छत्रपति शाहू जी महाराज एक ऐसे शासक थे, जिन्होंने दलितों को आरक्षण दिलवाने एवं समाज में उन्हें अधिकार दिलवाने के लिए अपना पूरा जीवन कुर्बान कर दीया। उन्हें अपने जीवन में कई तरह की जातिवाद मुसीबतों का सामना करना पड़ा था।
लेकिन, एक महान व्यक्ति की तरह वे इन सभी जातिवादियों परेशानियों का संघर्ष करते हुए बहुजन हितैषी राजा साबित हुए। जिन्होंने उस समय दलितों को उचित स्थान दिलवाया और उनके मान-सम्मान को ऊपर उठाया, जिस समय समाज के उच्च जाति के लोगों द्धारा दलितों को छू लेना धम्र भ्रष्ट होना माना जाता था।
आइए जानते हैं उनके जीवन से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातों के बारे में –
दलितों के के मसीहा – छत्रपति शाहूजी महाराज – Shahu Maharaj History in Hindi
पूरा नाम (Name)
छत्रपति शाहू जी महाराज (यशवंतराव)
जन्म (Birthday)
26 जून, 1874, कोल्हापुर (Shahu Maharaj Jayanti)
मृत्यु (Death)
10 मई, 1922, मुम्बई
पिता का नाम (Father Name)
श्रीमंत जयसिंह राव आबासाहब घाटगे
माता का नाम (Mother Name)
राधाबाई साहिबा
पत्नी (Wife Name)
लक्ष्मीबाई
जन्म, परिवार –
सामाजिक क्रांति के अग्रदूत छत्रपति शाहू जी महाराज, महाराष्ट्र राज्य के कोल्हापुर में 26 जून 1874 को श्रीमंत जयसिंह राव आबा साहब घाटगे और राधाबाई साहिबा के घर जन्में थे। बचपन में सब उन्हें यशवंत राव कहकर पुकारते थे।
आपको बता दें कि छत्रपति शिवाजी महाराज (प्रथम) के दूसरे बेटे के वंशज शिवाजी चतुर्थ कोल्हापुर का राजपाठ संभालते थे। वहीं ब्रिटिश षडयंत्र के चलते चौथे शिवाजी की हत्या के बाद साल 1884 में शिवाजी महाराज की पत्नी महारानी आनंदी बाई साहिबा ने अपने जागीरदार जयसिंह राव के बेटे यशवंत राव को गोद ले लिया था।
जिसके बाद उनका नाम बदलकर शाहू छत्रपति जी रखा गया था और फिर बेहद कम उम्र में ही उन्हें कोल्हापुर राज की जिम्मेदारी सौंप दी गई, हालांकि 2 अप्रैल, 1894 से उन्होंने कोल्हापुर राज पर शासन का पूर्ण अधिकार मिला। आगे चलकर उन्होंने समाज में दलितों के उत्थान के लिए कई सराहनीय काम किए।
पढ़ाई-लिखाई –
राजकोट में स्थापित राजकुमार कॉलेज से छत्रपति शाहू जी महाराज ने अपनी शिक्षा ग्रहण की थी। इसके बाद उन्होंने अपनी आगे की पढ़ाई साल 1890 से 1894 तक धाराबाड में रहकर की। इस दौरान उन्होंने इतिहास, अंग्रेजी और राज्य कारोबार चलाने की पढ़ाई पढ़ी।
शादी –
पिछड़ों-दलितों के मुक्तिदाता राजा शाहू जी महाराज जी ने साल 1897 में बड़ौदा के मराठा सरादर खानवीकर की पुत्री श्री मंत लक्ष्मी बाई से शादी की।
सामाजिक कार्य –
‘बहुजन प्रतिपालक’, छत्रपति साहू जी महाराज:
साल 1894 में जब शाहू जी महाराजा ने कोल्हापुर का राजराठ संभाला था, उस दौरान सामान्य प्रशासन में कुल 71 पदों में से 60 पदों पर ब्राहाण अधिकारी आसीन थे, जबकि शेष 11 पदों पर पिछड़ी जाति के लोग थे।
दरअसल, उस समय दलित और पिछड़ी जाति के लोगों के साथ अमानवीय अत्याचार किए जाते थे एवं उन्हें शिक्षा से दूर रखा जाता था, कहीं सार्वजनिक स्थलों में जाने की अनुमति नहीं होती थी, एवं ब्राह्मण एवं उच्च जाति के लोग, शुद्रों द्धारा छू लेने को अपना धर्म भ्रष्ट मानते थे।
जिसे देखने के बाद उन्होंने समाज में फैली इस गैरबराबरी को दूर करने एवं ब्राह्मणवादी व्यवस्था को तोड़ने का फैसला लिया।
