बसवकल्याण किले का इतिहास | Basavakalyana Fort History

Basavakalyana Fort

कर्नाटक के बीदर जिले में स्थित बसवकल्याण किले को शुरू में कल्याण किले के नाम से जाना जाता था। इस किले का निर्माण 635 मीटर (2082 फीट) की ऊंचाई पर किया गया है।

Basavakalyana Fort

बसवकल्याण किले का इतिहास – Basavakalyana Fort History

तैलापा द्वितीय (973-997) के नेतृत्व में चालुक्य ने राष्ट्रकूट को पराजित किया। उन्होंने कल्याण में अपनी राजधानी स्थापित की और 1947 में भारत की आज़ादी के बाद इसका अधिकारिक नाम बसवकल्याण रखा गया।

तैलापा द्वितीय के शासनकाल में किले का निर्माण 973 में नलराजा द्वारा किया गया। बसवकल्याण किले पर लगे शिलालेखो से यह जानकारी मिली है।

1050 से 1195 तक बसवकल्याण पश्चिमी चालुक्य साम्राज्य (कल्याणी चालुक्य) की राजधानी हुआ करता था। सोमेश्वर (1041-1068) ने कल्याण को अपनी राजधानी बनाया और बादामी चालुक्य से अलग होकर कल्याणी चालुक्य के नाम से प्रसिद्ध हुए।

बाद इसपर सोमेश्वर द्वितीय, छठे विक्रमादित्य, सोमेश्वर तृतीय, जगदेका मल्ला तृतीय और तैलापा तृतीय ने शासन किया।

10 से 12 वी शताब्दी के बीच, यही साम्राज्य आधे से ज्यादा भारत पर शासन कर रहा था। दुसरे शासक जैसे कलाचुरी साम्राज्य, यादव, गयासुद्दीन खिलजी, मुहम्मद बिन तुगलक, बीदर के सुल्तान, बीजापुर सुल्तान, अहमदनगर के सुल्तान, विजयनगर साम्राज्य, मुग़ल और निजाम किले पर नियंत्रण रख उसे नवीनीकृत करते थे।

कालाचुरी साम्राज्य के बिज्जल देव (1130-1167) जो 1156 से 1168 के बीच चालुक्य के सामंती प्रमुख थे, उन्होंने तैलापा तृतीय को चालुक्य साम्राज्य के बाहर निकाल दिया और शासक एवं उसके पुरे परिवार को मार दिया।

मारने के बाद 1163 से 1167 तक उन्होंने वहा शासन किया, जिसने पूरा डेक्कन और कलिंग शामिल था। इसके बाद उन्होंने अपनी राजधानी को मंगलिवेद से कल्याण स्थानांतरित की और कल्याण को अपने साम्राज्य की नयी राजधानी घोषित की।

इसके बाद 1167 में अपने पुत्र सोविदेव के लिए उन्होंने साम्राज्य का त्याग किया और 1168 में उनकी हत्या कर दी गयी। बिज्जल जैन धर्म से संबंध रखता था लेकिन कहा जाता है की उसे वीरशैव धर्म से काफी लगाव हो चूका था।

बिज्जल के नेतृत्व में बसवेश्वर एक शक्तिशाली प्रधानमंत्री बन चुके थे और अपनी धार्मिक कथाओ को फ़ैलाने के लिए अपने अधिकारों का उपयोग करते थे। कलचुरी के शासको ने बहुत कम समय तक चालुक्य साम्राज्य पर राज किया।

1310 में दक्षिण आक्रमण के समय मल्लीकाफूर ने बसवकल्याण किले पर आक्रमण किया। 16 वी शताब्दी में विजयनगर के शासक रामराय (1484-1565) चालुक्य साम्राज्य (974-1190) के अपने पूर्वजो का पता लगाया और साथ ही अपने साम्राज्य की राजधानी कल्याण का भी पता लगाया।

“चालुक्य के शासक” होने के अलावा उन्हें “लॉर्ड ऑफ़ कल्याण” के नाम से भी जाना जाता है।

कल्याण किले पर शासन करते हुए उन्होंने डेक्कन के बहुत से मुस्लिम शासको से संधि कर रखी रही। 1543 में उन्होंने बीदर के सुल्तान को पराजित किया और किले का नियंत्रण बीजापुर के सुल्तान को सौपा।

1549 में जब परिस्थिति बदल गयी, तो उन्होंने अहमदनगर के सुल्तान के साथ हाथ मिला लिया और कल्याण किले पर आक्रमण किया और अपने मित्र को वहा का शासन सौपा।

जबकि 1558 में बीजापुर के सुल्तान की मृत्यु के बाद उनके बेटे आदिल शाह प्रथम ने राम राय की दोस्ती को भूलकर अहमदनगर के सुल्तान को पराजित कर दिया।

अहमदनगर के सुल्तान को पराजित करने के लिए राय ने तीन शर्ते रखी थी, पहली शर्त यह थी की सुल्तान उनसे टेंट में मिले और पान स्वीकार करे, दूसरी शर्त यह थी की सुल्तान के जनरल को मार दिया जाए और तीसरी शर्त यह की की वह स्वयं कल्याण किले की चाबी सौप दे।

