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संत नामदेव की जीवनी | Sant Namdev History

Sant Namdev – संत नामदेव (1270-1350) भारत के महाराष्ट्र में जन्मे संत-कवी है। नामदेव के जीवन से संबंधित जानकारी अस्पष्ट है। पारंपरिक रूप से माना जाता है की उनका जीवनकाल 1270 से 1350 के बीच था, लेकिन महाराष्ट्रियन संतो के इतिहासकारों के अनुसार संत नामदेव का जीवनकाल 1207 से 1287 के बीच था।

 संत नामदेव की जीवनी – Sant Namdev History

उनका जन्म 26 अक्टूबर 1270 को हुआ। उनके पिता का नाम दामा सेठ और उनकी माता का नाम गोनई था। अपने पूर्वजो से ही वे टेलरिंग और कपडा प्रिंटिंग का काम करते थे। जानकारों के अनुसार नामदेव का जन्म महाराष्ट्र के सातारा जिले के कराड के पास नरसी वामनी ग्राम या मराठवाडा के परभणी में हुआ था। जबकि कुछ लोगो का मानना है की उनका जन्म महाराष्ट्र के पंढरपुर में हुआ, क्योकि उनके पिता भगवान विट्ठल के भक्त थे। पंढरपुर में भगवान कृष्णा को विट्ठल के रूप में पूजा जाता है।

नामदेव का विवाह रजाई से हुआ और उनका एक बेटा भी है, जिसका नाम विठा है। लेकिन उनके परिवार और पारिवारिक इतिहास से जुडी पुख्ता जानकारी उपलब्ध नही है।

उन्होंने विसोबा खेचर को परम गुरु के रूप में अपनाया था, उन्ही से नामदेव को भगवान के रूप को देखने की शक्ति मिली थी।

उनके कीर्तनो में बहुत से धार्मिक ग्रंथो का समावेश होता था। इससे यह साबित होता है की वे एक अच्छे पाठक और महान विद्वान थे। उनके कीर्तन काफी प्रभावशाली होते थे, कहा जाता है की –

“नामदेव किर्तानकरी, पुढे नाचे देव पांडुरंगा”

(जब नामदेव कीर्तन करते थे, तो उनके सामने भगवान पांडुरंग नाचते थे)

जीवन में उनका लक्ष्य यह था –

“नाचू कीर्तनाचे रंगी, ज्ञानदीप लावू जागी”

(कीर्तन की धुन में नाचकर, दुनिया में ज्ञान का प्रकाश फैलाना)

नामदेव ने भारत के बहुत से भागो की यात्रा कर अपनी कविताओ को लोगो तक पहुचाया है। मुश्किल समय में उन्होंने महाराष्ट्र के लोगो को एकता के सूत्र में बांधने का भी काम किया है।

कहा जाता है की पंजाब के गुरदासपुर जिले के घुमन ग्राम में उन्होंने 20 साल से भी ज्यादा समय व्यतीत किया था। पंजाब में सिक्ख समुदाय के लोग उन्हें नामदेव बाबा के नाम से जानते थे। संत नामदेव में हिंदी भाषा में तक़रीबन 125 अभंगो की रचना की है। जिनमे से 61 अभंग को गुरु ग्रंथ साहिब (सिक्ख शास्त्र) में नामदेवजी की मुखबानी के नाम से शामिल किया गया है।

पंजाब के शब्द कीर्तन और महाराष्ट्र के वारकरी कीर्तन में हमें बहुत से समानताये भी दिखाई देती है। पंजाब के घुमन में उनका शहीद स्मारक भी बनवाया गया है। उनकी याद में सिक्खों द्वारा राजस्थान में उनका मंदिर भी बनवाया गया है।

50 साल की उम्र के आस-पास संत नामदेव पंढरपुर में आकर बस चुके थे, जहाँ उनके आस-पास उनके भक्त होते थे। उनके अभंग काफी प्रसिद्ध बन चुके थे और लोग दूर-दूर से उनके कीर्तन सुनने के लिए आते थे। नामदेव के तक़रीबन 2500 अभंगो को नामदेव वाची गाथा में शामिल किया गया है।

साथ ही इस किताब में लंबी आत्मकथात्मक कविता तीर्थावली को भी शामिल किया गया है, जिसमे नामदेव और संत ज्ञानेश्वर की यात्रा के बारे में बताया गया है। इस कविता ने उन्हें मराठी साहित्य का पहला आत्मजीवनी लेखक बनाया।

संत ज्ञानेश्वर की मृत्यु के बाद तक़रीबन 50 सालो तक उन्होंने भगवद धर्म का प्रचार किया। कहा जाता है की संत नामदेव का ज्यादातर प्रभाव संत तुकाराम पर पड़ा।

जुलाई, 1350 में 80 साल की उम्र में पंढरपुर में भगवान की शरण के निचे उनकी मृत्यु हो गयी। पंढरपुर के मंदिर में संत नामदेव को एक विशेष दर्जा दिया जाता है। हर साल लाखो भक्त पंढरपुर आकार विट्ठल भगवान और संत नामदेव के दर्शन करते है।

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