Essay on Dr BR Ambedkar in Hindi
दलितों के मसीहा के रुप में जाने वाले भीमराव आम्बेडकर जी का जीवन प्रेरणास्त्रोत है, जिससे हर किसी को सीख लेने की जरूरत है। उन्होंने अपने जीवन में तमाम संघर्षों और कठिनाइयों को झेलकर अपने जीवन में न सिर्फ खूब सफलता अर्जित की बल्कि समाज में फैली छूआछूत, जातिवाद जैसी बुराईयों को भी जड़ से खत्म कर दिया। इसके साथ ही उन्होंने शिक्षा का जमकर प्रचार -प्रसार किया। इसलिए उन्हें आधुनिक भारत के निर्माता के रुप में भी जाना जाता है।
अक्सर बच्चों के लेखन-कौशल को सुधारने और ऐसे महान व्यक्तित्व से प्रेरणा लेने के लिए उनकी परीक्षाओं में निबंध लिखने के लिए दिया जाता है, इसलिए आज हम अपने इस लेख में आपको डॉ. भीमराव आम्बेडकर जी के बारे में अलग-अलग शब्द के अंदर निबंध – Essay on Dr. BR Ambedkar उपलब्ध करवा रहे हैं।
डॉ. भीमराव आम्बेडकर पर निबंध – Essay on Dr BR Ambedkar in Hindi
भीमराव आम्बेडकर जी पर निबंध (700 शब्द) – Dr Babasaheb Ambedkar Nibandh (700 Word)
आधुनिक भारत के निर्माता भीमराव आम्बेडकर जी को बाबा साहेब आम्बेडकर जी ने नाम से भी जाना जाता है। उन्होंने अपना पूरा जीवन समाज और व्यक्तित्व के विकास में बाधा डाल रही और देश को अलग-अलग टुकड़ों में बांट रही कुरोतियों जैसे छूआछूत, जातिगत भेदभाव, बालविवाह, सतीप्रथा, मूर्तिपूजा, अंधविश्वास को दूर करने में लगा दिया।
आम्बेडकर जी ने अपने जीवन में तमाम यातनाएं झेली, लेकिन इसके बाबजूद भी वे इससे कभी घबराए नहीं और अपने कर्तव्य के प्रति सच्ची निष्ठा के साथ आगे बढ़ते रहे और समाज से छूआछूत और जातिवाद जैसी बुराईयों को जड़ से खत्म करने में सफल हुए। आम्बेडकर जी को देश को एकता के सूत्र में बांधने वाले संविधान के निर्माता के रुप में भी जाना जाता है।
भीमराव आम्बेडकर जी का शुरुआती जीवन और शिक्षा
दलितों के मसीहा कहे जाने वाले डॉ. भीमराव आम्बेडकर जी मध्यप्रदेश के इंदौर के एक दलित परिवार में 14 अप्रैल, 1891 में जन्में थे। उनके पिता रामजी मालोजी सकपाल इंडियन आर्मी में सूबेदार थे, जिन्हें अंग्रेजी, गणित और मराठी का अच्छा ज्ञान था, यही नहीं उनके जन्म के 3 साल बाद 1894 में वह रिटायर्ड हो गए, जिसके बाद उनका परिवार महाराष्ट्र के सितारा में बस गया।
जिसके थोड़े दिनों बाद ही उनकी माता भीमाबाई का देहांत हो गया। जिसके बाद उनका पालन-पोषण उनकी चाची ने किया।
वे अपने माता-पिता की 14वीं और आखिरी संतान थे, वहीं महार जाति में जन्म लेने की वजह से उनका बचपन बड़ा ही संघर्षपूर्ण रहा, क्योंकि उस समय निम्न जाति के लोगों के साथ काफी अमानवीय व्यवहार किया जाता था, जिससे उन्हे शारीरिक और मानसिक रुप से काफी यातनाएं झेलनी पड़ी थी।
दलित होने की वजह से आम्बेडकर जी को ऊंची जाति के लोग छूना तक पसंद नहीं करते थे, यही नहीं स्कूल में भी शिक्षा हासिल करने के लिए उन्हें तमाम तरह की कठिनाइयां झेलनी पड़ी थी। विद्दान और योग्य होने के बाबजूद भी उन्हें उच्च शिक्षा हासिल करने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ा था।
भेदभाव का शिकार हुए आम्बेडकर जी को अपने आर्मी स्कूल में पानी तक छूने की इजाजत नहीं थी, उनके कास्ट के बच्चों को चपरासी उपर से डालकर पानी देता था, वहीं अगर जिस दिन चपरासी छुट्टी पर होता था, उस दिन उन्हें और उनके कास्ट के सभी साथियों को पूरा दिन प्यासा ही रहना पड़ता था।
फिलहाल अंबडेकर जी ने तमाम मुश्किलों और संघर्षों के बाद भी अच्छी शिक्षा हासिल की और बाद में समाज में फैली छूआछूत और जातिवाद को जड़ से खत्म कर दिया।
