Shriti Pandey Founder of STRAWCTURE ECO
अच्छी पढ़ाई करके विदेश जाकर नौकरी करना हर किसी का सपना होता है लेकिन कुछ लोग होते है जो अपने देश में कुछ करने की इच्छा रखते है। इसके लिए वो बड़ी से बड़ी नौकरी छोड़ देते है। ऐसी ही हैं गोरखपुर की रहने वाली श्रिति पाण्डेय जिन्होंने अमेरिका की एक बढिया नौकरी छोड़कर अपने शहर में एक स्टार्टअप शुरू किया और इसे नाम दिया “स्ट्राक्चर इको” और लोगो के लिए उनका मनचाहा घर बनाने का काम शुरू किया।

विदेश से लौटकर शुरू किया एक अनोखा व्यापार! – Shriti Pandey Founder of STRAWCTURE ECO
श्रिति ने यूएसए से ही कंस्ट्रक्शन मैनेजमेंट में ग्रेजुएशन किया और इसके बाद न्यूयॉर्क की एक बड़ी फर्म में उन्होंने काम करना शुरू किया जहाँ उन्हें बढ़िया पैसे मिल रहे थे। लेकिन श्रिति का कहना था की मैं एक ऐसा काम कर रही थी जिससे मुझे फायदा हो रहा था। मैं समाज के लिए कुछ करना चाहती थी। ऐसा काम जिससे समाज के एक बड़े वर्ग का भला हो सके।
श्रिति ने तय किया वो भारत वापिस जाएगी और 2016 में वो वापिस लौट भी और एसबीआई के साथ सुदूर गांवो में काम करना शुरू किया। यही से उन्होंने तय किया की वो एक ऐसा स्टार्टअप स्टार्ट करेगी जिससे वो अपने क्षमताओं को पूरी तरह से इस्तेमाल कर सकें। फिर श्रिति ने स्टार्ट किया “स्ट्राक्चर इको – STRAWCTURE ECO” और लोगो के लिए सस्ते घर बनाने शुरू किये।
कैसे करती है काम-
श्रिति ने ये स्टार्टअप अपने होमटाउन गोरखपुर में शुरू किया। वो गाँव और छोटे शहर के युवाओ के लिए एक मिशाल कायम करना चाहती थी। इस स्टार्टअप के अंतर्गत उन्होंने लोगो के घर बनाने शुरू किये। उनकी टीम स्टील के स्ट्रक्चर और कंप्रेस्ड एग्री फाइबर के पैनलस के माध्यम से घर बनाती है। इसके अलावा फसल के बाद बचने वाले भूसे का इस्तेमाल किया जाता है।
यूरोप की कंपनी इकोपैनाली के साथ समझौता किया और श्रिति कहती है की वो चार हफ्तों में इस तरीके के घर तैयार कर सकती है। दरसल वो ऐसा काम भी करना चाहती थी जिससे पर्यावरण को कोई नुकसान ना हो और इसीलिए उन्होंने बचे हुए अवशेषों की सहायता लेनी शुरू की।
इसमें फसल के बचे हुए अवशेष यानी की भूसे से पैनल बनाया जाता है और फिर उसकी सहायता से घर बनाया जाता है। इससे खर्चा भी कम लगता है। इसके अलावा किसानो को उनके भूसे का सही दाम भी मिलता है।
इसके अलावा उन्हें भूसा जलाने की समस्या से भी निजात मिल जाती है। श्रिति का उद्देश्य है की वो प्रधानमंत्री आवास योजना का हिस्सा बन सके जिससे हर किसी को घर मिल सके।
मिले ये सम्मान-
श्रिति के स्टार्टअप को खूब सराहा गया और लोगो ने उन्हें खूब सराहना दी। श्रिति के स्टार्टअप को यूएन के द्वारा 22 यूथ असेंबली में इम्पैक्ट चैलेन्ज का पुरुस्कार मिल चुका है। इसके अलावा उन्हें यूपी के स्टार्टअप कॉन्क्लेव में दूसरा स्थान मिला और यही से उन्हें फंडिंग भी मिली।
श्रिति के स्टार्टअप को अटल इन्क्यूबेशन सेण्टर, आईआईएम बेंगलोरे वीमेन स्टार्टअप और बनस्थली विद्यापीठ के द्वारा सपोर्ट भी मिला हुआ है। श्रिति को बूटस्ट्रैप कंपनी से फंडिंग भी मिली हुई है।
महिला होने पर सवाल- श्रिति ने कहा की उन्हें कई जगह इस बात का दर्द झेलना पड़ा की वो महिला है। जब वो निवेशको से मिलने जाती थी तो कई सारे लोग कहते थे की को-फाउंडर एक पुरुष को होना चहिये। उन्हें मेरी क्षमताओं पर शक था लेकिन मुझे खुद पर यकीन था।
आईडिया पर काम-
श्रिति कहती है की जब आप कोई स्टार्टअप खोलने का विचार करते है तो आपके सामने समस्याएं आएगी ही और ऐसे में आपको अपने आईडिया में पूरा भरोसा होना चहिये। आपको ये यकीन होना चहिये की जो उत्पाद आपके पास है उससे बेहतर कुछ भी नहीं है।
श्रिति की कहानी से हमे पता चलता है की हमे वो काम करना चहिये जिसमे आपका मन हो। बड़ी कंपनी में नौकरी करना ही सफलता का पैमाना नहीं होता है। इसके अलावा छोटे शहरो में भी काम करके तरक्की हासिल की जा सकती है।
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जब तक लोगो के दिमाग से पढाई सिर्फ नौकरी के लिए वाली अवधारणा ख़त्म नहीं होगी तब तक सुधार की उम्मीद नहीं है. आपकी इस पोस्ट से एक नयी उम्मीद मिली है धन्यवाद
Very inspiring information.
Bahut hi inspire karne wali story..