क्या सच में सरदार वल्लभ भाई पटेल कश्मीर के बदले पाकिस्तान को हैदराबाद सौंपने को तैयार थे? क्या है असल सच्चाई………

Merger of Hyderabad

कश्मीर से कांग्रेस नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री सैफुद्दीन सोज ने अपनी किताब कश्मीर: ग्लिम्पसेस ऑफ हिस्ट्री एंड द स्टोरी ऑफ स्ट्रगल के विमोचन के समय पर कहा था – कि सरदार वल्लभ भाई पटेल कश्मीर के बदले पाकिस्तान को हैदराबाद सौंपने को तैयार थे क्योंकि वो युद्ध टालना चाहते थे। लेकिन इस बात में कितनी सच्चाई है इसके लिए इतिहास के पन्नों को पलटना बहुत जरुरी है।

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क्या सच में सरदार वल्लभ भाई पटेल कश्मीर के बदले पाकिस्तान को हैदराबाद सौंपने को तैयार थे? क्या है असल सच्चाई………

रिपोर्टस और तथ्यों के अनुसार जिस समय ब्रिटिशस के खिलाफ भारत छोड़ो आंदोलन चल रहा था। और ब्रिटिश भारत छोड़ कर धीरे – धीरे जा रहे थे उस समय भारत के 562 रजवाड़े हुआ करते थे जिनमें से कश्मीर, हैदराबाद और जूनागढ़ रियासतों को छोड़कर बाकी सभी रियासतों ने भारत में विलय का फैसला किया था।

हालांकि आजादी के बाद कश्मीर के राजा हरि सिंह ने भी अपनी कुछ शर्तों पर कश्मीर को भारत में शामिल करवा लिया था। वहीं दूसरी तरफ हैदराबाद में कट्टरपंथी कासिम राजवी का नेतृत्व हैदराबाद के भारत में विलय होने के बीच अड़ंगा बन रहा था।

माना जाता है कि हैदाराबाद भी कश्मीर की तरह ही एक मजबूत रियासत थी जिसकी अपनी सेना, डाक तार विभाग और रेल सेवा थी। और आबादी की दृष्टि से भी हैदराबाद भारत का सबसे बड़ा राजघराना था। हैदराबाद में 80 प्रतिशत हिंदु और बाकी मुस्लिम सुमदाय की आबादी थी। हालाकिं अल्पसंख्यक आबादी के बाद भी मुस्लिम हैदराबाद की रियासत में अच्छे पदो पर विराजमान थे।

वहीं कट्टरपंथी कासिम राजवी के नेतृत्व में निजाकर हैदराबाद में आजादी के लिए जन सभाएं भी तेजी पर थी। गैर – मुस्लिम यात्रियों पर हमले किए जाते थे। हैदराबाद से सटे इलाको में रहने वाले लोगों पर भी हमले किए जाते थे, परेशान किया जाता था। हैदराबाद के ये विद्रोही चाहते थे कि हैदाराबाद का पाकिस्तान के साथ विलय हो जाए।

रिपोर्टस के अनुसार इसके लिए इन विद्रोहियों ने जिन्ना को पत्र लिखकर ये जानने की कोशिश भी की थी कि क्या वह भारत के खिलाफ लड़ाई में हैदराबाद का समर्थन करेंगे? लेकिन जिन्ना ने ये कहकर मना कर दिया कि वो एक जमीनी टुकड़े के लिए पूरे पाकिस्तान को खतरे में नहीं डाल सकते।

हालांकि हैदराबाद के विद्रोही अभी भी नहीं चाहते थे कि हैदराबाद का विलय भारत में हो। जिसके लिए उनका आंतक बढ़ता जा रहा था। और इसी बात को सरदार पटेल भी भली भांति समझ चुके थे कि अब इस पर कोई ना कोई गंभीर फैसला लेना ही होगा। उस समय देश के उपसेनाध्यक्ष लेफ्टिनेंट जनरल एसके सिन्हा थे जिन्होनें अपनी ऑटोबायोग्राफी “स्ट्रेट फ्रॉम द हार्ट” में साफ लिखा है कि एसके सिन्हा जब जनरल करियप्पा के साथ कश्मीर में थे तो सरदार पटेल ने उन्हें तुरंत संदेश भेजकर मिलने के लिए बुलाया था।

और जनरल करियप्पा ने जब सरदार पटेल से मुलाकात की तो सरदार पटेल ने जनरल करियप्पा से सीधा सवाल किया कि अगर हैदराबाद के मसले पर पाकिस्तान की तरफ से कोई सैनिक प्रतिक्रिया आती है तो क्या वह बिना अतिरिक्त मदद के हालात से निपट पाएंगे तो जनरल का जवाब था हां। जिसके बाद सरदार पटेल ने बैठक खत्म की और सेना को हैदराबाद भेज दिया।

उस समय पाकिस्तान के प्रधानमंत्री लियाकत अली खां थे पाकिस्तान की नजर उस समय कश्मीर पर थी लेकिन हैदराबाद को लेकर भी पाकिस्तान के मन में बहुत कुछ चल रहा था जिस वजह से प्रधानमंत्री लियाकत ने हैदराबाद को लेकर एक बैठक बुलाई और कैप्टेन एलवर्दी से पूछा क्या पाकिस्तान हैदराबाद के मुद्दे पर कोई एक्शन ले सकता है लेकिन कैप्टेन एलवर्दी शायद स्थिति को समझ चुके थे इसलिए उन्होनें मना कर दिया।

वहीं दूसरी तरफ पंडित जवाहरलाल नेहरु को इस बात की ही चिंता सता रही थी कि कहीं सरदार पटेल का लिया फैसला गलत साबित ना हो जाए। लेकिन जब पाकिस्तान की तरफ से कोई हलचल नहीं हुई तो पंडित जवाहरलाल नेहरु की चिंता भी मिट गई। भारतीय सेना ने पोलो ऑपरेशन के नाम से हैदराबाद में कार्रवाई की और 1372 रजाकार को मार गिराया लेकिन इस बीच सेना के 607 जवान भी शहीद हो गए हालांकि हैदराबाद का विलय भारत में हो ही गया।

जिस वजह से कांग्रेस नेता की ये बात कि सरदार पटेल कश्मीर के बदले हैदराबाद पाकिस्तान को देने के लिए तैयार थे ये पूरी तरह गलत लगती है। क्योंकि अगर ऐसा होता तो वो हैदराबाद के विलय के लिए इतने कड़े कदम नहीं उठाते।

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