जानिए इतिहास के सबसे महान एवं प्रभावी शासक कृष्णदेव राय जी के जीवन के बारे में

Krishnadevaraya

श्री कृष्णदेव राय एक महान एवं कुशल प्रशासक के साथ होनें-साथ एक महान योद्धा भी थे। जिन्होंने अपने शासनकाल में विजयनगर सम्राज्य का काफी विस्तार किया था और उनका सम्राज्य एक आदर्श सम्राज्य बन गया था।

कृष्ण देव राय जी एक प्रभावी शासक ही नहीं, बल्कि एक जाने-माने कवि, प्रसिद्ध संगीतकार भी थे। जो कि अपने दयालुता के लिए भी काफी प्रसिद्ध थे। वे अपनी प्रजा का बहुत ध्यान रखते थे।

वे एक ऐसे शासक थे, जिन्होंने अपनी बुद्धिमत्ता और तार्किक शक्ति के कारण अपने शासनकाल के दौरान सभी युद्धों में सफलता हासिल की थी। उन्होंने अपने शासनकाल के दौरान अपने सम्राज्य को पूर्व भारत कटक से पश्चमी गोवा तक और दक्षिणी महासागर से उत्तरी रायचूरी डोब तक फैला लिया था।

इसके अलावा उन्होंने अपने शासनकाल में प्रसिद्ध विट्ठलस्वामी एवं हजारा मंदिर का निर्माण करवाया। इसके साथ ही कई अन्य वास्तुकला और विजयनगर शैली के शानदार नमूने पेश किए। तो आइए जानते हैं कृष्णदेव राय जी के जीवन से जुड़ी कुछ खास एवं अनसुनी बातों के बारे में-

जानिए इतिहास के सबसे महान एवं प्रभावी शासक कृष्णदेव राय  जी के जीवन के बारे में – Krishnadevaraya In Hindi

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श्री कृष्णदेव राय के जीवन के बारे में एक नजर में – Krishnadevaraya Information in Hindi

नाम (Name) श्री कृष्णदेव राय
जन्म (Birthday) 16 फरवरी, 1471, हम्पी, कर्नाटक
माता का नाम (Mother Name) नागला देवी
पिता (Father Name) तुलुव नरसा नायक (बंटों के सरदार)
पत्नी (Wife Name) अन्नपूर्णा देवी, चिन्ना देवी, तिरुमला देवी,
बेटा (Son Name) तिरुमला राय
शासन-काल  1509-1529 तक
मृत्यु (Death)     1529, हम्पी,कर्नाटक

कृष्णदेव राय जी का जन्म एवं शुरुआती जीवन – Sri Krishnadevaraya Biography

कृष्णदेव राय जी कर्नाटक के हंपी में 16 फरवरी, 1471 में तुलुव नरसा नायक के बेटे के रुप में जन्में थे, उनके पिता बंटों के सरदार थे।

जिन्हें बाद में सालुव वंश के दूसरे और आखिरी शासक इम्माडि नरसिंह का संरक्षक बनाया गया था, वहीं बाद में उनके पिता ने इम्माडि नरसिंह को कैद कर सपूंर्ण उत्तर भारत में अपना अधिकार कर लिया था और 1492 ईसवी में उनके पिता ने विजयनगर की बागडोर अपने हाथ में ले ली थी।

इसके बाद 1503 ईसवी में उनके पिता की मृत्यु हो गई थी। आपको बता दें कि कृष्णदेव राय जी बचपन से काफी कुशाग्र बुद्धि के बालक थे। वहीं वीर नरसिंह जी उनके बड़े भाई थे।

कृष्णदेव राय जी का राज्याभिषेक एवं शासनकाल (1509 से 1529) – Krishnadevaraya Reign

कृष्णदेव राय जी 8 अगस्त, 1509 को विजयनगर सम्राज्य के सिंहासन पर बैठे थे। उनसे पहले उनके बड़े भाई वीर नरसिंह जी वहां के राजगद्दी संभाले हुए थे।

अपने बड़े भाई की मौत के बाद कृष्णदेव राय ने विजयनगर का सम्राज्य की कमान कुशलतापूर्वक संभाली। कृष्णदेव राय जी के शासनकाल के समय उनकी राजधानी हंपी और डंपी थी।

