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डॉ. भीमराव अम्बेडकर की जीवनी

डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर भारतीय संविधान के शिल्पकार और आज़ाद भारत के पहले न्याय मंत्री थे। वे प्रमुख कार्यकर्ता और सामाज सुधारक थे। डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने दलितों के उत्थान और भारत में पिछड़े वर्ग के उत्थान के लिए अपना पूरे जीवन का परित्याग कर दिया। वे दलितों के मसीहा के रूप में मशहूर हैं। आज समाज में दलितों का जो स्थान मिला है। उसका पूरा श्रेय डॉक्टर भीमराव अंबेडकर को जाता है।

”देश प्रेम में जिसने आराम को ठुकराया था

गिरे हुए इंसान को स्वाभिमान सिखाया था

जिसने हमको मुश्किलों से लड़ना सिखाया था

इस आसमां पर ऐसा इक दीपक बाबा साहेब कहलाया था।”

डॉ. भीमराव अम्बेडकर जीवनी – Dr. B R Ambedkar Biography in Hindi

नाम (Name) डॉ. भीमराव रामजी अंबेडकर
जन्म (Birthday) 14 अप्रैल, 1891 (Ambedkar Jayanti)
जन्मस्थान (Birthplace) महू, इंदौर, मध्यप्रदेश
पिता (Father Name) रामजी मालोजी सकपाल
माता (Mother Name) भीमाबाई मुबारदकर
जीवनसाथी (Wife Name) पहला विवाह– रामाबाई अम्बेडकर (1906-1935);
दूसरा विवाह– सविता अम्बेडकर (1948-1956)
शिक्षा (Education) एलफिंस्टन हाई स्कूल, बॉम्बे विश्वविद्यालय,
1915 में एम. ए. (अर्थशास्त्र)।
1916 में कोलंबिया विश्वविद्यालय से PHD।
1921 में मास्टर ऑफ सायन्स।
1923 में डॉक्टर ऑफ सायन्स।
संघ समता सैनिक दल,
स्वतंत्र श्रम पार्टी,
अनुसूचित जाति संघ
राजनीतिक विचारधारा समानता
प्रकाशन अछूत और अस्पृश्यता पर निबंध जाति का विनाश
(द एन्नीहिलेशन ऑफ कास्ट)
वीजा की प्रतीक्षा (वेटिंग फॉर ए वीजा)
मृत्यु (Death) 6 दिसंबर, 1956

भीमराव अंबेडकर – ने सामाजिक रुप से पिछड़े वर्ग की निराशा को दूर किया और उन्हें समानता का अधिकार दिलवाया। अंबेडकर जी ने हमेशा जातिगत भेदभाव को खत्म करने के लिए लड़ाई लड़ी।

भारतीय समाज में जातिगत भेदभाव को लेकर फैली बुराइयों को दूर करने में अहम भूमिका निभाई है, जातिगत भेदभाव ने भारतीय समाज को पूरी तरह से बिखेर दिया था और अपंग बना दिया था जिसे देखते हुए अंबेडकर जी ने दलितों के हक की लड़ाई लड़ी और देश की समाजिक स्थिति में काफी हद तक बदलाव किया।

प्रारंभिक जीवन – 

डॉक्टर भीमराव अंबेडकर का जन्म भारत के मध्यप्रांत में हुआ था। 14 अप्रैल 1891 में मध्यप्रदेश के इंदौर के पास महू में रामजी मालोजी सकपाल और भीमाबाई के घर में अंबेडकर जी पैदा हुए थे। जब अंबेडकर जी का जन्म हुआ था तब उनके पिता इंडियन आर्मी में सूबेदार थे और इनकी पोस्टिंग इंदौर में थी।

3 साल बाद 1894 में इनके पिता रामजी मालोजी सकपाल रिटायर हो गए और उनका पूरा परिवार महाराष्ट्र के सातारा में शिफ्ट हो गया। आपको बता दें कि भीमराव अंबेडकर अपनी माता-पिता की 14वीं और आखिरी संतान थे ये अपने परिवार में सबसे छोटे थे इसलिए पूरे परिवार के चहेते भी थे।

भीमराव अंबेडकर जी मराठी परिवार से भी तालोक्कात रखते थे। वे महाराष्ट्र के अम्बावाडे़ से संबंध रखते थे जो कि अब महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले में हैं। वे महार जाति यानि की दलित वर्ग से संपर्क रखते थे जिसकी वजह से उनके साथ सामाजिक और आर्थिक रूप से गहरा भेदभाव किया जाता था।

यही नहीं दलित होने की वजह से उन्हें अपने उच्च शिक्षा पाने के लिए भी काफी संघर्ष करना पड़ा था। हालांकि सभी कठिनाइयों को पार करते हुए उन्होनें उच्च शिक्षा हासिल की। और दुनिया के सामने खुद को साबित कर दिखाया।

परिवार का परिचय –

यहा आप जान पायेंगे बाबासाहेब जी के परिवार के बारे मे संपूर्ण मुलभूत जानकारी जिसमे हाल मे मौजूद उनके परिवार से जुडे लोगो की जानकारी शामिल है। जैसा के;

