मुगल बादशाह अकबर दरबार के नवरत्न

Akbar ke Navratna

जलालुउद्दीन मुहम्मद अकबर, भारत के महान मुगल बादशाह थे। उन्होंने भारतीय उपमहाद्धीप के ज्यादातर हिस्सों में मुगल साम्राज्य का विस्तार करने में विजय हासिल की थी, उन्हें अकबर-ए-आजम, महाबली शहंशाह और शहंशाह अकबर का नाम से भी जाना जाता था।

अकबर, ज्यादा पढ़े-लिखे नहीं थे, लेकिन उन्हें बुद्धिजीवियों की बहुत अच्छे से परख थी और वे हुनर का आदर करते थे। वहीं अकबर को श्रेष्ठ इतिहासकारों, महान विचारकों, अद्भुद कलाकारों, बुद्दिजीवियों, धर्म-गुरुओं और चित्रकारों से काफी लगाव था।

इसी वजह से उन्होंने अपने दरबार में 9 अत्यंत बुद्दीजीवी, श्रेष्ठ और गणुवान दरबारियों को नियुक्त किया था, जो कि बाद के अकबर के ‘नवरत्न’ – Akbar ke Navratna कहलाए थे, जिनके बारे में हम आपको नीचे बता रहे हैं –

Akbar Ke Navratna
Akbar Ke Navratna

मुगल बादशाह अकबर दरबार के नवरत्न – Akbar ke Navratna

  1. राजा बीरबल (मुगल सम्राट अकबर के मुख्य सलाहकार)
  2. सम्राट तानसेन (महान गायक)
  3. राजा मानसिंह (अकबर की सेना के प्रधान सेनापति)
  4. टोडरमिल (मुगल सम्राट अकबर के के वित्त मंत्री)
  5. अबुलफजल (महान दार्शनिक और साहित्यकार)
  6. फैजी (फारसी कवि)
  7. अब्दुर्रहीम खान-ए-खाना (महान विद्दान और कवि)
  8. मुल्ला दो प्याजा (अकबर के सलाहकार )
  9. फकीर अज़ुद्दीन (अकबर के रसोई घर के प्रधान)

राजा बीरबल (मुगल सम्राट अकबर के मुख्य सलाहकार और सर्वोच्च न्याय अधिकारी)

वर्ष 1528 में कालपी के एक ब्राह्णाण वंश में जन्में बीरबल, मुगल सम्राट अकबर के नवरत्नों में सबसे ज्यादा प्रसिद्द थे। अकबर अपनी वाक् पटुता और चतुराई के लिए जाने जाते थे। बीरबल एक योग्य वक्ता, और मशहूर कहानीकार थे, जिन्हें उनकी हाजिर जवाबी और हास्य चुटकुलों के कारण काफी पसंद किया जाता था। अकबर-बीरबल के रोचक किस्से (Akbar Birbal Story) आज भी काफी पसंद किये जाते हैं। बीरबल पहले एवं आखिरी हिन्दु राजा थे, जिन्होंने दीन-ए-इलाही धर्म को स्वीकार किया था।

बीरबल की योग्यता से प्रभावित होकर मुगल सम्राट अकबर ने उन्हें अपने दरबार में सर्वोच्च न्याय अधिकारी के पद पर नियुक्त किया था, और उन्हें कविराज और राजा की उपाधि प्रदान की थी, इसके साथ ही उन्हें 2000 का मनसब भी तोहफे के रुप में दिए थे।

सम्राट अकबर युद्ध समेत अपने तमाम महत्वपूर्ण फैसले, अत्यंत बुद्दिजीवी राजा बीरबल की सलाह से लेते थे। आपको बता दें कि साल 1586 में युसुफजइयों के विद्रोह को दबाने के लिए गए बीरबल की हत्या कर दी गई थी, बीरबल की हत्या से सम्राट अकबर को गहरा सदमा पहुंचा था।

सम्राट तानसेन (महान गायक)

ग्वालियर में जन्में संगीत सम्राट तानसेन, अकबर के नौरत्नों में से एक थे। उनके संगीत के मुगल सम्राट अकबर भी दीवाने थे। उनके अद्भुत और मधुर संगीत सुनकर अकबर मंत्रमुग्ध हो जाते थे।

मियां तानसेन की अद्भुत गायकी से प्रभावित होकर ही अकबर ने उन्हें अपने दरबार में प्रमुख स्थान दिया था और उन्हें ‘कण्ठाभरणवाणीविलास’ की उपाधि से भी नवाजा था।

राजा मानसिंह (अकबर की सेना के प्रधान सेनापति)

अकबर के पसंदीदा दरबारियों में से एक राजा मानसिंह अपनी बुद्दिमत्ता और अद्भुत साहस के लिए काफी तारीफें बटोरते थे। वे राजस्थान के आम्बेर (जयपुर) के शासक थे और अकबर की विशाल सेना के प्रधान सेनापति थे।

राजा मानसिंह ने शहंशाह अकबर के मुगल सम्राज्य के विस्तार करने में काफी सहयोग दिया था। राजा मानसिंह से मिलने के बाद, सम्राट अकबर ने हिन्दुओं के प्रति अपना नजरिया बदल, उदारता का व्यवहार किया और जजिया कर को खत्म कर दिया था।

