सोमनाथ मंदिर का इतिहास | Somnath Temple History

Somnath Temple History In Hindi

भारत पुण्यभूमि है, यहां ऐसे कई धार्मिक और पवित्र तीर्थस्थल स्थापित हैं,  जिनका अपना अलग-अलग धार्मिक महत्व है और इनसे लाखों लोगों की आस्था जुड़ी है, वहीं उन्हीं में से एक है, गुजरात राज्य के वेरावल बंदरगाह में प्रभास पाटन के पास स्थित  सोमनाथ मंदिर। यह मंदिर हिन्दू धर्म के प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक है।

आपको बता दें कि यह प्रसिद्ध तीर्थधाम ऐसी जगह पर स्थित है जहां अंटार्कटिका तक सोमनाथ समुद्र के बीच एक सीधी रेखा में भूमि को कोई भी हिस्सा नहीं  है। यह तीर्थस्थल भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से पहला माना जाता है। इस मंदिर के निर्माण से कई धार्मिक और पौराणिक कथाएं जुड़ी हुई हैं। ऐसा माना जाता है कि, इस मंदिर का निर्माण खुद चन्द्रदेव सोमराज ने किया था, जिसका वर्णन ऋग्वेद में भी मिलता है।

सोमनाथ मंदिर के समृद्ध और अत्यंत वैभवशाली होने की वजह से इस मंदिर को कई बार मुस्लिम आक्रमणकारियों और पुर्तगालियों द्धारा तोड़ा गया तो साथ ही कई बार इसका पुर्ननिर्माण भी हुआ है। वहीं महमूद गजनवी द्धारा इस मंदिर पर आक्रमण करना, इतिहास में काफी चर्चित है।

साल 1026 में महमूद गजनवी ने सोमनाथ मंदिर में  हमला कर न सिर्फ  उसने मंदिर की अथाह संपत्ति लूटी और मंदिर का विनाश बल्कि हजारों लोगों की जान भी ले ली थी। इसके बाद गुजरात के राजा भीम और मालवा के राजा भोज ने इसका पुनर्निर्माण करवाया था। सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण और विनाश का सिलसिला काफी सालों तक जारी रहा।वहीं इस समय गुजरात जो सोमनाथ मंदिर स्थित है, उसे भारत के पूर्व गृह मंत्री एवं लौहपुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल ने बनवाया था।

वर्तमान सोमनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण प्राचीन हिन्दू वास्तुकला एवं चालुक्य वास्तुशैली में किया गया है, वहीं कई लोककथाओं के मुताबिक, इस पवित्र तीर्थस्थल में भगवान श्री कृष्ण ने अपना शरीर भी छोड़ा था। आइए जानते हैं सोमनाथ मंदिर के इतिहास एवं इससे जुड़े कुछ अनसुने एवं रोचक तथ्यों के बारे में –

सोमनाथ मंदिर का इतिहास – Somnath Temple History in Hindi

Somnath Temple

कहां स्थित है (Somnath Mandir Kaha Par Hai) गुजरात के वेरावल बंदरगाह में।
आधुनिक सोमनाथ मंदिर कब बनवाया गया (When Was Somnath Temple Built) आजादी के बाद साल 1951 में (वर्तमान संरचना)
किसने बनवाया (Who Built Somnath Temple) सरदार वल्लभ भाई पटेल (वर्तमान संरचना)

उत्थान-पतन का प्रतीक रहा सोमनाथ मंदिर का इतिहास – Somnath Temple Information

गुजरात के पश्चिमी तट पर सौराष्ट्र में वेरावल बंदरगाह के पास प्रभास पाटन में स्थित यह मंदिर इतिहास में उत्थान और पतन का प्रतीक रह चुक है। प्राचीन समय में सोमनाथ मंदिर पर मुस्लिम और पुर्तगालियों द्धारा कई बार हमला कर तोड़ा गया एवं  कई बार हिन्दू शासकों द्धारा इसका निर्माण भी करवाया गया है।

आपको बता दें कि सोमनाथ मंदिर एक ईसा से भी पहले का आस्तित्व में था, ऐसा माना जाता है कि इसका दूसरी बार निर्माण करीब सांतवी शताब्दी में वल्लभी के कुछ मैत्रिक सम्राटों द्धारा करवाया  गया था। इसके बाद 8वीं सदी में करीब 725 ईसवी  में सिंध के अरबी गर्वनर अल-जुनायद ने इस वैभवशाली सोमनाथ मंदिर पर हमला कर इसे ध्वस्त कर दिया था।