  1. मालोजी सकपाल – रामजी सकपाल जी के पिता तथा बाबासाहेब आंबेडकर जी के दादाजी।
  2. रामजी सकपाल – बाबासाहेब जी के पिता।
  3. भिमाबाई रामजी सकपाल – बाबासाहेब जी की माता

अब आगे जानेंगे बाबासाहेब जी के विवाह के बाद जुडे परिवार की जानकारी के बारे मे, इसमे शामिल व्यक्ती है जैसे के;

  1. रमाबाई भिमराव आंबेडकर – बाबासाहेब जी पहली पत्नी।
  2. सविता भिमराव आंबेडकर – बाबासाहेब जी की दुसरी पत्नी।
  3. यशवंत, रमेश, गंगाधर, राजरत्न – बाबासाहेब जी के पुत्र।
  4. इंदू – पुत्री

उपरोक्त दिये गये जानकारी मे बाबासाहेब की कुल ५ संतानो मे से एकमात्र यशवंत ही उनके एकलौते पुत्र जीवित रहे, जिनसे आगे हुये वंश विस्तार तथा परिवार की जानकारी निचे दी गई है।

  1. मिराताई आंबेडकर – बाबासाहेब जी की बहु तथा यशवंत की पत्नी।
  2. प्रकाश आंबेडकर, आनंदराज आंबेडकर, भिमराव आंबेडकर – बाबासाहेब जी के पोते
  3. रमाताई आंबेडकर/तेलतुंबडे – बाबासाहेब जी की पोती
  4. अंजलीताई आंबेडकर, मनीषा आंबेडकर, दर्शना आंबेडकर – यशवंत आंबेडकर जी की बहुये

हाल फिलहाल मे इस परिवार मे मौजूद परपोते/प्रपौत्र की जानकारी निचे दिये हुये प्रकार से है, जैसे के;

  1. सुजात आंबेडकर – बाबासाहेब जी के परपोते तथा प्रकाश आंबेडकर जी के पुत्र।
  2. प्राची और रश्मी – रमाताई आंबेडकर/तेलतुंबडे जी की बेटीया तथा बाबासाहेब जी की परपोतीया।
  3. अमन और साहिल – आनंदराज आंबेडकर जी के बेटे तथा बाबासाहेब जी के परपोते।
  4. हृतीका – भिमराव आंबेडकर जी की बेटी तथा बाबासाहेब आंबेडकर जी की परपोती।

कुल मिलाके इस तरह से बाबासाहेब जी के परिवार से जुडे लोगो की जानकारी आपको यहा हमने दी। जिसमे लगभग परिवार के सभी लोगो को यहा पर शामिल करने का हमारा प्रयास था, जो के अबतक आपने जानकारी के तौर पर पढा।

शिक्षा – 

डॉक्टर भीमराव जी के पिता के आर्मी में होने की वजह से उन्हें सेना के बच्चों को दिए जाने वाले विशेषाधिकारों का फायदा मिला लेकिन उनके दलित होने की वजह से इस स्कूल में भी उन्हें जातिगत भेदभाव का शिकार होना पड़ा था दरअसल उनकी कास्ट के बच्चों को क्लास रूम के अंदर तक बैठने की अनुमति नहीं थी और तो और यहां उनको पानी भी नहीं छूने दिया जाता था, स्कूल का चपरासी उनको ऊपर से पानी डालकर पानी देता था वहीं अगर चपरासी छुट्टी पर है तो दलित बच्चों को उस दिन पानी भी नसीब नहीं होता था फिलहाल अंबडेकर जी ने तमाम संघर्षों के बाद अच्छी शिक्षा हासिल की।

आपको बता दें कि भीमराव अंबेडकर ने अपनी प्राथमिक शिक्षण दापोली में सातारा में लिया। इसके बाद उन्होनें बॉम्बे में एलफिंस्टोन हाईस्कूल में एडमिशन लिया इस तरह वे उच्च शिक्षा हासिल करने वाले पहले दलित बन गए। 1907 में उन्होनें मैट्रिक की डिग्री हासिल की।

इस मौके पर एक दीक्षांत समारोह का भी आयोजन किया गया इस समारोह में भीमराव अंबेडकर की प्रतिभा से प्रभावित होकर उनके शिक्षक श्री कृष्णाजी अर्जुन केलुस्कर ने उन्होनें खुद से लिखी गई किताब ‘बुद्ध चरित्र’ गिफ्ट के तौर पर दी। वहीं बड़ौदा नरेश सयाजी राव गायकवाड की फेलोशिप पाकर अंबेडकर जी ने अपनी आगे की पढ़ाई जारी रखी।

आपको बता दें कि अंबेडकर जी की बचपन से ही पढ़ाई में खासी रूचि थी और वे एक होनहार और कुशाग्र बुद्धि के विद्यार्थी थे इसलिए वे अपनी हर परीक्षा में अच्छे अंक के साथ सफल होते चले गए। 1908 में डॉक्टर भीमराव अंबेडकर – B. R. Ambedkar ने एलफिंस्टोन कॉलेज में एडमिशन लेकर फिर इतिहास रच दिया। दरअसल वे पहले दलित विद्यार्थी थे जिन्होनें उच्च शिक्षा हासिल करने के लिए कॉलेज में दाखिला लिया था।