हंपी और डंपी उस दौरान के सबसे विकसित शहर थे, जहां पर भव्य एवं खूबसूरत महल बने हुए थे।

कृष्णदेव राय जी के शासनकाल में विजय नगर सम्राज्य एक आदर्श एवं प्रतिष्ठित सम्राज्य के रुप में उभरकर आया था।

कृष्णदेव राय जी के सैन्य एवं विजय अभियान:

कृष्णदेव राय जी ने अपने सैन्य अभियानों के तहत 1509-1510 ईसवी में बीदर के सुल्तान महमुद शाह को ”अदोनी” के पास हराया। इसके बाद उन्होंने 1510 ईसवी में उम्मूतूर के विद्रोही सामंत को हार की धूल चटाई और गोवा में भारत के पुर्तगाली प्रभुत्व को स्थापित करने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

फिर 1512 ईसवी में कृष्णदेवराय जी ने अपने सैन्य अभियान के तहत बीजापुर के शासक यूसुफ आदिल खां को हराकर रायचूर पर अपना अधिकार कर लिया। इसके बाद उन्होंने गुलबर्गा के किले पर अपना कब्जा जमा लिया।

अपने सैन्य अभियान को आगे बढ़ाते हुए 1513 से 1518 के बीच कृष्णदेव राय जी ने उड़ीसा के शक्तिशाली सुल्तान गजपति प्रतापरुद्र देव से करीब 4 बार युद्ध किया और हर युद्ध में उन्होंने प्रतापरुद्र देव जी को पराजित कर अपने अदम्य साहस का परिचय दिया।

वहीं इसके बाद उड़ीसा के शासक ने कृष्णदेव राय जी से संधि करने के लिए हाथ आगे बढ़ाए और फिर उनके साथ अपनी बेटी की शादी कर दी। इसके बाद अपने विजय अभियान और सम्राज्य विस्तार की रणनीति के तहत कृष्णदेव राय जी ने गोलकुण्डा के सुल्तान कुली कुतुबशाह को सालुम तिम्म के द्वारा परास्त करवा दिया।

आपको बता दें कि कृष्णदेव राय जी ने अपना आखिरी सैन्य अभियान  बीजापुर  के शासक इस्माइल आदिलशाह के दौरान चलाया। इस दौरान उन्होंने आदिल को बुरी तरह हराकर गुलबर्गा के मशहूर किले को पूरी तरह ध्वस्त कर दिया।

शक्तिशाली शासक कृष्णदेव राय जी ने 1520 ईसवी तक अपने सभी दुश्मनों को हराकर अपनी अदम्य साहस और वीरता  का परचम लहराया एवं खुद को इतिहास के सबसे शक्तिशाली शासक के रुप में स्थापित किया।

कृष्णदेव राय जी के पुर्तगालियों के साथ संबंध –

इतिहास के महान शासकों में एक कृष्णदेव राय जी ने एक समझौते के तहत पुर्तगालियों के साथ दोस्ती का हाथ आगे बढ़ाया था। दरअसल, उस दौरान अरब एवं फारस के होने वाले घोड़े के व्यापार पर पुर्तगालियों का पूरा अधिकार था।

इसलिए कृष्णदेव राय जी ने अपनी समझदारी के साथ पुर्तगाली शासक अल्बुकर्क के साथ संधि कर ली, ताकि वे बिना किसी रुकावट के व्यापार कर सकें।

पुर्तगालियों के साथ श्री कृष्णदेवराय जी की संधि के मुताबिक पुर्तगाली अपने घोड़ों को सिर्फ विजयनगर में भी बेचने के लिए तैयार था। वरहीं कृ्ष्णदेव राय जी ने पुर्तगालियों को भटकल में किला बनाने के लिए इस शर्त पर किला बनाने के लिए  अनमति दी थी कि वे मुस्लिमों से गोवा छीन लेंगे।

कृष्णदेव राय जी द्वारा एक समृद्ध, संपन्न एवं शक्तिशाली राज्य की स्थापना:

कृष्णदेव राय जी एक बेहद बुद्धिमान एवं प्रभावशाली राजा थे, जिनके शासनकाल में विजयनगर सम्राज्य एक समृद्ध, संपन्न एवं शक्तिशाली राज्य बन गया था। उस समय यह हर दूसरे सम्राज्य के लिए एक आदर्श सम्राज्य था।