जिसके बाद इसका तीसरी बार निर्माण 815 ईसवी में हिन्दुओं के इस पवित्र तीर्थ धाम सोमनाथ मंदिर का निर्माण गुर्र प्रतिहार राजा नागभट्ट ने करवाया था, उन्होंने इस लाल पत्थरों का इस्तेमाल कर बनवाया था। हालांकि, सोमनाथ मंदिर पर सिंध के अरबी गवर्नर अल-जुनायद के हमला करने का कोई भी पुख्ता प्रमाण नहीं है।

इसके बाद 1024 ईसवी में महमूद गजनवी ने इस अत्यंत वैभवशाली सोमनाथ मंदिर पर आक्रमण कर दिया था। ऐसा कहा जाता है कि, भारत यात्रा पर आए एक अरबी यात्री अल बरूनी ने अपने  यात्रा वृतान्त में सोमनाथ मंदिर की भव्यता और समृद्धता का वर्णन किया था, जिसके बाद महूमद गजनवी ने इस मंदिर पर लूटपाट करने के इरादे से अपने करीब 5 हजार साथियों के साथ इस पर हमला कर दिया था।

इस हमले में महमूद गजनवी ने न सिर्फ मंदिर की करोड़ों की संपत्ति लूटी, शिवलिंग को क्षतिग्रस्त किया एवं मूर्तियां को ध्वस्त किया, बल्कि इस हमले में  हजारों बेकसूर लोगों की जान भी ले ली। सोमनाथ मंदिर पर महमूद गजनवी द्धारा किया गया कष्टकारी हमला इतिहास में भी काफी चर्चित है।

सोमनाथ मंदिर पर गजनवी के आक्रमण करने के बाद इसका चौथी बार पुर्नर्निमाण मालवा के राजा भोज और सम्राट भीमदेव के द्धारा करवाया गया। फिर 1093 ईसवी में सिद्धराज जयसिंह ने भी इस मंदिर की प्रतिष्ठा और निर्माण में अपना योगदान दिया था।

1168 ईसवी में विजयेश्वरे कुमारपाल और सौराष्ट्र के सम्राट खंगार ने इस मंदिर के सौंदर्यीकरण पर जोर दिया। हालांकि, इसके बाद फिर सोमनाथ मंदिर पर 1297 ईसवी में दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी के सेनापति नुरसत खां ने गुजरात पर अपना शासन कायम कर लिया और इस दौरान उसने इस पवित्र तीर्थधाम को ध्वस्त कर दिया। इसके साथ ही मंदिर की प्रतिष्ठित शिवलिंग को खंडित कर दिया एवं जमकर लूटपाट की।

इसके बाद लगातार इस मंदिर का उत्थान-पतन का सिलसिला जारी रहा। 1395 ईसवी में इस पवित्र तीर्थधाम पर  गुजरात के सुल्तान मुजफ्फरशाह ने लूटपाट की  और फिर 1413 ईसवी में उसके बेटे अहमदशाह ने इस मंदिर में तोड़फोड़ कर तबाही मचाई।

इसके बाद इतिहास के मुगल शासक औरंगजेब ने अपने शासनकाल में इस मंदिर पर दो बार आक्रमण किए। पहला हमला उसने 1665 ईसवी में किया जबकि दूसरा हमला 1706 ईसवी में किया। दूसरे हमले में औरंगजेब ने न सिर्फ इस मंदिर में तोड़फोड़ कर जमकर लूटपाट की बल्कि कई लोगों की हत्या भी करवा दी।

इसके बाद जब भारत के अधिकांश हिस्सों पर पर मराठों ने अपना अधिकार स्थापित कर लिया, फिर 1783 ईसवी में इंदौर की मराठा रानी अहिल्याबाई ने सोमनाथ जी के मूल मंदिर से कुछ ही दूरी पर पूजा-अर्चना के लिए सोमनाथ महादेव जी का एक और मंदिर का निर्माण करवा दिया।

वहीं गुजरात में स्थित इस वर्तमान मंदिर का निर्माण भारत के पूर्व गृह मंत्री स्वर्गीय सरदार वल्लभ भाई पटेल जी ने करवाया था। जिसके बाद साल 1951 में देश के पहले राष्ट्रपति श्री राजेन्द्र प्रसाद जी ने सोमनाथ मंदिर में ज्योर्तिलिंग को स्थापित किया था।