उन्होनें 1912 में मुबई विश्वविद्यालय से ग्रेजुएशन की परीक्षा पास की। संस्कृत पढने पर मनाही होने से वह फारसी से उत्तीर्ण हुए। इस कॉलेज से उन्होनें अर्थशास्त्र और राजनीति विज्ञान में डिग्री के साथ ग्रेजुएशन की उपाधि प्राप्त की।

फेलोशिप पाकर अमेरिका के कोलंबिया विश्वविद्यालय में लिया दाखिला – Columbia University

भीमराव अंबेडकर को बड़ौदा राज्य सरकार ने अपने राज्य में रक्षामंत्री बना दिया लेकिन यहां पर भी छूआछूत की बीमारी ने उनका पीछा नहीं छोड़ा और उन्हें कई बार निरादर का सामना करना पड़ा। लेकिन उन्होनें लंबे समय तक इसमें काम नहीं किया क्योंकि उन्हें उनकी प्रतिभा के लिए बड़ौदा राज्य छात्रवृत्ति से सम्मानित किया गया था जिससे उन्हें न्यूयॉर्क शहर में कोलंबिया विश्वविद्यालय में पोस्टग्रेजुएशन की डिग्री हासिल करने का मौका मिला। अपनी पढ़ाई आगे जारी रखने के लिए वे 1913 में अमेरिका चले गए।

साल 1915 में अंबेडकर जी ने अमेरिका के कोलंबिया विश्वविद्यालय से समाजशास्त्र, इतिहास, दर्शनशास्त्र और मानव विज्ञान के साथ अर्थशास्त्र में MA की मास्टर डिग्री हासिल की। इसके बाद उन्होंने ‘प्राचीन भारत का वाणिज्य’ पर रिसर्च की थी। 1916 में कोलंबिया विश्वविद्यालय अमेरिका से ही उन्होंने पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की, उनके पीएच.डी. शोध का विषय ‘ब्रिटिश भारत में प्रातीय वित्त का विकेन्द्रीकरण’ था।

लंदन स्कूल ऑफ इकोनामिक्स एण्ड पोलिटिकल सांइस – University of London

फेलोशिप खत्म होने पर उन्हें भारत लौटना पड़ा। वे ब्रिटेन होते हुए भारत वापस लौट रहे थे। तभी उन्होंने वहां लंदन स्कूल ऑफ इकोनामिक्स एण्ड पोलिटिकल सांइस में एम.एससी. और डी. एस सी. और विधि संस्थान में बार-एट-लॉ की उपाधि के लिए अपना रजिस्ट्रेशन करवाया और फिर भारत लौटे।

भारत लौटने पर उन्होनें सबसे पहले स्कॉलरशिप की शर्त के मुताबिक बड़ौदा के राजा के दरबार में सैनिक अधिकारी और वित्तीय सलाहकार का दायित्व स्वीकार किया। उन्होनें राज्य के रक्षा सचिव के रूप में काम किया।

हालांकि उनके लिए ये काम इतना आसान नहीं था क्योंकि जातिगत भेदभाव और छूआछूत की वजह से उन्हें काफी पीड़ा सहनी पड़ रही थी  यहां तक कि पूरे शहर में उन्हें किराए का मकान देने तक के लिए कोई तैयार नहीं था।

इसके बाद अंबेडकर नें सैन्य मंत्री की जॉब छोड़कर, एक निजी शिक्षक और एकाउंटेंट की नौकरी ज्वाइन कर ली। यहां उन्होनें कंसलटेन्सी बिजनेस (परामर्श व्यवसाय) भी स्थापित किया लेकिन यहां भी छूआछूत की बीमारी ने पीछा नहीं छोड़ा और  सामाजिक स्थिति की वजह से उनका ये बिजनेस बर्बाद हो गया।

आखिरी में वे मुंबई वापस लौट गए और जहां उनकी मद्द बॉम्बे गर्वमेंट ने की और वे मुंबई के सिडेनहम कॉलेज ऑफ कॉमर्स एंड इकोनॉमिक में राजनैतिक अर्थशास्त्र के प्रोफेसर बन गए। इस दौरान उन्होनें अपनी आगे की पढा़ई के लिए पैसे इकट्ठे किए और अपनी पढ़ाई जारी रखने के लिए साल 1920 में एक बार फिर वे भारत के बाहर इंग्लैंड चले गए।

1921 में उन्होनें लंदन स्कूल ऑफ इकोनामिक्स एण्ड पोलिटिकल सांइस से मास्टर डिग्री हासिल की और दो साल बाद उन्होनें अपना डी.एस.सी की डिग्री प्राप्त की।

आपको बता दें कि डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने बॉन, जर्मनी विश्वविद्यालय में भी पढ़ाई के लिए कुछ महीने गुजारे। साल 1927 में उन्होनें अर्थशास्त्र में डीएससी किया। कानून की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होनें ब्रिटिश बार में बैरिस्टर के रूप में काम किया। 8 जून, 1927 को उन्हें कोलंबिया विश्वविद्यालय द्धारा डॉक्टरेट से सम्मानित किया गया था।