उनका मानना था कि राज के विकास के लिए सभी वर्ग के लोगों की सहभागिता समान रुप से जरूरी है। इसलिए उन्होंने अपने शासन में सभी ब्राह्मणों को हटाकर बहुजन समाज को मुक्ति दिलाने का ऐतिहासिक कदम उठाया और पूरी निष्ठा से ब्राह्मणवाद को खत्म किया।
आरक्षण के अग्रदूत छत्रपति शाहूजी महाराज:
छत्रपति शाहू जी महाराज ने समाज में फैली जातिवाद बुराई को जड़ से मिटाने, समाज के सभी वर्ग के लोगों को बराबरी का दर्जा दिलाने एवं बहुजन समाज की बराबर भागीदारी के लिए उन्होंने देश में पहली बार आरक्षण का कानून बनाया।
जिससे दलित और पिछड़ी वर्ग की दशा समाज में सुधर सके और उन्हें मान-सम्मान मिल सके। इस क्रांतिकारी कानून के तहत साल 1902 में बहुजन प्रतिपालक शाहू जी महाराज ने बहुजन समाज के लिए 50 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था की।
इसके तहत सरकारी नौकरियों में पिछड़ी एवं निम्न जाति के लोगों को 50 फीसदी आरक्षण देने का फ़ैसला लिया गया, शाहू जी के इस ऐतिहासिक निर्णय ने आगे चलकर आरक्षण की संवैधानिक व्यवस्था करने की नई राह दिखाई।
दलित और पिछड़ों के लिए स्कूल खोले:
बहुजन हितैषी शासक छत्रपति शाहू जी महाराज ने पिछड़े और दलित वर्ग के लिए शिक्षा का दरवाजा खोलकर उन्हें मुक्ति की राह दिखाई।
उन्हें शुद्रों एवं दलितों के बच्चों बच्चों को शिक्षा के प्रति जागरूक करने के लिए कई नए हॉस्टल स्थापित किए एवं उनके लिए फ्री में शिक्षा की व्यवस्था करवाई।
शाहू जी महाराज ने 1908 में अस्पृश्य मिल, क्लार्क हॉस्टल, साल 1906 में मॉमेडन हॉस्टल, साल 1904 में जैन होस्टल और 18 अप्रैल 1901 में मराठाज स्टूडेंटस इंस्टीट्यूट एवं विक्टोरिया मराठा बोर्डिंग संस्था की स्थापना की।
इसके अलावा साल 1912 में छत्रपति शाहू जी महाराज ने प्राथमिक शिक्षा को अनिवार्य कर दिया एवं मुफ्त शिक्षा देने के बारे में कानून बनाया।
बाल विवाह एवं विधवा पुर्नविवाह पर दिया जोर:
छत्रपति शाहू जी महाराज को आधुनिक भारत के प्रणेता कहना भी गलत नहीं होगा, क्योंकि उन्होंने बाल विवाह से होने वाले दुष्परिणामों को देखते हुए अपने राज्य में इस पर बैन लगाया एवं ब्राम्हण पुरोहितों की जातीय व्यवस्था को तोड़ने के लिए अंतरजातिय विवाह एवं विधवा पुनर्विवाह कराए। वहीं साल 1917 में पुनर्विवाह का कानून भी पास करवाया।
आपको बता दें कि छत्रपति शाहू जी महाराज पर महान विचारक और समाजसेवी ज्योतिबा फुले का काफी प्रभाव पड़ा था।
वे काफी समय तक सत्य शोधक समाज के संरक्षक भी रहे थे। उन्होंने सत्यशोधक समाज की जगह-जगह ब्रांच भी स्थापित की थी।
इसके अलावा छत्रपति शाहू जी महाराज ने भारतीय संविधान के निर्माता डॉ. भीमराव अंबेडकर जी को उच्च शिक्षा हासिल करवाने के लिए विदेश भेजने में भी अपनी मुख्य भूमिका निभाई थी और भीमराव अंबेडकर जी के मूकनायक समाचार पत्र के प्रकाशन में भी काफी मद्द की थी।
मृत्यु –
वहीं 6 मई, 1922 को समाज के हित में काम करने वाले छत्रपति शाहू जी महाराज की मृत्यु हो गई। समाज में उनके द्धारा किए गए क्रांतिकारी बदलावों और आरक्षण की शुरुआत करने के लिए उन्हें हमेशा याद किया जाएगा।
ज्ञानी पंडित की पूरी टीम भारत के इस महान समाजसेवी छत्रपति शाहू जी महाराज जी को शत-शत नमन करती हैं एवं उन्हें भावपूर्ण श्रद्धांजली अर्पित करती है।