फिर, साल 1962 में भगवान शिव जी को समर्पित हिन्दुओं का यह पवित्र तीर्थ धाम पूर्ण रुप से बनकर तैयार हुआ। इसके बाद 1 दिसंबर 1995 को भारत के पूर्व राष्ट्रपति शंकर दययाल शर्मा ने इस पवित्र तीर्थ धाम को राष्ट्र की आम जनता को समर्पित कर दिया था और अब यह मंदिर लाखों लोगों की आस्था का केन्द्र बन चुका है।

सोमनाथ मंदिर से जुड़ी पौराणिक और धार्मिक कथा – Somnath Mahadev Temple Story

धार्मिक शास्त्रों और ग्रंथों के मुताबिक भारत के सबसे प्रमुख तीर्थस्थलों में से एक सोमनाथ मंदिर की स्थापना खुद चन्द्रदेव अर्थात सोम भगवान ने की थी, इस मंदिर से एक बेहद प्राचीन एवं प्रचलित धार्मिक कथा भी जुड़ी हुई है।जिसके मुताबिक चन्द्रदेव यानि कि चन्द्रमा या फिर सोम देव ने राजा दक्ष प्रजापति की सभी 27 पुत्रियों से शादी की थी।

चन्द्रदेव की सभी पत्नियों में सबसे ज्यादा खूबसूरत रोहिणी थी, इसलिए चन्द्रमा उन्हें सबसे ज्यादा प्यार करते थे। वहीं सम्राट दक्ष प्रजापति ने जब अपनी ही पुत्रियों के साथ भेदभाव होते देखा था, तब उन्होंने पहले चंद्रदेव को समझाने की कोशिश की।

लेकिन चन्द्रमा पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा जिसके बाद राजा दक्ष में अपने अन्य पुत्रियों को दुखी होते देख चन्द्रदेव को ‘क्षयग्रस्त’ हो जाने का अभिशाप दे दिया और कहा कि उनकी चमक और तेज धीमे-धीमे खत्म हो जाएगा, जिसके बाद चन्द्रद्रेव  राजा दक्ष के अभिशाप से काफी दुखी रहने लगे और फिर उन्होंने भगवान शिव की कठोर आराधना करना शुरु कर दिया।

इसके बाद भगवान शिव,चन्द्रदेव के कठोर तप से प्रसन्न हो गए और न सिर्फ उन्हें अमरत्व का वर प्रदान किया, बल्कि उन्हें राजा दक्ष के श्राप से भी मुक्त भी किया साथ ही ये भी कहा कि, कृष्णपक्ष में चन्द्रदेव की चमक कम होगी, जबकि शुक्ल पक्ष में उनकी चमक बढ़ेगा।

अर्थात चन्द्रदेव से भगवान शिव ने ये कहा कि  15 दिन उनकी चमक कम होती चली जाएगी जबकि 15 दिन उनकी चमक बढ़नी शुरु हो जाएगी और हर पूर्णिमा को उन्हें पूर्ण चंद्रत्व प्राप्त होता रहेगा। राजा दक्ष के अभिशाप से मुक्त होकर चन्द्रदेव ने भगवान शिव से माता पार्वती के साथ गुजरात के इस स्थान पर निवास करने की आराधना की, जिसके बाद भगवान शिव ने अपने प्रिय भक्त चन्द्रदेव की आराधना को स्वीकार किया और वे ज्योतर्लिंग के रुप में माता पार्वती के साथ यहां आकर रहने लगे।

जिसके बाद पावन प्रभास क्षेत्र में चन्द्रदेव यानि की सोमराज ने यहां भगवान शिव के इस भव्य सोमनाथ मंदिर का निर्माण करवाया। जिसकी महिमा और प्रसिद्धि पूरी विश्व में फैली हुई है। वहीं  सोमनाथ -ज्योतिर्लिंग की महिमा का उल्लेख हिन्दू धर्म के  प्रसिद्ध महाकाव्य  श्रीमद्धभागवत, महाभारत और स्कंदपुराण आदि में भी की गई है। इसके साथ ही इस मंदिर का उल्लेख ऋग्वेद में भी किया गया है।

ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव के इस प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग के दर्शन मात्र से ही भक्तों के सारे दुख-दर्द दूर हो जाते हैं एवं सोमनाथ भगवान की पूजा-आराधना से भक्तो के क्षय अथवा कोढ़ रोग ठीक हो जाते हैं।