छूआछूत और जातिगत भेदभाव, और छूआछूत मिटाने की लड़ाई (दलित मूवमेंट) – Dalit Movement

भारत लौटने पर, उन्होंने देश में जातिगत भेदभाव के खिलाफ लड़ने का फैसला लिया जिसकी वजह से उन्हें कई बार निरादर और अपनी जीवन में इतना कष्ट सहना पड़ा था। अंबेडकर जी ने देखा की छूआछूत और जातिगत भेदभाव किस तरह देश को बिखेर रही थी अब तक छूआछूत की बीमारी काफी गंभीर हो चुकी थी जिसे देश से बाहर निकालना ही अंबेडकर जी ने अपना कर्तव्य समझा और इसी वजह से उन्होनें इसके खिलाफ मोर्चा छोड़ दिया।

साल 1919 में भारत सरकार अधिनियम की तैयारी के लिए दक्षिणबोरो समिति से पहले अपनी ग्वाही में अंबेडकर ने कहा कि अछूतों और अन्य हाशिए समुदायों के लिए अलग निर्वाचन प्रणाली होनी चाहिए। उन्होनें दलितों और अन्य धार्मिक बहिष्कारों के लिए आरक्षण का हक दिलवाने का प्रस्ताव भी रखा।

जातिगत भेदभाव के खत्म करने को लेकर अंबेडकर ने लोगों तक अपनी पहुंच बनाने और समाज में फैली बुराईयों को समझने के तरीकों की खोज शुरु कर दी। जातिगत भेदभाव को खत्म करने और छूआछूत मिटाने के अंबेडकर जी के जूनून से उन्होनें ‘बहृक्रित हिताकरिनी सभा’ को खोजा निकाला। आपको बता दें कि इस संगठन का मुख्य उद्देश्य पिछड़े वर्ग में शिक्षा और सामाजिक-आर्थिक सुधार करना था।

इसके बाद 1920 में उन्होनें कलकापुर के महाराजा शाहजी द्धितीय की सहायता से ‘मूकनायक’ सामाजिक पत्र की स्थापना की। अंबेडकर जी के इस कदम से पूरे देश के समाजिक और राजनीतिक क्षेत्र में हलचल पैदा कर दी थी इसके बाद से लोगों ने भीमराव अंबेडकर को जानना भी शुरु कर दिया था।

डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने ग्रे के इन में बार कोर्स पूरा करने के बाद अपना कानून काम करना शुरु कर दिया और उन्होनें जातिगत भेदभाव के मामलों की वकालत करने वाले विवादित कौशलों को लागू किया और जातिगत भेदभाव करने का आरोप ब्राह्राणों पर लगाया और कई गैर ब्राह्मण नेताओं के लिए लड़ाई लड़ी और सफलता हासिल की इन्ही शानदार जीत की बदौलत उन्हे दलितों के उत्थान के लिए लड़ाई लड़ने के लिए आधार मिला।

आपको बता दें कि 1927 में डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने छूआछूत मिटाने और जातिगत भेदभाव को पूरी तरह से खत्म करने के लिए सक्रिय रूप से काम किया। इसके लिए उन्होनें हिंसा का मार्ग अपनाने की बजाया, महात्मा गांधी के पदचिन्हों पर चले और दलितों के अधिकार के लिए पूर्ण गति से आंदोलन की शुरुआत की।

इस दौरान उन्होनें दलितों के अधिकारों के लिए लड़ाई की। इस आंदोलन के जरिए अंबेडकर जी नें यह मांग की है सार्वजनिक पेयजल स्त्रोत सभी के लिए खोले जाएं और सभी जातियों के लिए मंदिर में प्रवेश करने की अधिकार की भी बात की।

यही नहीं उन्होनें महाराष्ट्र के नासिक में कलाराम मंदिर में घुसने के लिए भेदभाव की वकालत करने के लिए हिंदुत्ववादियों की जमकर निंदा की और प्रतीकात्मक प्रदर्शन किया।

साल 1932 में दलितों के अधिकारों के क्रुसेडर के रूप में डॉक्टर भीमराव अंबेडकर की लोकप्रियता बढ़ती चली गई और उन्होनें लंदन के गोलमेज सम्मेलन में हिस्सा लेने का निमंत्रण भी मिला। हालांकि इस सम्मेलन में दलितों के मसीहा अंबेडकर जी ने महात्मा गांधी के विचारधारा का विरोध भी किया जिन्होनें एक अलग मतदाता के खिलाफ आवाज उठाई थी जिसकी उन्होनें दलितों के चुनावों में हिस्सा बनने की मांग की थी।

किन बाद में वे गांधी जी के विचारों को समझ गए जिसे पूना संधि (Poona Pact) भी कहा जाता है जिसके मुताबिक एक विशेष मतदाता की बजाय क्षेत्रीय विधायी विधानसभाओं और राज्यों की केंद्रीय परिषद में दलित वर्ग को आरक्षण दिया गया था।

आपको बता दें कि पूना संधि पर डॉक्टर भीमराव अंबेडकर और ब्राह्मण समाज के प्रतिनिधि पंडित मदन मोहन मालवीय के बीच सामान्य मतदाताओं के अंदर अस्थाई विधानसभाओं के दलित वर्गों के लिए सीटों के आरक्षण के लिए पूना संधि पर भी हस्ताक्षर किए गए थे।

