पंडिता रमाबाई

पंडिता रमाबाई भारत की महान समाज सुधारिका और संस्कृत की प्रख्यात विद्धान थी। संस्कृत और वेदों का अपार ज्ञान होने की वजह से ही उनके नाम के आगे पंडिता लगाया गया था।

रमाबाई को मराठी भाषा के साथ-साथ हिन्दी, बंग्ला और कन्नड़ भाषओं समेत 7 भाषाओं का ज्ञान था। पंडिता रमाबाई ने अपने महान विचारों से उस समय महिलाओं के लिए अपनी आवाज उठाई थी, जिस समय महिलाओं को शिक्षा ग्रहण करने की अनुमति नहीं थी, और न ही उन्हें घरों से बाहर निकलने की इजाजत थी।

उस दौरान पंडिता रमाबाई ने सती प्रथा, बाल विवाह, जाति प्रथा समेत तमाम सामाजिक कुरोतियों को खत्म करने के प्रयास किए थे। इसके साथ ही उन्होंने विधवा महिलाओं की समाज में स्थिति सुधारने और महिलाओं की शिक्षा के लिए भी कई काम किए।

बचपन में ही अनाथ हो चुकीं पंडिता रमाबाई ने अपने जीवन के संघर्षों का न सिर्फ डटकर सामना किया बल्कि अपने अनूठे कामों से दुनिया में लोगों के लिए मिसाल कायम की। आज वे कई लोगों की आदर्श और प्रेरणा हैं, यहीं नहीं पंडिता रमाबाई ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

Pandita Ramabai

संस्कृत की महान विद्दान और समाज सुधारिका पंडिता रमाबाई – Pandita Ramabai

पूरा नाम (Name) पंडिता रमाबाई मेधावी
जन्म (Birthday) 23 अप्रैल, 1858, मैसूर
मृत्यु (Death) 5 अप्रैल, 1922 ई, महाराष्ट्र
पिता का नाम (Father Name) ‘अनंत शास्त्री’
कर्म-क्षेत्र (Occupation) समाज सुधारक
पुरस्कार-उपाधि (Award) ‘सरस्वती’, ‘पंडिता’ और “कैसर-ए-हिंदी”

शुरुआती जीवन और विवाह –

23 अप्रैल, 1858 में मैसूर के एक साधारण से परिवार में जन्मीं रमाबाई के पिता का नाम अनंत शास्त्री था, जो कि संस्कृत के परम विद्धान थे और महिला शिक्षा के घोर समर्थक थे, हालांकि उन्हें इ्सकी वजह से काफी विरोध भी सहना पड़ा था।

आपको बता दें कि रमाबाई ने अपने पिता से ही संस्कृत की शिक्षा ली थी। पंडिता रमाबाई बचपन से ही बेहद बुद्धिमान और आसाधारण प्रतिभा वाली महिला थीं। सिर्फ 12 साल की छोटी सी ही उम्र में ही उन्हें संस्कृत के करीब 20 हजार श्लोक याद हो गए थे।

साल 1877 में अकाल के कारण माता-पिता और उनकी छोटी बहन की मौत हो गई थी, जिसके बाद रमाबाई अपने भाई के साथ कलकत्ता चली गईं थी, वहीं साल 1880 में रमाबाई के सिर से उनके भाई का साया भी उठ गया।

हालांकि, रमाबाई कमजोर नहीं पड़ी और इसके बाद उन्होंने 22 साल की उम्र में प्रख्यात वकील बिपिन बिहारी मेधवी से शादी कर ली।

महिला आर्य समाज की स्थापना और ईसाई धर्म में परिवर्तन

पंडिता रमाबाई ने शादी के बाद बाल विवाह और सती प्रथा के खिलाफ अपनी आवाज उठाई थी। इसके साथ ही उन्होंने विधवाओं को उनका हक दिलवाने और महिला शिक्षिका और महिला डॉक्टरों को बढ़ावा देने की भी बात कही थी।

हालांकि, शादी के थोड़े समय बाद ही उनके पति बिपिन बिहारी की हैजा की बीमारी के चलते मौत हो गई, लेकिन रमाबाई ने अपनी जिंदगी से हार नहीं मानी और अपने लक्ष्यों को हासिल करने के लिए वे आगे बढ़ती रहीं।

मेडिकल की डिग्री हासिल कर वे ब्रिटेन गईं और फिर यूएस जाकर उन्होंने स्नातक की डिग्री हासिल की। पति की मौत के बाद उन्होंने आर्य महिला समाज की स्थापना भी की। इस दौरान पंडिता रमाबाई ईसाई धर्म के विचारों से काफी प्रभावित हुईं और उन्होंने ईसाई धर्म अपना लिया, यही नहीं रमाबाई ने इसाई धर्म की धार्मिक पुस्तक बाइबल का भी मराठी भाषा में अनुवाद किया।

महिलाओं के हक के लिए किए सराहनीय काम

महान समाज सुधारक और कवियित्री रमाबाई को अपने बचपन में ब्राह्मणवादी पितृसत्ता के लिए काफी कुछ सहना पड़ा था, इसलिए उन्होंने इस पर अपनी एक किताब ‘द हाई कास्ट हिंदू वूमेन’ भी लिखी थी।

इस किताब में उन्होंने विधवा विवाह, सती प्रथा, बाल विवाह समेत हिन्दू महिलाओं के साथ होने वाले अत्याचारों के बारे में लिखा था।

विधवाओं के हक के लिए लड़ने वाली रमाबाई ने भारत लौटने के बाद साल 1889 में विधवाओं के लिए शारदा सदन की स्थापना की, वहीं इसके बाद कृपा सदन नामक एक और महिला आश्रम बनाया गया। जिसमें अनाथ, असहाय और पीडि़त महिलाओं को शिक्षा दी जाती हैं ताकि वे आत्मनिर्भर बन सकें।

वहीं पंडिता रमाबाई का मुक्ति मिशन आज भी एक्टिव है।

आखिरी सांस –

महिलाओ के उत्थान के लिए काम करने वाली महान समाज सेविका पंडिता रमाबाई की सेप्टिक ब्रोंकाइटिस बीमारी की वजह से 5 अप्रैल साल 1922 को मृत्यु हो गई।

सम्मान –

रमाबाई को उनके द्धारा किए गए सराहनीय और नेक कामों के लिए कई पुरस्कारों से भी नवाजा गया, ब्रिटिश सराकर की तरफ से उन्हें साल 1919 में ‘कैसर-ए-हिन्द’ पदक से भी सम्मानित किया गया।

इसके साथ ही समाज में महलिाओं की स्थिति में सुधार लाने के लिए और महिलाओं के हक में सराहनीय काम करने के लिए भारत सरकार ने रमाबाई पर एक स्मारक टिकट भी जारी किया। यही नहीं मुंबई में पंडिता रमाबाई के नाम पर एक सड़क का नाम भी रखा गया।

जिस तरह पंडिता रमाबाई ने अपने जीवन में तमाम मुश्किलों का सामना कर देश, समाज और महिलाओं के उत्थान लिए काम किए, वो वाकई कोई बेहद प्रतिभावान और महान व्यक्ति ही कर सकता है, रमाबाई आज भी हर किसी के लिए प्रेरणा और आदर्श है।

ज्ञानी पंडित की टीम की तरफ से पंडिता रमाबाई को शत-शत नमन।

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