भीमराव आम्बेडकर जी एक होनहार और प्रखर बुद्धि के छात्र थे, वे बहुत तेजी से किसी विषय को जल्दी से समझ लेते थे, यही वजह है कि वे अपनी सभी परीक्षाओं में अच्छे अंक से सफल होते चले गए और 1907 में उन्होंने मैट्रिक की डिग्री हासिल कर ली और इसके बाद साल 1912 में उन्होंने मुंबई यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी की।
यही नहीं फेलोशिप लेकर उन्होंने अमेरिका के कोलंबिया यूनिवर्सिटी से पोस्ट ग्रेजुएशन की पढ़ाई की। अमेरिका से लौटने के बाद उनकी प्रतिभा को देखते हुए उन्हें अपने बड़ोदा के राजा ने अपने राज्य का रक्षामंत्री बना दिया, लेकिन इस पद पर रहते हुए भी उन्हें दलित होने की वजह से काफी अपमान झेलना पड़ा था।
हालांकि इन सबसे उन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा और वह अपनी आगे की पढ़ाई के लिए साल 1920 में वह फिर से इंग्लैंड चले गए। और फिर 1921 में उन्होनें लंदन स्कूल ऑफ इकोनामिक्स एण्ड पोलिटिकल सांइस से मास्टर डिग्री हासिल की और दो साल बाद उन्होनें अपना डी.एस.सी की डिग्री प्राप्त की।
वहीं कानून की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होनें ब्रिटिश बार में बैरिस्टर के रूप में काम किया। 8 जून, 1927 को उन्हें कोलंबिया विश्वविद्यालय द्धारा डॉक्टरेट से सम्मानित किया गया था। इस तरह वे उच्च शिक्षा हासिल करने वाले पहले दलित छात्र बन गए।
उपसंहार –
आम्बेडकर जी ने अपने जीवन में तमाम कठिनाइयां और परेशानियां झेलने के बाद भी कभी हार नहीं मानी और अपनी सच्ची ईमानदारी और कठोर निष्ठा के साथ वह अपने लक्ष्यों को हासिल करने के लिए आगे बढ़ते रहे।
इसके साथ ही छूआछूत और जातिवाद को समाज से जड़ से खत्म करने के लिए सफलता अर्जित की। और आधुनिक भारत के निर्माण में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
अगले पेज पर बाबासाहेब आम्बेडकर पर और भी बढ़िया निबंध …
भीमराव आम्बेडकर जी पर निबंध (800 शब्द) – Ambedkar Essay (800 Word)
डॉक्टर भीमराव आम्बेडकर जी न सिर्फ एक महान समाज सुधारक, दलितों के मसीहा, दार्शनिक, राष्ट्रप्रेमी, भारत के राष्ट्रवादी नेता थे बल्कि वे संविधान के निर्माता भी थे, जिन्हें आधुनिक भारत के रचयिता के रुप मे भी लोग जानते हैं। जिन्होंने अपने महान और प्रेरणादायी व्यक्तित्व का प्रभाव हर किसी पर डाला था, आज भी लोग आम्बेडकर जी के द्धारा किए गए कामों को याद करते हैं और उनकी मिसाल देते हैं।
भीमराव आम्बेडकर जी का बुद्ध धर्म में परिवर्तन
एक बौद्धिक सम्मेलन में शामिल होने के लिए साल 1950 में भीमराव आम्बेडकर श्री लंका चले गए। जहां जाकर वे बौद्ध धर्म के विचारों से इतने प्रभावित हुए कि उन्होनें बौद्ध धर्म को अपनाने का फैसला लिया और फिर बाद में उन्होनें खुद को बौद्ध धर्म में परिवर्तन कर लिया।
वहीं इसके बाद भारत लौटने पर उन्होनें बौद्ध धर्म के बारे में कई किताबें भी लिखी। वहीं अपने भाषणों के माध्यम से उन्होंने हिन्दू धर्म के रीति-रिवाजों और शास्त्रों की कडी निंदा की। और दलित समुदायों के लोगों को उनका हक दिलवाया।
साल 1955 में डॉक्टर भीमराव आम्बेडकर जी ने भारतीय बौद्ध महासभा का गठन किया और उनकी किताब ‘द बुद्धा और उनके धर्म’ उनके मरने के बाद प्रकाशित हुई।
आपको बता दें कि 14 अक्टूबर, 1956 में डॉक्टर भीमराव आम्बेडकर जी ने एक आम सभा का भी आयोजन किया जिसमें उन्होनें अपने करीब 5 लाख अनुयायियों को बौद्ध धर्म में रुपान्तरण किया। उन्होंने बौद्ध धर्म का जमकर प्रचार-प्रसार किया, वहीं बौद्ध धर्म पर गहरे अध्ययन से आम्बेडकर जी को यह एहसास हो गया था कि बौद्ध धर्म ही दलितों को उनका अधिकार दिलवाने का एकमात्र तरीका है।