1935 में अम्बेडकर को सरकारी लॉ कॉलेज का प्रधानचार्य नियुक्त किया गया और इस पद पर उन्होनें दो साल तक काम किया। इसके चलते अंबेडकर मुंबई में बस गये, उन्होने यहाँ एक बडे़ घर का निर्माण कराया, जिसमे उनके निजी पुस्तकालय मे 50 हजार से ज्यादा किताबें भी थी।

राजनैतिक करियर – 

डॉक्टर भीमराव अंबेडकर जी ने साल 1936 में स्वतंत्र लेबर पार्टी की स्थापना की। इसके बाद 1937 में केन्द्रीय विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी ने 15 सीटों से जीत हासिल की। उस साल 1937 में अंबेडकर जी ने अपनी पुस्तक ‘द एनीहिलेशन ऑफ़ कास्ट’ भी प्रकाशित की जिसमें उन्होंने हिंदू रूढ़िवादी नेताओं की कठोर निंदा की और देश में प्रचलित जाति व्यवस्था की भी निंदा की।

इसके बाद उन्होनें एक और पुस्तक प्रकाशित की थी  ‘Who Were the Shudras?’ (‘कौन थे शूद्र) जिसमें उन्होनें दलित वर्ग के गठन की के बारे में व्याख्या की।

15 अगस्त, 1947 में भारत, अंग्रेजों की हुकूमत से जैसे ही आजाद हुआ, वैसे ही उन्होंने अपनी राजनीतिक पार्टी (स्वतंत्र लेबर पार्टी) को अखिल भारतीय अनुसूचित जाति संघ (ऑल इंडिया शेड्यूल) कास्ट पार्टी में बदल दिया। हालांकि, अंबेडकर जी की पार्टी 1946 में हुए भारत के संविधान सभा के चुनाव में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाई थी।

इसके बाद कांग्रेस और महात्मा गांधी ने दलित वर्ग को हरिजन नाम दिया। जिससे दलित जाति हरिजन के नाम से भी जानी जाने लगी लेकिन अपने इरादों के मजबूत और भारतीय समाज से छूआछूत हमेशा के लिए मिटाने वाले अंबेडकर जी को गांधी जी का दिया गया हरिजन नाम नगंवार गुजरा और उन्होनें इस बात का जमकर विरोध किया ।

उनका कहना था कि “अछूते समाज के सदस्य भी हमारे समाज का हिस्सा हैं, और वे भी समाज के अन्य सदस्यों की तरह ही नॉर्मल इंसान है।“

इसके बाद डॉक्टर भीमराव अंबेडकर जी को वाइसराय एग्जीक्यूटिव कौंसिल में श्रम मंत्री और रक्षा सलाहकार नियुक्त किया गया। अपने त्याग और संघर्ष और समर्पण के बल पर वे आजाद भारत के पहले लॉ मिनिस्टर बने, दलित होने के बाबजूद भी डॉक्टर भीमराव अंबेडकर जी का मंत्री बनना उनके जीवन की किसी बड़ी उपलब्धि से कम नहीं थी।

भारतीय संविधान का गठऩ – 

डॉक्टर भीमराव अंबेडकर का संविधान के निर्माण का मुख्य उद्देश्य देश में जातिगत भेदभाव और छूआछूत को जड़ से खत्म करना था और एक छूआछूत मुक्त समाज का निर्माण कर समाज में क्रांति लाना था साथ ही सभी को समानता का अधिकार दिलाना था।

भीमराव अंबेडकर जी को 29 अगस्त, 1947 को संविधान के मसौदा समिति के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया गया। अंबेडकर जी ने समाज के सभी वर्गों के बीच एक वास्तविक पुल के निर्माण पर जोर दिया। भीमराव अंबेडकर के मुताबिक अगर देश के अलग-अलग वर्गों के अंतर को कम नहीं किया गया तो देश की एकता बनाए रखना मुश्किल होगा, इसके साथ ही उन्होनें धार्मिक, लिंग, और जाति समानता पर खास जोर दिया।

भीमराव अंबेडकर साहब शिक्षा, सरकारी नौकरियों और सिविल सेवाओं में अनूसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के सदस्यों के लिए आरक्षण शुरु करने के लिए विधानसभा का समर्थन हासिल करने में भी सफल रहे।

आपको बता दें कि भीमराव अंबेडकर जी ने समता, समानता, बन्धुता एवं मानवता आधारित भारतीय संविधान को करीब 2 साल, 11 महीने और 7 दिन की कड़ी मेहनत से 26 नवंबर 1949 को तैयार कर तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद को सौंप कर देश के सभी नागिरकों को राष्ट्रीय एकता, अखंडता और व्यक्ति की गरिमा की जीवन पद्धति से भारतीय संस्कृति को अभिभूत किया।

संविधान के निर्माण में अपनी भूमिका के अलावा उन्होनें भारत के वित्त आयोग की स्थापना में भी मद्द की। आपको बता दें कि उन्होनें अपनी नीतियों के माध्यम से देश आर्थिक और सामाजिक स्थिति में बदलाव कर प्रगति की। इसके साथ ही उन्होनें स्थिर अर्थव्यवस्था के साथ मुक्त अर्थव्यवस्था पर भी जोर दिया।