इसके साथ ही अन्य लोककथाओं के मुताबिक इसी पावन स्थान पर भालुका तीर्थ पर भगवान श्रीकृष्ण आराम कर रहे थे, तभी एक शिकारी ने उनेक पैर के तलवे में पदचिन्ह को हिरण की आंख समझकर धोखे से वाण चलाकर शिकार कर लिया जिसके बाद भगवान श्री कृष्ण यहीं अपना देह त्यागकर बैकुंठ चले गए थे। इसलिए इस मंदिर के परिसर में श्री कृष्ण जी का बेहद आर्कषक और खूबसूरत मंदिर भी बना हुआ है।

सोमनाथ मंदिर की अद्भुत वास्तुकला एवं शाही बनावट – Somnath Temple Architecture हिन्दूओं के इस पवित्र तीर्थस्थल सोमनाथ मंदिर का पुर्ननिर्माण वर्तमान में चालुक्य शैली में किया गया है। इसके साथ ही यह प्राचीन हिन्दू वास्तुकला का नायाब नमूना भी माना जाता है।

इस मंदिर की अनूठी वास्तुकला एवं शानदार बनावट  लोगों को अपनी तरफ आर्कषित करती हैं। इस मंदिर के दक्षिण दिशा की तरफ आर्कषक खंभे बने हुए हैं, जो कि बाणस्तंभ कहलाते हैं, वहीं इस खंभे के ऊपर एक तीर रखा गया है, जो कि यह प्रदर्शित करता है कि इस पवित्र सोमनाथ मंदिर और दक्षिण ध्रुव के बीच पृथ्वी का कोई भी हिस्सा नहीं है।

भगवान शिव का यह पहला ज्योर्तिलिंग सोमनाथ तीन हिस्सों में बंटा हुआ है, जिसमें मंदिर का गर्भगृह, नृत्यमंडप और सभामंडप शामिल हैं। इसके शिखर की ऊंचाई  करीब 150 फीट है। इस प्रसिद्ध मंदिर के पर स्थित कलश का वजन करीब 10 टन है, जबकि इसकी ध्वजा 27 फुट ऊंची है। 

यह मंदिर करीब 10 किलोमीटर के विशाल क्षेत्रफल में फैला हुआ है, जिसमें करीब 42 मंदिर है। यहां पर तीन नदियां हिरण, सरस्वती, और कपिला का अद्बुत संगम है, जहां भक्तजन आस्था की डुबकी लगाते हैं। इस मंदिर में पार्वती, लक्ष्मी, गंगा, सरस्वती, और नंदी की मूर्तियां विराजित हैं।  इस पवित्र तीर्थस्थल के ऊपरी भाग में शिवलिंग से ऊपर अहल्येश्वर की बेहद सुंदर मूर्ति स्थापित है।

सोमनाथ मंदिर के परिसर में एक बेहद खूबसूरत गणेश जी का मंदिर स्थित है  साथ ही उत्तर द्धार के बाहर अघोरलिंग की प्रतिमा स्थापित  की गई है। हिन्दुओं के इस पवित्र तीर्थस्थल में गौरीकुण्ड नामक  सरोवर बना हुआ है  और सरोवर के पास एक शिवलिंग स्थापित है।

इसके अलावा इस भव्य सोमनाथ मंदिर के परिसर में माता अहिल्याबाई और महाकाली का बेहद सुंदर एवं विशाल मंदिर बना हुआ है।

