आँख मेरी और पॉव तुम्हारे | Anubhav Moral Story

Anubhav Moral Story

किसी समय की बात एक गांव में बहुत सारे लोग रहा करते थे। जिनमे से एक व्यक्ति अंधा था वह किसी भी चीज को देख नहीं सकता था। एक लंगड़ा व्यक्ति था जो देख तो सकता था पर चल नहीं सकता था एक दिन गांव में किसी कारण आग लग गई अंधा और लंगड़ा व्यक्ति दोनों मदद के लिए पुकारने लगे…

Anubhav moral story in Hindi

 आँख मेरी और पॉव तुम्हारे – Anubhav Moral Story

क्योंकि लंगड़ा आदमी देख तो सकता था मगर चाहते हुए भाग नहीं सकता था वही दूसरी तरफ बिल्कुल इसके विपरीत स्थिति थी अंधा आदमी देख नहीं सकता था पर भाग सकता था।

उनकी इसी कमजोरी के चलते वह बहुत चिल्लाये पर सभी लोगो ने उनकी पुकार को अनसुना कर दिया

सभी अपनी-अपनी जान बचाकर एक-दूसरे को रौंदते भाग रहे थे।

दोनों ने बहुत मदद मांगी पर कोई भी व्यक्ति आगे नहीं आया… सारा गांव देखते ही देखते खाली हो गया। यह देख लंगड़ा व्यक्ति अंधे से बोलै – हे मित्र! तुम मुझे अपनी ऊपर कंधे पर बैठा लो.. “आँख मेरी और पॉव तुम्हारे ” मतलब मैं तुम्हारे ऊपर बैठकर तुम्हे रास्ता बताता जाऊंगा इस तरिके से हम दोनों बच जायेगे।

अंधे में लगड़े व्यक्ति की बात मान ली जिससे वह दोनों बच गए…

इस कहानी का बड़ा ही सुन्दर तात्पर्य आज के जीवन से है –

जिस तरह आज के समय बुजुर्ग की आँख मतलब अनुभव और युवा के पाव मतलब मेहनत मिल जाये तो कोई भी काम बिना समय गवाये किया जा सकता है।

क्योंकि बुजुर्ग के पास वह अनुभव है जो युवा को कई वर्षो के बाद आएगा पर समय चला जायेगा और बुजुर्ग के पास अनुभव के आलावा अब कुछ भी नहीं है

परन्तु इस पूरे ब्रम्हांड में अनुभव जैसी कीमती दूसरी कोई भी मूल्यवान ज्ञान नहीं है।

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4 thoughts on “आँख मेरी और पॉव तुम्हारे | Anubhav Moral Story”

    1. Editorial Team

      शुक्रिया जी, यह कहानी वाकई प्रेरणा देने वाली है अगर अनुभव के साथ-साथ मेहनत भी की जाए तो तरक्की निश्चित ही होती है।

  1. Kiya Sikh Mili hai me bhi yahi sochta hu humare maabaap ke pass Anubhav hai humare pass kaam karne ki shamta agar dono mil jaye to muge nahi lagta koi kaam karne me pareshani aayegi…

    1. Editorial Team

      धन्यवाद मनीष जी, सही कहा आपने अगर ज्ञान, अनुभव दोनों मिल जाएं तो सफलता जरूर मिलेगी।

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