वे निरंतर महिलाओं की स्थिति में भी सुधार करने के लिए प्रयासरत रहे। भीमराव अंबेडकर जी ने साल 1951 में, महिला सशक्तिकरण का हिन्दू संहिता विधयेक पारित करवाने की भी कोशिश की और इसके पारित नहीं होने पर उन्होनें स्वतंत्र भारत के प्रथम कानून मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया।

इसके बाद भीमराव अंबेडकर जी ने लोकसभा में सीट के लिए चुनाव भी लड़ा लेकिन वे इस चुनाव में  हार गए। बाद में उन्हें राज्यसभा में नियुक्त किया गया, जिसके बाद उनकी मृत्यु तक वे इसके सदस्य रहे थे।

साल 1955 में उन्होनें अपना ग्रंथ भाषाई राज्यों पर विचार प्रकाशित कर आन्ध्रप्रदेश, मध्यप्रदेश, बिहार, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र को छोटे-छोटे और प्रबंधन योग्य राज्यों में पुनर्गठित करने का प्रस्ताव दिया था, जो उसके 45 सालों बाद कुछ प्रदशों में साकार हुआ।

डॉक्टर भीमराव अंबेडकर जी ने निर्वाचन आयोग, योजना आयोग, वित्त आयोग, महिला पुरुष के लिये समान नागरिक हिन्दू संहिता, राज्य पुनर्गठन, बड़े आकार के राज्यों को छोटे आकार में संगठित करना, राज्य के नीति निर्देशक तत्व, मौलिक अधिकार, मानवाधिकार, काम्पट्रोलर और ऑडीटर जनरल, निर्वाचन आयुक्त और राजनीतिक ढांचे को मजबूत बनाने वाली सशक्त, सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक एवं विदेश नीतियां भी बनाई।

यही नहीं डॉक्टर भीमराव अंबेडकर अपने जीवन में लगातार कोशिश करते रहे और उन्हें अपने कठिन संघर्ष और प्रयासों के माध्यम से प्रजातंत्र को मजबूती देने राज्य के तीनों अंगों न्यायपालिका, कार्यपालिका एवं विधायिका को स्वतंत्र और अलग-अलग किया साथ ही समान नागरिक अधिकार के अनुरूप एक व्यक्ति, एक मत और एक मूल्य के तत्व को प्रस्थापित किया।

इसके अलावा विलक्षण प्रतिभा के धनी भीमराव अंबेडकर जी ने विधायिका, कार्यपालिका एवं न्यायपालिका में अनुसूचित जाति एवं जनजाति के लोगों की सहभागिता भी संविधान द्वारा सुनिश्चित की और भविष्य में किसी भी प्रकार की विधायिकता जैसे ग्राम पंचायत, जिला पंचायत, पंचायत राज इत्यादि में सहभागिता का मार्ग प्रशस्त किया।

सहकारी और सामूहिक खेती के साथ-साथ उपलब्ध जमीन का राष्ट्रीयकरण कर भूमि पर राज्य का स्वामित्व स्थापित करने और सार्वजनिक प्राथमिक उद्यमों और बैकिंग, बीमा आदि उपक्रमों को राज्य नियंत्रण में रखने की पुरजोर सिफारिश की और किसानों की छोटी जोतों पर निर्भर बेरोजगार श्रमिकों को रोजगार के ज्यादा से ज्यादा अवसर प्रदान करने के लिए उन्होंने औद्योगीकरण के लिए भी काफी काम किया था।

 निजी जीवन – 

दलितों के मसीहा कहे जाने वाले डॉक्टर भीमराव अंबेडकर जी ने अपनी पहली शादी साल 1906 में रमाबाई से की थी। इसके बाद दोनों ने एक बेटे को जन्म दिया था जिसका नाम यशवंत था। साल 1935 में रामाबाई की लंबी बीमारी की वजह से मृत्यु हो गई थी।

1940 में  भारतीय संविधान का ड्राफ्ट पूरा करने के बाद भीमराव अंबेडकर जी को भी कई बीमारियों ने जकड़ लिया था जिसकी वजह से उन्हें रात को नींद नहीं आती थी, हमेशा पैरों में दर्द रहता था और उनकी डायबिटीज की समस्या भी काफी बढ़ गई थी जिस वजह से वे इन्सुलिन भी लेते थे।

इसके इलाज के लिए वे बॉम्बे गए जहां उनकी मुलाकात पहली बार एक ब्राह्मण डॉक्टर शारदा कबीर से हुई। इसके बाद दोनों ने शादी करने का फैसला लिया और 1948 को दोनों शादी के बंधन में बंध गए। शादी के बाद डॉक्टर शारदा ने अपना नाम बदलकर सविता अंबेडकर रख लिया।

अपनाया बौद्ध धर्म – 

साल 1950 में भीमराव अंबेडकर एक बौद्धिक सम्मेलन में शामिल होने के लिए श्रीलंका चले गए। जहां जाकर वे बौद्ध धर्म के विचारों से इतने प्रभावित हुए कि उन्होनें बौद्ध धर्म को अपनाने का फैसला लिया और उन्होनें खुद को बौद्ध धर्म में रूपान्तरण कर लिया। इसके बाद वे भारत वापस आ गए।