वहीं इस बदलाव से भारत में अमानवीय अत्याचारों और भेदभाव से पीड़ित दलितों के अंदर एक नई ऊर्जा का संचार हुआ, इसके साथ ही दलित समुदाय के लोगों को एक नए तरीके से जीवन जीने की प्रेरणा मिली।
संविधान निर्माण
डॉक्टर भीमराव आम्बेडकर का संविधान के निर्माण का मुख्य मकसद देश में जातिगत भेदभाव और छूआछूत को जड़ से खत्म करना था और एक छूआछूत मुक्त समाज का निर्माण कर समाज में क्रांति लाना था साथ ही सभी को समानता का अधिकार दिलवाना था।
भीमराव आम्बेडकर जी को 29 अगस्त, 1947 को संविधान के मसौदा समिति के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया गया। आम्बेडकर जी ने समाज के सभी वर्गों के बीच एक वास्तविक पुल के निर्माण पर जोर दिया।
समता, समानता, मानवता और बन्धुता पर आधारित भारतीय संविधान को करीब 2 साल, 11 महीने और 7 दिन की कड़ी मेहनत से 26 नवंबर, 1949 को तैयार कर उस समय के राष्ट्रपति डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद को सौंप दिया, जिसके बाद 26 जनवरी 1950 में हमारे देश में संविधान लागू किया गया।
और अब हमारा देश अपनी राष्ट्रीय एकता, अखंडता और संस्कृति के लिए जाना जाता है। इस आधुनिक भारत के निर्माण का श्रेय भीमराव आम्बेडकर जी को ही दिया जाता है।
भीमराव आम्बेडकर जी द्धारा किए सराहनीय काम
डॉक्टर भीमराव आम्बेडकर ने न सिर्फ समाज में फैली जातिवाद, छूआछूत, जैसी कुरोतियों को जड़ से खत्म किया। बल्कि उन्होंने दलितों को आरक्षण दिलवाने और महिलाओं के हक के लिए भी लड़ाई लड़ी।
उन्होंने इसके लिए महाड सत्याग्रह (साल 1928), नासिक सत्याग्रह (साल 1930) समेत कई आंदोलन चलाए। इसके अलावा आम्बेडकर जी ने शिक्षा के प्रचार-प्रसार पर भी काफी जोर दिया।
आम्बेडकर जी ने धार्मिक, राजनीतिक, औद्योगिक, साहित्यिक, संवैधानिक, ऐतिहासिक समेत सभी अलग-अलग क्षेत्रों में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया।
राजनीतिक सफर
डॉक्टर भीमराव आम्बेडकर जी ने साल 1936 में स्वतंत्र लेबर पार्टी की स्थापना की। 1937 में केन्द्रीय विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी ने 15 सीटों से जीत हासिल की। इसके बाद उन्होंने अपनी इस पार्टी को अखिल भारतीय अनुसूचित जाति संघ (ऑल इंडिया शेड्यूल) कास्ट पार्टी में बदल दिया, हालांकि, आम्बेडकर जी की पार्टी 1946 में हुए भारत के संविधान सभा के चुनाव में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाई थी।
इसके बाद कांग्रेस और महात्मा गांधी ने दलित वर्ग को हरिजन नाम दिया। हालांकि आम्बेडकर जी को गांधी जी का दिया गया हरिजन नाम नगंवार गुजरा और उन्होनें इस बात का जमकर विरोध किया। इसके बाद आम्बेडकर जी वाइसराय एग्जीक्यूटिव कौंसिल में श्रम मंत्री और रक्षा सलाहकार के रुप में नियुक्त किए गए।
काफी संघर्ष और समर्पण के बल पर वे आजाद भारत के पहले लॉ मिनिस्टर बने, दलित होने के बाबजूद भी डॉक्टर भीमराव आम्बेडकर जी का मंत्री बनना उनके जीवन की किसी बड़ी उपलब्धि से कम नहीं थी।
उपसंहार
दलितों के मसीहा और आधुनिक भारत के निर्माता कहे जाने वाले डॉ. भीमराव आम्बेडकर जी ने समाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, शैक्षणिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक, धार्मिक समेत सभी क्षेत्रों में काम किया और अपना पूरा जीवन देश की सेवा में समर्पित कर दिया।
