आचार्य विनोबा भावे

आचार्य विनोबा भावे एक अहिंसावादी स्वतंत्रता सेनानी ही नहीं बल्कि महान समाज सुधारक और साहित्यकार भी थे। उनके धार्मिक दृष्टिकोण की वजह से उनकी ख्याति एक महान अध्यात्मिक गुरु के रूप में भी फैली हुई थी।

विनोबा जी पर महात्मा गांधी जी के विचारों का काफी प्रभाव पड़ा था। उन्होंने गांधी जी द्धारा देश की आजादी के लिए चलाए कई अहिंसावादी आंदोलनों में भी अपनी सक्रिय भूमिका निभाई थी, हालांकि इस दौरान उन्हें कई बार जेल भी जाना पड़ा था।

इसके साथ ही विनोबा जी ने समाज में व्याप्त जातिगत भेदभाव को भी दूर करने के लिए अपनी आवाज बुलंद की थी एवं दलित एवं हरिजन वर्ग को उनका अधिकार दिलवाने के लिए कई प्रयास किए थे और भू-दान आंदोलन की शुरुआत कर कई भूमिहीनों को रहने के लिए जगह दिलवाई थी। तो आइए जानते हैं इस महान शख्सियत की जीवन से जुड़ी कुछ खास बातों के बारे में-

आचार्य विनोबा भावे – Vinoba Bhave in Hindi

Acharya Vinoba Bhave

एक नजर मे –

पूरा नाम (Name) विनायक नरहरि भावे
जन्म (Birthday) 11 सितंबर, 1895, गागोडे, कोलाबा जिला, महाराष्ट्र
पिता का नाम (Father Name) नरहरि शंभू
माता का नाम (Mother Name) रुक्मणी देवी
पत्नी (Wife Name) अविवाहित
पुरस्कार (Awards) भारत रत्न, प्रथम रेमन मैग्सेसे पुरस्कार
मृत्यु (Death) 15 नवम्बर, 1982, वर्धा, महाराष्ट्र

जन्म, प्रारंभिक जीवन एवं शिक्षा –

अहिंसावादी स्वतंत्रता सेनानी आचार्य विनोबा भावे 11 सितम्बर 1895 को महाराष्ट्र के कोलाबा जिले के गागोडे में एक बुनकर कार्य से जुड़े परिवार में जन्में थे।

उनके पिता नरहरि शंभू काफी अच्छे बुनकर थे, जबकि इनकी मां एक धार्मिक और कर्तव्यपरायण महिला थीं, जिनका विनोबा जी पर काफी प्रभाव पड़ा। उनके लालन-पालन में उनके दादा शंभुराव का काफी सहयोग रहा। यही नहीं उन्होंने अपने दादा जी से बेहद कम उम्र में भगवत गीता जैसे धार्मिक ग्रंथ का ज्ञान भी ग्रहण कर लिया था।

विनोबा भावे जी शुरु से ही पढ़ने में काफी होनहार थे। लेकिन पारंपरिक शिक्षा प्रणाली ने विनोबा भावे जी का ध्यान कभी अपनी तरफ नहीं खींचा।

महात्मा गांधी जी का प्रभाव एवं उनका आश्रम –

साल 1916 में जब विनोबा भावे अपनी 12वीं की परीक्षा देने मुंबई जा रहे थे, उसी दौरान महात्मा गांधी ने नवनिर्ममित बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय ने अपना प्रभावशाली भाषण दिया था।

गांधी जी के भाषण के कुछ अंश उस दौरान समाचार पत्रों में भी छपे थे, जिन्हें पढ़कर विनोबा भावे जी गांधी जी के मुरीद हो गए और फिर उन्होंने अपनी आगे की पढ़ाई नहीं करने का फैसला लिया एवं गांधी जी को एक पत्र लिखा।

वहीं विनोबा भावे जी का पत्र मिलते ही गांधी जी ने उन्हें अपने अहमदाबाद के कोचरब आश्रम में आने का निमंत्रण दिया।

इस तरह 7 जून 1916 में भावे जी गांधी से पहली बार मिले और इस मुलाकात से प्रभावित होकर उन्होंने गांधी जी के आदर्शों पर चलने का फैसला किया।

इसके बाद फिर विनोबा भावे जी गांधीजी के साबरमती आश्रम में रसोई, बगीचे  का रख-रखाव समेत कई काम देखने लगे। महात्मा गांधी के सांदिग्ध में न सिर्फ उन्होंने खादी वस्त्रों का प्रचार-प्रसार किया, बल्कि आजादी के लिए महात्मा गांधी जी द्धारा चलाए गए कई अहिंसावादी आंदोलन में भी अपना सहयोग दिया।