भारत लौटने पर उन्होनें बौद्ध धर्म के बारे में कई किताबें भी लिखी। वे हिन्दू धर्म के रीति-रिवाज के घोर विरोधी थे और उन्होनें जाति विभाजन की कठोर निंदा भी की है।

साल 1955 में डॉक्टर भीमराव अंबेडकर जी ने भारतीय बौद्ध महासभा का गठन किया और उनकी किताब “बुद्ध या कार्ल मार्क्स” उनके धर्म उनके मरने के बाद प्रकाशित हुई।

आपको बता दें कि 14 अक्टूबर, 1956 में डॉक्टर भीमराव अंबेडकर जी ने एक आम सभा का भी आयोजन किया जिसमें उन्होनें अपने करीब 5 लाख अनुयायियों को बौद्ध धर्म में रुपान्तरण किया। इसके बाद डॉक्टर भीमराव अंबेडकर जी काठमांडू में आयोजित चौथी वर्ल्ड बुद्धिस्ट कॉन्फ्रेंस में शामिल हुए। 2 दिसंबर 1956 में उन्होनें अपनी आखिरी पांडुलिपि “बुद्ध या कार्ल मार्क्स” को पूरा किया।

म़ृत्यु – 

डॉक्टर भीमराव अंबेडकर जी साल 1954 और 1955 में अपनी बिगड़ती सेहत से काफी परेशान थे उन्हें डायबिटीज, आंखों में धुंधलापन और अन्य कई तरह की बीमारियों ने घेर लिया था जिसकी वजह से लगातार उनकी सेहत बिगड़ रही थी।

लंबी बीमारी के बाद उन्होनें 6 दिसंबर 1956 को अपने घर दिल्ली में अंतिम सांस ली, उन्होनें खुद को बौद्ध धर्म में बदल लिया था इसिलिए उनका अंतिम संस्कार बौद्ध धर्म की रीति-रिवाज के अनुसार ही किया गया उनके अंतिम संस्कार में सैकड़ों की तादाद में लोगों ने हिस्सा लिया और उनको अंतिम विदाई दी।

जयंती – 

डॉक्टर भीमराव अंबेडकर दलितों के उत्थान करने लिए और समाज में दिए गए उनके योगदान का जश्न मनाने के लिए, और उनके सम्मान के लिए उनके स्मारक का निर्माण किया गया था। इसके साथ ही उनके जन्मदिन 14 अप्रैल को अंबेडकर की जयंती की नाम से मनाया जाने लगा।

उनके जन्मदिवस वाले दिन को नेशनल हॉलीडे घोषित किया। इस दिन सभी निजी, सरकारी शैक्षणिक संस्थानों की छुट्टी होती है। 14 अप्रैल में मनाई जाने वाली अम्बेडकर जयंती को भीम जयंती (Bhim Jayanti) भी कहा जाता है। उन्होनें देश के लिए अहम योगदान की वजह से आज भी उन्हें याद किया जाता है।

योगदान – 

भारत रत्न डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने अपनी जिंदगी के 65 सालों में देश को सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, शैक्षणिक, धार्मिक, ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, साहित्यिक, औद्योगिक, संवैधानिक  समेत अलग-अलग क्षेत्रों में कई काम कर राष्ट्र के निर्माण में अहम योगदान दिया।

किताबें – 

सम्मान – 

कुछ रोचक तथ्य – 

डॉक्टर भीमराव अंबेडकर जी का समाज के लिए किए गए अनगिनत योगदान के लिए उन्हें हमेशा याद किया जाएगा। उन्होनें उस समय दलितों की  हक के लिए लड़ाई लड़ी जब दलितों को अछूत मानकर उनका अपमान किया जाता था। खुद भी उनके दलित होने की वजह से उन्हें कई बार निरादर का सामना करना पड़ा लेकिन वे कभी हिम्मत नहीं हारे और विपरीत परिस्थितियों में उन्होनें खुद को और भी ज्यादा मजबूत बना लिया और सामाजिक और आर्थिक रुप से देश की प्रगति में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया जिसके लिए वे हमेशा याद किए जाएंगे।

एक नजर में –

उनके जीवन को देखते हुए निच्छित ही यह लाइन उनपर सम्पूर्ण रूप से सही साबित होगी –

“जीवन लम्बा होने की बजाये महान होना चाहिये”

कुछ प्रमुख यूनिवर्सिटी/शिक्षा संस्थान-

निम्निखित तौर पर हमने कुछ प्रमुख शिक्षा संस्थान एवं यूनिवर्सिटी की जानकारी दी है,जिन्हें बाबासाहेब के सम्मान तथा स्मरण हेतु उनके नामसे नामांकरण किया हुआ है। जैसा के;