भारत के लिए भीमराव आम्बेडकर जैसे महान व्यक्ति का जन्म लेना सौभाग्य की बात है, उनके द्धारा देश के लिए किए गए कामों को कभी नहीं भूला जा सकता। देश हमेशा उनका कृतज्ञ रहेगा।
भीमराव आम्बेडकर जी पर निबंध (550 शब्द) – Essay on Dr BR Ambedkar (500 Word)
दलितों के मसीहा के रुप में कहे जाने वाले भीमराव अम्बेडकर जी न सिर्फ एक महान समाज सुधारक, दार्शनिक, अर्थशास्त्री, आजाद भारत के प्रथम कानूनमंत्री और एक राष्ट्रीय नेता थे बल्कि उन्हें स्वतंत्र भारत के संविधान निर्माता के रुप में भी जाना जाता है।
अपने जीवन में तमाम कठिनाइयां और संघर्षों को झेलने के बाद उन्होंने समाज में व्याप्त जातिगत भेदभाव, छूआछूत, बाल विवाह, सती प्रथा समेत तमाम बुराइयों को दूर किया और दलित वर्गों को उनका अधिकार दिलवाया साथ ही भारत में संविधान का निर्माण किया। भीमराव आम्बेडकर जी ने अपने व्यक्तित्व का प्रभाव हर किसी पर डाला है, वे हर भारतीय के लिए एक आदर्श मॉडल हैं।
अम्बेडकर जी ने दलितों के उत्थान के लिए किए कई काम
अम्बेडकर जी एक निम्न जाति के व्यक्ति थे, जिसकी वजह से उन्हें बचपन से ही छूआछूत और समाजिक यातनाएं झेलनी पड़ी थी, यहां तक की लोग उन्हें हीन भावना से देखते थे, उच्च जाति के लोग तो उन्हें छूना भी नहीं पसंद करते थे।
यह नहीं होनहार होने के बाबजूद भी शिक्षा ग्रहण करने में भी उन्होंने काफी परेशानियां झेली, जिसके बाद, उन्होंने समाज में गंभीर और संक्रामक बीमारी की तरह फैल रही छूआछूत और सामाजिक भेदभाव को दूर करने का संकल्प लिया।
आपको बता दें कि उस दौरान हमारे देश में छूआछूत और जातिवाद की बीमारी इतनी फैल चुकी थी, कि यह देश के लोगों को एक-दूसरे से अलग कर रही थी और जो कि देश के और लोगों के विकास के लिए किसी संकट पैदा कर रही थी, जिसे दूर करना बेहद जरूरी था, इसलिए आम्बेडकर जी ने जातिवाद के खिलाफ मोर्चा छेड़ा और छूआछूत और जातिवाद के खिलाफ लोगों को इकट्ठा कर दलित लोगों को उनके अधिकारों के लिए जागरूक किया।
उन्होंने निम्न और दलित वर्ग के लोगों को सार्वजनिक कुओं से पानी पीने और मंदिरों में एंट्री करने के लिए उत्साहित किया। इसके अलावा उन्होंने अपने विचारों और भाषणों के माध्यम से जातिवाद प्रथा को खत्म करने के खिलाफ आवाज उठाई।
साल 1919 में उन्होंने अपने एक भाषण में दलितों के लिए अलग से चुनाव प्रणाली होने की बात कही थी, इसके साथ ही दलितों के आरक्षण देने की भी मांग उठाई थी।
आम्बेडकर जी ने दलित वर्ग के लोगों को उनका अधिकार दिलवाने के उद्देश्य से साल 1920 में ‘मूकनायक’ सामाजिक पत्र की स्थापनी की थी, उनके इस कदम से पूरे देश में राजनीतिक और सामाजिक हलचल पैदा कर दी थी।
भीमराव अम्बेडकर जी ने दलित वर्ग के उत्थान के लिए पूरे देश में भ्रमण किया और लोगों को छूआछूत और जातिवाद के खिलाफ जागरूक किया और इस समस्या को जड़ से खत्म करने पर जोर दिया। इसके साथ ही उन्होंने जातिगत भेदभाव का समर्थन करने वाले हिन्दू शास्त्रों की भी कड़ी निंदा की।
उपसंहार
भीमराव आम्बेडकर जी को निम्न जाति में पैदा होने की वजह से काफी पीड़ा और अपमान सहना पड़ा था, इसलिए उन्होंने समाज से छूआछूत और जातिगत भेदभाव की समस्या को जड़ से खत्म करने का फैसला किया और अपना पूरा जीवन दलित वर्ग के उत्थान करने के लिए समर्पित कर दिया।
यही नहीं काफी विरोध के बाबजूद भी वे अपने जीवन के लक्ष्यों में सफल होते चले गए और आज वे दलितों के मसीहा के रुप में जाने जाने जाते हैं, उनका जीवन अति प्रेरणादायी है, जिनसे हम सभी को प्रेरणा लेने की जरूरत है।
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