इसके साथ ही आपको बता दें कि बिहार, बंगाल और काबुल समेत तमाम प्रदेशों में राजा मानसिंह ने सैनिक अभियान भी चलाया था।

राजा टोडरमिल (मुगल सम्राट अकबर के राजस्व और वित्त मंत्री)

अकबर के नौरत्नों में से एक राजा टोडरमल वित्तीय मामलों के उच्च कोटि के जानकार थे, उन्हें वित्तीय मामलों में काफी अच्छा अनुभव था। उनकी इस प्रतिभा को देखकर मुगल सम्राट उन्हें काफी पसंद करते थे और इसलिए उन्होंने राजा टोडरमल को अपने दरबार में वित्त मंत्री के पद पर नियुक्त किया था।

आपको बता दें कि राजा टोडरमल ने भूमि पैमाइश के लिए दुनिया की पहली मापन प्रणाली भी तैयार की थी। इसके साथ ही राजा टोडरमल ने मुगल बादशाह अकबर के शासन-काल में भूमि बंदोबस्त और मालगुजारी में कई प्रमुख सुधार किए थे।

अबुलफजल (महान दार्शनिक और साहित्यकार)

साल 1550 में जन्में अबलुफजल, एक महान साहित्यकार, इतिहासकार, लेखक, राजदूत, सेनानायक और दर्शनशास्त्र के विद्धान थे। वे वाद-विवाद में इतने तेज थे कि उनके सामने कोई टिक नहीं पाता था।

उनकी बुद्धिमत्ता और योग्यता से अकबर काफी प्रभावित थे, इसलिए अकबर ने उन्हें मुख्य सलाहकार और अपने मुख्य सचिव के तौर पर अपने दरबार में नियुक्त किया था। आपको बता दें कि अबुल फजल ने आइने अकबरी और अकबरनामा जैसे कई मुख्य ग्रन्थों की रचना की थी।

राज सिंहासन की चाहत में शहजादे सलीम ने, वीर सिंह बुंदेला के साथ मिलकर मुगलकालीन शिक्षा और साहित्य में अपना महत्वपूर्ण योगदान देने वाले अबुल फजल की हत्या की साजिश रची, और फिर साल 1602 में बुन्देला सरदार ने उनकी हत्या कर दी।

फैजी (फारसी कवि)

फैजी, अकबर के दरबार के मुख्य सलाहकार अबुल फजल के भाई थे, जो कि फारसी भाषा के विद्धान थे, उन्होंने फारसी भाषा में कई कविताएं भी लिखीं थी, उनके गुणों से प्रभावित होकर मुगल बादशाह अकबर ने उन्हें अपने पुत्र के लिए गणित शिक्षक के तौर पर नियुक्त करने के साथ अपने दरबार में उन्हें राज कवि के रुप में नियुक्त किया था।

आपको बता दें कि फैजी दीन-ए-इलाही धर्म के कट्टर समर्थक थे।

अब्दुर्रहीम खान-ए-खाना (महान विद्दान और कवि)

अब्दुर्रहीम खान-ए- खाना, उच्च कोटि के विद्धान और कवि थे, जिन्हें अकबर के सबसे खास दरबारियों में से एक माना जाता था। अब्दुर्रहीम खान-ए-खाना को फारसी ही नहीं बल्कि अरबी, हिन्दी, तुर्की, राजस्थानी और संस्कृत भाषाओं का भी अच्छा ज्ञान था।

अब्दुर्रहीम खान-ए- खाना ने ही तुर्की में लिखे बाबरनामा का फारसी भाषा में अनुवाद किया था। उनकी प्रतिभा से सम्राट अकबर काफी प्रभावित थे, इसलिए अकबर ने न सिर्फ उन्हें अपने दरबार के नौरत्नों में प्रमुख स्थान दिया बल्कि उन्हें खानखाना की उपाधि से भी सम्मानित किया।

मुल्ला दो प्याजा (अकबर के सलाहकार)

मुल्ला दो प्याजा, अकबर के दरबार में नौरत्नों में से एक थे, जिनका पूरा नाम अब्दुल हसन था और वे हुंमायूं के शासनकाल में भारत आए थे। अरब के रहने वाले मुल्ला दो प्याजा, सम्राट अकबर के मुख्य सलाहकार थे।

कहा जाता है कि उन्हें खाने में दो प्याज बेहद पसंद थी, इसलिए सम्राट अकबर ने उन्हें दो प्याजा की उपाधि प्रदान की थी, इसी के बाद वे मुल्ला दो प्याजा के नाम से प्रसिद्ध हुए थे।

फकीर अज़ुद्दीन (अकबर के रसोई घर के प्रधान)

फकीर-अजुद्दीन, मुगल बादशाह अकबर के नौरत्नों में से एक थे। वे अकबर के दरबार के प्रमुख धार्मिक मंत्री, उनके प्रमुख सलाहकार और सूफी फकीर थे। उन्होंने कई महत्वपूर्ण विषयों पर उन्होंने मुगल सम्राट अकबर को धार्मिक सलाह दी थी।

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