  1. बाबासाहेब भिमराव आंबेडकर बिहार यूनिवर्सिटी – मज्फ्फरपुर
  2. डॉ. भिमराव आंबेडकर यूनिवर्सिटी – आग्रा
  3. डॉ.बाबासाहेब आंबेडकर लॉ यूनिवर्सिटी – चेन्नई (तमिलनाडु)
  4. डॉ.बाबासाहेब आंबेडकर मराठवाडा यूनिवर्सिटी – औरंगाबाद (महाराष्ट्र)
  5. आंबेडकर यूनिवर्सिटी – दिल्ली
  6. डॉ.बी.आर आंबेडकर ओपन यूनिवर्सिटी- हैदराबाद (तेलंगाना)
  7. डॉ.भिमराव आंबेडकर लॉ यूनिवर्सिटी- जयपुर
  8. डॉ.बाबासाहेब आंबेडकर ओपन यूनिवर्सिटी- अहमदाबाद(गुजरात)
  9. बाबासाहेब भिमराव आंबेडकर यूनिवर्सिटी – लखनऊ
  10. डॉ.बाबासाहेब आंबेडकर टेक्निकल यूनिवर्सिटी- लोनेर (महाराष्ट्र)

कथन / विचार –

  1. “मै बहुत मुश्किल से इस कारवा को इस स्थिती तक लाया हु। यदि मेरे लोग,मेरे सेनापति इस कारवा को आगे नहीं ले जा सके, तो पीछे भी मत जाने देना”।
  2. “जो धर्म स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व सिखाता है, वही सच्चा धर्म है”।
  3. “महान प्रयासों को छोड़कर इस दुनिया में कुछ भी बहुमूल्य नहीं है”।
  4. शिक्षा महिलाओ के लिए भी उतनी ही जरुरी है, जितनी पुरुषो के लिए”।
  5. “छिने हुए अधिकार भीख से नहीं मिलते, अधिकार वसूल करना होता है “।
  6. “शिक्षा वो शेरनी है,जो इसका दूध पियेगा वो दहाड़ेगा”।
  7. “न्याय हमेशा समानता के विचार को पैदा करता है”।
  8. “एक इतिहासकार सटीक,इमानदार और और निष्पक्ष होना चाहिए”।

आगे पढ़िए…

FAQs

प्रश्न: डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर जी का पूण्यस्मरण दिन (पुण्यतिथि दिन) कब होता है?

जवाब: ६ दिसंबर।

प्रश्न: संयुक्त राज्य अमेरिका में डॉ.बाबासाहेब आंबेडकर जी का पुतला कहा पर स्थापित है?

जवाब: ब्रांडीज यूनिवर्सिटी, बोस्टन में।

प्रश्न: भारतीय संविधान के जनक के रूप में किन्हें पहचाना जाता है? (Who is the Father of Indian Constitution?)

जवाब: डॉ. भिमराव आंबेडकर यानि के बाबासाहेब आंबेडकर जी को।

प्रश्न: भारतीय संविधान का प्रारूप क्या है या फिर भारतीय संविधान कितने पन्नो का है? (How Many Pages in Indian Constitution?)

जवाब: भारतीय संविधान मार्गदर्शन तत्वों के अलावा २२ भागो में बटा हुआ है जिसमे कुल ४४८ अनुच्छेद है, जिसमे कुल १२ अनुसुचिया शामिल है। जिसको कुल ५ परिशिष्ट जोड़े गए है, और अबतक इसमें ११५ बार सुधार या संसोधन हुआ है।

प्रश्न: डॉ. आंबेडकर जी की विश्व में पहचान किस तौर पर है? बाबासाहेब आंबेडकर कौन थे? (Who was Dr BR Ambedkar?)

जवाब: बाबासाहेब एक विद्वान महापुरुष थे जिन्होंने बहुत सारी शिक्षा की डिग्रियां हासिल की थी। बाबासाहेब जी के पास कुल ३२ डिग्रियां थी, जिसमे बैरिस्टर, डॉक्टरेट इत्यादि डिग्रियां भी थी। दलित एवं दबे कुचले वर्ग के प्रमुख नेता, दलितों के मसीहा इस तरह से उनके बारे में संबोधन होता है।
इसके अलावा भारतीय घटना के निर्माता और भारतरत्न इस तरह से भी उनको समूचे विश्व में पहचाना जाता है। बैरिस्टर आंबेडकर के नामसे बाबासाहेब खास तरीके से समाज में परिचित है।

प्रश्न: बाबासाहेब आंबेडकर जी का समाधी स्थल कहा पर स्थित है?

जवाब: मुंबई के दादर में चैत्यभूमि स्थल पर बाबासाहेब आंबेडकर जी का समाधी स्थल है।

प्रश्न: डॉक्टरेट की डिग्री बाबासाहेब आंबेडकर जी ने कौनसे विषय में हासिल की थी?

जवाब: अर्थशास्त्र विषय में।

प्रश्न: स्वतंत्र भारत के प्रथम कानून मंत्री कौन थे?

जवाब: डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर।

प्रश्न: डॉ.बाबासाहेब आंबेडकर जी की जयंती कौनसे दिन मनाई जाती है? (Ambedkar Jayanti)

जवाब: १४ अप्रैल।

प्रश्न: भारत के कौनसे सर्वोच्च नागरी सम्मान से बाबासाहेब आंबेडकर जी को पुरस्कृत किया गया है?

जवाब: भारतरत्न।

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