़ाई करने के लिए दुर्गाबाई, अपनी पहली शादी के बंधन से मुक्त हो गईं थी। हालांकि जब उन्होंने अपने जीवन के लक्ष्यों को पूरा कर लिया तब 44 साल की उम्र में उन्होंने साल 1953 में पूर्व वित्तमंत्री चिंतामणि देशमुख से दूसरी शादी की। आपको बता दें कि उस दौरान दुर्गाबाई देशमुख “योजना आयोग” की सदस्य थी।

महिलाओं के उत्थान के लिए किए कई काम –

दुर्गाबाई देशमुख को “नारी शिक्षा की राष्ट्रीय कमेटी” की पहली अध्यक्ष के तौर पर भी चुना गया था। इस पद पर रहते हुए उन्होंने महिलाओं के विकास और उनके हक के लिए कई काम किए। इस दौरान उन्होंने महिलाओं की शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएं भी बनाईं। दुर्गाबाई लोकसभा और संविधान परिषद् की सदस्य भी सदस्य रह चुकीं थी।

यही नहीं दुर्गाबाई देशमुख जी अखिल भारतीय महिला परिषद, विश्वविद्यालय महिला संघ, नारी शिक्षा समिति, नारी निकेतन और आंध्र महिला सभा समेत कई महिला संगठनों से भी जुड़ी रही हैं और महिलाओं के विकास के लिए अपने पूरे जीवन भर काम करती रहीं।

शिक्षा के प्रचार-प्रसार में अहम भूमिका –

दुर्गाबाई देशमुख ने शिक्षा के क्षेत्र में भी कई काम किए थे, उन्होंने न सिर्फ 10 साल की उम्र में अपने गांव में स्कूल खोला था, बल्कि उन्होंने अपना पूरा जीवन शिक्षा के प्रचार-प्रसार में लगा दिया था, आपको बता दें कि उन्होंने साल 1948 में आंध्र एजुकेशन सोसाइटी की स्थापना की थी। इसके अलावा उन्होंने कई नेत्रहीनों के लिए स्कूल, हॉस्टल और कई टेक्निकल ट्रेनिंग सेंटर भी खोले थे।

सराहनीय कामों के लिए मिला सम्मान –

आंध्रप्रदेश के गांवों में शिक्षा के प्रचार-प्रसार के लिए उन्हें नेहरू साक्षरता पुरस्कार से नवाजा गया था। इसके अलावा उन्हें भारत सरकार से पद्म विभूषण पुरस्कर समेत यूनेस्को पुरस्कार, जीवन पुरस्कार, जगदीश पुरस्कार, पॉलजी हॉफमैन आदि पुरस्कारों से सम्मानित किया गया था।

देहान्त –

जीवन के आखिरी दिनों में दुर्गाबाई देशमुख जी बीमार रहने लगी थीं, उन्होंने 71 साल की उम्र में 9 मई, 1981 में दम तोड़ दिया था।

भारत के लिए दुर्गाबाई देशमुख जी जैसी महान महिलाओं का जन्म लेना गौरव की बात है। उन्होंने जिस तरह अपना पूरा जीवन देश की सेवा और महिलाओं के उत्थान के लिए समर्पित कर दिया वह वाकई तारीफ ए काबिल है।

यही नहीं उन्होने भारतीय संविधान के निर्माण में भी अपनी अहम भूमिका निभाई थी, जिसे कभी नहीं भुलाया जा सकता। उनका साहसी, सौम्य और दृढ़व्यक्तिव से हर किसी को प्रेरणा लेने की जरूरत है।

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