सोमनाथ मंदिर से जुड़ी रोचक और दिलचस्प बातें – Facts About Somnath Temple

  • लाखों लोगों की आस्था से जुड़ा यह सोमनाथ मंदिर पहले प्रभासक्षेत्र या फिर प्रभासपाटण के नाम से जाना जाता है। इसी स्थान पर भगवान श्री कृष्ण ने अपना शरीर छोड़ा था।
  • गुजरात में स्थित सोमनाथ मंदिर के दक्षिण में समुद्र के किनारे एक खंभा बना हुआ है, जिसके ऊपर एक तीर रखकर यह प्रदर्शित किया गया है कि, सोमनाथ मंदिर और दक्षिण ध्रुव के बीच में भूमि का कोई भी हिस्सा मौजूद नहीं है।
  • भगवान शिव को समर्पित इस प्रसिद्ध मंदिर में स्थित शिवलिंग में रेडियोधर्मी गुण है, जो कि पृथ्वी के ऊपर अपना संतुलन बेहद अच्छे से बनाए रखती है।
  • इस मंदिर के अत्यंत वैभवशाली और समृद्ध होने की वजह से इसे कई बार तोड़ा गया और इसका निर्माण किया गया। इतिहास में महमूद गजनवी द्धारा इस मंदिर पर लूटपाट की घटना काफी चर्चित है। ऐसा माना जाता है कि इसके बाद ही यह मंदिर पूरी दुनिया में प्रसिद्ध हो गया।
  • ऐसी मान्यता है कि आगरा में रखे देवद्धार सोमनाथ मंदिर के ही है, जो कि महमूद गजनवी अपने साथ लूट कर ले गया था।
  • इस मंदिर में रोजाना रात को 1 घंटे का लाइट शो होता है, जो कि शाम को साढ़े 7 बजे से साढ़े 8 बजे तक होता है, इस शो में हिन्दुओं के इतिहास को दिखाया जाता है।
  • सोमनाथ मंदिर में कार्तिक, चैत्र एवं भाद्र महीने में श्राद्ध करने का बहुद महत्व हैं, इन तीनों महीनों में यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं।
  • सुरक्षा के लिहाज से मुस्लिमों को इस मंदिर के दर्शन के लिए विशेष अनुमति लेनी पड़ती है, इसके बाद ही उन्हें यहां प्रवेश दिया जाता है।
  • सोमनाथ मंदिर से करीब 200 किलोमीटर की दूरी पर द्धारका नगरी है, जहां द्धारकाधीश के दर्शन करने दूर-दूर से लोग आते हैं।
  • गुजरात के वेरावल बंदरगाह के पास प्रभास पाटन में स्थित सोमनाथ जी, भारत के 12 प्रमुख ज्योतिर्लिंग में से सबसे पहला ज्योतिर्लिंग है, इसकी स्थापना के बाद अगला ज्योतिर्लिंग रामेश्वरम, द्धारका और वाराणसी में स्थापित किया गया था।
  • सोमनाथ जी की मंदिर की व्यवस्था और देखभाल सोमनाथ ट्रस्ट करती है, सरकार ने ट्रस्ट को जमीन, बाग बगीचे आदि देकर मंदिर की आय की व्यवस्था की है।

ऐसे पहुंचे सोमनाथ मंदिर – How To Reach Somnath Temple

वायु मार्ग के द्धारा:

गुजरात के सोमनाथ मंदिर से करीब 55 किलोमीटर दूर स्थित केशोड एयरपोर्ट है, जो कि सोमनाथ मंदिर से सबसे पास है। यह एयरपोर्ट सीधा मुंबई से जुड़ा हुआ है, इस एयरपोर्ट पर पहुंचने के बाद बस और टैक्सी की सहायता से बड़ी आसानी से सोमनाथ मंदिर पहुंचा जा सकता है।

रेल मार्ग के द्धारा सोमनाथ मंदिर के सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन वेरावल है, जिसकी सोमनाथ मंदिर से दूरी 7 किलोमीटर है, यह रेलवे स्टेशन अहमदाबाद, गुजरात समेत देश के प्रमुख शहरों से रेल सेवा से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है।

सड़क मार्ग द्धारा:

सोमनाथ मंदिर अहमदाबाद से करीब 400 किलोमीटर, भावनगर से 266 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। गुजरात से किसी भी स्थान से इस पवित्र तीर्थ धाम पहुंचने के लिए शानदार बस सेवाएं उपलब्ध हैं। इसके साथ ही सोमनाथ मंदिर के दर्शन के लिए आने वाले तीर्थयात्रियों के ठहरने की एवं भोजन की भी उत्तम व्यवस्था है।

मंदिर के आसपास ही मंदिर के ट्र्स्ट द्धारा तीर्थयात्रियों को किराए पर कमरे उलब्ध करवाए जाते हैं। सोमनाथ मंदिर के प्राचीन इतिहास और इसकी अद्भुत वास्तुकला एवं शानदार बनावट की वजह से यहां दूर-दूर से भक्तजन दर्शन के लिए आते हैं।

ऐसी मान्यता है कि यहां दर्शन मात्र से भक्तों के सारे दुख-दर्द दूर हो जाते हैं एवं उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। सोमनाथ मंदिर के पास स्थित नदी में स्नान करने से कई रोगों से मुक्ति मिलती है।

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7 thoughts on “सोमनाथ मंदिर का इतिहास | Somnath Temple History”

  1. Jai Somnath.
    Somnath Mahadev Mandir Har Ek Insan ko Jana Chahiye Kyunki Yahan Jakar hi apko Pta chalta hai mi Somnath Mahadev Mandir Swarg Hai .

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