कृष्णदेव राय जी के शासनकाल के समय उनके सम्राज्य के सभी लोगों को समान अधिकार प्राप्त थे। इसके साथ ही उस दौरान नागरिक की शिक्षा, स्वास्थ्य एवं अन्य सेवाओं का भी काफी ध्यान रखा जाता था।

इसके अलावा उनके शासनकाल में कला और साहित्य को भी काफी बढ़ावा दिया गया, इसलिए उनके काल को स्वर्ण युग के रुप में देखा गया। दरअसल कृष्णदेवराय जी के शासन के समय कई भाषाओं में साहित्य भी काफी फला-फूला था।

यही नहीं उनके राज्य में तेलुगू, कन्नड़, संस्कृत, तमिल समेत कई कवियों में महत्वपूर्ण स्थान दिया गया था। आपको बता दें कि अष्टदिग्गज-आठ महान कवि उनके मुख्य दरबारी थे।

काव्य, कविता और साहित्य के साथ-साथ कृष्णदेव राय जी संगीत के भी महान संरक्षक थे। आपको बता दें कि उनके दरबार में तेनाली राम जैसे महान संगीतकार मौजूद थे। यही नहीं उनका राज्य कला और वास्तुकला से समृद्ध राज्य भी था।

कृष्णदेव राय जी के शासनकाल के समय ही हंपी में प्रसिद्ध विट्ठलस्वामी और हजारा मंदिर का निर्माण करवाया था। कई मंदिरों के अलावा यहां पर कई अन्य वास्तुकला और विजयनगर शैली के शानदार नमूने भी स्थापित किए गए थे।

इसके अलावा कृष्णदेव राय जी ने अपने शासनकाल में कई युद्ध में जीत हासिल कर अपने युद्ध और रण कौशल का परिचय दिया था।

आपको बता दें कि उन्होंने पहले डेक्कन में सफलता हासिल की और फिर उड़ीसा के गजपति जागीरदार राजाओं पर जीत हासिल कर कावेरी नदी के गंगा राजा को हराया एवं अजेय जल दुर्ग पर अपना आधिपत्य स्थापित करने में कामयाबी हासिल की।

कृष्णदेव राय जी ने अपने शासनकाल के दौरान अपने बड़े भाई वीर नरसिंह जी से किए गए वचन के अनुसार कोण्डविड, उड़ीसा और रायचूर राज्य को अपनी शक्ति से अपने अधीन कर लिया।

यही नहीं कृष्ण देव राय जी ने उस दौरान के शक्तिशाली शासक गजपति प्रताप रुद्र को हराकर उनके उदयगिरी किले पर भी अपना अधिकार स्थापित कर लिया था।

यही नहीं बाद में कृष्णदेव राय जी के प्रभाव को देखते हुए गजपति प्रताप रुद्र को उनसे संधि करने के लिए मजबूर होना पड़ा और बाद में उन्होंने अपनी बेटी जगन्मोहिनी की शादी कृष्णदेव राय जी से कर दी थी।

वहीं आप कृष्णदेव राय जी की शक्ति और प्रभुत्व का अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि उस दौरान मदुरै से कटक तक के लगभग सभी किले हिन्दू सम्राज्य में आ गए थे। यही नहीं कालीकट से गुजरात के लगभग सभी शासक सम्राट कृष्णदेव राय जी को कर देते थे।

महान साहित्यकार एवं कवि के रुप में कृष्णदेव राय जी – Krishnadevaraya Sanskrit Poet

कृष्णदेव राय जी एक महान शासक, अजेय सेनापति और कुशल प्रशासक होने के साथ-साथ तेलुगु भाषा के महान साहित्यकार भी थे उन्होंने तेलुगू का प्रसिद्ध ग्रंथ ”अमुक्त माल्यद” की रचना की थी।

आपको बता दें कि उनकी इस रचना को तेलुगु के पांच महाकाव्यों में स्थान दिया गया है। आपको बता दें कि कृष्णदेव राय जी के शासनकाल को ”तेलुगु साहित्य का स्वर्ग काल और क्लासिकी युग” कहा गया है।