इसके बाद साल 1921 में वे गांधी जी के वर्धा आश्रम का काम-काज संभालने लगे। वहीं गांधी जी के आश्रम में ही मामा फड़के ने उन्हें विनोबा नाम से पहली बार संबोधित किया था।

राजनैतिक सफर एवं जेल यात्राएं –

महात्मा गांधी जी के अनुयायी विनोबा भावे जी ने गांधी जी द्धारा देश की आजादी के लिए चलाए गए अहिंसावादी आंदोलन में अपना पूर्ण सहयोग दिया। उन्होंने गांधी जी के असहयोग आंदोलन में अपनी महत्वपूर्ण भागीदारी निभाई।

साल 1932 में ब्रिटिश सरकार ने आचार्य विनोबा भावे को स्वतंत्रता प्राप्ति के आंदोलन में उनकी सक्रिय भागीदारी को देखते हुए करीब 6 महीने के लिए जेल में डाल दिया, इससे वे अंग्रेजों से नहीं डरे बल्कि अपने फैसले पर अडिग रहे।

इसके बाद साल 1940 में विनोबा भावे जी को उनके द्धारा अंग्रेजों के खिलाफ चलाए गए आंदोलन के लिए फिर से जेल जाना पड़ा और करीब 5 साल तक जेल की सजा भुगतनी पड़ी।

जेल की सजा काटते वक्त उन्होंने स्थितप्रज्ञ दर्शन और ईशावास्यवृत्ति नामक दो किताबों एवं लोकनागरी नामक एक लिपि की रचना की। इसके साथ ही इस दौरान उन्होंने दक्षिण भारत की भाषाएं सीखीं एवं जेल में धार्मिक ग्रंथ भगवतगीता का मराठी भाषा में अनुवाद किया।

जेल से छूटने के बाद उन्होंने सविनय अवज्ञा आंदोलन में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।  इसके साथ ही उन्होंने समाज में फैली जातिगत भेदभाव के खिलाफ भी अपनी आवाज उठाई और निम्न एवं हरिजन वर्ग को समाज में उचित दर्जा दिलवाने के लिए काफी प्रयास किए।

देश को आजादी मिलने के करीब तीन साल बाद भावे जी ने समाज के उत्थान के लिए कई आंदोलन शुरु किए जिसमें से भूदान आंदोलन प्रमुख था।

भूदान अभियान में –

साल 1951 में भावे जी ने दक्षिण भारत में दंगों में लिप्त क्षेत्रों की यात्राएं की। इस दौरान उन्होंने देखा कि कई लोगों के पास रहने के लिए पर्याप्त जगह तक नहीं थी, जिसके बाद उन्होंने गांव के जमींदारों से बात कर कुछ जमीन दान करने का आग्रह किया, जिसके परिणास्वरुप कई गरीब, बेसहारा और भूमिहीन लोगो को रहने के लिए पर्याप्त जगह मिल गई।

इसके बाद विनोबा जी ने देश के कई अन्य राज्यों में भूदान आंदोलन शुरु किया और करीब 13 साल तक वे यह आंदोलन चलाते रहे। वहीं इस दौरान बड़ी मात्रा में जमीदारों ने अपनी भूमि दान की। इस आंदोलन के दौरान उनकी त्याग, मेहनत, लगन और उदारता ने बड़े स्तर पर लोगों को प्रभावित किया।

भूदान आन्दोलन में मिली भारी सफलता के बाद समाज के हित के लिए भावे जी ने श्रमदान, दान, सर्वोदय पत्र, शांति सेना, जीवन दान और समाप्ति जैसे कई आंदोलन चलाए।

सामाजिक एवं धार्मिक योगदान –

विनोबा भावे जी पर धार्मिक ग्रंथ भगवत गीता का काफी प्रभाव पड़ा था। वे इसके महत्व को समझते हुए अपने जीवन में इसके विचारों  का पालन करते थे।

धार्मिक दृष्टिकोण वाले भावे जी ने आध्यात्म पर ध्यान केन्द्रित करने के लिए कई न सिर्फ कई आश्रमों की स्थापना की बल्कि सादा-जीवन, उच्च विचार की अवधारणा पर भी बल दिया। इसके अलावा उन्होंने कई धार्मिक स्थलों के निर्माण में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

