सवाई जयसिंह का जीवन परिचय | Jai Singh II

Jai Singh II

इतिहास में सैकड़ो शुर वीर राजा हो के गये। कुछ राजा महाराजा हिन्दू थे, कुछ मुग़ल थे, कुछ राजपूत थे। लेकिन जितने भी राजा बने सभी वीर थे। इस तरह के वीर राजा की परंपरा हर धर्म में देखने को मिलती है। राजपूत राजे भी बहुत बहादुर और निडर थे।

एक समय में भारत में राजपूतो ने शासन किया था। मिर्जा राजा जयसिंह, सवाई जयसिंह – Jai Singh II जैसे प्रसिद्ध और बहादुर राजाओ ने शासन किया था। जीन दो राजा का जिक्र ऊपर किया गया है वे दोनों भी बहुत पराक्रमी राजा थे।

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सवाई जयसिंह का जीवन परिचय – Jai Singh II

मिर्जा राजा जयसिंह तो बहादुर थे ही लेकिन सवाई जयसिंह राजा उनसे भी कई अधिक गुना होनहार और पराक्रमी राजा थे। मगर सवाई जयसिंह राजा को सभी सवाई नाम क्यों लगाते है इसके बारे में पता नहीं।

किस वजह से राजा जयसिंह को सवाई जयसिंह कहा गया इसकी जानकारी बहुत कम लोगो को ज्ञात है। कब और कैसे जयसिंह को इस खास नाम से जाने लगा इसकी पूरी जानकारी हम आपको देनेवाले है। जयसिंह को किसने यह नाम दिया इसकी जानकारी भी हम आपतक पहुचाने वाले। इस बहादुर और पराक्रमी राजा की पूरी जानकारी जानने के लिए निचे दी गयी बातो को ध्यान से पढ़े।

Jai Singh II – द्वितीय सवाई जय सिंह जयपुर का एक बहुत ही प्रसिद्ध राजा था। राजा होने के अलावा भी जयसिंह एक गणितज्ञ, खगोल विज्ञानी और अच्छे शहर योजनाकार थे। जंतर मंतर और जयपुर शहर का निर्माण खुद सवाई जयसिंह ने किया था।

महाराजा द्वितीय सवाई जयसिंह अम्बेर का राजपूत राज्य का राजा थे। मुग़ल का जागीरदार होने के नाते जयसिंह को सवाई पद बहाल किया गया था। औरंगजेब ने राजा को यह सम्मान इसीलिए दिया था क्यों की उन्होंने सन 1701 में विशालागड़ का किला मराठा से काबिज किया था।

जब यह सम्मान दिया जा रहा था उस समय इस घटना को याद में रखने के लिए सन 1712 के इम्पीरियल एडिक्ट लिखा गया और उस समय दो झंडे को फहराया गया था। उस समय एक झंडे को पूरा फहराया गया और दुसरे झंडे का एक चौथाई भाग फहराया गया था।

लेकिन सन 1707 में औरंगजेब की मृत्यु होने के बाद में मुगलों के शासन का पतन शुरू हो गया था। इस तरह की उथल पुथल दिल्ली में सन 1719 तक चलती रही लेकिन जब उन्नीस साल का मुहम्मद शाह बादशाह बन गया उस समय दिल्ली में कुछ समय के लिए स्थैर्य बना रहा।

दिल्ली में सन 1739 तक इसी तरह से शांति बनी रही लेकिन इसी साल यानि सन 1739 में अफगान के शासक नादिर शाह ने दिल्ली पर आक्रमण करके दिल्ली को पूरी तरह से लुट लिया और साथी जाते जाते दिल्ली का सिंहासन भी साथ में ले गया।

लेकिन इस तरह की उथल पुथल होने के बाद भी होशियार जयसिंह ने बड़ी चतुराई से अपने राज्य का विस्तार इस दौरान किया।

Jai Singh II – जयसिंह की राजधानी जयपुर पूरी तरह से बनाने में केवल जयसिंह का बहुमूल्य योगदान था। जयपुर शहर पूरी तरह से ग्रिड प्रणाली पे बनाया गया था जिस तरहसे ब्रह्माण्ड में नौ तरह के विभाग बनाये गए है उसी तरह के इसमें नौ आयताकार ज़ोन बनाये गए और साथ ही जो लोग अलग अलग काम करते थे उनके लिए अलग अलग क्षेत्र इस शहर में जयसिंह ने बनाये थे।

शहर में जो बड़े और मुख्य रास्ते थे उनकी चौड़ाई 119 फीट की गयी थी और शहर के जो छोटे रास्ते थे उन्हें 60 फीट चौड़ा किया गया था और इस तरह के सभी रास्ते एक दुसरे को लम्बवत रूप से मिलते थे। इन रास्तो को और 30 फीट चौड़ाई की गलिया और 15 फीट चौड़ाई की गलियों में भी बनाया गया था।

इस शहर की सभी इमारते बहुत ही खुबसूरत बनायीं गयी थी और इस शहर के रास्तो के दोनों तरफ़ बड़े बड़े पेड़ थे जिनकी छाव रास्तो पर गिरती थी। शहर में सभी जगहों पर नल से जल उपलब्ध कराने की सुविधा की गयी थी। इसके अलावा भी शहर में जगह जगह पर कुवे भी बनाये गए थे।

उस समय जयपुर में फ्रेंच प्रवासी लुइस रौस्सेलेट और इंग्लिश बिशप हेबर आये थे जब उन्होंने इस शहर को देखा तो वे सवाई जयसिंह के शहर को देखकर बहुत ही प्रभावित हो गए थे।

राजा सवाई जयसिंह को खगोल विज्ञान में बहुत ही रुची थी। राजा जयसिंह बहुत ही विद्वान था। उसके पास में अरेबिया और यूरोप की कुछ खगोल विज्ञान की महत्वपूर्ण क़िताबे थी।

इन किताबो में जॉन फ्लाम्स्तीद की ‘हिस्तोरिया कोलेस्तिस ब्रिटानिका’, पोर्तुगीज पेरे डे ला हायर की ‘टाबुला आस्ट्रोनोमिका’, तुर्किश खगोल विज्ञानी उलुघ बेग की ‘जीज उलुघ बेगी’ और ग्रीक टॉलेमी की ‘अल्मागेस्ट’ की सभी क़िताबे राजा जयसिंह के संग्रह में थी।

Jai Singh II – सवाई राजा जयसिंह केवल राजा ही नही था बल्की वह एक विद्वान व्यक्ति भी था। राजा जयसिंह जैसे राजा बहुत कम देखने को मिलते है। इस राजा की तरह दूसरा कोई राजा हो नहीं सकता क्यों की इस राजा ने जो काम कर के दिखाया था उस तरह का काम इतिहास में किसी और राजा ने कभी नहीं किया।

यह एक ऐसा राजा है जिसने खुद अपनी राजधानी का शहर बनाया था। जिस तरह राजा ने शहर की योजना की थी उसमे किसी भी बात की कमी नहीं थी। जिस समय इस शहर का निर्माण हुआ था उस समय इस शहर के जैसा दूसरा कोई भी शहर नहीं था। Jai Singh II – राजा सवाई जयसिंह के पास में खगोल विज्ञान के किताबो का भी बहुत बड़ा संग्रह था।

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