इसके अलावा कृष्ण देवराय जी ने संस्कृत भाषा में भी एक नाटक ”जाम्बवती कल्याण” की रचना की थी। इसके साथ ही उन्होंने परिणय, मदारसाचरित्र, सकलकथासार-संग्रहम, सत्यवधु-परिणय आदि ग्रंथों की भी संस्कृत में रचना की थी।

कृष्णदेव राय जी के महान कार्य – Krishnadevaraya Work

कृष्णदेव राय जी इतिहास के एक महान शासक थे, जिनकी तुलना महान सम्राट अशोक, विक्रमादित्य आदि से की जाती है।

उन्होंने अपने काल में न सिर्फ कला, साहित्य आदि को बढ़ावा दिया, बल्कि स्थापत्य कला एवं वास्तुकला के भी शानदार नमूने पेश किए। उन्होंने कई खंडहरो में तब्दील मंदिरों का फिर से जीर्णोद्धार करवाया और विजयनगर वास्तुकला का एक शानदार नमूना पेश किया। उन्हो्ंने राजमहेन्द्रपुरम, अन्नतपुर, राजगोपुरम, रामेश्वरम समेत कई मंदिरों का निर्माण करवाया।

इसके अलावा उन्होंने कई जर्जर और बंजर भूमि को कृषि योग्य बनाया। कृष्णदेवराय जी ने अपने शासनकाल में कई नहरों का निर्माण भी करवाया एवं पुर्तगालियों के साथ अच्छे व्यापारिक संबंध स्थापित किए। इसके साथ ही उन्होंने अपने शासनकाल में ”विवाह कर” जैसे कई गैरजरूरी करों को खत्म किया।

कृष्णदेव राय जी के दरबार के अष्टदिग्गज कवि – Ashtadiggajas Poets Names

महान एवं कुशल प्रशासक श्री कृष्णदेवराय जी के दरबार में तेलुगु साहित्य के 8 महान कवि भी रहते थे, जिन्हें ”अष्टदिग्गज” के रुप में जाना जाता है।

अष्टदिग्गज कवियों में प्रमुख अल्लसानि पेद्दन को तुलुगु कविता के पितामह की उपाधि दी गई थी। अष्टदिग्गजों में दूसरे महान कवि नन्दी तिम्मन थे, जिन्होंने पारिजातहरण की रचना की थी। अष्टदिग्गजों में तीसरे कवि भट्टूमूर्ति, चौथे कवि धुर्जटि, पांचवे कवि माद्य्यगरी मल्लन, छठवें कवि अच्चलराजु रामचन्द्र, सातवें कवि पिंगलीसूरत्र और आठवें कवि मुक्कू तिरुलराय थे।

कृष्णदेव राय जी की मृत्यु – Krishnadevaraya Death

इतिहास के सबसे अधिक शक्तिशाली राजा कृ्ष्णदेव राय जी 1529 ईसवी में इस दुनिया को अलविदा कहकर हमेशा के लिए यह दुनिया छोड़कर चले गए थे।

कुछ इतिहासकार उनकी मौत की वजह किसी अज्ञात बीमारी को मानते हैं। जबकि कुछ इतिहासकार कृष्णदेव राय जी की मौत का कारण पुत्र विलाप भी मानते हैं।

दरअसल, राजा के इकलौते पुत्र तिरुमल राय की भी एक राजनैतिक षडयंत्र के तहत हत्या कर दी गई थी। हालांकि उनकी मौत के बाद 1530 में विजयनगर सम्राज्य की राजगद्दी पर अच्युत राय बैठा फिर 1542 में उनके राज की कमान सदाशिवराय ने संभाली।

निस्कर्ष

श्री कृष्णदेव राय जी इतिहास के सबसे शक्तिशाली और कुशल प्रशासकों में से एक थे, जिन्होंने अपने शासनकाल मे कई महान काम किए एवं अपने विजय नगर सम्राज्य के विस्तार के साथ प्रजा के हित में काम किए।

उन्हें हमेशा एक शक्तिशाली शासक, लोकनायक, महान रणनीतिकार, भवन निर्माता, साहित्यकार, अजेय सेनापति, कुशल संगठक एवं प्रजारंजक प्रशासक के रुप में याद किया जाएगा।

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