भावे जी ने समाज के उत्थान एवं गरीबों के हित के लिए भी कई काम किए। उन्होंने न सिर्फ सर्वोदय आंदोलन की नींव रखी, बल्कि महिलाओं के लिए ब्रह्मा विद्या मंदिर की स्थापना की जहां पर गांधी जी के सिद्धांतों की शिक्षा दी जाती थी।

साहित्यिक योगदान –

आचार्य विनोबा भावे जी एक अहिंसावादी स्वतंत्रता सेनानी होने के साथ-साथ एक अच्छे साहित्यकार भी थे, जिन्होंने अपने जीवन में हिन्दी, इंग्लिश, गुजराती, कन्नड़, संस्कृत, मराठी समेत तमाम भाषाओं में किताबें लिखीं।

उनके द्धारा लिखी गई कुछ प्रसिद्ध किताबें-

  • भारत रतन आचार्य विनोबा गाथा
  • ग्रामस्वराज्य,सत्याग्रह-विचार
  • भारताचा धर्मविचार
  • वेदामृत
  • आध्यात्म-तत्व
  • गीता-प्रवचने
  • एकी राहा
  • नेकिने वागा
  • विठोबाचे दर्शन
  • अभंग व्रते
  • गीताई शब्द कोष
  • गीताई
  • अहिंसा की तलाश
  • गीता-सार

निधन –

आचार्य विनोबा भावे जी ने अपने जीवन के आखिरी दिन महाराष्ट्र के पौनार के ब्रह्रा विद्या मंदिर में व्यतीत किए थे। इसके साथ ही उन्होंने अपने अंतिम दिनों में जैन धर्म का पालन करना शुरु कर दिया था और तमाम चीजों का त्याग किया था।

उन्होंने 15 नवंबर, साल 1982 में अपनी अंतिम सांसे लीं। वहीं उस समय इंदिरा गांधी भारत की प्रधानमंत्री थी, जो कि उस दौरान सोवियत नेता लियोनिद को अंतिम विदाई देने के लिए मॉस्को के लिए रवाना होने वाली थी, लेकिन आचार्य विनोबा भावे की मौत की खबर सुनकर वे वहां नहीं गईं और विनोबा भावे जी की अंतिम यात्रा में शामिल हुईं।

सम्मान/पुरस्कार –

  • साल 1983 में अहिंसावादी स्वतंत्रता सेनानी विनोबा भावे जी को मरणोपरांत भारत सरकार द्धारा भारत के सर्वोच्च पुरस्कार ”भारत रत्न” से नवाजा गया।
  • साल 1958 में सामुदायिक नेतृत्व के लिए विनोबा भावे जी को ”अंतराष्ट्रीय रेमन मैग्सेस पुरस्कार” से सम्मानित किया गया। भावे जी इस पुरस्कार को प्राप्त करने वाले पहले भारतीय थे।

अनमोल वचन –

  1. किसी भी देश का बचाव हथियारों से नहीं, बल्कि नैतिक व्यवहार से करना चाहिए।
  2. मन जीतने के बगैर कोई भी ईश्वर की सृष्टि का रहस्य नहीं समझ सकता।
  3. सत्य बात को साबित करने के लिए किसी भी तरह की तर्क की जरुरत नहीं पड़ती।
  4. अगर हम चाहते हैं कि हमारा स्वाभाव आनंदित और मुक्त हो, तो हमें अपनी गतिविधियों को एक ही क्रम में लाने का प्रयास करना चाहिए।
  5. सीमा नहीं रहने पर आजादी का कोई भी मोल नहीं होता।
  6. अगर एक ही रास्ते पर रोज चला जाए तो हमें उसकी आदत लग जाती है, और हम अपने कदमों पर ध्यान दिए बिना अन्य तथ्यों के बारे में सोचते हुए चल सकते हैं।

16 thoughts on “आचार्य विनोबा भावे”

  1. शिवकुमार शिवेश

    इ.स. 1982 में विनोबा भावे इन्होंने प्रयोपवेशन करके स्वेच्छा मरण स्वीकार किया. भारत सरकारने 1983 को उन्हें मरणोत्तर ‘भारतरत्न’ ये सर्वोच्च किताब देकर उनके कार्यो का और योगदान का गौरव किया.
    ग्रंथ संपत्ती –
    1) ‘ॠग्वेद्सार’
    2) ‘ईशावास्य वृत्ती’
    3) ‘वेदान्तसुधा’
    4) ‘गुरुबोधसार’
    5) ‘भागवतधर्मप्रसार’
    आज उंनकी पुण्यतिथी के अवसर पर विनम्र श्रुद्धांजली संप्रेषित कर रहा हूँ
    ;; शिवकुमार शिवेश

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