तीनो शर्तो को पूरा किया गया। कल्याण किले की चाबी भी अहमदनगर के हुसैन राय को सौपी गयी, जिन्होंने वह चाबी अपने मित्र बीजापुर के आदिल शाह को दे दी।

1561 में अहमदनगर के हुसैन ने फिर से किले को हासिल करने की कोशिश की लेकिन इस बार राय और उनके मित्र आदिल शाह प्रथम ने उन्हें उखाड़ फेंक दिया। ले

किन माल-तोल में राय के लुटेरे दृष्टिकोण की वजह से बीजापुर और अहमदनगर के सुल्तान उनसे काफी नाराज हो गये।

इसके परिणामस्वरूप 1565 में तल्लिकोटा के युद्ध में विजयनगर साम्राज्य पूरी तरह से गिर गया, जिसमे डेक्कन के मुस्लिम शासक, बीदर, अहमदनगर, बीजापुर और गोलकोंडा के शासको ने राय को पराजित करने के लिए हाथ मिल लिए थे।

सोमेश्वर, कश्मीर के कवी बिल्हाना और विज्ञानेश्वर कल्याण में विक्रमादित्य द्वितीय के दरबार में थे।

12 वी शताब्दी में राजा बिज्जल देव के शासनकाल में जब बसवकल्याण प्रधानमंत्री थे तब सांस्कृतिक और सामाजिक क्रांति की शुरुवात हुई और उन्होंने जातिवाद के खिलाफ आवाज उठाई। बसवेश्वर ने ही वीरशैव दर्शनशास्त्र की स्थापना की थी।

चालुक्य के शासनकाल में जैन धर्म की नवनिर्मिति की गयी। चालुक्य राजाओ द्वारा निर्मित किलो की दीवारों पर जैन धर्म के चित्र लगाये जाते थे। किले के भीतर बने म्यूजियम में भी बहुत सी जैन मूर्तियाँ देखने मिलती है, जिनका संबंध 10 वी और 11 वी शताब्दी से है। यहाँ पर एक जैन मंदिर भी था, जिसे बाद में ध्वस्त कर दिया गया था।

बसवकल्याण किले की वास्तुकला – Basavakalyan Fort Architecture

बसवकल्याण किले का निर्माण रक्षात्मक संरचना में किया गया है और रणनीतिक रूप से यह छलावरण पृष्टभूमि में स्थापित है। यह किला दूर से देखने लायक नही है और यह किले के भीतर रहने वाले सेना के लिए एक अच्छा फायदा है।

पहाड़ी के उपर बड़े-बड़े पत्थर इस किले से जुड़े हुए है, जिनका उपयोग किले की दीवारों को सहायता देने के लिए किया गया है। किले में बहुत से सैन्य घर और मीनारे भी बनाई गयी है। किले में 3 गाढ़ी अनियमित दीवारे है।

इस रक्षात्मक किले के 7 द्वार है। किले के प्रवेश द्वार को सुशोभित किया गया है और यहाँ इसी दिशा में बालकनी भी है। सीढियों के माध्यम से किले से पंहुचा जा सकता है। किले के बीच का आँगन मजबूत दीवारों से घिरा हुआ है, जहाँ सैन्य कक्ष भी है।

इन कक्षों को गढ़ों और तोपों के साथ जोड़ा गया है। देखा जाए तो, तोपे गढ़ के रास्ते में ही स्थापित है। किले के प्रवेश द्वार के उपर एक खुली जगह भी है, जहाँ से किले पर आक्रमण कर रहे विरोधियो पर गर्म तेल डाला जा सकता है।

किले की रक्षा करने के लिए गहरी खाई का उपयोग किया जाता है। खाई पुरे किले को घेर लेती है।

बसवकल्याण किले के मुख्य द्वार को अखंड दरवाजा के नाम से जाना जाता है। इसका निर्माण लाल पत्थर की चार पट्टिका से किया गया है। किले के भीतर राजमहल पैलेस का भी निर्माण किया गया है।

महल की उपरी दीवार को रंगीन कलाकृतियों से सजाया गया है। जबकि महल की मुख्य दीवारों पर कलश और फूलदान के चित्र बनाये गये है। महल के पास एक मंदिर भी है, लेकिन वहां कोई मूर्ति नही है।

रानी के महल को रानी महल के नाम से जाना जाता है, जो मंदिर के पीछे बना हुआ है। मंदिर तक पहुचने के लिए महल में एक विशेष रास्ता बनाया गया है। मंदिर के पास एक छोटा तालाब भी है।

इसके अलावा बसवकल्याण किले में दुसरे बहुत से स्मारक बने हुए है, जैसे की इसका उपयोग मुहर्रम की प्रार्थना करने के लिए किया जाता है, पश्चिमी और उत्तर-पूर्वी दिशा में दो दीवारे बनाई गयी है, एक छोटा बनाया गया है।

साथ ही किले से बाहर निकलने के लिए गुप्त भूमिगत रास्ता भी बनाया गया है। जिसका उपयोग आपातकालीन परिस्थिति में दुश्मन से बचने के लिए किया जाता था।

वर्तमान में बसवकल्याण किला एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल के रूप में विकसित हो रहा है। कर्नाटक सरकार इस किले की देखरेख करती है।

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